1857 ई० की क्रान्ति के प्रमुख व नेतृत्वकर्ता केन्द्र नेतृत्वकर्ता
केन्द्र | नेतृत्वकर्ता |
लखनऊ | बेगम हजरत महल |
फैजाबाद | मौलवी अहमदुल्लाह |
कानपुर | नाना साहेब |
काल्पी | तात्या टोपे |
बरेली | खान बहादुर खान |
मथुरा | देवी सिंह |
झाँसी | रानी लक्ष्मीबाई |
मेरठ | कदम सिंह |
इलाहाबाद | लियाकत अली |
जब स्वतन्त्रता संग्रामियों की हर जगह पर पराजय होने लगी। उनकी सेना एवं हथियारों को भी काफी क्षति पहुँची तथा ब्रिटिश फौजों ने संगठित होकर विद्रोहों को दबाना शुरू कर दिया तब विद्रोहियों ने गुरिल्ला युद्ध की शुरूआत की तथा जंगलों में छिपकर आवश्यकतानुसार अंग्रेजी अफसरों पर आक्रमण करने लगे। 1 जून, 1858 को झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई एवं तात्याँ टोपे ने ग्वालियर पर आक्रमण कर दिया। इसे दबाने हेतु कालपी से सर सुरोज को आना पड़ा। रानी ने काफी वीरता से ब्रिटिश फौजों का सामना किया। अंततः युद्ध में लड़त-लड़ते 17 जून को वह वीरगति को प्राप्त हो गई। प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की एक वीर योद्धा एवं कुशल सेनापति का अन्त हो गया जिससे सन् 1857 के विद्रोह को दबाने में अंग्रेजों को काफी मदद प्राप्त हुई। विद्रोह के अन्य कर्णधार बेगम हजरत महल, नाना साहब एवं बाला साहब ब्रिटिश फौजों का सामना न कर पाये और नेपाल की सीमा के पास छिप गए जहाँ पर लॉर्ड क्लायड के नेतृत्व में ब्रिटिश फौजों ने उन्हें नेपाल की सीमा में शरण लेने हेतु मजबूर कर दिया। फिर भी इन स्वतन्त्रता सेनानियों का उत्साह अपूर्व था तथा उनके संघर्ष ने अंग्रेजी सेना के पुनः संगठित करने की ओर एकाएक ब्रिटिश शासकों का ध्यान आकर्षित किया। 30 दिसम्बर, 1858 तक फर्रुखाबाद के नवाब तफज्जुल हुसैन, मेंहदी हसन आदि की सेनाओं ने भी ब्रिटिश फौजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
उपर्युक्त सभी विद्रोहों से अलग हटकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुँवर सिंह द्वारा किया गया विद्रोह था जब उसने 26 मार्च, 1858 को ब्रिटिश कर्नल मिलमैन को आजमगढ़ में हरा कर मिर्जापुर, बाँदा, आजमगढ़ आदि पूर्वी उत्तर प्रदेश के भागों पर अपना कब्जा कर लिया। कुँवर सिंह की वीरता एवं कुशल युद्ध कौशल का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वह अपनी मुट्ठी भर सेना के साथ 15 अप्रैल तक ब्रिटिश फौजों से जमकर टक्कर लेता रहा, लेकिन उसने हार न मानी। अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते कुँवर सिंह 9 मई, 1858 को वीरगति को प्राप्त हो गया। तब कहीं जाकर अंग्रेज इस क्षेत्र पर अपना अधिकार जमा पाए। इसके साथ ही स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम का अन्त हो गया। इस प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने अपनी नीतियों में आमूल परिवर्तन किया। जिन लोगों ने विद्रोह को दबाने में सरकार का साथ नहीं दिया था उन्हें सैनिक तथा अन्य सरकारी नौकरियों के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया तथा शासन का पुनः संगठन किया। सन् 1861 में सागर एवं नर्मदा के जिलों को उत्तर प्रदेश से अलग कर दिया गया। धीरे-धीरे दिल्ली, अजमेर एवं मारवाड़ को भी पृथक कर दिया गया। फिर बाकी बचे क्षेत्र को सन् 1902 में पुनर्गठित कर ‘आगरा एवं अवध का संयुक्त प्रान्त’ नाम दिया गया। सन् 1919 में इस प्रान्त का शासक गवर्नर कहलाने लगा। इसके उपरान्त इस संयुक्त प्रान्त से आगरा एवं अवध नामों को हटाकर केवल ‘संयुक्त प्रान्त’ नाम ही रहने दिया।
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