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Madhya Pradesh History in Hindi

मध्य प्रदेश के प्राचीन अभिलेख (Ancient Records of Madhya Pradesh)

पत्थरों (Stones) और ताम्रपत्रों (Copperplates) पर उत्कीर्ण शिलालेख (Inscription) मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के प्राचीन इतिहास और संस्कृति के पुनर्निर्माण का एक प्रमुख पुरातात्विक स्रोत (Archaeological Sources) है। अब तक प्राप्त अभिलेखों की कालक्रमानुसार रूपरेखा निम्नाकिंत है : –

मध्य प्रदेश में मौर्य कालीन अभिलेख (Maurya Period Records in Madhya Pradesh)

अशोक के समय के तीन राजाज्ञा पाषाण लेख जो रूपनाथ, गुजर्रा और पानगुड़ारिया से मिले हैं, और एक धमदिश साँची में है, मध्य प्रदेश में उपलब्ध सबसे प्रारम्भिक पुरालेखीय अभिलेख हैं। 

  • इसके साथ मौर्य ब्राह्मी लिपि के मिले-जुले शिलालेख जो कारीतलाई, खरबई, तालपुरा, भीयांपुर, सांची, नलपुरा और पानगुड़ारिया से मिले हैं, इस ओर संकेत करते हैं कि मध्यप्रदेश मौर्य साम्राज्य का अभिन्न भाग था।

मध्य प्रदेश में सातवाहन कालीन अभिलेख (Satavahana Period Records in Madhya Pradesh)

दक्षिण के सातवाहनों ने अपने राज्य को दूर-दूर तक फैलाया था उसमें मध्य प्रदेश का कुछ भाग भी सम्मिलित था। इस काल से संबन्धित एक अभिलेख साँची में उत्कीर्ण पाया गया है। 

मध्य प्रदेश में इन्डो-ग्रीक कालीन अभिलेख (Indo-Greek Period Records in Madhya Pradesh) 

बेसनगर (विदिशा) स्थित गरुड़-स्तम्भ लेख में भागभद्र को शासनकाल में यवनशासक अन्तिलिकित के राजदूत हेलियोदोर द्वारा गरुड़-ध्वज स्थापना का उल्लेख मिला है।

मध्य प्रदेश में शक कालीन अभिलेख (Shak Period Records in Madhya Pradesh)

शकक्षत्रपों का मध्य प्रदेश में प्रवेश उज्जैन और मालवा के कई स्थानों से मिले बहुत से सिक्कों से पुष्ट हुआ है।  क्षत्रपों से सम्बंधित एक छोटा सा अभिलेख उज्जैन से मिला है। एरण और कानाखेड़ा में शक श्रीधरवर्मन के दो अभिलेख मिले हैं।

मध्य प्रदेश में कुषाण कालीन अभिलेख (Kushan Period Records in Madhya Pradesh)

मध्य प्रदेश में दो कुषाण अभिलेख अलग से मिले हैं। इनमें से एक वासिष्क का साँची से और दूसरा जबलपुर में भेड़ाघाट से मिला है। इन दो अभिलेखों और कुछ सिक्कों के आधार पर, मध्यप्रदेश में कुषाण राज्य का कितना विस्तार हुआ, यह बता पाना कठिन है।

मध्य प्रदेश में गुप्त कालीन अभिलेख (Gupta Period Records in Madhya Pradesh)

समुद्रगुप्त के इलाहाबाद स्तंभ अभिलेख से ज्ञात होता है कि अपने विजय अभियान के अन्तर्गत उसने मध्यप्रदेश के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया था। एरण से मिले एक अभिलेख के अनुसार शहर के आस-पास का क्षेत्र ‘स्वभोग-नगर’ कहलाता था जहां समुद्रगुप्त विश्राम करने के लिये आता था।

