Physical Geography Notes in Hindi

पृथ्वी की गतियाँ (Motions of the Earth)

अन्य ग्रहों की भाँति पृथ्वी की भी दो गतियाँ (Motions) हैं – घूर्णन (Rotation) एवं परिक्रमण (Revolution)। पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना ‘घूर्णन (Rotation)’ कहलाता है जबकि परिक्रमण (Revolution) से तात्पर्य पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्ताकार (Elliptical) कक्षा में चक्कर लगाने से हैं।

पृथ्वी की घूर्णन गति : दैनिक गति (Rotating Motion of The Earth : Diurnal Motion)

पृथ्वी का घूर्णन (Rotation) 24 घंटे में पूर्ण होता है जिसे पृथ्वी की दैनिक गति (Diurnal Motion) भी कहते हैं। यह दैनिक गति दिन व रात के घटित होने के लिए जिम्मेदार होती है। पृथ्वी को प्रकाश व ऊष्मा की प्राप्ति सूर्य से होती है अत: घूर्णन करती हुई पृथ्वी के प्रत्येक भाग में एक निश्चित अवधि के लिए सूर्य प्रकाश पहुँचता है। जिस भाग में सूर्य प्रकाश पहुँचता है वहाँ दिन तथा सूर्य प्रकाश की अनुपस्थिति वाले भाग में रात होती है।

पृथ्वी के घूर्णव के कारण सभी भागों में क्रमिक रूप से दिन व रात होते हैं। ग्लोब पर वह वृत्त जो दिन तथा रात को विभाजित करता है उसे प्रदीप्ति वृत्त (Circle of Illumination) कहते हैं। यदि पृथ्वी घूर्णन करना बन्द कर दे तो उसका आधा भाग प्रकाश तथा आधा अन्धकार में रहेगा।

पृथ्वी के घूर्णन की गणना तारों व सूर्य के सन्दर्भ में की जाती है।

  • जब यह गणना तारों के सन्दर्भ में की जाती है तब उसे नक्षत्र दिवस (Sidereal Day) तथा सूर्य के सापेक्ष गणना को सौर दिवस (Solar day) कहा जाता है।
  • सौर दिवस का समय काल 24 घंटो तथा नक्षत्र दिवस की समय काल 23 घंटा 55 मिनट होती है। दोनों के मध्य चार मिनट का यह अन्तर पृथ्वी के घूर्णन के कारण व सूर्य तथा पृथ्वी की बदलती स्थिति के कारण हैं

पृथ्वी की परिक्रमण गति : वार्षिक गति (Revolutional Motion of the Earth Annual Motion)

पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा लगभंग 365 दिन व 6 घंटे में पूर्ण करती है जिसे पृथ्वी की वार्षिक गति (Annual Motion) भी कहते हैं। वर्ष में 365 दिन की अवधि पृथ्वी के परिक्रमण काल के आधार पर ही होती है। शेष 6 घंटे की अवधि 4 वर्षों में 24 घंटे के रूप में 1 दिन को पूर्ण करती है। इस प्रकार हर चौथे वर्ष में 366 दिन होते हैं जिसे अधिवर्ष (Leap Year) कहते हैं। यह दिन फरवरी माह में जोड़ा जाता है।

Sun Distances

  • परिक्रमा करती हुई पृथ्वी जब सूर्य के अत्यधिक नजदीक होती हैं तब इस स्थिति को उपसौर (Perihelion) कहते हैं। यह स्थिति 3 जनवरी को होती है।
  • पृथ्वी अपने परिक्रमण के दौरान जब सूर्य से अधिकतम दूरी पर होती है। तब इस स्थिति को अपसौर (Aphelion) कहते हैं। यह स्थिति 4 जुलाई को होती है।

पृथ्वी का अक्ष अपने परिक्रमण मार्ग पर सदैव एक ही ओर झुका रहता हैं। इस कारण उत्तरी गोलार्द्ध 6 महीने सूर्य के सम्मुख रहता है। इस स्थिति में उत्तरी गोलार्द्ध का अधिकांश भाग सूर्य के प्रकाश में रहता है। परिणामस्वरूप यहाँ दिन बड़े तथा रात छोटी होती हैं और उत्तरी ध्रुव पर हमेशा दिन रहता हैं। इस समय दक्षिणी गोलार्द्ध सूर्य से दूर होता है अत: वहाँ दिन छोटे व रातें बड़ी होती हैं और दक्षिणी ध्रुव पर रात रहती हैं। जब दक्षिणी गोलार्द्ध सूर्य की ओर चुका रहता है तब इसके विपरीत स्थितियाँ होती हैं।

ऋतु में परिवर्तन (Changes in Season)

ऋतुओं में परिवर्तन सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की स्थिति में परिवर्तन के कारण होता है। पृथ्वी के परिक्रमण में चार अवस्थाएँ होती हैं – 

Earth Orbit

1. उत्तर अयनांत (Summer Solstice)

सूर्य की किरणें 21 जून को कर्क रेखा (Tropic of Cancer) पर लम्बवत् पड़ती हैं। इसके कारण इन क्षेत्रों में अधिक ऊष्मा की प्राप्ति होती हैं तथा उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्म ऋतु (Summer Season) होता है। उत्तरी गोलार्द्ध के सूर्य के सम्मुख होने के कारण उत्तरी ध्रुव के समीपवर्ती क्षेत्रों में लगातार छ: महीने तक दिन रहता है। 21 जून को इन क्षेत्रों में सबसे बड़ा दिन तथा सबसे छोटी रात होती है। दक्षिणी गोलार्द्ध में इस समय शीत ऋतु (Winter Season) होती हैं। पृथ्वी की इस अवस्था का उत्तर अयनांत कहते हैं।

2. दक्षिण अयनांत (Winter Solstice)

