कुमाऊँ रेजीमेन्ट एवं गढ़वाल राइफल्स | TheExamPillar
Kumaon Regiment and Garhwal Rifles

कुमाऊँ रेजीमेन्ट एवं गढ़वाल राइफल्स (Kumaon Regiment and Garhwal Rifles)

उत्तराखण्ड वीरों की भूमि है। प्रचीन काल से ही इस क्षेत्र के लोगों की सेना में जाने की परम्परा रही है। इस क्षेत्र के वीरों से मुहम्मद गोरी, तैमूर, शाहजहाँ, औरंगजेब आदि बहादुर राजाओं को भी मात खानी पड़ी थी। आधुनिक अस्त्र-शस्त्रो से लैश अंग्रेज और इन्ही के समान वीर गोरखें ही केवल इन्हें पराजित कर पाये थे। राज्य में थल सेना के दो रेजीमेन्ट (कुमाऊँ रेजीमेन्ट एवं गढ़वाल राइफल्स (Kumaon Regiment and Garhwal Rifles)) मुख्यालय तथा कई छावनियां हैं –

कुमाऊँ रेजीमेन्ट (Kumaon Regiment)

Kumaon Regiment

कुमाऊँ क्षेत्र के लोगो से बनी कुमाऊँ रेजीमेन्ट को ‘कुमाऊँ रेजीमेन्ट’ नाम 27 अक्टूबर 1945 को मिला और मई 1948 में इसका मुख्यलाय आगरा की जगह रानीखेत (अल्मोड़ा) में स्थानान्तरित किया गया। लेकिन देश के विभिन्न भागो में भिन्न-भिन्न नामो से यहाँ के सैनिकों को लेकर रेजीमेन्टों का गठन बहुत पहले से किया जाता रहा है।

  • 1788 में सर्वप्रथम दक्षिण भारत में बरार के नवाब सलावत खाँ ने एल्लिचपुर ब्रिगेड नाम से एक ब्रिगेड गठित किया था। 35 वर्ष बाद वहाँ दूसरा ब्रिगेड गठित किया गया था। ये दोनो वर्तमान में बटालियन 4 कुमाऊँ तथा बटालियन 5 कुमाऊँ कहलाते है।
  • 1797 में हैदारबाद के निजाम ने भी एक ब्रिगेड गठित किया था। जिसे आज बटाजियन 2 कुमाऊँ कहा जाता है।
  • 1917 में अंग्रेजो (कर्नल लांगर) ने प्रथम कुमाऊँ राइफल्स की स्थापना की थी, जिसे अब बटालियन 3 कुमाऊँ के नाम से जाना जाता है।
  • ग्वालियर के सिन्धिया रियासत में भी 4 ग्वालियर इफेन्ट्री के नाम से एक बटालियन गठित की गई थी, जिसे अब 5 मैकेनाइज्ड इन्फेन्ट्री कहा जाता है।
  • कुमाऊँ रेजीमेन्ट ने भारतीय सेना को तीन सेनाध्यक्ष जनरल एस. एम. श्रीनागेश (1955 – 57), जनरल के. एस. थिमैय्या (1957 – 61) और जरनल टी. एन. रैना (1975 – 78) प्रदान किए है। स्वतंत्रता से पूर्व इस रेजीमेंट को 18 युद्ध सम्मान मिल चुके थे।
  • भारत विभाजन के दौरान जम्मू-कश्मीर के मोर्चे पर कबाइलियों को पीछे धकेलने और हवाई अड्डे की रक्षा करने में 4 कुमाऊँ बटालियन ने अद्वितीय वीरता दिखाई और इस मोर्चे पर मेजर सोमनाथ शर्मा के अदभुत पराक्रम के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। ये पहले भरतीय सैनिक थे, जिन्हें वीरता के लिए यह सर्वोच्च सम्मान मिला था। इस मोर्चे पर रेजीमेन्ट को सात चक्र और 36 वीर चक्र प्राप्त हुए थे।
  • 1962 में भरत-चीन युद्ध में रजांगला (लद्दाख ) में मेजर शैतान सिहं के नेतृत्व में रेजीमेंट के सैनिकों ने चीनियों के खिलाफ जबर्दस्त मोर्चे बंदी की। असाधारण वीरता के लिए मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांन्त परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। सैनिकों को आठ वीर चक्र मरणोपरांत मिले और 6 सेना मेडल प्राप्त हए।
  • कारगिल युद्ध में भी इस रेजीमेंट की पहली बटालियन महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • इस रेजिमेंट के 13वीं व 15वीं बटालियन को भारतीय सेना में वीरो में से वीर कहा जाता है।
  • पहली बार सियाचीन में 19 कुमायूं उतरी थी।

स्वतंत्रता के बाद अब तक इसे 2 परमवीर चक्र, 7 कीर्ति चक्र, तीन अशोक चक्र, 11 महावीर चक्र, 28 शौर्य चक्र तथा 150 से अधिक सेना मेडल मिल चुके हैं। कुमाऊँ रेजीमेंट वह प्रथम रेजीमेंट है, जिसे 8 अप्रैल, 1961 को राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने कलर प्रदान किया गया था।