  • उदयगिरी की पहाड़ियों में प्राप्त चन्द्रगुप्त द्वितीय के सांधिविग्रहिक, वीरसेन का अभिलेख भी एक महत्वपूर्ण लिखित साक्ष्य है। 
  • इसी क्षेत्र में चन्द्रगुप्त द्वितीय के सामंत सनकानिक महाराज का भी एक अभिलेख मिला है। इसे गुप्त संवत् 82 (401-2 ई.) का माना गया है। 
  • गुप्त संवत् 93 का एक अभिलेख साँची से भी प्राप्त हुआ है। इस अभिलेख में चन्द्रगुप्त के एक कर्मचारी, आम्रकार्दव का उल्लेख है, जिसने काकनादबोट (साँची) में स्थित महाविहार को कुछ दान दिया था।
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय के उत्तराधिकारी, कुमारगुप्त प्रथम के गुप्त संवत् 116 का एक शिलालेख तुमैन में मिला है जिसमें तुम्बवन के शासक घटोत्कचगुप्त का उल्लेख है। 
  • कुमारगुप्त प्रथम के शासन की जानकारी मंदसौर में मिले मालव संवत् 493 के एक शिलालेख में भी है। 
  • गुप्त संवत् 106 का उदयगिरी शिलालेख भी कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल का है।
  • शंकरपुर (सीधी जिले) से मिले एक ताम्रपत्र, जिसे गुप्त संवत् 166 का माना गया है, से संकेत मिलता है कि गुप्त साम्राज्य तब तक अखंड था। 

मध्य प्रदेश में वाकाटक कालीन अभिलेख (Wakatak Period Records in Madhya Pradesh)

सिवनी, दुडिया, तिरोडी, इन्दौर, पट्टण, पाण्ढुर्ना और बालाघाट से मिले वाकाटक प्रवरसेन के 7 ताम्रपत्र संकेत देते हैं कि उसके राज्य का विस्तार मध्य प्रदेश के कई भागों पर था।  नरेन्द्रसेन का एक ताम्रपत्र जो दुर्ग (छत्तीसगढ़) में मिला है पद्मपुर से प्रचलित किया गया था। 

मध्य प्रदेश में संभवत कालीन अभिलेख (Sambhavat Period Records in Madhya Pradesh)

नलों के आक्रमण के कारण नरेन्द्रसेन ने अपनी राजधानी कुछ दिनों के लिये स्थानांतरित कर ली थी। उसके उत्तराधिकारी पृथ्वीषेण और सामंत व्याघ्रसेन के दो अभिलेख नचना और गंज से प्राप्त हुये हैं। बालाघाट से मिले अभिलेख से पता चलता है कि वह फिर से शक्तिशाली हो गया था।

मध्य प्रदेश में हूण कालीन अभिलेख (Huna Period Records in Madhya Pradesh)

एरण से मिले तोरमाण के शासन के प्रथम वर्ष के वराह प्रतिमा अभिलेख से यह पता चलता है कि हूण, मध्य भारत में बहुत अन्दर तक प्रवेश कर गये थे और सागर तक पहुँच गये थे। मिहिरकुल के शासनकाल के 15वें वर्ष का ग्वालियर अभिलेख, मध्य प्रदेश में हूणों की उपस्थिति का एक अन्य प्रमाण है।

मध्य प्रदेश में औलिकर कालीन अभिलेख (Aulicar Period Records in Madhya Pradesh)

मन्दसौर, राजगढ़, मोरेना जिलों एवं सीतामऊ से प्राप्त इस वंश के बारह अभिलेखों से यह संकेत मिलता है कि प्रारंभिक औलिकर शासन गुप्तों के सामंत थे।

मालव संवत् 589 के मंदसौर शिलालेख से और बिल्कुल ऐसे ही एक अन्य अभिलेख से, जिसे मंदसौर से ही पाया गया है, और जो दो स्तंभों पर उत्कीर्ण हैं, से पता चलता है कि यशोधर्मन् के शासन के दौरान ये स्वतंत्र हुये। ये अभिलेख यशोधर्मन् द्वारा हूण शासक मिहिरकुल की पराजय का विवरण देते हैं।

मध्य प्रदेश में वल्ख महाराज के अभिलेख (Archives of Valkh Mahar in Madhya Pradesh)

वल्ख के महाराजाओं के परिवार के बारे में उनके सिरपुर (पूर्वी खानदेश), इन्दौर और वाघ ताम्रपत्रों से पता चलता है। हाल ही में तीन और अभिलेख इन्दौर से प्रकाश में आए हैं। 

  • धार जिले के बाघ क्षेत्र से हाल ही (1982) में मिले इस वंश के 27 अभिलेखों का भंडार, एक महत्वपूर्ण खोज साबित हुआ है। 
  • ये अभिलेख, भुलुण्ड (13), स्वामीदास (5), रूद्रदास (5), भट्टारक (3) और नागभट्ट(1) नामक पाँच अलग-अलग शासकों के शासनकाल के हैं। 

मध्य प्रदेश में परिव्राजक महाराज के अभिलेख (Archives of Parivrajak Maharaj in Madhya Pradesh)