सूर्य की किरणें 22 दिसम्बर को मकर रेखा (Tropic of Capricorn) पर लम्बवत् पड़ती हैं। इसीलिए दक्षिणी गोलार्द्ध के बहुत बड़े भाग में सूर्य प्रकाश प्राप्त होता है। इस स्थिति में दक्षिणी गोलार्द्ध में ग्रीष्म ऋतु (Summer Season) होती है जिसमें दिन की अवधि लम्बी तथा रातें छोटी होती हैं। इसके विपरीत इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य की किरणें तिरछी पड़ने के कारण वहाँ शीत ऋतु होती है। 22 दिसम्बर को इन क्षेत्रों में सबसे बड़ी दिन रात तथा सबसे छोटा दिन होती है। दक्षिण ध्रुव के सूर्य के सम्मुख झुके होने के कारण इस ध्रुव पर हमेशा दिन रहता है। पृथ्वी की इस अवस्था को दक्षिण अयनांत कहा जाता है।

3. विषुव (Equinox)

सूर्य की किरणें 21 मार्च तथा 23 सितम्बर को विषुवत रेखा (Equator) पर लम्बवत् पड़ती हैं। इसलिए संपूर्ण पृथ्वी पर रात एवं दिन बराबर होते हैं।

  • जब सूर्य की किरणें 23 मार्च को विषुवत रेखा (Equator) पर चमकती हैं तो ऐसी स्थिति में उत्तरी गोलार्द्ध में बसंत ऋतु एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में शरद ऋतु होती है।
  • जब सूर्य की किरणें 23 सितम्बर को विषुवत रेखा (Equator) पर सीधी चमकती हैं तब उत्तरी गोलार्द्ध में शरद ऋतु तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बसंत ऋतु होती है।
  • 21 जून तथा 22 दिसम्बर को क्रमश: 66 ½°  उत्तरी एवं दक्षिणी अंक्षाशों पर सूर्य का प्रकाश पूरे दिन अर्थात् 24 घंटे रहता है। इस समय सूर्य आधी रात को भी चमकता है जिसे मध्य रात्रि को सूर्य (Mid Night Sun) कहते हैं। नार्वे को मध्य, अर्द्ध रात्रि के सूर्य का देश कहते हैं।
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देशान्तर (Longitude)

उत्तरी ध्रुव (North Pole) तथा दक्षिणी ध्रुव (South Pole) को मिलाने वाली प्रधान मध्याह्न रेखा (Prime Meridian) से पूर्व या पश्चिम खींची गयी रेखाओं को देशान्तर रेखा (Longitude Line) कहते हैं। ये रेखायें अर्द्ध वृत्ताकार (Semi Circular) होती हैं। इन रेखाओं के बीच की दूरी विषुवत रेखा (Equator) पर सर्वाधिक होती है तथा ध्रुवों की ओर क्रमश: कम होते हुए ध्रुवों पर शून्य हो जाती है क्योंकि ध्रुवों पर ये रेखायें एक बिन्दु पर मिल जाती हैं।

देशान्तर (Longitude)

अक्षांश वृत्तों के विपरीत देशान्तर रेखाओं की लम्बाई बराबर होती है। देशान्तर रेखाओं की गणना में कठिनाई के कारण सभी देशों में लंदन की ग्रीनविच वेधशाला (Greenwich Observatory) से गुजरने वाली देशान्तर रेखा के आधार पर गणना शुरू की गयी, अत: इसे प्रधान मध्याह्न रेखा (Prime Meridian) कहते हैं। यह 0° देशान्तर को प्रदर्शित करती हैं।

इसकी बायीं ओर की रेखाएँ पश्चिमी देशान्तर (Western Longitude) और दाहिनी ओर की रेखाएँ पूर्वी देशान्तर (Eastern Longitude) कहलाती हैं। 180° पूर्वी तथा 180° पश्चिमी देशान्तर एक ही रेखा पर स्थित है। अक्षांश और देशान्तर रेखाएँ एक-दूसरे को समकोण पर काटती है।

देशान्तर व समय (Longitude and Time)

ग्रीनविच मध्याह्न रेखा के आधार पर विश्व के देशों के समय का निर्धारण किया जाता है। चूंकि पृथ्वी अपने काल्पनिक अक्ष पर पश्चिम से पूर्व घूर्णन करती है, अत: ग्रीनविच के पूर्व में सभी स्थानों का समय आगे तथा पश्चिम में समय पीछे होता है।

पृथ्वी पूरे दिन में अपने अक्ष पर 360° घूम जाती हैं अर्थात् पृथ्वी को 15° घूमने में 1 घंटे का समय लगता है। इस प्रकार प्रत्येक 15° देशान्तर पर एक घंटे का अंतर होता है और 1° देशान्तर पर 4 मिनट का अंतर होता है।

0° से 180° पूर्व की ओर जाने पर 12 घंटे का समय लगा हैं और यह ग्रीनविच के समय से 12 घंटे आगे होता है। इसी तरह 0° से 180° पश्चिम की ओर जाने पर ग्रीनविच समय से 12 घंटे पीछे का समय होता है। इसी कारण से 180° पूर्वी व पश्चिमी देशान्तर में एक दिन-रात (24 घंटे) का अंतर मिलता है।

  • प्रधान मध्याह्न रेखा अटलान्टिक महासागर (Atlantic Ocean) से गुजरती हैं।
  • सभी देशान्तरीय रेखायें पृथ्वी को दो बराबर भागों में बाँटती हैं जबकि अक्षांश रेखाओं में 0° अर्थात् विषुवत रेखा ही पृथ्वी को दी बराबर भागों में बाँटती है। इसलिए सभी देशान्तरीय रेखाओं का ग्रेट सर्किल (Great Circle) कहते हैं।
  • 1° देशान्तर की विषुवत रेखा पर दूरी 111.32 किमी. होती है।

स्थानीय समय (Local Timing)

किसी स्थान पर जब सूर्य आकाश में सबसे अधिक ऊँचाई पर होता है तब इस समय को उस स्थान का स्थानीय समय कहते हैं। एक देशान्तर रेखा पर स्थित सभी स्थानों का स्थानीय समय समान होता है। भारत के सर्वाधिक पूर्व एवं सर्वाधिक पश्चिम में स्थिर स्थानों के स्थानीय समय में लगभग दो घंटे का अंतर होता है।

मानक समय (Standard Time)

