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राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा लिखित पुस्तकें 

राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा लिखित पुस्तकें
(Books Written by Freedom Fighters of Rajasthan)

स्वतन्त्रता सेनानी

पुस्तकें 

हीरा लाल शास्त्री  प्रत्यक्ष जीवनशास्त्र (आत्मकथा) 
सागरमल गोपा आजादी के दिवाने, जैसलमेर में गुण्डाराज 
माणिक्य लाल वर्मा  मेवाड़ का वर्तमान शासन 
विजय सिंह पथिक  व्हॉट आर इण्डियन स्टेट्स 
केसरी सिंह बारहठ  दुर्गादास चरित्र, प्रताप चरित्र, रूठी रानी, चेतावणी रा चुंगट्या
जयनारायण  व्यासपीप (अंग्रेजी पाक्षिक पत्रिका) 
हरिभाऊ उपाध्याय  युगधर्म, सर्वोदय की बुनीयाद, औदुम्बर व नवजीवन (समाचार पत्र) 

 

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राजस्थान में स्थित वन्य जीव अभ्यारण्य

राजस्थान में स्थित वन्य जीव अभ्यारण्य
(Wildlife Sanctuary in Rajasthan)

अभ्यारण्य  स्थान  वर्ष विशेषता 
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान भरतपुर  1981  पक्षियों का स्वर्ग
बँध बारेठा अभ्यारण्य  भरतपुर  1985 जरखों के लिये प्रसिद्ध 
रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान सवाई माधोपुर 1955 बाघों का घर
नाहरगढ़ अभ्यारण्य  जयपुर 1980 राज्य का प्रथम जैविक उद्यान 
फूलवारी की नाल अभ्यारण्य  उदयपुर 1983 मांसी-वाकल नदी का उदगम 
जयसमन्द अभ्यारण्य  उदयपुर  1955  बघेरों के लिये प्रसिद्ध 
सज्जनगढ़ अभ्यारण्य  उदयपुर  1987  नीलगाय व जंगली सुअरों के लिये प्रसिद्ध
सीतामाता अभ्यारण्य  चित्तौड़गढ़ 1979  उड़न गिलहरियों के लिये प्रसिद्ध 
भैसरोडगढ अभ्यारण्य चित्तौड़गढ़  1983  घड़ियालों के लिये प्रसिद्ध 
बस्सी अभ्यारण्य  चित्तौड़गढ़ 1988  बाघों के विचरण हेतु प्रसिद्ध 
राष्ट्रीय चम्बल अभ्यारण्य  कोटा 1979  घड़ियालों के लिये प्रसिद्ध 
दर्रा अभ्यारण्य  कोटा  1955 गागरोनी (हीरामन) तोते के लिये प्रसिद्ध 
जवाहर सागर अभ्यारण्य  कोटा  1975  मगरमच्छ के लिये प्रसिद्ध 
रामगढ़ विषधारी अभ्यारण्य  बूंदी 1982  बाघों का स्वतन्त्र विचरण 
कनकसागर अभ्यारण्य  बूंदी  1987 
सरिस्का अभ्यारण्य  टलवर  1982  हरे कबुतरों के लिये प्रसिद्ध
तालछापर अभ्यारण्य  चुरू  1971  काले हिरणों के लिये प्रसिद्ध 
माउन्ट आबू अभ्यारण्य  सरोही  1960  जंगली मुर्गो के लिये प्रसिद्ध 
रामसागर अभ्यारण्य, वन विहार धौलपुर  1955 
शेरगढ़ अभ्यारण्य  बारां  1983 साँपों का संरक्षण स्थल 
रावली टाडगढ़ अभ्यारण्य  टजमेर  1983 
गजनेर अभ्यारण्य बीकानेर तीतरों के लिये प्रसिद्ध 

 

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राजस्थान की प्रमुख पत्र-पत्रिकाएँ 

राजस्थान की प्रमुख पत्र-पत्रिकाएँ
(Major Newspapers and Magazines of Rajasthan)

