Rajasthan samany gyan

स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान राजस्थान से प्रकाशित प्रमुख समाचार पत्र 

स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान राजस्थान से प्रकाशित प्रमुख समाचार पत्र
(Major Newspapers Published From Rajasthan During the Freedom Movement)

सज्जन कीर्ति सुधाकर (Sajjan Kranti Sudharak)

सम्पादन – मेवाड़ के महाराणा सज्जन सिंह के समय में प्रकाशित समाचार पत्र सन् 1876 में  

राजस्थान समाचार (Rajasthan Samachar)

सम्पादन – श्री मुंशी समर्थदान के सम्पादन में प्रकाशित सन् 1889 में प्रथम हिन्दी दैनिक अजमेर से 

राजस्थान केसरी (Rajasthan Kesari)

सम्पादन – श्री विजय सिंह पथिक द्वारा राजनीतिक साप्ताहिक समाचार पत्र सन् 1920 में वर्धा से शुरू किया गया । 

नवीन राजस्थान (Naveen Rajasthan)

सम्पादन – श्री विजय सिंह पथिक द्वारा अजमेर में प्रकाशित समाचार पत्र सन 1921 में 

राजस्थान (Rajasthan)

सम्पादन – श्री ऋषीदत्त मेहता द्वारा ब्यावर से प्रकाशित सन् 1923 में हाडौती क्षेत्र की जनता में राजनेतिक चेतना प्रवाहित करने के लिये 

 

प्रताप (Prtap)

सम्पादन – श्री गणेश शंकर विद्यार्थी के सम्पादन में कानपुर से प्रकाशित साप्ताहिक पत्र 

नवज्योति (Navjyoti)

सम्पादन – श्री रामनारायण चौधरी द्वारा सन् 1936 में अजमेर में प्रकाशित साप्ताहिक पत्र 

आगीबाण (Aagibaan)

सम्पादन – श्री जयनारायण व्यास द्वारा ब्यावर से सन् 1932 में राजस्थानी भाषा का प्रथम राजनैतिक समाचार पत्र मारवाड़ी जनता में राजनैतिक चेतना लाने हेतु 

जयभूमि (Jaybhumi)

सम्पादन – श्री गुलाब चन्द काला द्वारा सितम्बर 1940 में जयपुर से प्रकाशन प्रारम्भ 

जयपुर समाचार (Jaypur Samachar)

सम्पादन – श्री श्याम लाल वर्मा द्वारा सितम्बर 1942 में प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र 

प्रजासेवक (Prjasevak)

सम्पादन – श्री अचलेश्वर प्रसाद शर्मा द्वारा जोधपुर से प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र अखण्ड भारत श्री जयनारायण व्यास द्वारा बम्बई से प्रकाशित किया जाने वाला समाचार पत्र 1936 में 

 

राजस्थान टाइम्स (Rajasthan Times)

सम्पादन – श्री वासुदेव शर्मा द्वारा जयपुर से अंग्रेजी में प्रकाशित समाचार पत्र

 

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राजस्थान की चर्चित पुस्तकें (Popular Books of Rajasthan)

राजस्थान की चर्चित पुस्तकें
(Popular Books of Rajasthan)

पुस्तकें लेखक 
विजयी बनोआचार्य महाश्रवण (आधुनिक विवेकानन्द)
रे मनवा मेरे, मैं ही राधा मै ही कृष्णगुलाब कोठारी 
दादी की रसोईकंचन कोठारी 
मेवाड़ की लोककला (फड़)वन्दना जोशी 
हिलींग द ब्लयू प्लेनेटबने सिंह 
बलपणे री बातां दीन दयाल शर्मा 
राजवंश, भरतपुर अछुती स्मृतियांरघुराज सिंह 
फस्ट लेड़ी प्रेसिडेन्टइन्द्र दान रत्नु 
माँ एड़ा पुत जण, सीमा री पीड़, युद्धबन्दीमेजर रतन जागिड़ 
हरी दुब का सपनानन्द भारद्वाज 
जगह जैसी जगहहेमन्त शेष 
अमीर खातेदार बनाम गरीब खातेदारनरेश गोयल 
एक लोकसेवक की डायरीजय नारायण गौड़ 
राजस्थान के सात प्रेमाख्यान, दासी की दास्तान, न्यू लाईफ, चोबोली एवं अदर स्टोरीज विजय दान देथा
शेष कादम्बरीअल्का श्रांवगी 
कामरेड़ गोडसेयशवन्त व्यास 
आलोचना री आँख सुकुन्दन माली 
पगरवा शान्ति रो सुरजदिनेश पंचाल 
राजस्थान की राजनीतिविजय भण्डारी 
कब्रिस्तान में पंचायतकेदारनाथ सिंह 
राजस्थानी भाषा एवं साहित्यप्रो. कल्याण शेखावत 
ब्रजेश विद हिस्ट्रीके. के. बिडला 
स्त्री उपेक्षीता, पीली आंधी, अन्या से अनन्याडॉ. प्रभात खेतान 
लव स्टोरी ऑफ राजस्थानलक्ष्मी कुमारी चुण्डावत 
मानस, आधा द्वितीयगुलाब कोठारी 
जिन्ना “इण्डिया पार्टीशन इन डिपेन्डेन्स, ए कॉल टू ऑनर” जसवन्त सिंह 
नोकरी करनी है तो भ्रष्टाचार करना ही होगा सुरजभान सिंह 
राजस्थान के रणबांकुरेंराजेन्द्र सिंह राठौड़ 
सोनिया गाँधी और भारतीय राजनीतिमानचन्द्र खण्डेला 
ळकीकतएम.जी. मेथ्य 
तफ्तीशआर.पी. सिंह 
राजस्थान के लोक देवी-देवताडॉ महेन्द्र भानावत 
ऊँची उड़ान, शाकाहार श्रेष्ठ आहारडॉ. कुसुम लूनिया 
लोकतन्त्र और आम आदमीभैरो सिंह शेखावत 
जयपुरगिल्स टील्लोट्सन
जीवन की सच्चाईयाँ लेनडोल्ट बोरनस्टेन
मनोहर लाल वनमालीप्रो.आर.आर. गुप्ता

