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Portugal in India

पुर्तगालियों का भारत आगमन (Arrival of Portuguese in India)

पुर्तगालियों का भारत आगमन (Arrival of Portuguese in India)

  • युरोपीय शक्तियों में पुर्तगाली (Portuguese) कंपनी ने भारत में सबसे पहले प्रवेश किया। भारत के लिए नए समुद्री मार्ग की खोज पुर्तगाली व्यापारी वास्कोडिगामा ने 17 मई, 1498 को भारत के पश्चिमी तट पर अवस्थित बंदरगाह कालीकट पहुँचकर की। 
  • वास्कोडिगामा का स्वागत कालीकट के तत्कालीन शासक जमोरिन (यह कालीकट के शासक की उपाधि थी) द्वारा किया गया। 
  • पुर्तगालियों के भारत आगमन से भारत एवं यूरोप के मध्य व्यापार के क्षेत्र में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। 
  • भारत आने और जाने में हुए यात्रा-व्यय के बदले में वास्कोडिगामा ने करीब 60 गुना अधिक धन कमाया। 
  • भारत में कालीकट, गोवा, दमन, दीव एवं हुगली के बंदरगाहों में पुर्तगालियों ने अपनी व्यापारिक कोठियों की स्थापना की। 
  • भारत में द्वितीय पुर्तगाली अभियान पेड्रो अल्वरेज कैब्राल के नेतृत्व में सन् 1500 ई. में छेड़ा गया। 
  • कैब्राल ने कालीकट बंदरगाह में एक अरबो जहाज को पकड़कर जमोरिन को उपहारस्वरूप भेंट किया। 
  • 1502 ई. में वास्कोडिगामा का पुनः भारत आगमन हुआ। 
  • भारत में प्रथम पुर्तगाली फैक्ट्री की स्थापना 1503 ई. में कोचीन में की गई तथा द्वितीय फैक्ट्री की स्थापना 1505 ई. में कन्नूर में की गई।
  • पुर्तगाल से प्रथम वायसराय के रूप में फ्रांसिस्को द अल्मेडा का भारत आगमन सन् 1505 ई. में हुआ। 
  • फ्रांसिस्को द अल्मेडा 1509 ई. तक भारत में रहा। उसे पुर्तगाली सरकार की ओर से यह निर्देश दिया गया था कि वह भारत में ऐसे दुर्गों का निर्माण करे जिनका उद्देश्य सिर्फ सुरक्षा न होकर हिंद महासागर के व्यापार पर पुर्तगाली नियंत्रण स्थापित करना भी हो। 
  • उसके द्वारा अपनाई गई यह नीति ‘नोले या शांत जल की नीति’ कहलाई। 
  • 1508 ई. में अल्मेडा संयुक्त मुस्लिम नौसैनिक बेड़े (मिश्र + तुर्की + गुजरात) के साथ चौल के युद्ध (War of Chaul, 1508) में पराजित हुआ। 
  • सन् 1509 ई. में भारत में अगले पुर्तगाली वायसराय के रूप में अल्फांसो द अल्बुकर्क का आगमन हुआ। 
  • अल्फांसो द अल्बुकर्क को भारत में पुर्तगाली शक्ति का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। इसने कोचीन को अपना मुख्यालय बनाया। 
  • अल्बुकर्क ने 1510 ई. में गोवा को बीजापुर के शासक युसुफ आदिलशाह से छीनकर अपने अधिकार क्षेत्र में कर लिया। 
  • अल्बुकर्क ने 1511 ई. में दक्षिण-पूर्व एशिया की महत्वपूर्ण मंडी मलक्का तथा 1515 ई. में फारस की खाड़ी में अवस्थित होरमुज पर अधिकार कर लिया। 
  • अल्बुकर्क ने पुर्तगाली पुरुषों को पुर्तगालियों की आबादी बढ़ाने के उद्देश्य से भारतीय स्त्रियों से विवाह करने के लिए प्रोत्साहित किया तथा पुर्तगाली सत्ता एवं संस्कृति के महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में गोवा को स्थापित किया। 
  • नीनो-डी-कुन्हा अगला प्रमुख पुर्तगाली गवर्नर था। इसका प्रमुख कार्य गोवा को पुर्तगालियों की औपचारिक राजधानी (1530 ई.) के रूप में परिवर्तित करना था। 
  • 1530 ई. में कुन्हा ने सरकारी कार्यालय कोचीन से गोवा स्थानान्तरित कर दिया। 
  • कुन्हा ने हुगली (बंगाल) और सेन्थोमा (मद्रास के निकट) में पुर्तगाली बस्तियों को स्थापित किया एवं 1534 ई. में बेसीन तथा 1535 ई. में दीव पर अधिकार कर लिया। 
  • पश्चिम भारत के बंबई, चौल, दीव, सालसेट एवं बेसीन नामक क्षेत्र पर पुर्तगाली वायसराय जोवा-डी-कैस्ट्रो द्वारा नियंत्रण स्थापित किया गया। 
  • भारत में प्रथम पादरी फ्रांसिस्को जेवियर का आगमन अन्य पुर्तगाली गवर्नर अल्फांसो डिसुजा (1542-1545 ई.) के समय हुआ।
  • पुर्तगाली एशियाई देशों से व्यापार के लिए भारत में अवस्थित नागपट्टनम बंदरगाह का प्रयोग करते थे। 
  • पुर्तगाली कोरोमण्डल तट के मसूलीपट्टनम और पुलिकट शहरों से वस्त्रों को एकत्रित कर उनका निर्यात करते थे। 
  • पुर्तगाली चटगाँव (बंगाल) के बंदरगाह को ‘महान बंदरगाह’ की संज्ञा देते थे।
  • पुर्तगालियों ने हिन्द महासागर से होने वाले आयात-निर्यात पर एकाधिकार स्थापित कर लिया था। उन्होंने यहाँ कॉर्ज-आर्मेडा काफिला पद्धति (Cortes-Armada Caravan System) का प्रयोग किया जिसके अंतर्गत हिन्द महासागर का प्रयोग करने वाले प्रत्येक जहाज को शुल्क अदा करना होता था। 
  • पुर्तगालियों ने बिना परमिट (या कॉर्ट्ज) के भारतीय एवं अरबी जहाजों को अरब सागर में प्रवेश करने से वर्जित कर दिया। 
  • पुर्तगालियों ने शुल्क लेकर छोटे स्थानीय व्यापारियों के जहाजों को संरक्षण प्रदान किया। 
  • जिन जहाजों को परमिट प्राप्त होता था उन्हें गोला बारूद और काली मिर्च का व्यापार करने की अनुमति नहीं थी। 
  • मुगल सम्राट अकबर को भी पुर्तगालियों से कॉर्ट्ज (परमिट) लेना पड़ा। 
  • मुगल शासक अकबर के दरबार में दो पुर्तगाली ईसाई पादरियों मॉन्सरेट तथा फादर एकाबिवा का आगमन हुआ। 
  • शाहजहाँ ने 1632 ई. में हुगली को पुर्तगालियों के अधिकार क्षेत्र से छीन लिया। 
  • औरंगजेब ने सन् 1686 ई. में चटगाँव से समुद्री लुटेरों का सफाया कर दिया।
  • भारत में तंबाकू की खेती, जहाज निर्माण (कालीकट एवं गुजरात) तथा प्रिटिंग प्रेस की शुरुआत पुर्तगालियों के आगमन के पश्चात हई। 
  • पुर्तगालियों ने ही सन् 1556 ई. में गोवा में प्रथम प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की। 
  • भारत में गोथिक स्थापत्य कला (Gothic Architecture) पुर्तगालियों की ही देन है।

