मौलाना अबुल कलाम आजाद की जीवनी
(Biography of Maulana Abul Kalam Azad)
मौलाना अबुल कलाम आजाद (Maulana Abul Kalam Azad) | |
जन्म | 17 नवम्बर, 1888 |
जन्म स्थान | मक्का, सउदी अरब |
मृत्यु | 22 फरवरी, 1958 |
पिता | मौलाना खैरुद्दीन |
असली नाम | अबुल कलाम ग़ुलाम मुहियुद्दीन |
भारत को आजादी दिलाने के लिए अनेक लोगों ने अपनी सुख-सुविधाओं का त्याग किया। उन्होंने हँसी-हँसी कष्टों को गले लगाया मौलाना अबुल कलाम आजाद (Maulana Abul Kalam Azad) उन्हीं देश भक्तों की पहली पंक्ति के नेता थे।
मौलाना आजाद (Maulana Azad) के पूर्वज बड़े ऊँचे पदों पर रह चुके थे। उनके एक विद्वान पूर्वज का सम्राट अकबर के दरबार में सम्मान हुआ था। उनके पिता मौलाना खैरुद्दीन का भी बड़ा नाम था। वे धार्मिक विचारों के व्यक्ति थे। उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखी थीं। भारत के मुसलमानों के साथ पश्चिमी एशिया में उनके बड़े अनुयायी थे। सन् 1857 के पहले स्वतन्त्रता संग्राम के बाद देश में बड़ा दमन हुआ। उस समय मौलाना खैरुद्दीन भारत छोड़कर मक्का चले गये। वहीं उन्होंने एक प्रसिद्ध विद्वान की कन्या से विवाह कर लिया।
जन्म और शिक्षा
17 नवम्बर सन् 1888 ई. को मक्का में मौलाना आजाद का जन्म हुआ। उनका नाम अहमद रखा गया। किन्तु बड़े होने पर अबुल कलाम नाम दिया गया। अबुल कलाम के जन्म के कुछ वर्ष बाद मौलाना खैरुद्दीन को एक दुर्घटना में चोट लग गयी थी। जब हड्डी अच्छी तरह से नहीं जुड़ सकी तो लोगों ने उन्हें कलकत्ता जाकर चिकित्सा कराने की राय दी। मौलाना कलकत्ता आ गये और यहीं रह गये। कुछ समय बाद उन्होंने अबुल कलाम सहित अपने परिवार को भी भारत बुला लिया।
मौलाना खैरुद्दीन पुराने विचारों के व्यक्ति थे। वे मानते थे कि आजकल की मौलाना अबुल कलाम आजाद शिक्षा से लोग धार्मिक विचारों से हट जाते हैं। इसलिए उन्होंने अबुल कलाम की शिक्षा की घर पर ही व्यवस्था की। अलग-अलग विषयों को पढ़ाने के लिए अलग-अलग अध्यापक रखे गये। उन दिनों इस्लामी शिक्षा पच्चीस वर्ष की उम्र में जाकर पूरी होती थी। लेकिन अबुल कलाम इतने प्रतिभाशाली थे कि उन्होंने सोलह वर्ष में ही यह सारी शिक्षा पूरी कर ली।
स्वाध्यायी
इसी बीच अबुल कलाम को सर सैयद अहमद खाँ के कुछ लेख पढ़ने को मिले। इससे उनके विचारों में भी परिवर्तन हुआ। उन्होंने अनुभव किया कि आधुनिक विज्ञान, समाज-शास्त्र आदि का ज्ञान होना भी आवश्यक है। इन विषयों की पुस्तकें उस समय अंग्रेजी भाषा में ही मिलती थीं। अबुल कलाम ने एक मित्र की सहायता से अंग्रेजी वर्णमाला सीखी फिर शब्दकोश और समाचार पत्रों का सहारा लेकर थोड़े दिनों में ही अपना अंग्रेजी का ज्ञान पक्का कर लिया। अब वे अंग्रेजी में भी गम्भीर विषयों की पुस्तकें पढ़ने लगे। मौलाना आजाद पढ़ने के लिए एक भी दिन किसी विद्यालय में नहीं गये। स्वाध्याय और अपने परिश्रम से कोई कितनी उन्नति कर सकता है वे इसके उदाहरण हैं।
आजाद
इस समय देश में राष्ट्रीय भावनाएँ करवट ले रही थी। मौलाना आजाद पर भी इसका प्रभाव पड़ा। अलग-अलग धर्मों को मानने वालों के बीच का भेद-भाव उनकी समझ में नहीं आया। उन्होंने निश्चय किया कि वे परिवार में चली आ रही परम्परा से बँध कर नहीं रहेंगे। बचपन से उनमें जो संस्कार डाले गये थे उनसे उन्होंने स्वयं को आजाद कर लिया, अपने नाम के साथ ‘आजाद’ शब्द जोड़ लिया और ‘मौलाना अबुल कलाम आजाद’ के नाम से प्रसिद्ध हो गये।
सफल पत्रकार
बंगाल उस समय क्रान्तिकारियों का गढ़ था। इसी को कमजोर करने के लिए अंग्रेजों ने 1905 ई. में बंगाल का विभाजन कर दिया। इसका देश में जोरदार विरोध हुआ, मौलाना भी उसमें सम्मिलित थे। वे क्रान्तिकारियों के भी सम्पर्क में आये और कई बार उनकी सहायता की। इसी बीच उन्हें विदेशों की यात्रा करने का भी अवसर मिला। भारत लौटाने पर मौलाना ने कलकत्ता से ‘अलहिलाल’ नामक उर्दू साप्ताहिक का प्रकाशन आरम्भ किया। यह पत्र बड़ा ही लोकप्रिय हुआ। मौलाना का कहना था कि मुसलमानों का हित राष्ट्रीय आन्दोलन के साथ जुड़े रहने में है, न कि अंग्रेजों का साथ देने में। उनके विचारों से ब्रिटिश सरकार कृपित हो उठी। ‘अलहिलाल’ से पहले दो बार जमानत माँग कर जब्त की गयी। फिर पत्र को ही जब्त कर लिया। इस पर मौलाना ने ‘अलवकाल’ नामक पत्र निकाला। किन्तु अंग्रेज सरकार उनके राष्ट्रीय विचारों को कुचलने का निश्चय कर चुकी थी। सन् 1926 ई. में उन्हें कलकत्ता से निष्कासित करके राँची में नज़रबंद कर दिया गया जहाँ से वे 1920 में ही छूट गये। नज़रबंदी के इन दिनों में मौलाना आजाद ने दो पुस्तकें लिखीं – ‘गुबारे खातिर’ जिसमें उनके संस्मरण हैं और दूसरी कुरआन शरीफ की टिप्पणी।
