Uttar Pradesh's Contribution in The Freedom Struggle

स्वतंत्रता संग्राम में उत्तर प्रदेश का योगदान

November 15, 2018

स्वतन्त्रता आन्दोलन का द्वितीय चरण

सन् 1857 में देश के विभिन्न भागों में हुए संगठित एवं असंगठित विद्रोहों को देश की स्वतन्त्रता के आन्दोलन का प्रथम चरण माना जाता है। इसके उपरान्त इस दिशा में किये गये प्रयासों को इस आन्दोलन का द्वितीय चरण माना जाता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के इस चरण में भी उत्तर प्रदेश की क्रान्तिकारी परम्परा पहले की भाँति कायम रही। इस चरण में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना अंग्रेज़ अधिकारी श्री ए० ओ० ह्यूम के प्रयासों से हुई। श्री झूम उस समय उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के कलेक्टर थे। कांग्रेस की स्थापना के बाद स्वतन्त्रता आन्दोलन की अधिकांश घटनाएँ इसी के इर्द-गिर्द सम्पन्न हुईं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम बैठक में प्रवेश से सम्मिलित होने वाले प्रमुख नेताओं में पं० मदन मोहन मालवीय एवं अवध के निकट स्थित कालाकांकर की रियासत के राजा रामपाल सिंह थे। इसके बाद उत्तर प्रदेश में पं० मोतीलाल नेहरू, मौलाना शौकत अली, मौलाना मुहम्मद अली, तेजबहादुर समू, पुरुषोत्तम दास टण्डन, सी० वाई० चिन्तामणि, गणेश शंकर विद्यार्थी, पं० गोविन्द बल्लभ पंत, रफी अहमद किदवई, आचार्य नरेन्द्र देव, सम्पूर्णानन्द, पं० जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री आदि अनेक राष्ट्रीय स्तर के प्रमुख नेताओं का उदय हुआ जिन्होंने केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण देश में चल रहे स्वतन्त्रता संग्राम आन्दोलन का नेतृत्व किया। अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध किये गये असहयोग आन्दोलन एवं सविनय अवज्ञा आन्दोलन में इस प्रदेश की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। 1 जून, 1920 को प्रदेश के हिन्दू एवं मुस्लिम नेताओं की एक बैठक इलाहाबाद में हुई जिसमें केन्द्रीय खिलाफत कमेटी द्वारा पारित असहयोग आन्दोलन को चलाये जाने की पुष्टि की गयी। इस सभा में महात्मा गाँधी, लाला लाजपत राय, पं० मोतीलाल नेहरू, तेजबहादुर सपू, वी० सी० पाल, सत्यमूर्ति, महामना मदन मोहन मालवीय, राजगोपालाचरी, पं० जवाहरलाल नेहरू एवं चिन्तामणि जैसे प्रसिद्ध नेताओं ने भाग लिया था। इस प्रस्ताव के पारित होने के पश्चात् देशभर में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विभिन्न स्तरों पर असहयोग आन्दोलन शुरू कर दिया गया जिसका उद्देश्य शान्तिपूर्वक विरोध कर अंग्रेजों को उनकी नीतियों के कारण जनसाधारण में उत्पन्न रोष से अवगत कराना था। यह असहयोग आन्दोलन उस समय अपनी चरम स्थिति में पहुँच गया जब महात्मा गाँधी ने 7000 व्यक्तियों की मदद से गुजरात में सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरूआत की, लेकिन तभी 5 फरवरी, 1922 को प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित चौरी-चौरा नामक स्थान पर इस आन्दोलन ने हिंसक रूप धारण कर लिया जिसमें आन्दोलनकारियों ने पुलिस थाने को आग लगाकर ब्रिटिश पुलिस के 22 अफसरों एवं सिपाहियों को जान से मार दिया था। ऐसी स्थिति देखकर महात्मा गाँधी ने आन्दोलन को तुरन्त स्थगित करने का निर्देश दिया, क्योंकि वे असहयोग आन्दोलन को किसी भी स्थिति में हिंसक रूप धारण नहीं करने देना चाहते थे। ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध भारतीय जनता द्वारा बड़े पैमाने पर किया गया यह प्रथम संगठित अहिंसक आन्दोलन था जिसमें उत्तर प्रदेश अग्रणी राज्य बनकर रहा था फिर भी प्रदेश में कई स्थानों पर हिंसा की वारदातें हुई थीं, क्योंकि जनमानस में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध तीव्र असन्तोष व्याप्त था तथा वह किसी भी प्रकार से ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध करना चाहती थी। रायबरेली एवं फैजाबाद जिले में जनता ने अविवेकपूर्ण ढंग से लगाये गए करों का विरोध किया एवं जमींदारों के विरुद्ध हिंसक व अहिंसक आन्दोलन चलाया। 2 से 7 जनवरी के मध्य पुलिस व जनता के बीच मुन्शीगंज जेल में संघर्ष हुआ जिसमें दस हजार से भी अधिक स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों ने पुलिस से संघर्ष किया। इसके उपरान्त बद्द खान में दंगा हुआ जहाँ पर अनेक सिपाहियों को मार डाला गया। इसी आन्दोलन के समय फैजाबाद के गोसाईगंज नामक स्थान पर हजारों लोगों ने रेलवे लाइन पर धरना दिया। इस पर पुलिस को गोली चलानी पड़ी। रायबरेली के आस-पास इतनी अधिक उल्लेखनीय घटनाओं का कारण जमींदारों तथा ताल्लुकेदारों द्वारा किसानों एवं जनता का बुरी तरह शोषण किया जाना था तथा जनता किसी भी तरह इस जमींदारी व्यवस्था को बदलना चाहती थी। फलस्वरूप पण्डित जवाहरलाल नेहरू तथा रफी अहमद किदवई के नेतृत्व में इस प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर कई बार बड़े आन्दोलन किये गये। सन 1930 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के द्वितीय चरण में इसने काफी जोर पकड़ लिया लेकिन महात्मा गाँधी एवं इरविन के मध्य हुए समझौते के उपरान्त यह आन्दोलन पुनः स्थगित कर दिया गया। सन् 1921 से 1930 के मध्य उत्तर प्रदेश के अनेक क्रान्तिकारी नेताओं का उदय हुआ, फलस्वरूप यहाँ पर काकोरी षड्यन्त्र केस, मेरठ षड्यन्त्र केस, मैनपुरी षड्यन्त्र केस तथा बनारस षड्यन्त्र केस आदि हुए। तत्कालीन हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन सेना के सेनानी चन्द्रशेखर आजाद ने ब्रिटिश पुलिस को काफी परेशान कर रखा था। फलस्वरूप इलाहाबाद के निकट एल्फ्रेड पार्क में वीर चन्द्रशेखर आजाद ब्रिटिश पुलिस कप्तान नॉट बाबर तथा पुलिस दल से संघर्ष करते हुए अमर शहीद हो गये।