18वीं सदी की शुरुआत तक भारतीय व्यापार के क्षेत्र में पुर्तगालियों का प्रभाव कम हो गया था। 

पुर्तगालियों से सम्बंधित प्रमुख व्यक्ति 

  • वास्कोडिगामा – भारत आने वाला प्रथम यूरोपीय (पुर्तगाली) यात्री
  • पेड्रो अल्वरेज कैब्राल – भारत आने वाला द्वितीय पुर्तगाली यात्री
  • फ्रांसिस्को डी अल्मेड़ा – भारत का प्रथम पुर्तगाली वायसराय
  • अल्फांसो द अल्बुकर्क – भारत का दूसरा पुर्तगाली वायसराय
    • भारत में पुर्तगाली शक्ति का वास्तविक संस्थापक
  • नीनो-डी-कुन्हा – भारत का तीसरा पुर्तगाली वायसराय
  • फ्रांसिस्को जेवियर – भारत में प्रथम पादरी

पुर्तगालियों से सम्बंधित प्रमुख तिथियाँ

  • 17 मई, 1498 – पुर्तगाली व्यापारी वास्कोडिगामा का भारत आगमन 
  • 1500 – भारत में द्वितीय पुर्तगाली अभियान
  • 1502 ई. में वास्कोडिगामा का पुनः भारत आगमन हुआ। 
  • 1503 – प्रथम पुर्तगाली फैक्ट्री की स्थापना (कोचीन)
  • 1505 – द्वितीय फैक्ट्री की स्थापना (कन्नूर)
  • 1508 – चौल का युद्ध (War of Chaul, 1508)
  • 1510 – गोवा में पुर्तगालियों का अधिकार
  • 1511 –  मंडी मलक्का में पुर्तगालियों का अधिकार
  • 1515 – फारस की खाड़ी में पुर्तगालियों का अधिकार
  • 1530 – गोवा को पुर्तगालियों की औपचारिक राजधानी बनाया गया 
  • 1534 – हुगली (बंगाल) और सेन्थोमा (मद्रास के निकट) में पुर्तगाली बस्तियों स्थापित
  • 1535 – बेसीन तथा दीव पर पुर्तगालियों का अधिकार
  • 1632 – शाहजहाँ द्वारा हुगली को पुर्तगालियों के अधिकार क्षेत्र से छीन लिया। 
  • 1686 – औरंगजेब द्वारा चटगाँव से समुद्री लुटेरों का सफाया 
  • 1556 – पुर्तगालियों ने ही सन् ई. में गोवा में प्रथम प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना
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