पत्रिकाएँ  प्रकाषक 
जागती जोत  राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी (बीकोनर)
राजस्थानी गंगा  राजस्थानी ज्ञानपीठ संस्थान (बीकानेर)
जनम भोम राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी (बीकोनर)
पणिहारी राजस्थानी भाषा बाल साहित्य प्रकाशन लक्ष्मणगढ़ (सीकर)
माणक माणक प्रकाशन (जोधपुर)
परम्परा राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी (जोधपुर)
मरूचक्र रूपायन संस्थान (जोधपुर)
मरूभारती बिड़ला एज्यूकेशन ट्रस्ट, पिलानी (झुन्झुनु)
मरूवाणी राजस्थानी प्रचारिणी सभा (जयपुर)
स्वरमंगला/ स्वरमाला  राजस्थान संस्कृत अकादमी (जयपुर)
राजस्थान सुजस  सूचना एवं जनसम्पक्र निदेशालय, राजस्थान सरकार (जयपुर)
नखलिस्तान राजस्थान उर्दू अकादमी (जयपुर)
सिन्धुदूत  राजस्थान सिन्धी अकादमी (जयपुर)
राजस्थान विकास  ग्रामीण विकास व पंचायतीराज विभाग, राजस्थान सरकार (जयपुर)
मधुमती  राजस्थान साहित्य अकादमी (उदयपुर)
वरदा  राजस्थान साहित्य समिति (बिसाऊ)
ब्रज शतदल  राजस्थान ब्रजभाषा अकादमी
योजना सूचना व प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार

 

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स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान राजस्थान से प्रकाशित प्रमुख समाचार पत्र 

स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान राजस्थान से प्रकाशित प्रमुख समाचार पत्र
(Major Newspapers Published From Rajasthan During the Freedom Movement)

सज्जन कीर्ति सुधाकर (Sajjan Kranti Sudharak)

सम्पादन – मेवाड़ के महाराणा सज्जन सिंह के समय में प्रकाशित समाचार पत्र सन् 1876 में  

राजस्थान समाचार (Rajasthan Samachar)

सम्पादन – श्री मुंशी समर्थदान के सम्पादन में प्रकाशित सन् 1889 में प्रथम हिन्दी दैनिक अजमेर से 

राजस्थान केसरी (Rajasthan Kesari)

सम्पादन – श्री विजय सिंह पथिक द्वारा राजनीतिक साप्ताहिक समाचार पत्र सन् 1920 में वर्धा से शुरू किया गया । 

नवीन राजस्थान (Naveen Rajasthan)

सम्पादन – श्री विजय सिंह पथिक द्वारा अजमेर में प्रकाशित समाचार पत्र सन 1921 में 

राजस्थान (Rajasthan)

सम्पादन – श्री ऋषीदत्त मेहता द्वारा ब्यावर से प्रकाशित सन् 1923 में हाडौती क्षेत्र की जनता में राजनेतिक चेतना प्रवाहित करने के लिये 

 

प्रताप (Prtap)

सम्पादन – श्री गणेश शंकर विद्यार्थी के सम्पादन में कानपुर से प्रकाशित साप्ताहिक पत्र 

नवज्योति (Navjyoti)

सम्पादन – श्री रामनारायण चौधरी द्वारा सन् 1936 में अजमेर में प्रकाशित साप्ताहिक पत्र 

आगीबाण (Aagibaan)

सम्पादन – श्री जयनारायण व्यास द्वारा ब्यावर से सन् 1932 में राजस्थानी भाषा का प्रथम राजनैतिक समाचार पत्र मारवाड़ी जनता में राजनैतिक चेतना लाने हेतु 

जयभूमि (Jaybhumi)

सम्पादन – श्री गुलाब चन्द काला द्वारा सितम्बर 1940 में जयपुर से प्रकाशन प्रारम्भ 

जयपुर समाचार (Jaypur Samachar)

सम्पादन – श्री श्याम लाल वर्मा द्वारा सितम्बर 1942 में प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र 

प्रजासेवक (Prjasevak)

सम्पादन – श्री अचलेश्वर प्रसाद शर्मा द्वारा जोधपुर से प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र अखण्ड भारत श्री जयनारायण व्यास द्वारा बम्बई से प्रकाशित किया जाने वाला समाचार पत्र 1936 में 

 

राजस्थान टाइम्स (Rajasthan Times)

सम्पादन – श्री वासुदेव शर्मा द्वारा जयपुर से अंग्रेजी में प्रकाशित समाचार पत्र

 