महात्मा गांधी के प्रथम राउण्ड टेबल कॉन्फ्रेन्स में लन्दन चले जाने के पश्चात् पं० जवाहरलाल नेहरू एवं पुरुषोत्तम दास टण्डन ने जनसाधारण एवं किसानों को विभिन्न ब्रिटिश कानूनों से हो रही परेशानी से सरकार को अवगत कराया लेकिन सरकार ने उनकी माँगें रद्द कर दी। इस पर नेहरूजी ने अहिंसात्मक आन्दोलन आरम्भ कर दिया तब ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में बन्द कर दिया। बाद में प्रथम राउण्ड टेबल कॉन्फ्रेंस के अन्तर्गत हुए समझौते पर उन्हें रिहा कर दिया गया।

पं० जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में आरम्भ किया गया। द्वितीय किसान आन्दोलन ने स्वतन्त्रता संग्राम में काफी सहयोग दिया, क्योंकि इस आन्दोलन से प्रेरित होकर गरीब, मजदूर एवं किसान कांग्रेस के झण्डे तले एकत्र हो गये थे, फलस्वरूप सन् 1942 में महात्मा गाँधी द्वारा आरम्भ किये गये ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में उत्तर प्रदेश सर्वाधिक प्रभावशाली राज्य के रूप में उभरकर सामने आया। प्रदेश के अधिकांश भागों में विशेषकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया, आजमगढ़, बस्ती, मिर्जापुर, गाजीपुर फैजाबाद, सुल्तानपुर, गोरखपुर, जौनपुर, बनारस आदि जिलों में इस आन्दोलन की व्यापकता काफी बढ़ गयी थी। बलिया जिले में चिट्टू पाण्डे के नेतृत्व में राष्ट्रीय सरकार की स्थापना कर दी गयी। बनारस में स्थित हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रों ने अपने स्वतन्त्र शासन की घोषणा कर दी थी। धीरे-धीरे यह आन्दोलन पहाड़ी जिलों में फैलता गया। फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आगरा, अलीगढ़, एटा, मैनपुरी के साथ-साथ लखनऊ, कानपुर, फर्रुखाबाद आदि स्थानों पर फैल गया। इससे पूर्व सचीन्द्र सान्याल एवं रामप्रसाद बिस्मल ने 25 अगस्त, 1925 को काकोरी में रेल लूटकर सनसनी फैला दी, क्योंकि इस रेल में सरकारी कोष को ले जाया जा रहा था। रामप्रसाद बिस्मल, रोशनलाल, अशफाक उल्ला खाँ, राजेन्द्र लाहिड़ी आदि को इस मामले में गिरफ्तार किया गया तथा फाँसी पर लटका दिया गया। क्रान्तिकारियों की इस श्रृंखला में राजा महेन्द्र प्रताप, लाल हरदयाल, पं० परमानन्द, बटुकेश्वर दत्त, विजय कुमार सिन्हा, राजकुमार सिन्हा जैसे क्रान्तिकारी पैदा हुए। प्रसिद्ध क्रान्तिकारी सरदार भगतसिंह ने भी कानपुर एवं आगरा में रहकर क्रान्तिकारी कार्यकलापों की शुरूआत की।

सन् 1942 के उपरान्त ‘भारत छोड़ो आन्दोलन तीव्र गति पकड़ता गया, फलस्वरूप अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा। 8 अगस्त, 1946 प्रदेश की विधानसभा ने जमींदारी प्रथा को हटाने के लिए समिति की घोषणा की, क्योंकि इसी प्रथा के खिलाफ जनसाधारण कांग्रेस के समर्थन में एकत्र होकर आन्दोलनरत हो गया था। 26 जनवरी, 1951 को उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम के लागू होने पर इसका व्यापक स्वागत किया गया। उपर्युक्त वर्णन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति की दिशा में किये गये सन् 1857 के प्रथम आन्दोलन से लेकर इसकी प्राप्ति तक प्रदेश की जनता ने अपना सक्रिय योगदान दिया।

उत्तर प्रदेश ने स्वतंत्र भारत के एक राज्य होते हुए भी अब तक देश को 13 में से 8 प्रधानमंत्री क्रमशः सर्वश्री पं० जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, श्रीमती इन्दिरा गांधी, चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चन्द्रशेखर एवं अटल बिहारी वाजपेयी दिए हैं। साथ ही पीताम्बर दास, दीनदयाल उपाध्याय, राजेन्द्र सिंह (रज्जू भय्या), आचार्य नरेन्द्र देव, डॉ० राममनोहर लोहिया, गोविन्द वल्लभ पन्त, नारायण दत्त तिवारी, कमलापति त्रिपाठी, हेमवतीनन्दन बहुगुणा, मुलायम सिंह यादव एवं मायावती जैसे राजनीतिज्ञ भी दिए हैं, जोकि देश की राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रूप से छाए रहे हैं।

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