 

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जनपद युगीन राजस्थान (Rajasthan During the Ages of Janapad)

जनपद युगीन राजस्थान
(Rajasthan During The Ages of Janapad) 

भारत में छठी शताब्दी ई. पू. से ही राजनीतिक घटनाओं का प्रामाणिक विवरण लगता है। इस शताब्दी में महात्मा बुद्ध और महावीर जैसे महापुरुषों का अवतरण हुआ था। इस समय तक वैदिक जन किसी क्षेत्र विशेष में स्थायीरूप से बस चुके थे। लोगों को भौगोलिक अभिज्ञता ठोस रूप से मिल जाने पर वह क्षेत्र विशेष सम्बन्धित जनपद के नाम से पुकारा जाने लगा ।

जनपद युग में राजस्थान (Rajasthan During The Age of Janapad)

बौद्ध ग्रन्थ अंगुतरनिकाय में 16 महाजनपदों की सूची मिलती है उसमें राजस्थान के केवल एक राज्य का उल्लेख आया है। मत्स्य जनपद का उल्लेख प्राय: सूरसेनों के साथ हुआ है। उस लोकप्रिय राज्य का नाम मत्स्य था । मत्स्य जनपद कुरु जनपद के दक्षिण में और सूरसेन के पश्चिम में था। दक्षिण में इसका विस्तार समहतः चम्बल नदी तक था और पश्चिम में सरस्वती नदी तक। इसमें आधुनिक अलवर प्रदेश, धौलपुर, करौली, जयपुर, भरतपुर के कुछ भाग सम्मिलित थे । इसकी राजधानी विराट नगर (आधुनिक बैराट) थी । महाभारत के अनुसार पाँच पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास का समय यहीं पर व्यतीत किया था । इसके समीप उपलब्ध नाम का कस्बा था।

पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने अपने ग्रन्थ राजपूताने का इतिहास खण्ड प्रथम में महाभारतकालीन मत्स्य राज्य की चर्चा करने के बाद लिखा है कि चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा साम्राज्य स्थापना तक राजस्थान का इतिहास बिल्कुल अन्धकार में है । 

मत्स्य एक प्राचीन राज्य था जिसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। शतपथ ब्राह्मण में मत्स्य राजा ध्वसन दवैतवन का नाम आया है, उसने सरस्वती के निकट अश्वमेघ यज्ञ किया था। 

महाभारत के अनुसार मत्स्य राज्य गौधन से सम्पन्न था इसलिये इस पर अधिकार करने हेतु त्रिगर्त और कुरु राज्य आक्रमण किया करते थे। मनुस्मृति में तो कुरु, मत्स्य. पंचाल और शूरसेन भूमि को ब्रह्मर्षि देश कहा गया है। मत्स्य प्रदेश के लोग ब्राह्मणवाद के अन्य भक्त माने जाते थे। मनुस्मृति में तो यहाँ तक कहा गया है कि मस्त, कुरुक्षेत्र, पंचाल तथा शूरसेन में निवास करने वाले लोग युद्ध क्षेत्र में अपना शौर्य प्रदर्शन करने में निपुण थे । इस प्रकार अपनी वीरता, पवित्र आचरण और परम्पराओं का पालन करने के विशिष्ट गुण के कारण मत्स्य राज्य के निवासियों का समाज में आदरपूर्ण स्थान था । महाभारत के अनुसार मत्स्य नरेश विराट पाण्डवों का मित्र एवं रिश्तेदार था। 

पाली साहित्य में मत्स्यों को शूरसेन तथा कुरु से सम्बन्धित बताया गया है । लेकिन मत्स्य राज्य का उन दिनों राजनीतिक वर्चस्व समाप्त हो गया था क्योंकि उसके पड़ोसी राज्य अवन्ति, शूरसेन तथा गन्धार अत्यन्त शक्तिशाली थे । जनपद काल में राजस्थान अवन्ति तथा गन्धार को जोड़ने वाली कड़ी मात्र था । 

 

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राजस्थान इतिहास का मध्य पाषाण काल (Middle Stone Age of Rajasthan History)

राजस्थान इतिहास का मध्य पाषाण काल
(Middle Stone Age of Rajasthan History)

