जन्तु एवं वनस्पति-कोशिका की परारचना | TheExamPillar

जन्तु एवं वनस्पति-कोशिका की परारचना

जन्तु एवं वनस्पति-कोशिका की परारचना
(Ultrastructure of Animal & Plant Cells)

इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी से जब जन्तु एवं वनस्पति-कोशिकाओं का अध्ययन किया गया तो उसकी विस्तृत जानकारी मिली। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी से देखने पर जो कोशिका की रचना दिखती है उसे कोशिका की परारचना (Ultrastructure) कहते हैं। 

जन्तु एवं वनस्पति-कोशिका में पायी जाने वाली रचनाओं को दो प्रमुख भागों में विभक्त किया जा सकता है :- 

  1. दोनों प्रकार की कोशिकाओं में पाये जाने वाले कोशिकांग :- जीवद्रव्य झिल्ली या कोशिका-कला, केन्द्रक एण्डोप्लाज़िमक रेटिक्यूलम, रिबोसोम, माइटोकोड्रिया, गोल्जी काय, लाइसोसोम एवं माइक्रोबॉडीज़।
  2. केवल वनस्पति – कोशिकाओं के कोशिकांग :- कोशिका-भित्ति, क्लोरोप्लॉस्ट एवं बड़े आकार की रिक्तिकाएँ या रसधानियाएँ। 

Ultrastructure of Animal & Plant Cells

समस्त यूकैरियोटिक कोशिकाओं (जन्तु एवं वनस्पति) की रचनाएँ (Structures common to Animal & Plant Cells)

कोशिका-कला या प्लैज़्मा-मैम्ब्रेन : (Cell Plasma-Membrane)

कोशिका-कला कोशिका के जीवद्रव्य को घेरती हुई आवरण के रूप में होती है। यह सामान्य अर्द्धपारगम्य झिल्ली न होकर वरणात्मक पारगम्य (selective permeable) होती है।

कोशिका-कला लगभग 7.5 से 8nm या 75 – 80Å (0.0000075 से.मी.) मोटी होती है। वह प्रोटीन एवं फॉस्फोलिपिड द्वारा निर्मित होती है। लिपिड एवं प्रोटीन की बनी होने से इसे लाइपोप्रोटीन द्वारा निर्मित रचना कहते हैं। 

कार्य :

  • कोशिका-कला कोशिका के भीतर के पदार्थों को कोशिका के बाहर के वातावरण से पृथक रखने का कार्य करने के साथ कोशिका का रक्षात्मक आवरण भी बनाती है।
  • सिलेक्टिव परमिएबल अर्थात् वरणात्मक रूप से पारगम्य होने के कारण कोशिका के अन्दर एवं बाहर का आयन संतुलन बनाए रखने में सहायक होती है। यह कार्य आयन एवं अणुओं के सक्रिय अभिगमन से किया जाता है।
  • विसरण एवं परासरण क्रियाओं का सम्पादन भी इसी के कारण होता है।
  • झिल्ली अंतर्वलित होकर तरल पदार्थों को वेसिकल के रूप में ग्रहण करती है। इस क्रिया को पिनोलाइटोसिस एवं वेसिकल्स को पिनोसोम कहते हैं। इस क्रिया को सेल-ड्रिंकिंग (cell drinking) भी कहते हैं।
  • ठोस पदार्थों एवं बड़े अणुओं का अंतर्ग्रहण भी इसी प्रकार के वेसिकल द्वारा किया जाता है। इस क्रिया को फेगोसाइटोसिस कहते हैं।
  • कोशिका के अन्दर संश्लेषित पदार्थों को कोशिकाकला एक्सोसाइटोसिस की क्रिया द्वारा निष्कासित करती है। 

केन्द्रक (Nucleus)