राष्ट्रीय नेता
1920 में नजरबंदी से रिहा होने के बाद मौलाना आज़ाद दिल्ली में गाँधी जी से मिले और वे कांग्रेस के आन्दोलन से जुड़ गये। उन्होंने देश के कोने-कोने में जाकर गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन का सन्देश लोगों को सुनाया। आन्दोलन आरम्भ होने पर 1921 ई० में अन्य नेताओं के साथ मौलाना आज़ाद भी गिरफ्तार कर लिये गये और उन्हें एक वर्ष की सजा हुई। मुकदमें के समय अदालत में मौलाना आज़ाद ने कहा था- “गुलामी की जंजीरों के लिए चाहे कितने ही खूबसूरत अल्फाज़ दिये जायँ फिर भी गुलामी-गुलामी है और खुदा व कुदरत के कानून के खिलाफ़ है। अपने मुल्क की गुलामी से छुटकारा दिलाना मेरा फ़र्ज है”।
जेल से छूटने पर मौलाना आजाद पूरे देश के नेता थे। कांग्रेस के 1923 के सम्मेलन का उन्हें सभापति बनाया गया। उस समय उनकी उम्र केवल 35 वर्ष थी। तब तक इतनी कम उम्र को कोई भी व्यक्ति कांग्रेस का सभापति नहीं बना था। नमक सत्याग्रह के समय और गोलमेज सम्मेलन असफल होने के बाद मौलाना आज़ाद फिर जेल में डाले गये। अंतिम बार वे 1942 में ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन के समय गिरफ्तार किये गये। जिस समय गाँधी जी ने यह आन्दोलन आरम्भ किया उस समय भी मौलाना आजाद ही कांग्रेस के अध्यक्ष थे। उन्होंने छह वर्ष तक कांग्रेस की अध्यक्षता की।
स्वतंत्र भारत के शिक्षा मंत्री
वह स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे और उन्होंने ग्यारह वर्षो तक राष्ट्र की नीति का मार्गदर्शन किया। भारत के पहले शिक्षा मंत्री बनने पर उन्होंने नि:शुल्क शिक्षा, भारतीय शिक्षा पद्धति, उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना में अत्यधिक के साथ कार्य किया। मौलाना आज़ाद को ही ‘भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT)’ और ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ की स्थापना का श्रेय है। उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की।
- भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (1950),
- संगीत नाटक अकादमी (1953),
- साहित्य अकादमी (1954) और
- ललित कला अकादमी (1954)
- 1956 में उन्होंने अनुदानों के वितरण और भारतीय विश्वविद्यालयों में मानकों के अनुरक्षण के लिए संसद के एक अधिनियम के द्वारा ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ (UGC) की स्थापना की।
मृत्यु
22 फरवरी 1958 ई० को उनका देहांत हो गया।
मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रमुख नेता तो थे ही वे उर्दू भाषा के प्रथम कोटि के विद्वान, पत्रकार और लेखक थे। वे बड़े ही कुशल वक्ता थे। अपनी इन योग्यताओं से उन्होंने बड़े कठिन सपय में देश की सेवा की थी। उनके निधन पर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ठीक ही कहा था कि – ‘हमारे काफ़िले का अमीर (नेता) चला गया।’
राष्ट्रवादी होते हुए भी मौलाना आजाद का दृष्टिकोणो व्यापक था। वे सभी देशों की स्वतन्त्रता के समर्थक थे। वे चाहते थे कि सब को न्याय मिले, आपस में भाई-चारा हो, सब को अपने विकास का रास्ता चुनने का अधिकार है। प्रथम कोटि के राष्ट्रवादी देश भक्त, विद्वान, लेखक, पत्रकार और शिक्षा शास्त्री के रूप में मौलाना आज़ाद का योगदान सदा याद किया जायगा।
पुरस्कार और सम्मान
- 1989 में मौलाना आजाद के जन्म दिवस पर, भारत सरकार द्वारा शिक्षा को देश में बढ़ावा देने के लिए ‘मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन’ बनाया गया।
- 1992 में मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
- मौलाना आजाद के जन्म दिवस पर 11 नवम्बर को हर साल ‘राष्ट्रीय शिक्षा दिवस (National Education Day)’ मनाया जाता है।
- मौलाना आजाद की याद में भारतीय डांक ने 2015 में 5 रूपये का डांक टिकट जारी किया।
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