मध्य पाषाण (Middle Stone Age) का मानव इतिहास में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक क्रम माना जाता है। पुराविदो का मानना है कि इस काल में पृथ्वी के धरातल पर नदियों, पहाड़ों व जगलो का स्थिरीकरण हो गया था तथा अब पुराप्रमाण भी अधिक संख्या में मिलने लगते हैं।

भारत में मध्य पाषाणकालीन स्थल निम्न स्थलों से प्राप्त होते हैं – 

  1. बाडमेर मे स्थित तिलवाडा,
  2. भीलवाड़ा मे स्थित बागोर, 
  3. मेहसाणा मे स्थित लघनाज,
  4. प्रतापगढ़ मे स्थित सरायनाहर, 
  5. उत्तरप्रदेश मे स्थित लेकडुआ, 
  6. मध्य प्रदेश होशंगाबाद में स्थित आदमगढ़,
  7. वर्धमान (बंगाल) जिले ने स्थित वीरभानपुर, 
  8. दक्षिण भारत के वेल्लारी जिले में स्थित संघन कल्लू 

मध्य पाषाणकालीन सर्वाधिक पुरास्थल गुजरात मारवड़ एवं मेवाड के क्षेत्रों से प्राप्त होते है। 

मध्यपाषाणकालीन मानव ने प्रधान रुप से जिन स्थलों को अपने निवास के लिए चुना उनको निम्न भागो में विभक्त किया जा सकता हैं – 

  1. रेत के थुहे – मध्यपापाणकालीन मानव ने रेत के थुहों को अपना निवास स्थान बनाया था। 
  2. शैलाश्रय – मध्यभारत के रिमझिम सतपुड़ा और कैमुर पर्वतों मे शिलाओ और शैलाश्रयों में मध्यपाषाणकालीन मानव के सर्वाधिक निवास स्थल थे, इन शैलाश्रयों से मध्यपाषाणकालीन मानवों के सर्वाधिक प्रमाण मिलते है । 
  3. चट्टानी क्षेत्र – मेवाड मे चट्टानों से संलग्न मैदानी क्षेत्रों में मध्यपाषाणकालीन स्थल मिलते है दक्षिण में भी ऐसे स्थल मिलते हैं। 

मध्यपाषाणकालीन संस्कृति के प्रचार-प्रसार के बाद भारत में अन्य स्थानों की तरह राजस्थान में नवपाषाणकाल के कोई प्रमाण नही मिले हैं। 

 

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प्रागैतिहासिक राजस्थान (Prehistoric Rajasthan)

प्रागैतिहासिक राजस्थान (Prehistoric Rajasthan)

राजस्थान (Rajasthan) के मरुभूमि क्षेत्र में प्रारंभिक पुरापाषाणकालीन (Palaeolithic) संस्कृति के पाए जाने वाले प्रस्तर उपकरणों मे हस्तकुठार (Hand Axe) कुल्हाडी, क्लीवर और खंडक (चौपर) मुख्य है यहाँ से प्राप्त प्रस्तर उपकरण सोहनघाटी क्षेत्र में पाए जाने वाले प्रस्तर उपकरणों की तरह ही है। प्राप्त उपकरण पंजाब की सोन संस्कृति एवं मद्रास की हस्त कुल्हाडी संस्कृति के मध्य संबंध स्थापित करती है ।

चित्तौडगढ (मेवाड) मे सर्वेक्षण कर डॉ. वी. एन मिश्रा ने 1959 में गभीरी नदी के पेटे से जो चित्तौड़गढ़ के किले के दक्षिणी किनारे पर स्थित है 242 पाषाण उपकरण खोजे थे। यह 242 उपकरण दो सर्वेक्षण कर एकत्रित किए गए । 

प्रथम संग्रह मे 135 उपकरण तथा दूसरे संग्रह मे 107 उपकरण एकत्र किए गए हैं। 135 उपकरणों में से तीन हस्त कुल्हाड़ी दो छीलनी (स्क्रेपर) एक कछुए की पीठ, के सहश कोड और नौ फलक है ।  

निम्न पुरापाषाणकालीन उपकरण (Lower Paleolithic Tools)

इस काल के उपकरणों में मुख्यत पेबुल, उपकरण, हैन्डएक्स, क्लीवर फ्लेक्स पर बने ब्लेड और स्केपर, चौपर और चापिग उपकरण आदि है, इन्हें कोर उपकरण समूह में सम्मिलित किया जाता है। 

राजस्थान मे इन उपकरणों को प्रकाश मे लाने का श्रेय प्रो.वी.एनमिश्रा, एस.एन.राजगुरु, डी.पी अग्रवाल, गोढी, गुरदीप सिंह वासन, आर. पी. धीर को जाता है, इन्होने जायल और डीडवाना मेवाड मे चित्तौड़गढ (गंभीरी बेसीन) कोटा (चम्बल बेसीन) और नगरी (बेड़च बेसीन) क्षेत्रों में अनेक निम्न पुरापाषाणकालीन स्थल स्तरीकृत ग्रेवेल से प्राप्त किये । 

मध्य पुरापाषाण कालीन उपकरण (Middle Palaeolithic Tools)