विश्व के देशों के विशाल आकार एवं स्थिति के कारण अलग-अलग देशान्तर पर स्थित स्थानों के स्थानीय समय में अंतर होता है। अत: देश के मध्य भाग से होकर गुजरने वाली देशान्तर रेखा के स्थानीय समय के आधार पर मानक समय का निर्धारण किया जाता है। भारत में 82 ½° (82°30′) पूर्वी देशान्तर को मानक देशान्तर (Standard Longitude) माना गया है। यह रेखा: इलाहाबाद के निकट मिर्जापुर से गुजरती है। इस देशान्तर के स्थानीय समय को पूरे देश का मानक समय माना गया है। भारत की अवस्थिति, ग्रीनविच के पूर्व में होने के कारण यहाँ का समय 5 घंटा 30 मिनट आगे रहता है।

अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा (International Date Line)

पृथ्वी पर खींची गयी 180° देशान्तर वाली काल्पनिक रेखा अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा (International Date Line) कहलाती है। यह रेखा प्रशान्त महासागर में स्थित है। साइबेरिया को अलास्का से दूर रखने व साइबेरिया को विभाजित होने से बचाने के लिए 75° अक्षांश पर यह रेखा पूर्व की ओर मोड़ी गयी है। इस रेखा पर पूर्व और पश्चिम में एक दिन का अंतर पाया जाता है। इस रेखा के पूर्व में एक दिन की कमी जबकि पश्चिम में एक दिन की वृद्धि होती है।

अक्षांश व देशान्तर रेखाओं का महत्त्व (Significance of Latitude and Longitude)

  • पृथ्वी पर स्थित किसी स्थान को निश्चित जानकारी के लिए अक्षांश व देशान्तर रेखाओं का उपयोग किया जाता है। देशान्तर रेखा किसी स्थान की प्रधान मध्याह्न रेखा से दूरी को भी निर्धारित करती है।
  • पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को समझने के लिए अक्षांशीय माप की आवश्यकता होती है।
  • जीपीएस सैटेलाइट कक्षा के निर्धारण में भी अक्षांशों का महत्व है।
  • देशान्तर रेखायें विभिन्न क्षेत्रों के मानक समय निर्धारण में उपयोगी हैं।
  • यह विभिन्न क्षेत्रों की मौसमी व जलवायविक दशाओं को भी समझने में सहायता प्रदान करती हैं।
  • नाविक तथा वायुयान चालक लम्बी समुद्री यात्रा पर दूरी का आकलन करने में अक्षांश व देशान्तर का उपयोग करते हैं। हालाँकि GPS तंत्र के विकास से किसी स्थिति की जानकारी प्राप्त करना अब आसान हो गया है। लेकिन यह तंत्र अक्षांश व देशान्तर की सार्थकता को कम नहीं कर पाया है। ये रेखाएँ किसी स्थान की सटीक जानकारी को निश्चित करने में मदद करती है।
  • मौसम विज्ञानी मौसम पूर्वानुमान के लिए इन रेखाओं का उपयोग करते हैं।

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अक्षांश रेखाएं (Latitude Lines)

अक्षांश (Latitude) वह कोण है जो विषुवत रेखा (Equator) तथा किसी अन्य स्थान के बीच पृथ्वी के केन्द्र पर बनती है। विषुवत रेखा 0° का अक्षांश हैं। यह एक महत्त्वपूर्ण कल्पित रेखा (Hypothetical Line) है जो पृथ्वी को दो बराबर भागों में विभाजित करती हैं जिन्हें क्रमश: उत्तरी गोलार्द्ध (Northern Hemisphere) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध (Southern Hemisphere) कहा जाता है।

Latitude Lines

  • विषुवत रेखा (Equator) से दोनों ध्रुवों (उत्तरी एवं दक्षिणी) तक दोनों गोलार्द्ध में अनेक समान्तर वृत्तों का निर्माण होता है जिन्हें अक्षांश वृत्त (Latitude Circle) या अक्षांश रेखाएँ (Latitude Lines) कहते हैं।
  • अक्षांश वृत विषुवत रेखा के समानान्तर होने के साथ एक-दूसरे के सन्दर्भ में भी सामानान्तर होते हैं।
  • विषुवत रेखा के उत्तर व दक्षिण स्थित सभी समानान्तर रेखाओं को क्रमश: उत्तरी व दक्षिणी अक्षांश कहा जाता है।
  • विषुवत रेखा से उत्तर या दक्षिण की ओर जाने पर अक्षांशों में वृद्धि होती है।
  • विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर बढ़ने पर अक्षांश वृत्त छोटे होते जाते हैं।
  • 90° उत्तरी अक्षांश उत्तरी ध्रुव को तथा 90° दक्षिणी अक्षांश दक्षिणी ध्रुव को प्रदर्शित करता हैं।
  • किसी स्थान के अक्षांश की माप को अंश, मिनट व सेकेण्ड में प्रदर्शित किया जाता है।
  • पृथ्वी पर खीचे गये अक्षांश वृत्ती में विषुवत वृत्त सबसे बड़ा हैं।
  • विषुवत रेखा से 23 ½° उत्तर की कोणीय दूरी कर्क रेखा (Tropic of Cancer) के रूप में हैं।
  • 21 जून को सूर्य कर्क रेखा (Tropic of Cancer) पर लम्बवत् (Vertical) चमकता है।
  • विषुवत रेखा से 23 ½° दक्षिण की कोणीय दूरी मकर रेखा (Tropic of Capricorn) को प्रदर्शित करती है।
  • 22 दिसम्बर को सूर्य मकर रेखा (Tropic of Capricorn) पर लम्बवत् रहता है।
  • विषुवत रेखा से 66 ½° उत्तर की कोणीय दूरी आर्कटिक, वृत्त के रूप में जबकि 66 ½° दक्षिण की कोणीय दूरी अंटार्कटिक वृत्त के रूप में जानी जाती है।
  • इन्हीं काल्पनिक रेखाओं के मध्य सूर्य के प्रकाश की उपलब्धता के आधार पर पृथ्वी को विभिन्न कटिबन्ध में वर्गीकृत किया गया है।
    • उष्ण कटिबंध (Tropical Zone),
    • शीतोष्ण कटिबंध (Temperate Zone),
    • शीत कटिबंध (Cold Zone)

उष्ण कटिबंध (Tropical Zone)