सभी यूकैरियोटिक कोशिकाओं में केन्द्रक उपस्थित होता है। स्तनधारियों की परिपक्व लाल रक्त कोशिकाओं RBC एवं पौधों के फ्लोएम ऊतक की छलनी कोशिकाओं (sieve tubes) में केन्द्रक नहीं होते। सामान्यतया प्रत्येक कोशिका में एक केन्द्रक होता है किन्तु कुछ एक कोशिकीय जन्तुओं में, जैसे पैरामेशियम में दो केन्द्रक होते हैं। 

केन्द्रक अपारदर्शी, सघन एवं गोल या अंडाकार होते हैं। इनका व्यास लगभग 10nm तथा लम्बाई लगभग 20nm होती है।

केन्द्रक एक आवरण से घिरा होता है, जिसे केन्द्रककला (nuclear membrane) कहते हैं। इस झिल्ली से केन्द्रक के अन्दर का द्रव्य, केन्द्रक-द्रव्य (nucleoplasm) केन्द्रक के बाहर के द्रव्य कोशिका-द्रव्य (cytoplasm) से पृथक रहता है।

  • केन्द्रक कला (Nuclear membrane) :- यह केन्द्रक की बाहरी आवरण होती है तथा दो झिल्लियों की बनी होती है। बाहरी झिल्ली कोशिका-द्रव्य में एण्डो प्लॉज्मिक रेटिक्यूलम (ER) के सम्पर्क में होती है। 
  • केन्द्रक-द्रव्य (Nucleoplasm):- केन्द्रक-कला से घिरा जैल जैसा केन्द्रक के अन्दर का पदार्थ केन्द्रक-द्रव्य कहलाता है। इस द्रव्य में क्रोमेटिन पदार्थ एवं एक या अधिक केन्द्रिकाएँ (nucleoli) होती है। क्रोमेटिन के अलावा इसमें अनेक रासायनिक पदार्थ (प्रोटीन, आयन आदि), न्यूक्लियोटाइड आदि साधारण घोल के रूप में या कोलाइड के रूप में होते हैं।
  • क्रोमेटिन (Chromatin) :- क्रोमेटिन का अर्थ है रंगीन पदार्थ । क्योंकि यह आसानी से रंजकों (stain) द्वारा रंगा जा सकता है, इसे क्रोमेटिन नाम दिया गया। क्रोमेटिन पदार्थ वास्तव में DNA एवं हिस्टोन (एक प्रकार का प्रोटीन) होते हैं अतः इन्हें न्यूक्लियोप्रोटीन भी कहते हैं। 
  • केन्द्रिका (Nucleolus) :- कोशिका की विश्राम अवस्था के केन्द्रक-द्रव्य में गोल रचनाएँ दिखाई देती है जिन्हें केन्द्रिकाएं कहते हैं। इसमें DNA एवं RNA होते हैं। इनका प्रमुख कार्य rRNA (रिबोसोमल आर.एन.ए.) का संश्लेषण करना होता है। 

अंतर्द्रव्यी-जालिका (Endoplasmic Reticulum – E.R.)

कोशिका-द्रव्य में मेम्ब्रेन नलिकाओं का एक जाल-सा होता है जिसे एण्डोप्लामिक रेटिक्यूलम या अंतर्द्रव्यी-जालिका कहते हैं। यह जन्तु एवं वनस्पति दोनों ही कोशिकाओं में होता है किन्तु प्रकाश सूक्ष्मदर्शी से नहीं देखा जा सकता। यह जालिका चपटी दोहरी झिल्ली से घिरी रचनाएँ होती हैं जिन्हें सिस्टर्नी (cisternae) कहते हैं। अंतर्द्रव्यी जालिकाएँ दो प्रकार की होती है :

  • समतल जालिका (Smooth-ER) :- जब जालिका की बाहरी सतह पर रिबोसोम स्थित नहीं होते तब उसे समतल अंतर्द्रव्यीजालिका कहते हैं।
  • दानेदार जालिका (Rough-ER) :- जब जालिका की बाहरी सतह पर रिबोसाम होते होते हैं। तब उसे दानेदार अंतर्द्रव्यी जालिका कहते हैं। 