इस काल की संस्कृति के अवशेष भारत में सर्वप्रथम नेवासा (महाराष्ट्र) से प्राप्त हुए है, इसलिए प्रो. एच. डी. सांकलिया ने इस संस्कृति के उपकरणों को नवासा उपकरण का नाम दिया है। बीसवी शताब्दी के साठवे दशक के बाद हुई खोजों के फलस्वरुप मध्य पुरापाषाणकाल का भारत के सभी भागों में विस्तार मिला हैं । इस काल की संस्कृति के अवशेष महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्धप्रदेश, तमिलनाडु उड़ीसा, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, उत्तरी केरल, मेघालय, पजाब और कश्मीर के विभिन्न स्थलों से प्राप्त हुए हैं। 

मध्य पुरापाषाणकालीन संस्कृति के स्थलों को मुख्य रुप से तीन भागो मे विभाजित किया जा सकता है –

(i) Cave & Rock Shelter Site इस प्रकार के उपकरणों के उदाहरण भीम बैठका के शैलाश्रयों से मिलते है, जो मध्य प्रदेश में स्थित हैं ।

(ii) Open air work Shopes site ऐसे पुरास्थलों से तात्पर्य यह है कि मध्यपुरापाषाणकालीन मानव उपकरण बनाता था, यह क्षेत्र कई हैक्टयर में फैला हुआ होता हैं इस प्रकार के पुरास्थल कर्नाटक में काफी संख्या में मिले है । 

(iii) River site ऐसे पुरास्थल कृष्णागोदावरी, नर्बदा पंजाब के सोहन नदी आदि के किनारों से प्राप्त होते है । नदी किनारों के पुरास्थलों से एक लाभ यह होता है कि इनके उपकरणों का सापेक्ष निर्धारण किया जा सकता है ।

उच्च पुरापाषाणकाल (Upper Palaeolithic Period)

1970 से पूर्व तक यह माना जाता था कि भारत में उच्च पुरापाषाण काल का अभाव रहा हैं परन्तु पुरातत्व वेत्ताओ ने इस काल की संस्कृति के अध्ययन हेतु सर्वेक्षण कर इस ओर शोधकार्य आरंभ किया। जिसमें उत्तर प्रदेश तथा बिहार के दक्षिणी पठारी क्षेत्र मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और राजस्थान से इस काल की संस्कृति के प्रमाण अस्तित्व में आयें । उच्च पुरापाषाणकाल के प्रस्तर उपकरणों की मुख्य विशेषता ब्लेड उपकरणों की प्रधानता रही । ब्लेड सामान्यतः पतले और संकरे आकार के लगभग समानान्तर पार्श वाले उन पाषाण फलको को कहते है, जिनकी लम्बाई उनकी चौडाई की कम से कम दुगुनी होती है । उच्च पुरापाषाणकाल मे मनुष्यों ने अपने प्रत्येक कार्यो के लिए विशिष्ट प्रकार के उपकरण बनाने की तकनीकी विकीसत कर ली थी। इसका प्रयोग हड्डी, हाथीदाँत, सीग आदि की नक्काशी करने के काम मे लिया जाता था इस काल की संगति की दूसरी विशेषता यह रही कि आधुनिक मानव जिसे जीव विज्ञान की भाषा मे होमोसेपियन्स (Homo Sapines) कहते है । 

उच्च पुरापाषाणकाल से संबंधित संस्कृति के उपकरणों की खोज का श्रेय आस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी, कैनबरा के ग्रुप के साथ, गुरुदीपसिह, वी.एन.मिश्रा आदि को जाता है, राजस्थान मे बूढ़ा पुष्कर से इस संस्कृति के उपकरण प्राप्त हुए हैं ये उपकरण मुख्यतः ब्लेड पर निर्मित है। 

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राजस्थान इतिहास के सिक्के (Coins of Rajasthan History)

राजस्थान इतिहास के सिक्के (Coins of Rajasthan History)

राजस्थान के इतिहास (History of Rajasthan) लेखन में सिक्कों (मुद्राओं) से बड़ी सहायता मिलती है। ये सोने, चांदी, तांबे या मिश्रित धातुओं के होते थे। सिक्के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक एवं भौतिक जीवन पर उल्लेखनीय प्रकाश डालते हैं। 

सिक्कों के ढेर राजस्थान में काफी मात्रा में विभिन्न स्थानों पर मिले हैं। 1871 ई. में कार्लायल को नगर (उणियारा) से लगभग 6000 मालव सिक्के मिले थे जिससे वहां मालवों के आधिपत्य तथा उनकी समृद्धि का पता चलता है । 

