उत्तर प्रदेश की कला व संस्कृति (Art and Culture) | TheExamPillar
Art and Culture in Uttar Pradesh

उत्तर प्रदेश की कला व संस्कृति

संगीत (Music)

  • उत्तर प्रदेश में ‘संगीत’ का प्रसंग वैदिक काल से ही उपलब्ध है। उपनिषदों में सामवेद के गायन और संगीत वाद्यों का वर्णन मिलता है। राज्य में छठी शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के मध्य संगीत के क्षेत्र में कश्यप, शार्दुल, दत्तिल मातंगम, अभिनव गुप्त तथा हरिपाल आदि कुछ विश्रुत संगीतज्ञों के नाम उल्लेखनीय हैं।
  • भारतीय संगीत के शुभारम्भ के विषय में कोई प्रमाणिक तथ्य उपलब्ध नहीं है। इस प्रकार, भारतीय संगीत का शुभारम्भ कब और किसने किया, यह तथ्य आज भी विस्मृति के गर्भ में छिपा है। पौराणिक कथाओं एवं श्रुतियों से स्पष्ट होता है कि संगीत का शुभारम्भ देवी-देवताओं ने शुरू किया था।
  • 15वीं एवं 16वीं शताब्दियों तक भारतीय संगीत में फारसी धुनों का समावेश हुआ। विख्यात सूफी सन्त, कवि, संगीतज्ञ तथा प्रशासक अमीर खुसरो ने ‘सितार’ का आविष्कार किया, जो ‘त्रितन्त्र वीणा’ का ही एक समुन्नत रूप था। इतना ही नहीं उन्होंने ‘ख्याल गायन’ को प्रोत्साहित किया और भारतीय संगीत में फारसी की धुनों को समाहित करके नए रागों का सृजन भी किया।

भक्ति -युग में संगीत

उत्तर प्रदेश में भक्ति आन्दोलन के प्रादुर्भाव के साथ ही संगीत के क्षेत्र में भी विविधपक्षीय उन्नति हुई। महान् संगीतज्ञ, ध्रुपद-धमार के प्रवर्तक तथा सन्त स्वामी हरिदास जी वृन्दावन ‘निधिवन’ में निवास करते थे। संगीताचार्य तानसेन सरीखे उनके अनेकानेक शिष्य अकबर के दरबारी संगीतकार थे। जौनपुर के शासक सुल्तान हुसैन शर्की भी एक महान् संगीत प्रेमी तथा संगीतज्ञ थे, जिन्होंने कव्वाली की धुन पर ‘बड़ा ख्याल का प्रवर्तन किया। शाहजहां के शासनकाल में वाराणसी के प्रख्यात संगीतकार जगन्नाथ को ‘पण्डितराज’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था। मुगल शासन के अन्तिम चरण में जौनपुर के शक शासक द्वारा प्रणीत अनेक बड़े ख्यालों को दो महान् बीनकारों ‘अदारंग’ तथा ‘सदारंग ने विकसित किया। उत्तर प्रदेश में लखनऊ, वाराणसी तथा आगरा आदि। घरानों ने शास्त्रीय संगीत के इतिहास में अनेकानेक पृष्ठ जोड़े। प्रदेश के इन घरानों ने देश को ऐसे-ऐसे महान् गायक एवं वादक दिए, जिन्होंने ‘संगीत’ के इतिहास को समृद्ध किया।

संगीत विषयक प्रमुख तथ्य

  • उत्तर प्रदेश में ही मृदंग, वीणा, एकतारा, ढोलक, सितार, मंजीरा, चिमटा, सुंघरू, घड़ा, नगाड़ा आदि जैसे वाद्ययन्त्रों का आविष्कार हुआ।
  • प्रख्यात सूफी कवि, सन्त, संगीतज्ञ तथा प्रशासक अमीर खुसरो ने ‘सितार’ का आविष्कार किया।
  • जौनपुर के सुल्तान हुसैन शर्की ने ‘बड़ा ख्याल’ जैसी नई गायन शैली का आविष्कार किया।
  • अवध के महान् संगीतज्ञ बिंदादीन महाराज ने ‘कथक’ में ‘ठुमरी’ गायन का समावेश किया।
  • लखनऊ के महान् गायक मियां शौरी ने ‘टप्पा गायकी’ शैली प्रचलित की, जो पंजाब की ‘हीर-शैली गायकी’ पर आधारित है।
  • महान् गायक तथा संगीतज्ञ तानसेन के दामाद हाजी सुल्तान ने ‘ख्याल गायकी’ को प्रचलित करके ‘आगरा घराना’ को जन्म दिया।
  • आधुनिक शास्त्रीय गायन का पिता उस्ताद फैयाज खां को माना जाता है, जिन्हें ‘आफताब-ए-मोसिकी’ (‘संगीत के सूर्य’) उपाधि से सम्मानित किया गया। रामपुर के संगीतज्ञ वजीर अली खां ने ‘वीणा-वादन’ में ख्याल पद्धति का प्रयोग करके ‘सैनिया घराना’ जैसे संगीत घराने को जन्म दिया।
  • अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के महान् सितार वादक ‘भारत रत्न’ पण्डित रविशंकर रामपुर के महान् सितारज्ञ उस्ताद अलाउद्दीन खां के प्रमुख शिष्य और दामाद भी हैं।
  • देश ने संगीत-क्षेत्र का सर्वप्रथम पदक सम्मान ‘रामपुर घराना’ के संस्थापक उस्ताद मुश्ताक हुसैन खां को प्रदान किया था।

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