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राजस्थान की चर्चित पुस्तकें (Popular Books of Rajasthan)

राजस्थान की चर्चित पुस्तकें
(Popular Books of Rajasthan)

पुस्तकें  लेखक 
विजयी बनो आचार्य महाश्रवण (आधुनिक विवेकानन्द)
रे मनवा मेरे, मैं ही राधा मै ही कृष्ण गुलाब कोठारी 
दादी की रसोई कंचन कोठारी 
मेवाड़ की लोककला (फड़) वन्दना जोशी 
हिलींग द ब्लयू प्लेनेट बने सिंह 
बलपणे री बातां  दीन दयाल शर्मा 
राजवंश, भरतपुर अछुती स्मृतियां रघुराज सिंह 
फस्ट लेड़ी प्रेसिडेन्ट इन्द्र दान रत्नु 
माँ एड़ा पुत जण, सीमा री पीड़, युद्धबन्दी मेजर रतन जागिड़ 
हरी दुब का सपना नन्द भारद्वाज 
जगह जैसी जगह हेमन्त शेष 
अमीर खातेदार बनाम गरीब खातेदार नरेश गोयल 
एक लोकसेवक की डायरी जय नारायण गौड़ 
राजस्थान के सात प्रेमाख्यान, दासी की दास्तान, न्यू लाईफ, चोबोली एवं अदर स्टोरीज  विजय दान देथा
शेष कादम्बरी अल्का श्रांवगी 
कामरेड़ गोडसे यशवन्त व्यास 
आलोचना री आँख सु कुन्दन माली 
पगरवा शान्ति रो सुरज दिनेश पंचाल 
राजस्थान की राजनीति विजय भण्डारी 
कब्रिस्तान में पंचायत केदारनाथ सिंह 
राजस्थानी भाषा एवं साहित्य प्रो. कल्याण शेखावत 
ब्रजेश विद हिस्ट्री के. के. बिडला 
स्त्री उपेक्षीता, पीली आंधी, अन्या से अनन्या डॉ. प्रभात खेतान 
लव स्टोरी ऑफ राजस्थान लक्ष्मी कुमारी चुण्डावत 
मानस, आधा द्वितीय गुलाब कोठारी 
जिन्ना “इण्डिया पार्टीशन इन डिपेन्डेन्स, ए कॉल टू ऑनर”  जसवन्त सिंह 
नोकरी करनी है तो भ्रष्टाचार करना ही होगा  सुरजभान सिंह 
राजस्थान के रणबांकुरें राजेन्द्र सिंह राठौड़ 
सोनिया गाँधी और भारतीय राजनीति मानचन्द्र खण्डेला 
ळकीकत एम.जी. मेथ्य 
तफ्तीश आर.पी. सिंह 
राजस्थान के लोक देवी-देवता डॉ महेन्द्र भानावत 
ऊँची उड़ान, शाकाहार श्रेष्ठ आहार डॉ. कुसुम लूनिया 
लोकतन्त्र और आम आदमी भैरो सिंह शेखावत 
जयपुर गिल्स टील्लोट्सन
जीवन की सच्चाईयाँ  लेनडोल्ट बोरनस्टेन
मनोहर लाल वनमाली प्रो.आर.आर. गुप्ता

 

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जनपद युगीन राजस्थान (Rajasthan During the Ages of Janapad)

जनपद युगीन राजस्थान
(Rajasthan During The Ages of Janapad) 

भारत में छठी शताब्दी ई. पू. से ही राजनीतिक घटनाओं का प्रामाणिक विवरण लगता है। इस शताब्दी में महात्मा बुद्ध और महावीर जैसे महापुरुषों का अवतरण हुआ था। इस समय तक वैदिक जन किसी क्षेत्र विशेष में स्थायीरूप से बस चुके थे। लोगों को भौगोलिक अभिज्ञता ठोस रूप से मिल जाने पर वह क्षेत्र विशेष सम्बन्धित जनपद के नाम से पुकारा जाने लगा ।

जनपद युग में राजस्थान (Rajasthan During The Age of Janapad)