  • रैढ़ (टोंक) की खुदाई से वहाँ 3075 चांदी के पंचमार्क सिक्के मिले। ये सिक्के भारत के प्राचीनतम सिक्के हैं । इन पर विशेष प्रकार का चिह्न अंकित हैं और कोई लेप नहीं है । ये सिक्के मौर्य काल के थे । 
  • 1948 ई. में बयाना में 1921 गुप्तकालीन स्वर्ण सिक्के मिले थे। तत्कालीन राजपूताना की रियासतों के सिक्कों के विषय पर केब ने 1893 में ‘द करेंसीज आफ दि हिन्दू स्टेट्स ऑफ राजपूताना’ नामक पुस्तक लिखी, जो आज भी अद्वितीय मानी जाती है । 
  • 10-11वीं शताब्दी में प्रचलित सिक्कों पर गधे के समान आकृति का अंकन मिलता है, इसलिए इन्हें गधिया सिक्के कहा जाता है । इस प्रकार के सिक्के राजस्थान के कई हिस्सों से प्राप्त होते हैं । 
  • मेवाड में कुम्भा के काल में सोने, चाँदी व ताँबे के गोल व चौकोर सिक्के प्रचलित थे । 
  • महाराणा अमरसिंह के समय में मुगलों के संधि हो जाने के बाद यहाँ मुगलिया सिक्कों का चलन शुरू हो गया । 
  • मुगल शासकों के साथ अधिक मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों के कारण जयपुर के कछवाह शासकों को अपने राज्य में टकसाल खोलने की स्वीकृति अन्य राज्यों से पहले मिल गई थी । यहाँ के सिक्कों को ‘झाडशाही’ कहा जाता था ।  
  • जोधपुर में विजयशाही सिक्कों का प्रचलन हुआ ।  बीकानेर में ‘आलमशाही’ नामक मुगलिया सिक्कों का काफी प्रचलन हुआ । 
  • ब्रिटिश सत्ता की स्थापना के बाद कलदार रुपये का प्रचलन हुआ और धीरे-धीरे राजपूत राज्यों में ढलने वाले सिक्कों का प्रचलन बन्द हो गया । 
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राजस्थान इतिहास के ताम्रपत्र

राजस्थान इतिहास के ताम्रपत्र
(Rajasthan History Cupboards)

इतिहास के निर्माण में तामपत्रों (Cupboards) का महत्वपूर्ण स्थान है। प्राय राजा या ठिकाने के सामन्तों द्वारा ताम्रपत्र दिये जाते थे। ईनाम, दान-पुण्य, जागीर आदि अनुदानों को ताम्रपत्रों पर खुदवाकर अनुदान-प्राप्तकर्ता को दे दिया जाता था जिसे वह अपने पास संभाल कर पीढ़ी-दर-पीढ़ी रख सकता था। 

आहड के ताम्रपत्र (1206 ई.) – इस ताम्रपत्र में गुजरात के मूलराज से लेकर भीमदेव द्वितीय तक सोलंकी राजाओं की वंशावली दी गई है। इससे यह भी पता चलता है कि भीमदेव के समय में मेवाड़ पर गुजरात का प्रभुत्व था। 

खेरोदा के ताम्रपत्र (1437 ई.) – इस ताम्रपत्र से एकलिंगजी में महाराणा कुम्भा द्वारा दान दिये गये खेतों के आस-पास से गुजरने वाले मुख्य मार्गो, उस समय में प्रचलित मुद्रा धार्मिक स्थिति आदि की जानकारी मिलती है। 

चौकली ताम्रपत्र (1483 ई.) – इस ताम्रपत्र से किसानों से वसूल की जाने वाली विविध लाग-बागों का पता चलता है । 

पुर के ताम्रपत्र (1535 ई.) इस ताम्रपत्र से हाडी रानी कर्मावती द्वारा जौहर में प्रवेश करते समय दिये गये भूमि अनुदान की जानकारी मिलती है ।

 

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राजस्थान के अब तक के मुख्यमंत्रियों की लिस्ट (List of Chief Ministers of Rajasthan till Date)

राजस्थान के अब तक के मुख्यमंत्री 

मुख्यमंत्री कार्यकाल
हीरा लाल शास्त्री07 अप्रेल 1949 से 05 जनवरी 1951
सी एस वेंकटाचारी06 जनवरी 1951 से 25 अप्रेल 1951
जय नारायण व्यास26 अप्रेल 1951 से 03 मार्च 1952
टीका राम पालीवाल03 मार्च 1952 से 31 अक्टूबर 1952
जय नारायण व्यास01 नवम्बर 1952 से 12 नवम्बर 1954
मोहन लाल सुखाडीया13 नवम्बर 1954 से 11 अप्रेल 1957
मोहन लाल सुखाडीया 11 अप्रेल 1957 से 11 मार्च 1962
मोहन लाल सुखाडीया 12 मार्च 1962 से 13 मार्च 1967
राष्ट्रपति शासन (13 मार्च 1967 से 26 अप्रेल 1967 तक)
मोहन लाल सुखाडीया 26 अप्रेल 1967 से 09 जुलाई 1971
बरकतुल्लाह खान09 जुलाई 1971 से 11 अगस्त 1973
हरी देव जोशी11 अगस्त 1973 से 29 अप्रेल 1977
राष्ट्रपति शासन (29 अगस्त 1973 से 22 जून 1977 तक)
भैरों सिंह शेखावत22 जून 1977 से 16 फरवरी 1980
राष्ट्रपति शासन (16 मार्च 1980 से 6 जून 1980 तक)
जगन्नाथ पहाड़ीया06 जून 1980 से 13 जुलाई 1981
शिव चंद्र माथुर14 जुलाई 1981 से 23 फरवरी 1985
हीरा लाल देवपुरा23 फरवरी 1985 से 10 मार्च 1985
हरी देव जोशी10 मार्च 1985 से 20 जनवरी 1988
शिव चंद्र माथुर 20 जनवरी 1988 से 04 दिसम्बर 1989
हरी देव जोशी 04 दिसम्बर 1989 से 04 मार्च 1990
भैरों सिंह शेखावत 04 मार्च 1990 से 15 दिसम्बर 1992
राष्ट्रपति शासन (15 दिसम्बर 1992 से 4 दिसम्बर 1993 तक)
भैरों सिंह शेखावत 04 दिसम्बर 1993 से 29 दिसम्बर 1998
अशोक गहलोत01 दिसम्बर 1998 से 08 दिसम्बर 2003
वसुन्धरा राजे सिंधिया08 दिसम्बर 2003 से 11 दिसम्बर 2008
अशोक गहलोत 12 दिसम्बर 2008 से 13 दिसम्बर 2013
वसुन्धरा राजे सिंधिया 13 दिसम्बर 2013 से 16 दिसम्बर 2018
अशोक गहलोत17 दिसम्बर 2018 से अब तक 

