जनपद युगीन राजस्थान (Rajasthan During the Ages of Janapad)

जनपद युगीन राजस्थान
(Rajasthan During The Ages of Janapad) 

भारत में छठी शताब्दी ई. पू. से ही राजनीतिक घटनाओं का प्रामाणिक विवरण लगता है। इस शताब्दी में महात्मा बुद्ध और महावीर जैसे महापुरुषों का अवतरण हुआ था। इस समय तक वैदिक जन किसी क्षेत्र विशेष में स्थायीरूप से बस चुके थे। लोगों को भौगोलिक अभिज्ञता ठोस रूप से मिल जाने पर वह क्षेत्र विशेष सम्बन्धित जनपद के नाम से पुकारा जाने लगा ।

जनपद युग में राजस्थान (Rajasthan During The Age of Janapad)

बौद्ध ग्रन्थ अंगुतरनिकाय में 16 महाजनपदों की सूची मिलती है उसमें राजस्थान के केवल एक राज्य का उल्लेख आया है। मत्स्य जनपद का उल्लेख प्राय: सूरसेनों के साथ हुआ है। उस लोकप्रिय राज्य का नाम मत्स्य था । मत्स्य जनपद कुरु जनपद के दक्षिण में और सूरसेन के पश्चिम में था। दक्षिण में इसका विस्तार समहतः चम्बल नदी तक था और पश्चिम में सरस्वती नदी तक। इसमें आधुनिक अलवर प्रदेश, धौलपुर, करौली, जयपुर, भरतपुर के कुछ भाग सम्मिलित थे । इसकी राजधानी विराट नगर (आधुनिक बैराट) थी । महाभारत के अनुसार पाँच पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास का समय यहीं पर व्यतीत किया था । इसके समीप उपलब्ध नाम का कस्बा था।

पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने अपने ग्रन्थ राजपूताने का इतिहास खण्ड प्रथम में महाभारतकालीन मत्स्य राज्य की चर्चा करने के बाद लिखा है कि चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा साम्राज्य स्थापना तक राजस्थान का इतिहास बिल्कुल अन्धकार में है । 

मत्स्य एक प्राचीन राज्य था जिसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। शतपथ ब्राह्मण में मत्स्य राजा ध्वसन दवैतवन का नाम आया है, उसने सरस्वती के निकट अश्वमेघ यज्ञ किया था। 

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महाभारत के अनुसार मत्स्य राज्य गौधन से सम्पन्न था इसलिये इस पर अधिकार करने हेतु त्रिगर्त और कुरु राज्य आक्रमण किया करते थे। मनुस्मृति में तो कुरु, मत्स्य. पंचाल और शूरसेन भूमि को ब्रह्मर्षि देश कहा गया है। मत्स्य प्रदेश के लोग ब्राह्मणवाद के अन्य भक्त माने जाते थे। मनुस्मृति में तो यहाँ तक कहा गया है कि मस्त, कुरुक्षेत्र, पंचाल तथा शूरसेन में निवास करने वाले लोग युद्ध क्षेत्र में अपना शौर्य प्रदर्शन करने में निपुण थे । इस प्रकार अपनी वीरता, पवित्र आचरण और परम्पराओं का पालन करने के विशिष्ट गुण के कारण मत्स्य राज्य के निवासियों का समाज में आदरपूर्ण स्थान था । महाभारत के अनुसार मत्स्य नरेश विराट पाण्डवों का मित्र एवं रिश्तेदार था। 

पाली साहित्य में मत्स्यों को शूरसेन तथा कुरु से सम्बन्धित बताया गया है । लेकिन मत्स्य राज्य का उन दिनों राजनीतिक वर्चस्व समाप्त हो गया था क्योंकि उसके पड़ोसी राज्य अवन्ति, शूरसेन तथा गन्धार अत्यन्त शक्तिशाली थे । जनपद काल में राजस्थान अवन्ति तथा गन्धार को जोड़ने वाली कड़ी मात्र था । 

 

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