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कम्प्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम (Computer Operating System)

ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System)

ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System) कुछ विशेष प्रोग्रामों का ऐसा व्यवस्थित समूह है जो किसी कम्प्यूटर के सम्पूर्ण क्रियाकलापों को नियन्त्रित करता है। यह कम्प्यूटर के साधनों के उपयोग पर नज़र रखने और व्यवस्थित करने में हमारी सहायता करता है। ऑपरेटिंग सिस्टम आवश्यक होने पर अन्य प्रोग्रामों को चालू करता है। वास्तव में यह उपयोगकर्ता और कम्प्यूटर के हार्डवेयर के बीच इण्टरफेस का कार्य करता है।

ऑपरेटिंग सिस्टम की परिभाषाएँ (Definition of Operating System)

ऑपरेटिंग सिस्टम प्रमुख परिभाषाएँ निम्न हैं –

  • ऑपरेटिंग सिस्टम एक ऐसा सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों का समूह है जो मानव, एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर और कम्प्यूटर हार्डवेयर के बीच संवाद स्थापित करता है।
  • ऑपरेटिंग सिस्टम एक ऐसा प्रोग्राम है, जो कम्प्यूटर के विभिन्न अंगो को निर्देश देता है कि किस प्रकार से प्रोसेसिंग का कार्य सफल होगा।
  • ऑपरेटिंग सिस्टम एक ऐसा सॉफ्टवेयर है, जो यूजर एवं कम्प्यूटर हार्डवेयर के बीच एक माध्यम (Interface) की भाँति कार्य करता है।

ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रमुख कार्य (Main Functions of Operating System)

ऑपरेटिंग सिस्टम कम्प्यूटर के सफल संचालन की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसके प्रमुख कार्य चार प्रकार के होते हैं

1. प्रोसेसिंग प्रबन्धन (Processing Management)

  • कम्प्यूटर के सेण्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट के प्रबन्धन का कार्य ऑपरेटिंग सिस्टम ही करता है। यह प्रबन्धन इस प्रकार से होता है कि सभी प्रोग्राम एक-एक करके निष्पादित होते हैं। ऑपरेटिंग सिस्टम सभी प्रोग्रामों के समय को सी पी यू के लिए विभाजित कर देता है।

2. मैमोरी प्रबन्धन (Memory Management)

  • प्रोग्राम के सफल निष्पादन के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम मैमोरी प्रबन्धन का अत्यन्त ही महत्वपूर्ण कार्य करता है। जिसके अन्तर्गत कम्प्यूटर मैमोरी में कुछ स्थान सुरक्षित रखे जाते हैं। जिनका विभाजन प्रोग्रामों के मध्य किया जाता है। तथा साथ ही यह भी ध्यान में रखा जाता है कि प्रोग्रामों को मैमोरी के अलग-अलग स्थान प्राप्त हो सके।
  • किसी भी प्रोग्राम को इनपुट एवं आउटपुट करते समय आँकड़ों एवं सूचनाओं को अपने निर्धारित स्थान में संग्रहीत करने का कार्य भी ऑपरेटिंग सिस्टम का है।

3. इनपुट-आउटपुट युक्ति प्रबन्धन (Input-Output Device Management)

  • डेटा को इनपुट यूनिट से पढ़कर मैमोरी में उचित स्थान पर संग्रहीत करने एवं प्राप्त परिणाम को मैमोरी से आउटपुट यूनिट तक पहुँचाने का कार्य भी ऑपरेटिंग सिस्टम का ही होता है। प्रोग्राम लिखते समय कम्प्यूटर को केवल यह बताया जाता है कि हमें क्या इनपुट करना है और क्या आउटपुट लेना है, बाकी का कार्य ऑपरेटिंग सिस्टम ही करता है।

4. फाइल प्रबन्धन (File Management)

  • ऑपरेटिंग सिस्टम फाइलों को एक सुव्यवस्थित ढंग से किसी डायरेक्टरी में संग्रहीत करने की सुविधा प्रदान करता है। किसी प्रोग्राम के निष्पादन के समय इसे सेकण्डरी मैमोरी से पढ़कर प्राइमरी मैमोरी में डालने का कार्य भी ऑपरेटिंग सिस्टम ही करता है।

ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार (Types of Operating System)

1. बैच प्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Batch Processing Operating System)

इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम में एक प्रकार के सभी कार्यों को एक (Batch) के रूप में संगठित करके साथ में क्रियान्वित किया जाता है। इस कार्य के लिए बैच मॉनीटर सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम का प्रयोग ऐसे कार्यों के लिए किया जाता है, जिनमें उपयोगकर्ता के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती। इस ऑपरेटिंग सिस्टम में किसी प्रोग्राम के क्रियान्वन के लिए कम्प्यूटर के सभी संसाधन उपलब्ध रहते हैं, इसलिए समय प्रबन्धन (Time Management) की आवश्यकता नहीं होती। ये ऑपरेटिंग सिस्टम संख्यात्मक विश्लेषण (Numerical Analysis), बिल प्रिण्टिग, पेरोल आदि में उपयोग किए जाते है।

2. सिंगल यूज़र ऑपरेटिंग सिस्टम (Single User Operating System)

इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम में एक बार में केवल एक उपयोगकर्ता को ही कार्य करने की अनुमति होती है। यह सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम है।

उदाहरण के लिए – विण्डोज 95/NT/2000 आदि।

3. मल्टी यूज़र ऑपरेटिंग सिस्टम (Multi User Operating System)

मल्टी-यूज़र ऑपरेटिंग सिस्टम एक समय में एक से अधिक उपयोगकर्ता को कार्य करने की अनुमति देता है। ये ऑपरेटिंग सिस्टम सभी उपयोगकर्ता के मध्य सन्तुलन बनाकर रखता है। प्रत्येक प्रोग्राम की संसाधन सम्बन्धी जरूरत को पूरा करता है। साथ-ही-साथ ये इस बात की भी निगरानी करता है कि किसी एक उपयोगकर्ता के साथ होने वाली समस्या दूसरे उपयोगकर्ताओं पर प्रभाव न डालें। ये ऑपरेटिंग सिस्टम कम्प्यूटर के संसाधनों का सर्वाधिक उपयुक्त प्रयोग करता है।

उदाहरण के लिए – यूनिक्स, वीएमएस (VMS) आदि।

4. सिंगल टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Single Tasking Operating System)

सिंगल टास्किग ऑपरेटिंग सिस्टम में एक समय में केवल एक प्रोग्राम को ही चलाया (Run) जा सकता है। उदाहरण के लिए-पॉम (Palm) कम्प्यूटर में प्रयोग किया जाने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम्।

5. मल्टी टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Multi Tasking Operating System)

मल्टी टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम में एक समय में एक से अधिक कार्यो को सम्पन्न करने की क्षमता होती है, इसमें उपयोगकर्ता आसानी से दो कार्यों के मध्य स्विच (Switch) कर सकता है। मल्टी टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम को दो भागों में विभाजित किया गया है।

(i) प्रीम्पटिव ऑपरेटिंग सिस्टम (Preemptive Operating System)

इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम को कई कम्प्यूटर प्रोग्रामस तथा हार्डवेयर डिवाइसेस शेयर (Share) करते हैं तथा उनका प्रयोग करते हैं। यह अपने समस्त कम्प्यूटेशन टाइम (Computation Time) को कार्यों के मध्य बाँट देता है तथा एक पूर्वनिर्धारित मापदंड (Predefined Criteria) के आधार पर ही किसी नए कार्य का निष्पादन पूर्व कार्य के निष्पादन रोककर भी प्रारम्भ हो जाता है उदाहरण OS/2, Windows95/NT आदि।

(ii) क़ोऑपरेटिव मल्टी टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Cooperative Multitasking Operating System)

TE मल्टी टास्किंग का एक सरलतम रूप होता है। इस आपरेटिंग सिस्टम में एक प्रोग्राम तब तक CPU का प्रयोग करता है जब तक उसे आवश्यकता होती है। यदि कोई प्रोग्राम CPU का प्रयोग नहीं कर रहा है तो वह दूसरे प्रोग्राम को अस्थाई रूप से CPU को प्रयोग करने की अनुमति दे देता है।