 

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राजस्थान कैबिनेट मंत्रियों की वर्तमान लिस्ट (Present List of Rajasthan Cabinet Ministers)

राजस्थान के कैबिनेट मंत्री (Cabinet Minister of Rajasthan) 2020 – 21

क्र.सं.मंत्रीगणविभाग
1.श्री अशोक गहलोत‌, मुख्यमंत्री
1. वित्त विभाग,
2. आबकारी विभाग,
3. नियोजन विभाग,
4. नीति नियोजन विभाग,
5. कार्मिक विभाग,
6. सामान्य प्रशासन विभाग,
7. राज्य अन्वेषण ब्यूरो,
8. सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार विभाग,
9. गृह मंत्रालय एवं न्याय विभाग
केबिनेट मंत्री
1.श्री बुलाकी दास कल्ला
शिक्षा (प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा) विभाग,
संस्कृत शिक्षा विभाग,
कला, साहित्य, संस्कृति और पुरातत्व विभाग,
पंचायती राज के अधीनस्थ प्राथमिक शिक्षा विभाग का स्वतंत्र प्रभार
2.श्री शान्ती कुमार धारीवाल
स्वायत्त शासन,
नगरीय विकास एवं आवासन विभाग,
विधि एवं विधिक कार्य विभाग और विधि परामर्शी कार्यालय,
संसदीय कार्य विभाग,
निर्वाचन विभाग
3.श्री हेमा राम चौधरी
वन विभाग,
पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग
4.श्री परसादी लाल 
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग,
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं (ESI),
आबकारी विभाग,
पंचायती राज के अधीनस्थ चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग का स्वतंत्र प्रभार
5.श्री लालचंद कटारिया
कृषि विभाग,
पशुपालन विभाग,
मत्स्य विभाग,
पंचायती राज के अधीनस्थ कृषि विभाग का स्वतंत्र प्रभार
6.श्री महेन्द्रजीत सिंह मालवीय
जल संसाधन विभाग,
इंदिरा गांधी नहर परियोजना विभाग,
जल संसाधन (आयोजना) विभाग
7.डॉ. महेश जोशी
जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग,
भू-जल विभाग
8.श्री रामलाल जाट
राजस्व विभाग
9.श्री प्रमोद भाया
खान एवं पैट्रोलियम विभाग,
गोपालन विभाग
10.श्री विश्वेन्द्र सिंह
पर्यटन विभाग,
नागरिक उड्डयन विभाग
11.श्री रमेश चन्द मीणा
ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग
12.श्री आंजना उदयलाल
सहकारिता विभाग
13.श्री प्रताप सिंह खाचरियावास
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग,
उपभोक्ता मामले विभाग
14.श्री शाले मोहम्‍मद
अल्पसंख्यक मामलात विभाग,
वक्फ विभाग,
उपनिवेशन विभाग,
कृषि सिंचित क्षेत्र विकास एवं जल उपयोगिता विभाग
15.श्रीमती ममता भूपेश
महिला एवं बाल विकास विभाग,
बाल अधिकारिता विभाग,
आयोजना विभाग,
पंचायती राज के अधीनस्थ महिला एवं बाल विकास विभाग का स्वतंत्र प्रभार
16.श्री भजनलाल जाटव
सार्वजनिक निर्माण विभाग
17.श्री टीकाराम जूली
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग,
जेल विभाग,
पंचायती राज के अधीनस्थ सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग का स्वतंत्र प्रभार
18.श्री गोविन्द राम मेघवाल
आपदा प्रबंधन एवं सहायता विभाग,
प्रशासनिक सुधार और समन्वय विभाग,
सांख्यिकी विभाग,
नीति निर्धारण प्रकोष्ठ
19.श्रीमती शकुन्तला रावत 
उद्योग विभाग,
राजकीय उपक्रम विभाग,
देवस्थान विभाग

राजस्थान के राज्य मंत्री (State Minister of Rajasthan)