रिबोसोम (Ribosomes)

रिबोसोम बहुत ही सूक्ष्म कोशिकांग होते हैं। लगभग 20nm व्यास की ये रचनाएँ कोशिका-द्रव्य में सर्वत्र पायी जाती है। ये सभी प्रकार की प्रोकैरियाटिक एवं यूकैरियोटिक कोशिकाओं में पाये जाते हैं। प्रोकैरियोटिक कोशिका बैक्टीरिया में लगभग दस हजार रिबोसोम होते हैं, जबकि यूकैरियोटिक कोशिकाओं में इनकी संख्या इससे भी कई गुना ज्यादा होती है।

कार्य :- 

रिबोसोम का प्रमुख कार्य प्रोटीन-संश्लेषण का है। प्रोटीन-संश्लेषण की क्रिया में रिबोसोम की सतह संश्लेषण से संबंधित अणुओं को बाँधने के उपयोग में आती है। mRNA पर रिबोसोम-कण लड़ी की तरह जमे होते हैं, इन्हें पोलीसोम (polysomes) कहते हैं। 

माइटोकाँड्रिया (Mitochondria)

इन्हें कॉडियोसोम (chondriosome) भी कहते हैं। ये कोशिका-द्रव्य में सैकड़ों की संख्या में बिखरे होते हैं प्रकाशसूक्ष्मदर्शी में ये छोटे-छोटे धागों के समान दिखाई पड़ते हैं, इसीलिए इनका नाम माइटोकाँड्रिया (Gk. mitos = thread + _chondros = cartilage) पड़ा। इनकी लम्बाई 1.5 से 10μm, चौड़ाई 0.25 से 1μm एवं व्यास 1 um से अधिक नहीं होता।

कार्य:

  • इनका मुख्य कार्य ऑक्सीश्वसन (aerobic respiration) द्वारा ऊर्जा-संश्लेषण, संग्रहण एवं आवश्यकतानुसार ऊर्जानिर्मुक्ति का होता है। इसीलिए इन्हें कोशिका का पावर हाऊस (Power house of the cell) भी कहते हैं।
  • कोशिका-विभाजन के दौरान माइटोकाँड्रिया मातृकोशिकाओं से संतति-कोशिकाओं में बंट जाते हैं। किन्तु इनमें डी.एन.ए. होने से ये द्वि-गुणित होकर पुनः मातृ-कोशिका में स्थित माइटोकाँडिया के बराबर अपनी संख्या में वृद्धि कर लेते हैं।

गोल्जी-काय (Golgi body)

इस रचना की खोज 1989 में केमिलो गोल्जी (Camello Golgi) ने की थी। ये सभी जन्तु एवं वनस्पति यूकैरियोटिक कोशिकाओं में पाये जाते हैं। वनस्पति-कोशिका में इन्हें डिक्टायोसोम (dictyosomes) भी कहते हैं।

कार्य :

  • गोल्जी काय का प्रमुख कार्य स्रवण (सिक्रीशन) का है। जिन प्रोटीन, लिपिड या एन्जाइम आदि का कोशिका द्वारा स्रवण होना है, उनका सांद्रण होकर वे वेसिकल या कण के रूप में हो जाते हैं। ये वेसिकल या कण सिस्टर्नी के बाहरी किनारे से टूटकर कोशिका-द्रव्य से मुक्त हो जाते हैं। इनका कोशिका के बाहर एक्सोसाइटोसिस की क्रिया द्वारा होता है।
  • गोल्जी-काय कभी-कभी कार्बोहाइड्रेट पदार्थों का स्राव भी करते हैं। पौधों की कोशिकाओं में कोशिका-भित्ति निर्माण में यह क्रिया होती है।
  • लाइसोसोम का निर्माण भी गोल्जी काय से होता है।
  • कोशिका-कला या प्लैज्मा-मेम्ब्रेन के पुनर्चक्रण में भी गोल्जी सहायक होते हैं। गोल्जी से निकले वेसिकल या वैक्यूओल प्लैज्मा-मेम्ब्रेन से संलीन हो जाते हैं।
  • पौधों की कोशिका-विभाजन में कोशिका पट्टी (cell plate) के निर्माण में गोल्जी-काय की भूमिका होती है।
  • (vi) लिपिड पदार्थों के परिवहन में भी गोल्जी सहायक होते है।
  • पौधों की कोशिकाओं द्वारा स्रावित पदार्थ जैसे – गोंद, मोम, म्यूसिलेज आदि भी गोल्जी द्वारा ही निर्मुक्त किए जाते
  • जन्तुओं में शुक्राणुओं का एक्रोसोम (acrosome) गोल्जी के रूपान्तरण से ही बनता है। 