उदाहरण – Mac OS, MS-Window 3-X आदि।

6. टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Time Sharing Operating System)

इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम में, एक साथ एक से अधिक उपयोगकर्ता या प्रोग्राम कम्प्यूटर के संसाधनों का प्रयोग करते हैं। इस कार्य में, कम्प्यूटर अपने संसाधनों के प्रयोग हेतु प्रत्येक उपयोगकर्ता या प्रोग्राम को समय का एक छोटा भाग आवण्टित करता है जिसे टाइम स्लाइस या क्वांटम कहते है। इस टाइम स्लाइस में यदि कोई उपयोगकर्ता या प्रोग्राम किसी संसाधन का प्रयोग कर रहा है तो दूसरा उपयोगकर्ता या प्रोग्राम उस संसाधन के प्रयोग हेतु प्रतीक्षा करता है, लेकिन यह समय इतना छोटा होता है कि अगले उपयोगकर्ता या प्रोग्राम को यह महसूस नहीं होता कि उसने प्रतीक्षा की है। उपयोगकर्ता यह समझता है कि वही एक मात्र उपयोगकर्ता है जो कम्प्यूटर का प्रयोग कर रहा है। उदाहरण के रूप में मेन फ्रेम कम्प्यूटर जिसमें एक समय में एक ही कम्प्यूटर पर एक से अधिक उपयोगकर्ता कार्य करते है, लेकिन फिर भी प्रत्येक व्यक्ति यही समझता है कि वही एक मात्र उपयोगकर्ता है।

इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम में सयम प्रबन्धन (Time Management) की आवश्यकता होती है। इस ऑपरेटिंग सिस्टम में मैमोरी का सही प्रबन्ध आवश्यक होता है, क्योंकि कई प्रोग्राम एक साथ मुख्य मैमोरी में उपस्थित होते हैं इस व्यवस्था में सभी प्रोग्राम टाइम स्लाइस के आधार पर मुख्य मैमोरी में बारी-बारी से लाए जाते हैं तथा टाइम स्लाइस पूर्ण होने पर मैमोरी में भेज दिए जाते हैं। इस प्रक्रिया को स्वैपिंग (Swaping) कहते हैं। यदि किसी प्रोग्राम के सम्पन्न होने में टाइम स्लाइस से अधिक समय लगता है। तो उसे रोककर अन्य प्रोग्राम्स को क्रियान्वित (Execute) किया जाता है।

7. रीयल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम (Real Time Operating System)

रीयल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम एक ऐसा मल्टी टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम होता है, जिसमें रीयल टाइम एप्लीकेशन्स का क्रियान्वन किया जाता है। जैसे-एयरक्रॉफ्टों में प्रयोग होने वाला ऑटो पायलेट मैकेनिज़्म (Auto Pilot Mechanism)। इसमें एक प्रोग्राम के आउटपुट को दूसरे प्रोग्राम के आउटपुट की तरह प्रयोग किया जा सकता है, इस कारण पहले प्रोग्राम के क्रियान्वयन में देरी से दूसरे प्रोग्राम का क्रियान्वयन और परिणाम रूक सकता है। रीयल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम में किसी भी दिए गए कार्य को पूरा करने की एक डेडलाइन दी गई होती है तथा इसी निर्धारित समय में उस कार्य को पूरा करना होता है। रीयल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम को दो भागों में बाँटा गया है।

(i) हार्ड रीयल टाइम सिस्टम

ये सिस्टम किसी महत्वपूर्ण कार्य को समय पर पूरा करने की गारण्टी देता है। समय पर कार्य पूरा न होने की स्थिति में प्रोग्राम का निष्पादन फेल हो जाता है।

उदाहरण के लिए – एयरक्रॉफ्ट कण्ट्रोल सिस्टमस, पेसमेकर्स आदि।

(ii) सॉफ्ट रीयल टाइम सिस्टम

इस सिस्टम में भी किसी कार्य को पूरा करने के लिए एक डेडलाइन दी जाती है, किन्तु इस प्रकार के सिस्टम में कार्य का निष्पादन डेडलाइन से पहले और बाद में भी पूरा हो सकता है परन्तु इस स्थिति में कार्य का निष्पादन फेल नहीं होता।

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