संविधान के भाग 6 के अनुच्छेद 154 के अनुसार राज्य की समस्त कार्यपालिका संबंधी शक्ति राज्यपाल (Governor) में नीहित है, जिसका प्रयोग पर मंत्रीपरिषद् (Council of Ministers) की सहायता से करता है। जिसका प्रमुख मुख्यमंत्री (Chief Minister) होता है।
राज्यपाल की नियुक्ति (Appointment of Governor)
संविधान के अनुच्छेद 155 के अनुसार राज्य के राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुहर सहित अधिपत्र द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति करेगा। किन्तु वास्तविकता है कि राज्यपाल की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सिफारिश पर ही राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। संविधान के अनुच्छेद 153 में यह प्रावधान है कि भारत के प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल होगा, किंतु 1956 में किए गये संशोधन के अनुसार एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है। राज्यपाल की नियुक्ति के संबंध में यह प्रथा रही है कि किसी व्यक्ति को उस राज्य का राज्यपाल नहीं नियुक्त किया जायेगा, जिसका वह निवासी है तथा राज्यपाल की नियुक्ति के पहले संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री से विचार-विमर्श किया जायेगा। लेकिन 1967 के चुनाव में जब कुछ राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारों का गठन हुआ, तब दूसरी प्रथा (मुख्यमंत्री से विचार-विमर्श) को समाप्त कर दिया गया।
राज्यपाल की नियुक्ति के संदर्भ में सरकारिया आयोग की सिफारिश
- राज्यपाल को निष्पक्ष व अनुभवी होना चाहिए।
- एक व्यक्ति को एक ही बार राज्यपाल नियुक्ति किया जाना चाहिए।
- सक्रिय राजनीतिज्ञ को राज्यपाल नियुक्त नही की जानी चाहिए।
- अनुच्छेद 155 का अनुपालन करते समय राज्यपाल की नियुक्ति में मुख्यमंत्री के सलाह की व्यवस्था होनी चाहिए।
- केंद्र में सत्तारूढ़ दल के किसी सदस्य को उस राज्य में राज्यपाल न बनाया जाए, जिसमें किसी अन्य दल की सरकार हों।
- अवकाश प्राप्ति के बाद किसी को लाभ का पद न मिले।
- अल्पसंख्यक समुदाय के योग्य व्यक्ति को भी नियुक्ति में वरीयता दी जानी चाहिए।
राज्यपाल की योग्यता (Qualifications of Governor)
अनुच्छेद 157 के अनुसार राज्यपाल पद पर नियुक्त किये जाने वाले व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताएं अपेक्षित हैं –
- वह भारत का नागरिक हो।
- वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
- वह राज्य सरकार या केन्द्र सरकार या इन राज्यों के नियंत्रण के अधीन किसी सार्वजनिक उपक्रम में लाभ के पद पर न हो।
- वह राज्य विधानसभा का सदस्य चुने जाने की योग्यता रखता हो।
राज्यपाल की पदावधि (Term Duration of Governor)
- अनुच्छेद 156 के अनुसार यद्यपि राज्यपाल का कार्यकाल उसके पद ग्रहण करने की तिथि से पांच वर्ष का होता है, किंतु इस अवधि की समाप्ति के बाद भी वह तब तक अपने पद पर बना रहता है, जब तक कि उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण नहीं कर लेता।
- अनुच्छेद 156(1) में यह भी व्यवस्था है कि राज्यपाल तब तक अपने पद पर बना रहता है, जब तक कि राष्ट्रपति की इच्छा हो। इस तरह राष्ट्रपति, राज्यपाल को एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरित कर सकता है। अथवा उसी राज्य में फिर से नियुक्त कर सकता है अथवा राष्ट्रपति उसे किसी भी समय उसके पद से हटा सकता है।
- अनुच्छेद 152(2) के अनुसार राज्यपाल, राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र देकर पदमुक्त हो सकता है।