 बुंदेलखण्ड पर शासन कर रहे परिव्राजक गुप्तों के सामंत थे। इस वंश का पहला अभिलेख खोह से पाया गया था। इसे गुप्त संवत् 156 का माना गया है और यह महाराज हस्तिन के शासनकाल का है। 

  • इन राजाओं के तीन और अभिलेखों को गुप्त संवत् 163, 170 और 191 का माना गया है और ये क्रमश: खोह, जबलपुर ओर मझगंवा से प्राप्त हुये हैं। 
  • हस्तिन् का एक अन्य स्तंभ अभिलेख भूमरा से मिला है। 

मध्य प्रदेश में उच्चकल्प महाराज के अभिलेख (Archives of Uchchakalp Maharaj in Madhya Pradesh) 

उच्चकल्प महाराज, परिव्राजक के समकालीन तथा पड़ोसी थे और उन्हीं की तरह गुप्तों के सामंत भी थे। 

  • इस वंश का पहला अभिलेख महाराज जयनाथ का है जिसे गुप्त संवत् 174 का माना गया है।
  • इस शासक का दूसरा अभिलेख खोह से प्राप्त हुआ है और इसे गुप्त संवत् 177 का माना गया है। 
  • गुप्त संवत् 182 का, उसका तीसरा अभिलेख उचहरा से मिला है। उसका उत्तराधिकारी सर्वनाथ था, जिसका गुप्त संवत् 193 का ताम्र लेख खोह से पाया गया है। 

मध्य प्रदेश में मेकल के पांडुवंशी अभिलेख (Record of Mekal Panduvanshi in Madhya Pradesh)

शहडोल जिले में वर्तमान अमरकंटक के आस-पास के क्षेत्र को पुराने समय में मेकल के नाम से जाना जाता था। पाँचवी शताब्दी ई. में मेकल पर शासन कर रहे पांडुवंशियों की वंशावली और कालैकॅम का विवरण हमें बम्हनी से प्राप्त भरतबल के राज्यकाल के दूसरे वर्ष के ताम्रपत्र से मिलता है। इस वंश का एक अन्य अभिलेख बूढीखार से प्राप्त हुआ है। 

मध्य प्रदेश में वर्धन कालीन अभिलेख (Record of Verdhan Period in Madhya Pradesh)

यद्यपि हर्ष सहित इस वंश का कोई भी अभिलेख मध्य प्रदेश से नहीं मिला है, तथापि खजुराहो की  एक प्रतिमा पर हर्ष संवत् 218 का अभिलेख इस बात की पुष्टि करता है कि यह क्षेत्र हर्ष साम्राज्य के क्षेत्राधिकार में था।

मध्य प्रदेश में शैलवंश के अभिलेख (Record of Shail Dynasty in Madhya Pradesh)

आठवीं शताब्दी के दौरान शैल वंश आधुनिक महाकोसल के पश्चिमी भाग पर शासन कर रहा था। इसकी पुष्टि बालाघाट जिले में राघोली से मिले ताम्र लेख में वर्णित वंशावली और काल-क्रम से होती है।

मध्य प्रदेश में राष्ट्रकूट के अभिलेख (Record of Rashtrkut in Madhya Pradesh)

7वीं-8वीं शताब्दी के दौरान राष्ट्रकूटों की प्रांरभिक शाखाओं में से एक बैतूल-अमरावती क्षेत्र में शासन कर रही थी। इस वंश के नन्नराज युद्धासुर के शक काल 553 और 631 के दो ताम्रपत्र क्रमश: तिवखेड़ और मुलताई (दोनों ही बैतूल जिले में स्थित) से प्राप्त हुए हैं। 

  • इन्द्रगढ़ (मन्दसौर) के शिलालेख में उसका और इन्द्र तृतीय का उल्लेख है। 

उज्जैन और कन्नौज के गुर्जर – प्रतिहार (Gurjars of Ujjain and Kannauj – Pratahara)

ग्वालियर से मिले एक अभिलेख से पता चलता है कि नागभट्ट द्वितीय के उत्तराधिकारी रामभद्र के शासन के दौरान यह क्षेत्र गुर्जर-प्रतिहारों के साम्राज्य में सम्मिलित था। 

मध्य प्रदेश में चंदेल अभिलेख (Chandel Record in Madhya Pradesh)

बुन्देलखण्ड क्षेत्र में चंदेल, गुर्जर-प्रतिहारों के उत्तराधिकारी बने। उनके राज्य में केवल बुंदेलखंड बल्कि उत्तरप्रदेश के भाग भी सम्मिलित थे, जहां उनके बहुत से अभिलेख पाए गए हैं। 