23½° उत्तर से 23½° दक्षिण के मध्य स्थित क्षेत्र को उष्ण कटिबंध के रूप में जाना जाता है। अर्थात कर्क रेखा व मकर रेखा के मध्य का, क्षेत्र उष्ण कटिबंध है। यहाँ विषुवत रेखा पर सूर्य की किरणें सामान्यत: लम्बवत् होती हैं तथा शेष भागों में सूर्य वर्ष में कम से कम एक बार लम्बवत् अवश्य रहता है, इसलिए यह क्षेत्र सबसे अधिक ताप प्राप्त करता हैं।

शीतोष्ण कटिबंध (Temperate Zone)

उत्तरी गोलार्द्ध में कर्क रेखा तथा आर्कटिक वृत्त और दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेख तथा अंटार्कटिक वृत्त के मध्य का क्षेत्र शीतोष्ण कटिबंध के रूप में हैं। इन क्षेत्रों में सूर्य कभी लम्बवत् नहीं चमकता है तथा सूर्य की किरणों का कोण ध्रुवों की ओर क्रमशः कम होने से साधारण तापमान रहता है।

शीत कटिबंध (Cold Zone)

उत्तरी गोलार्द्ध (Northern Hemisphere) में आर्कटिक वृत्त से उत्तरी ध्रुव व दक्षिणी गोलार्द्ध (Southern Hemisphere) में अंटार्कटिक वृत्त से दक्षिणी ध्रुव के मध्य का क्षेत्र शीत कटिबंध के रूप में हैं। इन क्षेत्रों में सूर्य की किरणों के तिरछेपन से कम सूर्यातप की प्राप्ति होती है, इसलिए इन क्षेत्रों में बहुत ठंड पड़ती है।

 

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एशिया की जनजातियाँ (Tribes of Asia Continent)

एशिया की जनजातियाँ

जनजातियाँ देश
युकाधिर/इन्युत
  • साइबेरिया
  • इसे कनाडा में एस्किमों (कच्चा माँस खाने वाला) कहते है।
  • इनके मकान इग्लू कहलाते है।
  • पालतू पशु- रँडियर (स्लेज गाड़ी)
  • आखेटक जनजाति
सेमांग
  • मलेशिया व इण्डोनेशिया
  • आखेटक जनजाति
सकाई
  • मलेशिया, आखेटक
वेद्दा श्रीलंका
आईन् (ऐनू) जापान
तारतार रूस के साइबेरिया क्षेत्र में
अफरीदि पाकिस्तान
आइनू जापान
कजाक कज़ाकिस्तान
खिरगीज मध्य एशिया
वद्दू अरब
समोएड्स एशियाई टुण्ड्रा प्रदेश
सेमांग मलेशिया
पपुअन्स न्यू गिनी

 

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एशिया महाद्वीप की मिट्टियाँ

एशिया की मिट्टी

एशिया महाद्वीप की मिट्टियों को रंग, उपस्थित तत्त्वों तथा रचना की विभिन्नता के आधार पर निम्नलिखित भागों में विभक्त किया जाता है –

  1. पोडजोल मिट्टी (Podzol Soil)
  2. टुण्डा मिट्टी (Trndra Soil)
  3. चरनोजम या काली मिट्टी (Chernozem or Black Soils)
  4. चेस्टनट या भूरी मिट्टी (Chestnut or Brown Soil)
  5. मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil)
  6. लाल या लेटेराइट मिट्टी (Red or Laterite Soil
  7. पीली या लाल-पीली मिट्टी (Yellow or Red- Yellow Soil)
  8. पर्वतीय मिट्टी (Mountain Soil)

पोडजोल या राख मिट्टी (Podzol Soil)

  • इस मिट्टी में जैविक पदार्थों एवं चुना पदार्थों की कमी होती है। जबकि अम्लीय तत्वों की प्रधानता मिलती है।
  • इस प्रकार की मिट्टी में कृषि उत्पादन प्राप्त करने के लिए उर्वरकों की आवश्यकता पड़ती है।
  • इस मिट्टी का निमार्ण लम्बे शीतकाल तथा लघु ग्रीष्मकाल से प्रभावित होता है।
  • इस मिट्टी का रंग राख जैसा होता है तथा इस मिट्टी की गहराई भी कम होती है।
  • इस मिट्टी की उपस्थित उपध्रुवीय जलवायु वाले प्रदेशों में मुख्यतः मिलती है।
  • इस मिट्टी का वितरण साइबेरिया के मध्यवर्ती तथा दक्षिणी पूर्वी भाग, उत्तरी चीन तथा उत्तरी जापान में मुख्यतः मिलता है जहाँ नुकीली पत्ती वाले कोणधारी वनों की प्रधानता है।

टुण्डा मिट्टी (Tundra Soil)

  • इस टुण्डा मिट्टी में लौह की मात्रा अधिक तथा जीवांशम का अभाव होता है।
  • वर्षपर्यन्त निम्न तापमान रहने के कारण यहाँ की मूल चट्टानों का विखण्डन बहुत धीमा होता है।
  • उपजाऊ तत्वों तथा बारीक कणों की कमी के कारण यह मिट्टी कृषि कार्यो के लिए प्रायः अनुपयुक्त रहती है।
  • इस मिट्टी का रंग हल्का कत्थई होता है।
  • इस मिट्टी की मोटाई कुछ सेमी तक होती है।
  • एशिया महाद्वीप में इस प्रकार की मिट्टी की उपस्थिति साइबेरिया के उत्तरी भागों अर्थात् टुण्ड्रा प्रदेशों में मिलती है।
  • वर्ष के अधिकांश समय यहाँ की मिट्टी पर हिम का मोटा आवरण ढका होता है।

चरनोजम या काली मिट्टी (Chernozem or Black Soils)

  • इस प्रकार की मिट्टी का रंग काला तथा मिट्टी के कण बारीक होते हैं।
  • इस मिट्टी में चूना, नाइट्रोजन तथा जीवांशम की प्रचुरता होती है।
  • यह मिट्टी कृषि उत्पादन के दृष्टिकोण से उपजाऊ मानी जाती है इस मिट्टी में जल शोषण की पर्यात क्षमता होती है।
  • यह अर्धशुष्क जलवायु वाले भागों में प्रधानतः मिलती है।
  • एशिया महाद्वीप में चरनोजम मिट्टी की उपस्थिति साइबेरिया के प्रेयरी घास के मैदान, भारत में दक्कन पठार के उत्तरी पश्चिमी भाग और उत्तरी पूर्वी चीन हैं।