लाइसोसोम (Lysosomes)

कोशिकाओं में सर्वप्रथम इनका अवलोकन 1959 में डी.डुवे (De Duve) ने किया था। ये पतली झिल्ली से घिरी छोटी-छोटी थैलीनुमा रचनाएँ होती है, जिनमें हाइड्रोलाइटिक एन्जाईम होते हैं। ये एन्ज़ाइम प्रोटीएसेस, न्यूक्लिएसेस, लाइपेसेस एवं एसिड फॉस्फेटेसेस होते हैं।

लाइसोसोम सभी जन्तु-कोशिकाओं में होते हैं। ये गोलाकार या अनियमित आकार के हो सकते हैं। इनका निर्माण गोल्जी या ER के सिस्टर्नी के बाहरी सिरों से होता है। लाइसोसोम के अन्दर का द्रव अम्लीय होता है।

कार्य :

  • कोशिका द्वारा एण्डोसाइटोसिस विधि से ग्रहण किए पदार्थों का पाचन इस क्रिया हेतु प्राथमिक लाइसोसोम एण्डोसाइटोसिस द्वारा निर्मित खाद्य-धानी के साथ संलग्न होकर द्वितीयक लाइसोसोम (secondary lysosome) बनाते हैं। इसमें पाचन होता है तथा शेष पदार्थ एक्सोसाइटोसिस द्वारा बाहर कर दिए जाते हैं।
  • स्वभक्षण (autophagy) द्वारा कोशिका के व्यर्थ पदार्थों का निष्कासन।
  • कोशिका के बाहर एक्सोसाइटोसिस द्वारा एन्ज़ाइम निर्मुक्त करना।
  • कोशिका द्वारा स्वयं को नष्ट करना अर्थात् ऑटोलाइसिस (autolysis)। यह क्रिया कोशिका के लाइसोसोम द्वारा एन्जाइमों को कोशिका में ही निर्मुक्त करने से होती है।

इस क्रिया के कारण चँकि जिस कोशिका में लाइसोसोम होते हैं, वही नष्ट हो जाती है, इन्हें आत्महत्या की थैलियाँ या सुइसाइड बेग्स (suicide bags) भी कहा जाता है।

परऑक्सिोम (Peroxisomes)

इन्हें माइक्रोबॉडीज (microbodies) भी कहते हैं। ये सभी जन्तु एवं वनस्पति यूकैरियोटिक कोशिकाओं में पाये जाते हैं। केवल एक झिल्ली से घिरी ये गोलाकार रचनाएँ 0.3 से 1.15μm व्यास की होती है। इनमें केटेलेस एन्ज़ाइम होते हैं जो कि H2O2 का विघटन H2O एवं O2 में करते हैं। इन गुणों के कारण इनका नाम परऑक्सिसोम रखा गया है। इनके एन्ज़ाइम भी ER में संश्लेषित होकर इन रचनाओं में परिवर्तित होते हैं। आमतौर पर ये ER के सानिध्य में ही स्थित होते हैं। 

सूक्ष्म-नलिकाएँ या माइक्रोट्यूब्यूल्स (Microtubules)