बौद्ध ग्रन्थ अंगुतरनिकाय में 16 महाजनपदों की सूची मिलती है उसमें राजस्थान के केवल एक राज्य का उल्लेख आया है। मत्स्य जनपद का उल्लेख प्राय: सूरसेनों के साथ हुआ है। उस लोकप्रिय राज्य का नाम मत्स्य था । मत्स्य जनपद कुरु जनपद के दक्षिण में और सूरसेन के पश्चिम में था। दक्षिण में इसका विस्तार समहतः चम्बल नदी तक था और पश्चिम में सरस्वती नदी तक। इसमें आधुनिक अलवर प्रदेश, धौलपुर, करौली, जयपुर, भरतपुर के कुछ भाग सम्मिलित थे । इसकी राजधानी विराट नगर (आधुनिक बैराट) थी । महाभारत के अनुसार पाँच पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास का समय यहीं पर व्यतीत किया था । इसके समीप उपलब्ध नाम का कस्बा था।

पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने अपने ग्रन्थ राजपूताने का इतिहास खण्ड प्रथम में महाभारतकालीन मत्स्य राज्य की चर्चा करने के बाद लिखा है कि चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा साम्राज्य स्थापना तक राजस्थान का इतिहास बिल्कुल अन्धकार में है । 

मत्स्य एक प्राचीन राज्य था जिसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। शतपथ ब्राह्मण में मत्स्य राजा ध्वसन दवैतवन का नाम आया है, उसने सरस्वती के निकट अश्वमेघ यज्ञ किया था। 

महाभारत के अनुसार मत्स्य राज्य गौधन से सम्पन्न था इसलिये इस पर अधिकार करने हेतु त्रिगर्त और कुरु राज्य आक्रमण किया करते थे। मनुस्मृति में तो कुरु, मत्स्य. पंचाल और शूरसेन भूमि को ब्रह्मर्षि देश कहा गया है। मत्स्य प्रदेश के लोग ब्राह्मणवाद के अन्य भक्त माने जाते थे। मनुस्मृति में तो यहाँ तक कहा गया है कि मस्त, कुरुक्षेत्र, पंचाल तथा शूरसेन में निवास करने वाले लोग युद्ध क्षेत्र में अपना शौर्य प्रदर्शन करने में निपुण थे । इस प्रकार अपनी वीरता, पवित्र आचरण और परम्पराओं का पालन करने के विशिष्ट गुण के कारण मत्स्य राज्य के निवासियों का समाज में आदरपूर्ण स्थान था । महाभारत के अनुसार मत्स्य नरेश विराट पाण्डवों का मित्र एवं रिश्तेदार था। 

पाली साहित्य में मत्स्यों को शूरसेन तथा कुरु से सम्बन्धित बताया गया है । लेकिन मत्स्य राज्य का उन दिनों राजनीतिक वर्चस्व समाप्त हो गया था क्योंकि उसके पड़ोसी राज्य अवन्ति, शूरसेन तथा गन्धार अत्यन्त शक्तिशाली थे । जनपद काल में राजस्थान अवन्ति तथा गन्धार को जोड़ने वाली कड़ी मात्र था । 

 

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राजस्थान इतिहास का मध्य पाषाण काल (Middle Stone Age of Rajasthan History)

राजस्थान इतिहास का मध्य पाषाण काल
(Middle Stone Age of Rajasthan History)

मध्य पाषाण (Middle Stone Age) का मानव इतिहास में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक क्रम माना जाता है। पुराविदो का मानना है कि इस काल में पृथ्वी के धरातल पर नदियों, पहाड़ों व जगलो का स्थिरीकरण हो गया था तथा अब पुराप्रमाण भी अधिक संख्या में मिलने लगते हैं।

भारत में मध्य पाषाणकालीन स्थल निम्न स्थलों से प्राप्त होते हैं – 

  1. बाडमेर मे स्थित तिलवाडा,
  2. भीलवाड़ा मे स्थित बागोर, 
  3. मेहसाणा मे स्थित लघनाज,
  4. प्रतापगढ़ मे स्थित सरायनाहर, 
  5. उत्तरप्रदेश मे स्थित लेकडुआ, 
  6. मध्य प्रदेश होशंगाबाद में स्थित आदमगढ़,
  7. वर्धमान (बंगाल) जिले ने स्थित वीरभानपुर, 
  8. दक्षिण भारत के वेल्लारी जिले में स्थित संघन कल्लू 