  • इस वंश का सबसे प्रांरभिक अभिलेख (916-925ई.) का है। जिसमें उसके द्वारा शत्रुओं को परजित करने का उल्लेख है।
  • इसके बाद के तीन अभिलेख धंग (950-1002ई.) के हैं जो खजुराहो से मिले हैं।
  • विक्रम संवत् 1011 और 1059 के अभिलेखों के साथ ये दर्शाते हैं कि धंग इसे वंश का पहला शासक था जिसने प्रतिहारों की अधीनता को अस्वीकार कर खुद को स्वंतत्र घोषित कर दिया था।
  • अगला अभिलेख कुंडेश्वर से प्राप्त विद्याधर का ताम्रपत्र है जिसे विक्रम संवत् 1060 (1004 ई.) का माना गया है। 

मध्य प्रदेश में परमार अभिलेख (Parmar Record in Madhya Pradesh)

मालवा के परमार चंदेलों से समकालीन थे। इस वंश का प्रांरभ उपेन्द्र ने किया था और उसके उत्तराधिकारी बने वैरीसिंह प्रथम, सियक प्रथम, वाक्पति प्रथम, वैरीसिंह द्वितीय, सियक द्वितीय और मुंज। 

  • मुंज के शासनकाल में 6 अभिलेख उज्जैन, गाँवरी और धरमपुर से प्राप्त हुए हैं। 
  • मालवा पर विक्रम संवत् 1195 तक चालुक्यों का अधिकार उज्जैन में पाए गए सिद्धराज के एक अभिलेख से प्रमाणित होता है।

मध्य प्रदेश में मंदसौर के गुहिल अभिलेख (Records of Guhila Dynasty of Mandsaur in Madhya Pradesh)

मंदसौर जिले में जीरण में मिले 6 अभिलेखों से 10वीं शताब्दी में मंदसौर में शासन कर रहे गुहिल वंश की उपस्थिति का पता चलता है। इन अभिलेखों से इस वंश के शासकों की उपलब्धियों का विवरण मिलता है।

विविध अभिलेख (Miscellaneous Records)

इन सबके अतिरिक्त पूरे मध्य प्रदेश से 450 से भी अधिक विविध प्रकार के अंभिलेख मिले हैं। मध्य प्रदेश के प्राचीन काल के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास के छोटे से छोटे विवरण के लिये इन सबसे महत्वपूर्ण सामग्री मिलती है। पहली-दूसरी शताब्दी ई.पू. से 10वीं शताब्दी के मध्य शंख लिपि में उत्कीर्ण अभिलेख भी मध्य प्रदेश में प्रचुर मात्रा में पाए गये हैं। हाल ही में हुई खोज से मध्य प्रदेश के विभिन्न भागों में ऐसे 303 अभिलेख प्रकाश में आए हैं। इन अभिलेखों का अध्ययन जारी हैं। 

 

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मध्यप्रदेश की मध्य पुरापाषाण कालीन संस्कृति (Central Paleolithic Culture of Madhya Pradesh)

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के बहुत से स्थानों से मध्य पुरापाषाण कालीन (Central Paleolithic Age) उपकरण मिले हैं। इस काल के उपकरण नर्मदा घाटी में नरसिंहपुर, होशंगाबाद और महेश्वर से मिले हैं। नर्मदा के दोनों ओर डोंगरगाँव और चोली पर कई कार्य-स्थल पाये गये हैं। 

  • पिपरिया में A. P. खत्री ने इस युग के बहुत से उपकरण अशूलियन उपकरणों के साथ मिले हुये पाये हैं। 
  • सगुनघाट के चबूतरे से भी बहुत से मध्य पुरापाषाण कालीन उपकरण खोजे गये हैं। 
  • सूपेकर ने अमरकंटक और मंडला के बीच इस काल के बारह कार्य-क्षेत्र ढूंढे।
  • चम्बल घाटी में मध्य पुरापाषाण कालीन उपकरण मंदसौर और नाहरगढ़ से पाए गए हैं।
  • बेतवा के गोंची नामक स्थान पर, रामेश्वर सिंह द्वारा 230 उपकरण एकत्रित किये गये हैं। इस काल के उपकरण भीमबेटका की खुदाई में भी मिले हैं। 
  • दमोह में सोनार और ब्यारमा घाटी में R. V. जोशी ने इस काल के उपकरणों को 12 स्थालों से खोजा है। 
  • उच्च सोन घाटी के उत्खनन से निसार अहमद ने 45 स्थलों से 485 उपकरण एकत्रित किए। 