हिमालय की त्रिशुल, कामेट, नन्दादेवी चोटियों पर चढ़ने का गौरव कुमाऊँ रेजीमेंट केलेफ्टिनेंट कर्नल नरेन्द्र कुमार ने प्राप्त किया था। इन्हें पदम्श्री से सम्मानित किया गया। फरवरी 1988 में इस रेजीमेंट पर डाक टिकट जारी किया गया।

 

गढ़वाल राइफल्स (Garhwal Rifles)

Garhwal Rifles

1815 में अंग्रेजी सेना और गोरखों के युद्ध में यद्यपि गोरखें पराजित हो गये थे, लेकिन उनकी वीरता से प्रभावित होकर अंग्रजों ने उन्हे अपनी सेना में भर्ती करने का निर्णय लिया और गोरखा रेजीमेन्ट के नाम से एक अलग रेजीमेन्ट का गठन किया। इस रेजीमेन्ट में बड़ी संख्या में गढ़वाली सैनिक भी थे।

गोरखा रेजीमेन्ट के दूसरी बटालियन से 5 मई 1887 को अल्मोड़ा में गढ़वाली बटालियन का गठन कर तीसरी ( कुमाऊँ ) रेजीमेन्ट नाम दिया गया और नवम्बर 1887 में कालौडांडा पहाड़ी (वर्तमान लैन्सडौंन ) में छावनी बनाने का कार्य सौपा गया।

1891 में 39वीं (गढ़वाली ) रेजीमेन्ट आफ बंगाल इन्फेन्टी का गठन कर बर्मा में चीनियों के खिलाफ युद्ध के लिए भेजा गया। 1892 में इसे राइफल्स खिताब मिला और इसका नाम प्रथम बटालियन 39 गढ़वाल राइफल्स हो गया। 1901 में सेकण्ड बटालियन 39 गढ़वाल राइफल्स का गठन हुआ।

1921 में इसे रायल खिताब मिला व इसका नाम बदलकर 39 वीं रायल गढ़वाल राइफल्स कर दिया गया। 1022 में सैन्य पूनर्गठन के बाद इसका नाम 18 वीं रायल गढ़वाल गडफल्स हुआ व 1945 में इसे रायल गढ़वाल राइफल्स कहा जाने लगा। स्वाधीनता के उपरांत इसका नाम गढ़वाल राइफल्स कर दिया गया। इस समय इसकी कुल 19 बटालियनें हैं।

  • सन 1914 – 18 में मध्य पूर्व एशिया में प्रथम विश्व युद्ध में अपूर्व वीरता के लिए पहली बार गढ़वाली राइफल्स के नायक दरबान सिहं नेगी को उस समय के सबसे बड़े पुरस्कार “विक्टोरिया क्रॉस’ से सम्मानित किया था। प्रथम विश्व युद्ध में इस पुस्कार को पाने वाले वे दूसरे भारतीय सैनिक थे। इसके दूसरे वर्ष इसी रेजीमेन्ट के दूसरी बटालियन के राइफल मैन गबरसिह नेगी को मरणोपरान्त ‘विक्टोरिया-क्रास प्रदान किया गया।
  • सन 1909-10 में इस रेजिमेन्ट के लेफ्टिनेंट पी. टी. अर्थटन तथा राइफलमैन ज्ञान सिंह फर्वाण ने लैन्सडौन से मास्को तक 4000 मील की यात्रा पैदल पूरी की। इस उपलब्धि पर सरकार ने इन्हे ‘मैक ग्रेगर’ अलंकरण से विभूषित किया था।
  • 23 अप्रैल 1930 को पेशावर में घटित काण्ड (पेशावर काण्ड), जिसके नायक वीरचन्द्रसिंह गढ़वाली थे, का सम्बंध इसी रेजीमेन्ट से है।
  • इस बटालियन को (15 अगस्त 1947 को) कलकत्ता में फोर्ट विलियम पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का भी गौरव प्राप्त है।
  • अब तक इस रेजीमेन्ट को लगभग 459 वीरता पदक प्राप्त हो चुके है। 1971 में भारत-पाक युद्ध में इस बटालियन के कैप्टन सी.एन.सिंह को महावीर चक्र प्रदान किया गया था। सन् 2000 में कारगिल युद्ध के दौरान इसके सबसे अधिक सैनिक शहीद हुए थे।
  • इस रेजीमेन्ट का युद्ध जयघोष ‘जय बदरी विशाल’ है।
  • इस रेजीमेन्ट के हवलदार जगत सिंह व कुंवर सिंह ने वर्ष 2003 में संयुक्त इंडो नेपाल पर्वतारोहण अभियान के तहत एवरेस्ट शिखर पर भारत का झंडा फहराकर रेजीमेन्ट के पर्वतारोहण के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ा। 2007 में रेजीमेन्ट को इंदिरा गाँधी पर्यावरण पुरस्कार मिला।

 

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