मध्य पाषाणकालीन सर्वाधिक पुरास्थल गुजरात मारवड़ एवं मेवाड के क्षेत्रों से प्राप्त होते है। 

मध्यपाषाणकालीन मानव ने प्रधान रुप से जिन स्थलों को अपने निवास के लिए चुना उनको निम्न भागो में विभक्त किया जा सकता हैं – 

  1. रेत के थुहे – मध्यपापाणकालीन मानव ने रेत के थुहों को अपना निवास स्थान बनाया था। 
  2. शैलाश्रय – मध्यभारत के रिमझिम सतपुड़ा और कैमुर पर्वतों मे शिलाओ और शैलाश्रयों में मध्यपाषाणकालीन मानव के सर्वाधिक निवास स्थल थे, इन शैलाश्रयों से मध्यपाषाणकालीन मानवों के सर्वाधिक प्रमाण मिलते है । 
  3. चट्टानी क्षेत्र – मेवाड मे चट्टानों से संलग्न मैदानी क्षेत्रों में मध्यपाषाणकालीन स्थल मिलते है दक्षिण में भी ऐसे स्थल मिलते हैं। 

मध्यपाषाणकालीन संस्कृति के प्रचार-प्रसार के बाद भारत में अन्य स्थानों की तरह राजस्थान में नवपाषाणकाल के कोई प्रमाण नही मिले हैं। 

 

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प्रागैतिहासिक राजस्थान (Prehistoric Rajasthan)

प्रागैतिहासिक राजस्थान (Prehistoric Rajasthan)

राजस्थान (Rajasthan) के मरुभूमि क्षेत्र में प्रारंभिक पुरापाषाणकालीन (Palaeolithic) संस्कृति के पाए जाने वाले प्रस्तर उपकरणों मे हस्तकुठार (Hand Axe) कुल्हाडी, क्लीवर और खंडक (चौपर) मुख्य है यहाँ से प्राप्त प्रस्तर उपकरण सोहनघाटी क्षेत्र में पाए जाने वाले प्रस्तर उपकरणों की तरह ही है। प्राप्त उपकरण पंजाब की सोन संस्कृति एवं मद्रास की हस्त कुल्हाडी संस्कृति के मध्य संबंध स्थापित करती है ।

चित्तौडगढ (मेवाड) मे सर्वेक्षण कर डॉ. वी. एन मिश्रा ने 1959 में गभीरी नदी के पेटे से जो चित्तौड़गढ़ के किले के दक्षिणी किनारे पर स्थित है 242 पाषाण उपकरण खोजे थे। यह 242 उपकरण दो सर्वेक्षण कर एकत्रित किए गए । 

प्रथम संग्रह मे 135 उपकरण तथा दूसरे संग्रह मे 107 उपकरण एकत्र किए गए हैं। 135 उपकरणों में से तीन हस्त कुल्हाड़ी दो छीलनी (स्क्रेपर) एक कछुए की पीठ, के सहश कोड और नौ फलक है ।  

निम्न पुरापाषाणकालीन उपकरण (Lower Paleolithic Tools)

इस काल के उपकरणों में मुख्यत पेबुल, उपकरण, हैन्डएक्स, क्लीवर फ्लेक्स पर बने ब्लेड और स्केपर, चौपर और चापिग उपकरण आदि है, इन्हें कोर उपकरण समूह में सम्मिलित किया जाता है। 

राजस्थान मे इन उपकरणों को प्रकाश मे लाने का श्रेय प्रो.वी.एनमिश्रा, एस.एन.राजगुरु, डी.पी अग्रवाल, गोढी, गुरदीप सिंह वासन, आर. पी. धीर को जाता है, इन्होने जायल और डीडवाना मेवाड मे चित्तौड़गढ (गंभीरी बेसीन) कोटा (चम्बल बेसीन) और नगरी (बेड़च बेसीन) क्षेत्रों में अनेक निम्न पुरापाषाणकालीन स्थल स्तरीकृत ग्रेवेल से प्राप्त किये । 

मध्य पुरापाषाण कालीन उपकरण (Middle Palaeolithic Tools)