क्र.सं.मंत्रीगणविभाग
1.श्री बृजेन्द्र ओला परिवहन एवं सड़क सुरक्षा विभाग (स्वतन्त्र प्रभार)
2.श्री मुरारी लाल मीणा कृषि विपणन विभाग (स्वतन्त्र प्रभार),
सम्पदा विभाग (स्वतन्त्र प्रभार),
पर्यटन विभाग, नागरिक उड्डयन विभाग
3.श्री राजेन्द्र सिंह गुढ़ा सैनिक कल्याण विभाग (स्वतन्त्र प्रभार),
गृह रक्षा एवं नागरिक सुरक्षा विभाग,
ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग
4.श्रीमती ज़ाहिदा खान विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (स्वतन्त्र प्रभार);
मुद्रण एवं लेखन सामग्री विभाग (स्वतन्त्र प्रभार);
शिक्षा (प्राथमिक एवं माध्यमिक) विभाग;
कला, साहित्य, संस्कृति और पुरातत्व विभाग
5.श्री अर्जुन सिंह बामनिया जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग (स्वतन्त्र प्रभार),
जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग,
भू-जल विभाग
6.श्री अशोक युवा मामले और खेल विभाग (स्वतन्त्र प्रभार),
कौशल विभाग (स्वतन्त्र प्रभार),
नियोजन एवं उद्यमिता विभाग (स्वतन्त्र प्रभार),
सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग,
आपदा प्रबंधन एवं सहायता विभाग,
प्रशासनिक सुधार और समन्वय विभाग,
सांख्यिकी विभाग,
नीति निर्धारण प्रकोष्ठ
7.श्री भंवर सिंह भाटी ऊर्जा विभाग (स्वतन्त्र प्रभार),
जल संसाधन विभाग,
इंदिरा गांधी नहर परियोजना विभाग,
जल संसाधन (आयोजना) विभाग
8.श्री राजेंद्र सिंह यादव उच्च शिक्षा विभाग (स्वतन्त्र प्रभार),
आयोजना (जनशक्ति) विभाग (स्वतन्त्र प्रभार),
स्टेट मोटर गैराज विभाग (स्वतन्त्र प्रभार),
भाषा एवं पुस्तकालय विभाग (स्वतन्त्र प्रभार),
गृह और न्याय विभाग
9.श्री सुखराम विश्‍नोई श्रम विभाग (स्वतन्त्र प्रभार),
कारखाना एवं बॉयलर्स निरीक्षण विभाग (स्वतन्त्र प्रभार),
राजस्व विभाग
10.डॉ. सुभाष गर्ग तकनीकी शिक्षा विभाग (स्वतन्त्र प्रभार),
आयुर्वेद और भारतीय चिकित्सा विभाग (स्वतन्त्र प्रभार),
जन अभियोग निराकरण विभाग (स्वतन्त्र प्रभार),
अल्पसंख्यक मामलात विभाग,
वक्फ विभाग,
उपनिवेशन विभाग,
कृषि सिंचित क्षेत्र विकास एवं जल उपयोगिता विभाग

 

 

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राजस्थान इतिहास के स्रोत – ताम्रपत्र, सिक्के, स्मारक एवं मूर्तियां

ताम्रपत्र (Copper Sheet)

इतिहास के निर्माण में तामपत्रों का महत्वपूर्ण स्थान है। प्राय राजा या ठिकाने के सामन्तों द्वारा ताम्रपत्र दिये जाते थे। ईनाम, दान-पुण्य, जागीर आदि अनुदानों को ताम्रपत्रों पर खुदवाकर अनुदान-प्राप्तकर्ता को दे दिया जाता था जिसे वह अपने पास संभाल कर पीढ़ी-दर-पीढ़ी रख सकता था। ताम्रपत्रों में पहले संगत भाषा का प्रयोग किया गया परन्तु बाद में स्थानीय भाषा का प्रयोग किया जाने लगा। दानपत्र में राजा अथवा दानदाता का नाम, अनुदान पाने वाले का नाम, अनुदान देने का कारण, अनुदान में दी गई भूमि का विवरण, समय तथा अन्य जानकारी का उल्लेख किया जाता था। इसलिए दानपत्रों से हमें कई राजनीतिक घटनाओं, आर्थिक स्थिति, धार्मिक विश्वासों, जातिगत स्थिति आदि के बारे में उपयोगी जानकारी मिलती है।

कई बार दान पत्रों से विविध राजवंश के वंश क्रम को निर्धारित करने में सहायता मिलती है।

  • आहड के ताम्रपत्र (1206 ई.) में गुजरात के मूलराज से लेकर भीमदेव दवितीय तक सोलंकी राजाओं की वंशावली दी गई है। इससे यह भी पता चलता है कि भीमदेव के समय में मेवाड़ पर गुजरात का प्रभुत्व था।
  • खेरोदा के ताम्रपत्र (1437 ई.) से एकलिंगजी में महाराणा कुम्भा द्वारा दान दिये गये खेतों के आस-पास से गुजरने वाले मुख्य मार्गों, उस समय में प्रचलित मुद्रा धार्मिक स्थिति आदि की जानकारी मिलती है।
  • चौकली ताम्रपत्र (1483 ई.) से किसानों से वसूल की जाने वाली विविध लाग-बागों का पता चलता है ।
  • पुर के ताम्रपत्र (1535 ई.) से हाडी रानी कर्मावती द्वारा जौहर में प्रवेश करते समय दिये गये भूमि अनुदान की जानकारी मिलती है ।