उच्च पुरापाषाण कालीन संस्कृति (High Paleolithic Culture)

उच्च सोन घाटी के उत्खनन के दौरान, निसार अहमद सीधी और शहडोल जिले के कई ऐसे कई स्थलों पर गए जहाँ उच्च पुरापाषाण कालीन संस्कृति के उपकरण पाए गए। मंडला के निकट नर्मदा की एक सहायक नंदी बंजर के तट पर स्थित बमनी में छुरी और छैनी भी मिले हैं। ये उपकरण भीमबेटका के स्तर-वैन्यासिक उत्खनन स्तर और ग्वालियर तथा रीवा जिले के उत्खननों में भी मिले हैं। 

मध्य पाषाण कालीन संस्कृति (Middle Stone Age Culture)

मंदसौर, रतलाम, उज्जैन, इंदौर, खंडवा और निमाड़ जिले में चम्बल घाटी में किए गए उत्खनन के दौरान बहुत से लघु-पाषाणीय स्थल निकले हैं। 

  • शहडोल, रीवा, मंदसौर, सिहोर, भोपाल, होशंगाबाद, उज्जैन, जबलपुर, मंडला, छतरपुर, विदिशा, सागर, गुना, पन्ना, छिंदवाड़ा, और धार की खुदाई में भी बहुत से लधु-पाषाणीय स्थल निकले हैं। 
  • आदमगढ़ के उत्खनन से निकले लुघ-पाषाणीय उद्योग-स्थल को 5500 ई. पू. का माना गया है। 

ताम्र-पाषाण कालीन संस्कृति (Copper-stone Culture)

पूर्व हड़प्पा अथवा हड़प्पा संस्कृति के कोई भी चिन्ह मध्य प्रदेश में नहीं पाए गए हैं। लेकिन हड़प्पा के पश्चात् ताम्र-पाषाण संस्कृति के अवशेष भारी मात्रा में मिले हैं, विशेषत: मालवा में महेश्वर नावदाटोली में किए गए पुरातात्विक उत्खननों में 1160-1440 ई. पू. की तिथियाँ मिली हैं। 

एरण के उत्खनन के अनुसार यह संस्कृति 2000 – 700 ई. पू. की है और बेसनगर के अनुसार इस संस्कृति की मध्यभारत में अस्तित्व 1100 – 900 ई. पू. की है। 

ताम्र-निधि संस्कृति (Copper-Fund Culture)

गंगा-यमुना दोआब में पूर्व लौह युग के कांस्य उपकरणों के भंडार मिले हैं। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में गुंगेरिया, जबलपुर, दबकिया और रामजीपुरा के कुछ एकाकी क्षेत्रों से भी कांस्य उपकरणों के इसी तरह के भंडार मिले हैं। 

लौह-युग संस्कृति (Iron Age Culture)

यद्यपि भारत में लोहा बहुत पहले से आ गया था, तथापि मध्य प्रदेश में यह 1000 ई. पू. के लगभग आया। 

  • मध्य प्रदेश में ऐसे स्थल, जहाँ से धूसर रंग के बर्तन जो लोहे के प्रारंभ से संबन्धित हैं, कम हैं और जो हैं वह राजस्थान और उत्तर प्रदेश को स्पर्श करते मध्य प्रदेश के उत्तरी भाग में सीमित हैं। इनमें भिंड, मुरैना और ग्वालियर जिले सम्मिलित हैं। 
  • गिलौलीखेड़ा (मुरैना जिला) में इस लेखक द्वारा 1982 में किये गये उत्खनन से 1.2 मी. गहरा पीजीडब्ल्यू जमाव मिला है। 

महापाषाण संस्कृति (Megalithic Culture)

दक्षिण भारत में लौह युग से सम्बद्ध कुछ समाधियाँ प्राप्त होती हैं, जिन्हें महापाषाणीय स्मारक (मेगालिथ) के नाम से सम्बोधित किया गया है। 

  • इनका काल 1500 – 1000 ई. पू. माना जाता है। यद्यपि महापाषाण स्मारकों को दक्षिण भारत से सम्बद्ध किया जाता है, तथापि इनमें से कुछ मध्य प्रदेश, असम, उड़ीसा, बिहार, राजस्थान, गुजरात और कश्मीर में भी मिले हैं। 

 

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