इस काल की संस्कृति के अवशेष भारत में सर्वप्रथम नेवासा (महाराष्ट्र) से प्राप्त हुए है, इसलिए प्रो. एच. डी. सांकलिया ने इस संस्कृति के उपकरणों को नवासा उपकरण का नाम दिया है। बीसवी शताब्दी के साठवे दशक के बाद हुई खोजों के फलस्वरुप मध्य पुरापाषाणकाल का भारत के सभी भागों में विस्तार मिला हैं । इस काल की संस्कृति के अवशेष महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्धप्रदेश, तमिलनाडु उड़ीसा, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, उत्तरी केरल, मेघालय, पजाब और कश्मीर के विभिन्न स्थलों से प्राप्त हुए हैं। 

मध्य पुरापाषाणकालीन संस्कृति के स्थलों को मुख्य रुप से तीन भागो मे विभाजित किया जा सकता है –

(i) Cave & Rock Shelter Site इस प्रकार के उपकरणों के उदाहरण भीम बैठका के शैलाश्रयों से मिलते है, जो मध्य प्रदेश में स्थित हैं ।

(ii) Open air work Shopes site ऐसे पुरास्थलों से तात्पर्य यह है कि मध्यपुरापाषाणकालीन मानव उपकरण बनाता था, यह क्षेत्र कई हैक्टयर में फैला हुआ होता हैं इस प्रकार के पुरास्थल कर्नाटक में काफी संख्या में मिले है । 

(iii) River site ऐसे पुरास्थल कृष्णागोदावरी, नर्बदा पंजाब के सोहन नदी आदि के किनारों से प्राप्त होते है । नदी किनारों के पुरास्थलों से एक लाभ यह होता है कि इनके उपकरणों का सापेक्ष निर्धारण किया जा सकता है ।

उच्च पुरापाषाणकाल (Upper Palaeolithic Period)

1970 से पूर्व तक यह माना जाता था कि भारत में उच्च पुरापाषाण काल का अभाव रहा हैं परन्तु पुरातत्व वेत्ताओ ने इस काल की संस्कृति के अध्ययन हेतु सर्वेक्षण कर इस ओर शोधकार्य आरंभ किया। जिसमें उत्तर प्रदेश तथा बिहार के दक्षिणी पठारी क्षेत्र मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और राजस्थान से इस काल की संस्कृति के प्रमाण अस्तित्व में आयें । उच्च पुरापाषाणकाल के प्रस्तर उपकरणों की मुख्य विशेषता ब्लेड उपकरणों की प्रधानता रही । ब्लेड सामान्यतः पतले और संकरे आकार के लगभग समानान्तर पार्श वाले उन पाषाण फलको को कहते है, जिनकी लम्बाई उनकी चौडाई की कम से कम दुगुनी होती है । उच्च पुरापाषाणकाल मे मनुष्यों ने अपने प्रत्येक कार्यो के लिए विशिष्ट प्रकार के उपकरण बनाने की तकनीकी विकीसत कर ली थी। इसका प्रयोग हड्डी, हाथीदाँत, सीग आदि की नक्काशी करने के काम मे लिया जाता था इस काल की संगति की दूसरी विशेषता यह रही कि आधुनिक मानव जिसे जीव विज्ञान की भाषा मे होमोसेपियन्स (Homo Sapines) कहते है । 

उच्च पुरापाषाणकाल से संबंधित संस्कृति के उपकरणों की खोज का श्रेय आस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी, कैनबरा के ग्रुप के साथ, गुरुदीपसिह, वी.एन.मिश्रा आदि को जाता है, राजस्थान मे बूढ़ा पुष्कर से इस संस्कृति के उपकरण प्राप्त हुए हैं ये उपकरण मुख्यतः ब्लेड पर निर्मित है। 

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राजस्थान इतिहास के सिक्के (Coins of Rajasthan History)

राजस्थान इतिहास के सिक्के (Coins of Rajasthan History)

राजस्थान के इतिहास (History of Rajasthan) लेखन में सिक्कों (मुद्राओं) से बड़ी सहायता मिलती है। ये सोने, चांदी, तांबे या मिश्रित धातुओं के होते थे। सिक्के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक एवं भौतिक जीवन पर उल्लेखनीय प्रकाश डालते हैं। 

