16वीं शताब्दी के अंत में लंदन के कुछ व्यापरियों ने भारत से व्यापार करने के लिए लंदन कंपनी की स्थापना की। 1600 ई. के अंतिम महीनों में लंदन कंपनी को भारत में व्यापार करने का अधिकार पत्र मिला। इस कंपनी ने ईस्ट इण्डिया कंपनी के नाम से भारत में व्यापार करना शुरू किया। 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद केन्द्रीय प्रशासन के शक्तिहीन होने के साथ-साथ ईस्ट इण्डिया कंपनी ने यहाँ के आंतरिक राजनीतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप करना प्रारंभ कर दिया। 1757 में प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला को पराजित कर कंपनी ने बंगाल पर आधिपत्य जमाया। 1764 में बक्सर के युद्ध में कंपनी ने जीत हासिल की।
भारत में कंपनी के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव पर संसदीय नियंत्रण के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा समय-समय पर अधिनियम पारित किए गए। इन अधिनियमों ने भारतीय संविधान के निर्माण के लिए एक आधार तैयार किया।
1773 का रेग्यूलेटिंग एक्ट (Regulating Act 1773)
- तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री लार्ड नॉर्थ द्वारा गोपनीय समिति की रिपोर्ट पर 1773 में ब्रिटिश संसद द्वारा यह एक्ट पारित किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य कंपनी में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं कुशासन से दूर करना था।
- मद्रास एवं बंबई प्रेसीडेंसियों को कलकत्ता प्रेसीडेंसी के अधीन कर दिया गया। कलकत्ता प्रेसीडेंसी के प्रमुख को गवर्नर की जगह गवर्नर जनरल कहा जाने लगा।
- गवर्नर जनरल और उनकी परिषद् इंग्लैण्ड स्थित निदेशक बोर्ड के प्रति उत्तरदायी थी।
- इस एक्ट में एक उच्चतम न्यायालय के गठन का प्रावधान था, जिसके तहत 1774 में कलकत्ता में चार सदस्यीय उच्चतम न्यायालय गठित किया गया।
- बंगाल प्रेसीडेंसी का पहला गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स था तथा उसकी परिषद के चार सदस्य थे –
(i) फिलीप फ्रांसीस
(ii) मानसन
(iii) बारवैल
(iv) क्लेवेरिंग। - एक्ट के तहत स्थापित भारत के पहले उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश सर एलीजाह इम्पे थे।
1784 का पिट्स इण्डिया एक्ट (Pitts India Act 1784)
- पिट्स इण्डिया एक्ट ने कंपनी के व्यापारिक एवं राजनीतिक कार्यकलापों को एक-दूसरे से अलग कर दिया।
- कंपनी के वाणिज्य संबंधी विषयों को छोड़कर सभी सैनिक, असैनिक तथा राजस्व संबंधी मामलों को एक नियंत्रण बोर्ड के अधीन कर दिया गया।
1793 का चार्टर एक्ट (Charter Act 1793)
- इस एक्ट के द्वारा कंपनी के व्यापारिक अधिकारों को 20 वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया।
- एक्ट के तहत बोर्ड ऑफ कंट्रोल के अधिकारियों को वेतन भारतीय कोष से मिलने लगा।
1813 का चार्टर एक्ट (Charter Act 1813)
- इस एक्ट के अंतर्गत कंपनी के भारतीय व्यापार के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया, किन्तु चीन से व्यापार और चाय के व्यापार का एकाधिकार बना रहा।
- इस एक्ट के तहत एक लाख रुपए प्रतिवर्ष विद्वान भारतीयों को प्रोत्साहन तथा साहित्य के सुधार तथा पुनरुत्थान के लिए रखा गया।
- ईस्ट इण्डिया कंपनी को अगले 20 वर्ष के लिए भारतीय प्रदेशों तथा राजस्व पर नियंत्रण का अधिकार प्रदान किया गया।
1833 का चार्टर एक्ट (Charter Act 1833)
- भारत में अंग्रेजी शासन के दौरान संविधान निर्माण के प्रथम धुंधले संकेत इस एक्ट में मिलते हैं।
- इस एक्ट से कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया। उसे भविष्य में केवल राजनीतिक कार्य ही करने थे।
- इस एक्ट के द्वारा भारतीय प्रशासन का केन्द्रीयकरण किया गया। बंगाल का गवर्नर अब भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया।
- लार्ड विलियम बैंटिक भारत के पहले गवर्नर जनरल बने।
- विधायी कार्य के लिए परिषद् का विस्तार किया गया, जिसमें पहले तीन सदस्यों के अतिरिक्त एक विधि सदस्य जोड़ दिया गया।
- इस एक्ट के द्वारा गवर्नर जनरल की सरकार भारत सरकार और उसकी परिषद् भारत परिषद् कहलाने लगी।
- भारतीय कानूनों को लिपिबद्ध तथा सुधारने के उद्देश्य से एक विधि आयोग का गठन किया गया।
1853 का चार्टर एक्ट (Charter Act 1853)
- 1853 का एक्ट अंतिम चार्टर एक्ट था।
- बंगाल के लिए लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल नियुक्ति किया गया।
- विधायी परिषद् और कार्यकारी परिषद् को अलग किया गया।
- इसी एक्ट द्वारा सर्वप्रथम सम्पूर्ण भारत के लिए एक विधानमण्डल की स्थापना की गई।