Bagwal War Fair of Devidhura

देवीधुरा का बग्वाल युद्ध मेला

August 20, 2024

चंपावत जिले का बाराही धाम देवीधुरा और बग्वाल युद्ध

चंपावत जिले के देवीधुरा स्थित बाराही धाम में हर साल रक्षाबंधन के अवसर पर बग्वाल युद्ध का आयोजन किया जाता है। यह आयोजन उत्तराखंड की पौराणिक परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस युद्ध में चार खामों (क्षेत्रीय समुदायों) के रणबांकुरे (योद्धा) भाग लेते हैं और एक दूसरे पर फल, फूल, और पत्थरों से हमला करते हैं। इस युद्ध के दौरान प्रतिभागी लाठी और रिंगाल की बनी ढालों से खुद को बचाते हैं। बग्वाल युद्ध में हिस्सा लेने वाले कई लोग घायल हो जाते हैं, जिनका तुरंत इलाज स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा किया जाता है। इस ऐतिहासिक आयोजन को देखने के लिए हजारों लोग मैदान में इकट्ठा होते हैं।

बग्वाल युद्ध की पौराणिक मान्यता

बग्वाल युद्ध की जड़ें पौराणिक काल से जुड़ी हुई हैं। यह माना जाता है कि अतीत में देवीधुरा में नरबलि देने की प्रथा थी। चार खामों के लोग अपनी आराध्या देवी बाराही को प्रसन्न करने के लिए हर साल एक नरबलि दिया करते थे। एक बार, चम्याल खाम की एक वृद्धा के एकमात्र पौत्र की बलि देने की बारी आई। वंश नाश के डर से वृद्धा ने माता बाराही की तपस्या की और उनसे अपने पौत्र की जान की रक्षा की प्रार्थना की। कहा जाता है कि माता बाराही प्रसन्न होकर वृद्धा को दर्शन दीं और चार खामों के मुखियाओं को आपस में युद्ध करने का निर्देश दिया। यह युद्ध तब तक चलता जब तक कि एक मानव के बराबर रक्त नहीं बह जाता। तभी से यह बग्वाल युद्ध हर साल खेला जाता है, जिसमें रणबांकुरे इस परंपरा को निभाते हैं।

रक्षाबंधन पर बग्वाल युद्ध का आयोजन

बग्वाल युद्ध का आयोजन हर साल रक्षाबंधन के दिन किया जाता है। यह आयोजन देवीधुरा के बाराही धाम में स्थित बाराही मंदिर के प्रांगण में होता है। इस युद्ध में चार खामों – लमगड़िया, बालिग, गहड़वाल, और चमियाल के रणबांकुरे भाग लेते हैं। युद्ध शुरू होने से पहले, सभी रणबांकुरे सुबह-सुबह सज-धज कर मंदिर परिसर में आते हैं और देवी बाराही की आराधना करते हैं। देवी की पूजा के बाद ही इस युद्ध की शुरुआत होती है। इस आयोजन को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं और इस अद्भुत खेल का आनंद लेते हैं।

बग्वाल युद्ध की प्रक्रिया और अद्भुत खेल

बग्वाल युद्ध की प्रक्रिया अत्यंत रोचक और रोमांचक होती है। रणबांकुरे दो समूहों में बंट जाते हैं, जिनमें लमगड़िया और बालिग खाम के रणबांकुरे एक तरफ होते हैं और गहड़वाल और चमियाल खाम के रणबांकुरे दूसरी तरफ। युद्ध शुरू होने से पहले, मंदिर परिसर में देवी बाराही की आराधना की जाती है। इसके बाद, दोनों ओर के रणबांकुरे पूरी ताकत और जोश के साथ एक-दूसरे पर पत्थर चलाते हैं। यह खेल तब तक जारी रहता है जब तक कि एक आदमी के बराबर खून नहीं गिर जाता। इस खेल की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें कोई दुश्मन नहीं होता। सभी रणबांकुरे पूरे मनोयोग से इस खेल में भाग लेते हैं और युद्ध के अंत में सभी लोग गले मिलते हैं। इस खेल में गंभीर चोटें आमतौर पर नहीं लगतीं, हालांकि कुछ लोगों को मामूली चोटें जरूर लग सकती हैं। घायल होने वाले लोगों का तुरंत प्राथमिक उपचार किया जाता है।

बग्वाल युद्ध की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर

देवीधुरा का बग्वाल युद्ध एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर है जो उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की पहचान है। इस युद्ध की शुरुआत प्राचीन काल में हुई थी और यह परंपरा आज भी उसी श्रद्धा और उत्साह के साथ निभाई जाती है। यह युद्ध सिर्फ एक खेल नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है। बग्वाल युद्ध के आयोजन के माध्यम से स्थानीय लोग अपनी परंपराओं को जीवित रखते हैं और अपनी सांस्कृतिक धरोहर को अगली पीढ़ी तक पहुंचाते हैं।

इस आयोजन का हिस्सा बनने के लिए हजारों लोग देवीधुरा में इकट्ठा होते हैं, जो इस पर्व की लोकप्रियता और धार्मिक महत्व को दर्शाता है। बग्वाल युद्ध में भाग लेने वाले रणबांकुरे और इसे देखने आने वाले दर्शक इस आयोजन को विशेष मानते हैं और इसे जीवन का एक महत्वपूर्ण अनुभव मानते हैं।

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