लोकायुक्त भारत में राज्यों द्वारा गठित भ्रष्टाचाररोधी एक संस्था है। इसका गठन स्कैंडिनेवियन देशों में प्रचलित ओंबड्समैन (Ombudsman) की तर्ज पर किया गया था। बिहार में सर्वप्रथम लोकायुक्त न्यायमूर्ति श्रीधर वासुदेवा सोहनी बने, जिनका कार्यकाल 28 मई, 1971 ई. से 27 मई, 1978 तक रहा। अभी तक बिहार में कुल आठ हुए हैं। भारत के राष्ट्रपति के द्वारा लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक, 2013 पर 1 जनवरी, 2014 को हस्ताक्षर किए गए, जिसके अनुसार लोकायुक्त के निम्न प्रमुख कार्य हैं –
- कुशासन की वजह से न्याय एवं परेशानी से संबंधित नागरिकों की शिकायतों की जाँच करना।
- सरकारी कर्मचारी के खिलाफ पद का दुरुपयोग, भ्रष्टाचार या ईमानदारी में कमी के आरोपों की जाँच करना। शिकायतों एवं भ्रष्टाचार उन्मूलन के संबंध में इस प्रकार के अतिरिक्त कार्य की जानकारी राज्यपाल के द्वारा निर्दिष्ट अधिसूचना से दी जा सकती है।
- भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियों, अधिकारियों और प्रस्तावों की जाँच का पर्यवेक्षण करना।
- राज्यपाल की इच्छा से किसी भी कार्यवाही की जाँच करना।
लोकायुक्त को उनके कार्यों के प्रदर्शन पर वार्षिक समेकित रिपोर्ट राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत करनी होती है। मुख्यमंत्री, मंत्री, विधानसभा या विधानपरिषद् सदस्य एवं राज्य सरकार के अधिकारी के खिलाफ जाँच करने से पूर्व राज्य सरकार से अनुमति आवश्यक है। लोकायुक्त का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है।
बिहार के लोकायुक्तों की लिस्ट
लोकायुक्त | कार्यकाल |
न्यायमूर्ति श्रीधर वासुदेवा सोहनी | 28 मई 1971 से 27 मई 1978 |
न्यायमूर्ति श्यामनंदन प्रसाद सिंह | 08 जून 1978 से 07 जून 1983 |
न्यायमूर्ति त्रिवेणी सहाय मिश्र | 18 जनवरी 1986 से 17 जनवरी 1991 |
न्यायमूर्ति सैयद सरवार अली | 07 फरवरी 1991 से 06 फरवरी 1996 |
न्यायमूर्ति नर्वदेश्वर पांडेय | 08 जून 2001 से 07 जून 2006 |
न्यायमूर्ति रामनंदन प्रसाद | 25 जुलाई 2006 से 24 अगस्त 2011 |
न्यायमूर्ति सी.एम. प्रसाद | 25 अगस्त 2011 से 24 अगस्त 2016 |
न्यायमूर्ति श्याम किशोर शर्मा | 14 फरवरी 2017 से अब तक |
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