सिक्के (Coins)

राजस्थान के इतिहास लेखन में सिक्कों (मुद्राओं) से बड़ी सहायता मिलती है। ये सोने, चांदी, तांबे या मिश्रित धातुओं के होते थे। सिक्के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक एवं भौतिक जीवन पर उल्लेखनीय प्रकाश डालते हैं। इनके प्राप्ति स्थलों से काफी सीमा तक राज्यों के विस्तार का ज्ञान होता है। सिक्कों के ढेर राजस्थान में काफी मात्रा में विभिन्न स्थानों पर मिले हैं।

  • 1871 ई. में कार्लायल को नगर (उणियारा) से लगभग 6000 मालव सिक्के मिले थे जिससे वहां मालवों के आधिपत्य तथा उनकी समृद्धि का पता चलता है ।
  • रैढ़ (टोंक) की खुदाई से वहाँ 3075 चांदी के पंचमार्क सिक्के मिले ये सिक्के भारत के प्राचीनतम सिक्के हैं । इन पर विशेष प्रकार का चिह्न अंकित हैं और कोई लेप नहीं है। ये सिक्के मौर्य काल के थे।
  • 1948 ई. में बयाना में 1921 गुप्तकालीन स्वर्ण सिक्के मिले थे। तत्कालीन राजपूताना की रियासतों के सिक्कों के विषय पर केब ने 1893 में ‘द करेंसीज आफ दि हिन्दू स्टेट्स ऑफ राजपूताना’ नामक पुस्तक लिखी, जो आज भी अवितीय मानी जाती है।
  • 10-11वीं शताब्दी में प्रचलित सिक्कों पर गधे के समान आकृति का अंकन मिलता है, इसलिए इन्हें गधिया सिक्के कहा जाता है। इस प्रकार के सिक्के राजस्थान के कई हिस्सों से प्राप्त होते हैं।
  • मेवाड़ में कुम्भा के काल में सोने, चाँदी व ताँबे के गोल व चौकोर सिक्के प्रचलित थे।
  • महाराणा अमरसिंह के समय में मुगलों के संधि हो जाने के बाद यहाँ मुगलिया सिक्कों का चलन शुरू हो गया मुगल शासकों के साथ अधिक मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों के कारण जयपुर के कछवाह शासकों को अपने राज्य में टकसाल खोलने की स्वीकृति अन्य राज्यों से पहले मिल गई थी। यहाँ के सिक्कों को ‘झाडशाही’ कहा जाता था।
  • बीकानेर में ‘आलमशाही’ नामक मुगलिया सिक्कों का काफी प्रचलन हुआ।
  • ब्रिटिश सत्ता की स्थापना के बाद कलदार रुपये का प्रचलन हुआ और धीरे-धीरे राजपूत राज्यों में ढलने वाले सिक्कों का प्रचलन बन्द हो गया।

स्मारक एवं मूर्तियां (Monuments and Statues) (दुर्ग, मंदिर, स्तूप तथा स्तम्भ)

राजस्थान में अनेक स्थलों से प्राप्त भवन, दुर्ग, मंदिर, स्तूप, स्तम्भ आदि स्तूप तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है। प्राचीन दुर्ग एवं भवन राजस्थान में स्थान-स्थान पर देखे जा सकते हैं। चित्तौड़, जालौर, गागरोन, रणथम्भौर, आमेर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, कुम्भलगढ, अचलगढ़ आदि दुर्ग इतिहास के बोलते साक्ष्य हैं। दुर्गों में बने महल, मन्दिर, जलाशय आदि तत्कालीन समाज एवं धर्म की जानकारी देते हैं।

राजस्थान के प्रसिद्ध मन्दिर यथा देलवाडा एवं रणकपुर के जैन मन्दिर आमेर का जगत शिरोमणि मंदिर, नागदा का सास-बहू का मंदिर, उदयपुर का जगदीश मंदिर, ओसियां का सच्चिमाता एवं जैन मंदिर, झालरापाटन का सूर्य मंदिर आदि उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त किराडू, बाडोली, पुष्कर आदि स्थानों के मंदिर भी इतिहास के अध्ययन के लिए उपयोगी है। ये मंदिर धर्म एवं कला के अध्ययन के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। मूर्तियों के गहन अध्ययन से तत्कालीन वेशभूषा, श्रृंगार के तौर-तरीकों, आभूषणों, विविध वाद्य यंत्रों, नृत्य की मुद्राओं आदि का बोध होता है। राजस्थान में स्थापत्य एवं तक्षणकला के लिए चित्तौड़ दुर्ग स्थित कीर्ति स्तम्भ एक श्रेष्ठ उदाहरण है। आमेर का जगत शिरोमणि का मंदिर, मुगल-राजपूत समन्वय की दृष्टि से उल्लेखनीय है।

 

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