चेस्टनट या भूरी मिट्टी (Chestnut or Brown Soil)

  • यह मिट्टी चरनजोत मिट्टीयों जैसी लगती है लेकिन चेस्टनट मिट्टियों में जीवांशम कम होते हैं साथ ही इस मिट्टी का रंग हल्का काला या भूरा होता है।
  • इन मिट्टियों पर चारागाह मिलते हैं लेकिन सिंचाई प्रदान कर कृषि उत्पादन भी प्राप्त किया जाता है।
  • चेस्टन मिट्टियों की उपस्थिति सोवियत मध्य एशिया तथा मध्य साइबेरिया के स्टेपी घास क्षेत्रों, अनातोलिया पठार तथा भारत के उत्तरी विशाल मैदानी भाग में मिलती है।

मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil)

  • इस प्रकार की मिट्टी में जीवाश्म की कमी होती हैं।
  • इसमें नमक तथा चूना अंश की ऊपरी परत में प्रधानता मिलती है।
  • इस मिट्टी के कण महीन तथा रंग हल्का होता है।
  • एशिया महाद्वीप में क्षेत्रफल की दृष्टि से मरुस्थलीय मिट्टी का विस्तार सर्वाधिक है।
  • उष्ण एवं शीत प्रधान शुष्क प्रदेशों में इस प्रकार की मिट्टी उपस्थिति मिलती है।
  • मरुस्थलीय मिट्टी के प्रमुख अरब प्रायद्वीप, ईरान का मध्यवर्ती पठार एवं थार का उष्ण मरुस्थलीय भाग, मंगोलिया, सोवियत मध्य एशिया एवं दक्षिणी साइबेरिया के मरुस्थलीय भाग में हैं।

लाल या लेटेराइट मिट्टी (Red or Laterite Soil)

  • इस मिट्टि का रंग लाल होता है।
  • इस मिट्टी की ऊपरी परत में खनिज एवं जीवांशमो की कमी होती है किंतु लोहांश की प्रचुरता होती है।
  • कृषि के लिए यह कम उपजाऊ मानी जाती है।
  • कृषि कार्य करने पर इस मिट्टी की उर्वरता शीघ्र समाप्त हो जाती है।
  • यह मिट्टी उष्ण एवं आद्र जलवायु प्रदेशों में मिलती है।
  • एशिया महाद्वीप में बर्मा, दक्षिणी भारत, श्रीलंका, हिन्दचीन के अधिकांश क्षेत्रों तथा पूर्वी द्वीप समूहों में लेटेराइट मिट्टी की उपस्थिति मिलती है।

पीली या लाल-पीली मिट्टी (Yellow or Red- Yellow Soil)

  • इस मिट्टी का रंग पीला अथवा हल्के रंग का होता है।
  • इसमें जीवांशम की कमी होती है।
  • लौह अंश की पर्याप्त मात्रा रहती है।
  • ग्रीष्मकाल की लम्बाई अवधि तथा पर्याप्त वर्षा की मात्रा के ऊपर की ऊपजाऊ मिट्टी निचली तहों में चली जाती है और मिट्टी कम उपजाऊ रह जाती है।
  • मोटे अनाज, मूंगफली तथा तम्बाकू की कृषि के लिए उपयुक्त होती है।
  • एशिया महाद्वीप में यह मिट्टी पूर्वी चीन एवं दक्षिणी चीन एवं दक्षिणी जापान और भारत की दक्षिणी पठार के पूर्वी भाग में पायी जाती है।

पर्वतीय मिट्टी (Mountain Soil)

  • पर्वतीय मिट्टी के कण असमान आकार के होते हैं इस मिट्टी में एक पतली परत प्रायः मिलती है जीवांशमों की प्रायः कमी होती है।
  • यह मिट्टी कृषि के लिए साधारण अनुपयुक्त रहती हैं घाटियों में प्रायः उपजाऊ मिट्टी मिलती है।
  • एशिया महाद्वीप के मध्यवर्ती उच्च पर्वतीय एवं अन्तर्पर्वतीय उच्च पठारी भागों पर इस प्रकार की मिट्टी की उपस्थिति मिलती है।

 

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एशिया के प्रमुख पर्वत, पठार

एशिया के प्रमुख पर्वतमाला

नवीन-मोड़दार पर्वतमालाएँ

  1. कुनलुन – चीन, ऊँची चोटी-पिको पेबोडा
  2. नान शान – चीन
  3. अल्ताई शान – चीन व रूस, मंगोलिया
  4. चुंग लिन – चीन
  5. ग्रेट खिंगन – चीन के मंगोलिया क्षेत्र में
  6. त्यान शान – चीन

पामीर पर्वतमाला

  • उज्बेकिस्तान व तजाकिस्तान (मध्य एशिया)।
  • ऊँची चोटी – कम्युनिज्म, मध्य एशिया की सबसे ऊँची चोटी (तजाक)
  • हिन्दुकश – अफगानिस्तान व पाकिस्तान की सीमा पर स्थित, हिमालय का पश्चिमी मोड़, खैबर दर्रा यहीं स्थित, स्वात घाटी तथा तोरा बोरा की इसी का भाग है।
  • तिरिचमार सबसे ऊँची चोटी।

सुलेमान

  • पाकिस्तान में स्थित है।

किरथर

  • पाकिस्तान में स्थित है।

मकरान

  • पाक व ईरान की सीमा बनाती है।
  • इसी का भाग चगाई की पहाड़ी जिसमें पाक का परमाणु परीक्षण केन्द्र स्थित ।

एल्बुर्ज

  • ऊँची चोटी – देवमंद (मृत ज्वालामुखी)
  • ईरान की सर्वाधिक ऊँची चोटी।
  • कोह – सुल्तान स्थित जो ईरान का दूसरा मृत ज्वालामुखी है।

हिन्दुकश : टर्की (तुर्की)

  • पोटिक पर्वतमाला, अरारात ऊँची चोटी (प्रसुप्त ज्वालामुखी)
  • टॉरस – पोटिक व टॉरस दोनों के मध्य अनातोलिया पठार स्थित जो बकरी पालन हेतु प्रसिद्ध है।
  • यहाँ अगोरा जाति की बकरी मिलती है जिससे मोहेर ऊन मिलता है जो संसार का सबसे मँहगा ऊन है।

अराकानयोमा

  • हिमालय का पूर्वी मोड़
  • भारत, म्यांमार की सीमा पर स्थित, विक्टोरिया चोटी।

भ्रंश पर्वत

  • काला चिठ्ठा
  • पाकिस्तान में स्थित

ज्वालामुखी पर्वत

पोपा

  • म्यांमार, मृत ज्वालामुखी

ब्रोमो

  • जावा द्वीप, इण्डोनेशिया, सक्रिय ज्वालामुखी

काकातोआ

  • इण्डोनेशिया, प्रसुप्त ज्वालामुखी (1883 ई.)