ये तन्तुरूपी रचनाएँ होती है जिनका बाहरी व्यास लगभग 24nm होता है। इनकी दीवारें ट्यूब्यूलिन (tubulin) प्रोटीन की बनी होती हैं। इनकी लम्बाई कई माइक्रोमीटर हो सकती है। लम्बाई में इनमें क्रॉस-ब्रिजेस (cross bridges) भी हो सकते हैं जो बाहर निकलकर पास की नलिकाओं से जुड़ जाते हैं। 

कार्य :

  • कोशिका-विभाजन में दो सेन्ट्रियोल के बीच स्पिन्डलतन्तुओं (spindle fibres) का निर्माण।
  • अन्तरकोशिकीय परिवहन (intra cellular transport) का निर्माण।
  • माइक्रोट्यूब्यूल्स कोशिका के कंकाल (cytoskeleton) के रूप में कार्य करते हैं, अतः ये कोशिका के आकार को बनाए रखने में भी सहायक होते हैं। 

सेन्ट्रियोल (Centrioles) 

ये लगभग सभी जन्तु-कोशिकाओं एवं निम्न श्रेणी के पौधों की कोशिकाओं में पाये जाते हैं। प्रत्येक कोशिका में ये एक जोड़ी होते हैं। ये छोटे खोखले सिलिंडर के समान होते हैं जो लगभग 0.3 से 0.5μm के होते हैं।

कार्य:

  • सेन्ट्रियोल का प्रमुख कार्य कोशिका-विभाजन हेतु स्पिन्डल के ध्रुवों का निर्माण करना है। स्पिन्डल के तन्तु क्रोमोसोम के दो क्रोमेटिड के पृथक होने की क्रिया का नियंत्रण करते हैं।
  • ये माइक्रोटयूब्यूल्स को संगठित करने हेतु सांगठनिक केन्द्र (organising centres) होते हैं। 

बेसल बॉडीज़ (Basal Bodies)

ये रोमाभ एक कशाभ के आधार पर पाये जाते हैं। इनकी रचना लगभग सेन्ट्रियोल के समान ही होती है। इन्हें काइनेटोसोम या ब्लीफेरोप्लॉस्ट (Kinetosome or blepharoplast) भी कहते हैं। इनकी उत्पत्ति सेन्ट्रियोल के द्विगुणन से होती है। इनके भीतर माइक्रोट्यूब्यूल्स की व्यवस्था 9 + 2 होती है। अर्थात् परिधि पर 9 तन्तुओं के ट्रिप्लेट तथा मध्य में दो तन्तु। इस व्यवस्था को बेसल-बॉडी की अनुप्रस्थ काट में देखा जा सकता है।

सीलिया एवं फ्लैजिला (Cilia & Flagella)

अनेक कोशिकाओं की बाहरी सतह पर सीलिया (रोमाभ) एवं फ्लैजिला (कशाभ) उपस्थित होते हैं। ये दोनों ही गतिशील रचनाएँ हैं एवं एक कोशिकीय जीवधारियों में प्रचलन अंग का कार्य करती है। सीलिया की संख्या अधिक होती है जबकि फ्लैजिला प्रायः एक या दो की संख्या में होते हैं। 

सूक्ष्म-तन्तु या माइक्रोफिलामेन्टस (Micro filaments)

ये प्रोटीन के अत्यन्त महीन तन्तु (लगभग 5-7 nm व्यास) होते है। सभी यूकैरियोटिक कोशिकाओं में पाये जाने वाले ये तन्तु एक्टिन नामक प्रोटीन के बने होते हैं। 

कार्य :

  • इनके एक्टिन का प्रमुख कार्य पेशी-कोशिकाओं में मायोसिन के साथ मिलकर पेशी-संकुचन करना होता है।
  • ये तन्तु कोशिका के एक्सो एवं एण्डोसाइटोसिस क्रियाओं में भी सहायक होते हैं।
  • जन्तु-कोशिकाओं के विदलन (cleavage) में भी इन तन्तुओं की भूमिका होती है। 

 

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