सिक्कों के ढेर राजस्थान में काफी मात्रा में विभिन्न स्थानों पर मिले हैं। 1871 ई. में कार्लायल को नगर (उणियारा) से लगभग 6000 मालव सिक्के मिले थे जिससे वहां मालवों के आधिपत्य तथा उनकी समृद्धि का पता चलता है । 

  • रैढ़ (टोंक) की खुदाई से वहाँ 3075 चांदी के पंचमार्क सिक्के मिले। ये सिक्के भारत के प्राचीनतम सिक्के हैं । इन पर विशेष प्रकार का चिह्न अंकित हैं और कोई लेप नहीं है । ये सिक्के मौर्य काल के थे । 
  • 1948 ई. में बयाना में 1921 गुप्तकालीन स्वर्ण सिक्के मिले थे। तत्कालीन राजपूताना की रियासतों के सिक्कों के विषय पर केब ने 1893 में ‘द करेंसीज आफ दि हिन्दू स्टेट्स ऑफ राजपूताना’ नामक पुस्तक लिखी, जो आज भी अद्वितीय मानी जाती है । 
  • 10-11वीं शताब्दी में प्रचलित सिक्कों पर गधे के समान आकृति का अंकन मिलता है, इसलिए इन्हें गधिया सिक्के कहा जाता है । इस प्रकार के सिक्के राजस्थान के कई हिस्सों से प्राप्त होते हैं । 
  • मेवाड में कुम्भा के काल में सोने, चाँदी व ताँबे के गोल व चौकोर सिक्के प्रचलित थे । 
  • महाराणा अमरसिंह के समय में मुगलों के संधि हो जाने के बाद यहाँ मुगलिया सिक्कों का चलन शुरू हो गया । 
  • मुगल शासकों के साथ अधिक मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों के कारण जयपुर के कछवाह शासकों को अपने राज्य में टकसाल खोलने की स्वीकृति अन्य राज्यों से पहले मिल गई थी । यहाँ के सिक्कों को ‘झाडशाही’ कहा जाता था ।  
  • जोधपुर में विजयशाही सिक्कों का प्रचलन हुआ ।  बीकानेर में ‘आलमशाही’ नामक मुगलिया सिक्कों का काफी प्रचलन हुआ । 
  • ब्रिटिश सत्ता की स्थापना के बाद कलदार रुपये का प्रचलन हुआ और धीरे-धीरे राजपूत राज्यों में ढलने वाले सिक्कों का प्रचलन बन्द हो गया । 
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राजस्थान इतिहास के ताम्रपत्र

राजस्थान इतिहास के ताम्रपत्र
(Rajasthan History Cupboards)

इतिहास के निर्माण में तामपत्रों (Cupboards) का महत्वपूर्ण स्थान है। प्राय राजा या ठिकाने के सामन्तों द्वारा ताम्रपत्र दिये जाते थे। ईनाम, दान-पुण्य, जागीर आदि अनुदानों को ताम्रपत्रों पर खुदवाकर अनुदान-प्राप्तकर्ता को दे दिया जाता था जिसे वह अपने पास संभाल कर पीढ़ी-दर-पीढ़ी रख सकता था। 

आहड के ताम्रपत्र (1206 ई.) – इस ताम्रपत्र में गुजरात के मूलराज से लेकर भीमदेव द्वितीय तक सोलंकी राजाओं की वंशावली दी गई है। इससे यह भी पता चलता है कि भीमदेव के समय में मेवाड़ पर गुजरात का प्रभुत्व था। 

खेरोदा के ताम्रपत्र (1437 ई.) – इस ताम्रपत्र से एकलिंगजी में महाराणा कुम्भा द्वारा दान दिये गये खेतों के आस-पास से गुजरने वाले मुख्य मार्गो, उस समय में प्रचलित मुद्रा धार्मिक स्थिति आदि की जानकारी मिलती है। 

चौकली ताम्रपत्र (1483 ई.) – इस ताम्रपत्र से किसानों से वसूल की जाने वाली विविध लाग-बागों का पता चलता है । 

पुर के ताम्रपत्र (1535 ई.) इस ताम्रपत्र से हाडी रानी कर्मावती द्वारा जौहर में प्रवेश करते समय दिये गये भूमि अनुदान की जानकारी मिलती है ।

 

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