मेपान, ताल, पिनाटाबु

  • फिलीपीन्स में स्थित सक्रिय ज्वालामुखी

फ्यूजीयामा

  • प्रसुप्त ज्वालामुखी

होंशू द्वीप

  • जापान
  • प्रसुप्त, घोसलेदार शंकु का उदाहरण

पठार

तिब्बत का पठार

  • चीन में स्थित, संसार का सबसे बड़ा पठार
  • विश्व का सबसे ऊँचा रेलमार्ग है जो तिब्बत की राजधानी ल्हासा को छिंगहारे से जोड़ता है।

पामीर का पठार

  • विश्व का सबसे ऊँचा पठार, तजाकिस्तान
  • विश्व की छत कहलाता है।
  • पामीर की गाँठ का भाग।

शान का पठार

  • म्यांमार, खनिजों के लिए प्रसिद्ध
  • इसमें चांदी मिलती है।
  • बादविन क्षेत्र चांदी उत्पादन हेतु प्रसिद्ध यहीं स्थित है ।
  • म्यांमार चांदी का एशिया का दूसरा बड़ा उत्पादक

यूनान का पठार

  • दक्षिणी चीन में
  • यहाँ कन्मिंघ शहर स्थित है।
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एशिया के मरुस्थल व मैदान (Desert and Plains of Asia Continent)

एशिया महाद्वीप के मरुस्थल व मैदान

रुब-अल-खाली मरुस्थल (दक्षिण-पूर्व अरब प्रायद्वीप) (Rub’ al Khali Desert)

  • देश – सऊदी अरब
  • यह विश्व का सबसे बड़ा बालू निर्मित मरुभूमि क्षेत्र है।
  • यह एक निवास विहीन क्षेत्र है।

अन-नफूद मरुस्थल (An Nafud Desert)

  • देश – सऊदी अरब
  • यह एक गर्म मरुस्थल है।

दस्त-ए-कबीर मरुस्थल (Dasht-e Kavir Desert)

  • देश –  ईरान में
  • इसे ‘ग्रेट साल्ट डेजर्ट’ भी कहते हैं।

दस्त-ए-लुट मरुस्थल (Dasht-e Lut Desert)

  • देश – पूर्वी ईरान में

गोबी मरुस्थल (Gobi Desert)

  • देश – मंगोलिया व चीन
  • यह एशिया के बड़े मरुस्थलों में से एक है।
  • यह ठंडा मरुस्थल है।

तकला मकान मरुस्थल (Taklamakan Desert)

  • देश – यह चीन के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र ‘सीक्यांग’ में स्थित है।

मंचूरिया का मैदान (Manchuria)

  • देश – चीन
  • अमूर नदी एवं उसकी सहायक नदी द्वारा निर्मित

तुरान का मैदान (Turan)

  • देश – तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान एवं कजाख्स्तान
  • आमू दरिया व सीर दरिया नदियों द्वारा निर्मित मैदान है।
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एशिया की प्रमुख झीलें

एशिया की प्रमुख झीलें (Major Lakes of Asia)

कैस्पियन झील (Caspian Lake)

  • देश – अज़रबैजान, ईरान, कजाख्स्तान, तुर्कमेनिस्तान, रूस
  • एशिया-यूरोप महाद्वीप की विभाजक होने के साथ विश्व की सबसे बड़ी झील है।
  • इसमें वोल्गा और यूराल जैसी प्रमुख नदियों का मुहाना है।

बाल्खश झील (Balkhash Lake)

  • देश – कजाख्स्तान
  • यह खारे पानी की झील है।

पेगॉन्ग झील (Pangong Tso)

  • देश –  भारत, चीन
  • रामसर कन्वेंशन के तहत इसे मान्यता प्राप्त है।
  • भारत व चीन के मध्य वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) यहीं से गुजरती है।

टोनले सेप झील (Tonlé Sap Lake)

  • देश –  कंबोडिया
  • यह दक्षिण-पूर्व एशिया की एक महत्त्वपूर्ण झील है।

वान झील (Van Lake)

  • देश –  तुर्की
  • यह विश्व की सर्वाधिक खारे पानी की झील है।

बैकाल झील (Baikal Lake)

  • देश –  रूस
  • विश्व की सबसे गहरी झील
  • यहीं से लीना व अंगारा नदियों का उद्गम होता है।

अरल झील (Aral Lake)

  • देश –  कजाख्स्तान एवं उज्वेकिस्तान
  • आमू दरिया और सीर दरिया नदी इसी झील में गिरती है।

लोपनोर झील (Lopnor Lake)

  • देश –  चीन
  • चीन के तारीम बेसिन में स्थित है।
  • यह खारे पानी की झील है।

टोबा झील (Toba Lake)

  • देश –  इंडोनेशिया
  • ‘क्रेटर झील’ का उदाहरण है।
  • मीठे पानी की झील है।

 

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एशिया की प्रमुख जलसंधियाँ

एशिया की प्रमुख जलसंधियाँ (Major Strains of Asia)

बेरिंग जलसंधि (Bering Strait)

  • अलास्का (अमेरिका) को रूस से अलग करता है।
  • पूर्वी चूकची सागर एवं बेरिंग सागर को जोड़ता है।

तत्तर जलसंधि (Strait of Tartary)

  • रूसी मुख्यभूमि को रूस के सखालिन द्वीप से अलग करता है।
  • जापान सागर को ओख़ोत्स्क सागर से जोड़ता है।

ला-पैरोज जलसंधि (La Pérouse Strait)

  • जापान के होकैडो द्वीप को रूस के सखालिन या सोया जलसंधि द्वीप से अलग करता है।
  • जापान सागर को ओख़ोत्स्क सागर से जोड़ता है।

सुगारु जलसंधि (Tsugaru Strait)

  • होकैडो को होंशू द्वीप से अलग करता है।
  • जापान सागर को प्रशांत महासागर से जोड़ता है।

कोरिया जलसंधि (Korea Strait)

  • कोरिया प्रायद्वीप को जापान के क्यूशू द्वीप से सुशिमा जलसंधि अलग करता है।
  • पूर्वी चीन सागर को जापान सागर से जोड़ता है।

ताइवान जलसंधि (फॉरमोसा जलसंधि) (Taiwan Strait)

  • ताइवान को चीन से अलग करता है।
  • पूर्वी चीन सागर को दक्षिणी चीन सागर से जोड़ता है।

लूजोन जलसंधि (Luzon Strait)

  • ताइवान को लूजोन द्वीप से अलग करता है।
  • दक्षिणी चीन सागर व प्रशांत महासागर को जोड़ता है।

मकस्सार जलसंधि (Makassar Strait)

  • सेलेबस द्वीप को बोर्नियो द्वीप से अलग करता है।
  • सेलेबस सागर को जावा सागर से जोड़ता है।

सुंडा जलसंधि (Sunda Strait)

  • इंडोनेशिया के जावा को सुमात्रा से अलग करता है।
  • हिंद महासागर को जावा सागर से जोड़ता है।

मलक्का जलसंधि (Strait of Malacca)

  • मलेशिया (मलाया) को सुमात्रा द्वीप से अलग करता है।
  • अंडमान सागर (हिंद महासागर) को दक्षिण चीन सागर (प्रशांत महासागर) से जोड़ता है।

जोहोर जलसंधि (Straits of Johor)

  • सिंगापुर को मलेशिया से अलग करता है।
  • दक्षिणी चीन सागर को अंडमान सागर से जोड़ता है।

पाक जलसंधि (Pak Straits)

  • भारत के पम्बन द्वीप को श्रीलंका से अलग करता है।
  • मन्नार की खाड़ी को पाक की खाड़ी से जोड़ता है।

हॉर्मुज़ जलसंधि (Straits of Hormuz)

  • यू. ए. ई., ओमान को ईरान से अलग करता है।
  • फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी से जोड़ता है।

बाब-एल-मंदेब जलसंधि (Bab-el-Mandeb Straits)

  • यमन को जिबूती से अलग करता है।
  • लाल सागर को अदन की खाड़ी से जोड़ता है।
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एशिया की जलवायु (Climate of Asia Continent)

एशिया को निम्नलिखित 10 जलवायु प्रदेशों में विभक्त किया है –

  1. भूमध्य रेखीय जलवायु
  2. उष्ण मानसूनी जलवायु
  3. चीन तुल्य जलवायु अथवा गर्म शीतोष्ण पूर्वी समुद्र तटीय जलवायु
  4. मंचूरिया तुल्य जलवायु अथवा शीत शीतोष्ण पूर्वी समुद्र जलवायु
  5. उष्ण मरुस्थलीय जलवायु
  6. मध्य अक्षांशीय मरुस्थलीय जलवायु
  7. भूमध्य सागरीय जलवायु
  8. मध्य अक्षांशीय महाद्वीपीय अथवा मध्य अक्षांशीय घास के मैदान तुल्य जलवायु
  9. शीत शीतोष्ण जलवायु अथवा उत्तरी कोणधारी वनों की जलवायु
  10. आर्कटिक मरुस्थलीय जलवायु अथवा टुन्डा तुल्य जलवायु।

1. भूमध्यरेखीय जलवायु (Equatorial Climate)

  • इस प्रकार की जलवायु 5° उत्तरी तथा 5° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य पाई जाती है।
  • यह जलवायु मलेशिया, इण्डोनेशिया तथा श्रीलंका में पाई जाती है।
  • वर्ष के औसत तापमान 26°C से 27°C के मध्य मिलते हैं।
  • वार्षिक तापान्तर 1° से 30° C के मध्य रहता है।
  • दैनिक तापमान्तर का औसत 6° C से 10° C के बीच रहता है।
  • इन प्रदेशों में सापेक्षिक आर्द्रता वर्ष भर उच्च रहती है।
  • सापेक्षिक आर्द्रता का वार्षिक औसत 80 प्रतिशत है।

2. उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी जलवायु (Sub Tropical Monsoon Climate)

  • यह जलवायु भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, बर्मा, हिन्द चीन तथा दक्षिणी चीन से मिलती है।
  • उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी प्रदेश में हवाएँ शीत ऋतु में स्थल से समुद्रों की ओर तथा ग्रीष्म ऋतु में समुद्रों से स्थल की ओर चला करती है।
  • वर्षा के आधार पर यहाँ तीन मौसम मिलते हैं।
    • नवम्बर से फरवरी तक शीत ऋतु थोड़ी वर्षा के साथ।
    • मार्च से मध्य जून तक ग्रीष्म ऋतु बिना वर्षा के।
    • मध्य जून से अक्टूबर तक वर्षा ऋतु अपेक्षाकृत अधिक वर्षा के साथ।
  • समुद्र तटीय भागों के सीमावर्ती पर्वतीय ढालों पर सर्वाधिक वर्षा होती है।
  • ऐसे स्थानों पर 1000 सेमी से भी अधिक वर्षा हो सकती है जबकि समुद्र से दूर भारत के उत्तर पश्चिमी भाग में वर्षा का औसत 25 सेमी रह जाता है।
  • ग्रीष्म ऋतु में आन्तरिक मैदानी भागों का तापमान 48° C तथा तटीय भागों का तापमान 26° C के आसपास रहता है।
  • शीत ऋतु में उत्तरी आन्तरिक स्थलीय भागों का तापमान 10° C तथा दक्षिणी तटीय भागों का तापमान 23° C के आसपास रहता है।

3. चीन तुल्य जलवायु (China Type Climate)

  • यह जलवायु मध्य चीन, उत्तरी चीन, दक्षिणी कोरिया तथा जापान में मिलती है।
  • ग्रीष्म काल में इन भागों के तापमान 21° C से 27° C के मध्य रहते हैं।
  • ग्रीष्म काल में वर्षा का औसत 50 सेमी से से 100 सेमी के मध्य मिलता है।
  • चीन के दक्षिणी पूर्वी तटों पर वर्षा अधिक होती है जबकि उत्तर पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा क्रमशः कम होती जाती है।

4. मंचूरिया तुल्य जलवायु (Manchurian Type Climate)

  • इस प्रकार की जलवायु मंचूरिया, उत्तरी कोरिया, होकेडो द्वीप तथा सखालिन द्वीप में पाई जाती है।
  • शीतकाल में न्यूनतम – 15° C तक पहुँच जाता है। शीतकाल अगस्त से अप्रैल तक होता है।
  • ग्रीष्म ऋतु अपेक्षाकृत छोटी (मई से जुलाई तक) होती है तथा तापक्रम 10° C से 20° C के मध्य रहते है, इस ऋतु में प्रशान्त महासागरीय मानसूनी हवाओं से वर्षा होती है।
  • इस ऋतु में औसत वर्षा 25 से 30 सेमी के मध्य होती है।

 

5. उष्ण मरुस्थलीय जलवायु (Hot Desert Climate)

  • इस प्रकार की जलवायु की उपस्थिति दक्षिणी पश्चिमी एशिया के अधिकांश भागों (उत्तरी पश्चिमी भागों को छोड़कर) में थार तथा सिन्धु के मरुस्थलीय भागों में मिलती है।
  • थार तथा सिन्ध के मरुस्थलीय भागों की जलवायु अधिक शुष्क मानसूनी है।
  • सीरिया, ईराक, अरब तथा ईरान के कुछ भागों (दक्षिणी पश्चिम एशिया) की जलवायु अधिक शुष्क भूमध्य सागरीय है।
  • ग्रीष्म काल के औसत तापमान 40° C के आसपास रहते हैं जबकि शीत काल में औसत तापमान 15° C के आसपास मिलते हैं।
  • गर्मियों में दिन में गर्म धूल भरी आंधियाँ चलती है जबकि रात्रि में तापमान गिर जाते हैं जिससे रातें ठण्डी हो जाती हैं।

6. मध्य अक्षांशीय मरुस्थलीय जलवायु (Mid Latitude Deserts Climate)

  • एशिया के मध्यवर्ती ऊँचे पठारों पर इस प्रकार की जलवायु मिलती है।
  • समुद्र से दूर होने तथा पर्वतीय भागों से घिरे होने के कारण यह भाग समुद्री प्रभाव में रहते हैं।
  • शीत काल के तापमान शुन्य डिग्री से नीचे पहुँच जाते हैं तथा शीत ऋतु में कठोर सर्दी पड़ती है।
  • वर्षा का वार्षिक औसत 20 सेमी से 30 सेमी के मध्य मिलता है।
  • स्टाम्प ने इस जलवायु विभाग को चार उपविभागों में विभक्त कियाँ  –
    • तिब्बत तुल्य जलवायु – तिब्बत के पठार पर
    • ईरान तुल्य जलवायु – ईरान तथा अफगातिस्तान के पठारी भागों पर
    • गोबी तुल्य जलवायु – गोबी के पठार पर
    • तूरानी जलवायु – साइबेरिया के दक्षिण पश्चिम में तुरानी बेसिन में।

7. भूमध्य सागरीय जलवायु (Mediteranean Climate)

  • यह जलवायु एशिया में तुर्की, इजराइल, पश्चिमी जोर्डन, लेबनाम तथा सीरिया के समुद्र तटीय भागों पर मिलती है।
  • ग्रीष्म काल में यह क्षेत्र गर्म तथा शुष्क रहता है जबकि शीतकाल में तापमान मृदुल होने के साथ-साथ भूमध्य सागरीय चक्रवातों से वर्षा होती है।
  • शीत ऋतु के तापमान 50° C से 10° C के मध्य रहते हैं तथा इस ऋतु में 100 सेमी के मध्य वर्षा होती है।
  • ग्रीष्मकाल के तापमान 21° C से 28° C के मध्य रहते हैं तथा वर्षा बिल्कुल नहीं होती है।
  • ग्रीष्मकाल अपेक्षाकृत लम्बा होता है।

8. मध्य अक्षांशीय महाद्वीपीय जलवायु (Mid Latitude Continental Climate)

  • इस प्रकार की जलवायु दक्षिणी पश्चिमी साइबेरिया के घास के मैदानों, तथा मंगोलिया के घास के मैदानों में पाई जाती है।
  • ये एशिया महाद्वीप के ऐसे स्थलीय भाग हैं जहाँ समुद्री प्रभाव नहीं पहुँच पाता है।
  • ग्रीष्मकाल जून से सितम्बर के बीच में मिलता है।
  • जबकि अक्टूबर से मई तक शीतकाल रहता है।
  • ग्रीष्मकाल में इन भागों में छोटी-छोटी घास आती है।
  • जाड़ों में वर्षा बर्फ के रूप में होती है।

9. शीत शीतोष्ण जलवायु  (Cold Temperate Climate)

  • यह जलवायु साइबेरिया के मध्यवर्ती भाग में मिलती है।
  • शीत ऋतु लम्बी है तथा तापमान शून्य डिग्री से बहुत नीचे पहुँच जाता है।
  • अधिकांश क्षेत्रों में वर्षा ग्रीष्मकाल में होती है। लेकिन वर्षा का वार्षिक औसत 20 सेमी के आसपास रहता है।

10. आर्कटिक मरुस्थल (टुण्ड्रा तुल्य जलवायु) (Arctic Climate)

  • साइबेरिया के उत्तरी भागों में उत्तरी ध्रुवीय सागर के तटीय भागों पर यह जलवायु पाई जाती है।
  • शात ऋतु 10 महीने की तथा अत्यन्त कठोर होती है, जबकि ग्रीष्म काल केवल दो महीने की अवधि के लिए आता है।
  • ग्रीष्म काल में औसत तापमान 40°C तथा शीतकाल के औसत तापमान 10° C रहते हैं।
  • वर्ष के अधिकांश समय यह प्रदेश बर्फाच्छादित रहता है।
  • वर्षा प्रायः ग्रीष्मकाल में बर्फ के रूप में प्राप्त होती है।
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