राज्यपाल की शपथ (Governor’s Oath)
- अनुच्छेद 159 के अनुसार राज्यपाल को संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाता है।
राज्यपाल के वेतन एवं भत्ते (Salary and Allowances of Governor)
राज्यपाल को 3.50 लाख रु. प्रतिमाह वेतन मिलता है। तथा वह ऐसे भत्ते का भी हकदार है, जिसे संसद द्वारा नियत किया जाये। उसे नि:शुल्क सरकारी आवास भी प्रदान किया जाता है। राज्यपाल के वेतन और भत्ते राज्य के संचित कोष से दिये जाते हैं, जिसपर राज्य के विधानमंडल को मतदान का अधिकार नहीं होता है।
राज्यपाल के विशेषाधिकार (Privileges of Governor)
राज्यपाल को निम्नलिखित न्यायिक सुविधाएं प्रदान की गयी हैं
- वह अपने पद की शक्तियों के प्रयोग तथा कर्तव्यों के पालन के लिए किसी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं है।
- राज्यपाल के कार्यकाल के दौरान उसके विरुद्ध किसी भी न्यायालय में किसी भी प्रकार की आपराधिक कार्यवाही प्रारंभ नहीं की जा सकती।
- जब वह पद पर हो, तब उसकी गिरफ्तारी या कारावास के लिए कोई भी न्यायालय आदेश नहीं निकाल सकता।
- राज्यपाल का पद ग्रहण करने से पूर्व या पश्चात् उसके द्वारा व्यक्तिगत रूप से किए गये कार्य के संबंध में सिविल कार्यवाही करने से पहले उसे दो मास पूर्व सूचना देना अनिवार्य है।
राज्यपाल की शक्तियां तथा कार्य (Governors’ Powers and Functions)
जिस प्रकार केन्द्र में कार्यपालिका की शक्ति राष्ट्रपति | में निहित है, उसी प्रकार राज्य में कार्यपालिका की शक्ति राज्यपाल में निहित है। राज्यपाल राज्य में लगभग उन समस्त कार्यों को करता है जो केन्द्र में राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है, किन्तु राज्यपाल को कोई राजनीतिक या सैन्य संबंधी शक्तियां नहीं हैं, जैसाकि राष्ट्रपति को है। राज्यपाल के कर्तव्य और शक्तियां निम्नलिखित हैं –
प्रशासनिक एवं कार्यपालिका शक्तियाँ (Administrative and Executive Powers)
- अनुच्छेद 154 के अनुसार राज्य की समस्त कार्यपालिका शक्तियाँ राज्यपाल में नीहित हैं।
- अनुच्छेद 166 के अनुसार राज्य के समस्त कार्य उसी के नाम से संचालित होते हैं।
- राज्यपाल राज्य के शासन कार्य का संचालन एवं मंत्रियों के बीच कार्य वितरण हेतु नियम बनाता है।
- अनुच्छेद 163 के अनुसार प्रशासनिक कार्य में सहायता व मंत्रणा देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रधान मुख्यमंत्री होगा।
- अनुच्छेद 164 के अनुसार मुख्यमंत्री की नियुक्ति भी राज्यपाल ही करता है। साथ ही वह मुख्यमंत्री के परामर्श से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
- राज्यपाल राज्य के महाधिवक्ता, राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्य तथा अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायधीशों आदि की नियुक्ति करता है।
- राज्यपाल मुख्यमंत्री से प्रशासन संबंधी समस्त कार्यों एवं मंत्रिमंडल के निणर्यों की सूचना प्राप्त कर सकता है।
- राज्य का शासन अगर संविधान की व्यवस्थाओं के अनुसार नही चल रहा है तो वह इस संबंध में प्रतिवेदन राष्ट्रपति को देता है। इस प्रकार वह केन्द्र के एक सजग प्रहरी के रूप में कार्य करता है तथा इसके सूचना के आधार पर राज्य में आपात काल लागू होने पर वह केन्द्र के एजेंट के रूप में प्रत्यक्ष रूप से राज्य का शासन चलाता है।
विधायी शक्तियाँ (Legislative Powers)
- अनुच्छेद 333 के अनुसार राज्यपाल राज्य विधानसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय के एक सदस्य को मनोनीत करता है।
- राज्यपाल प्रत्येक वर्ष विधानमंडल की प्रथम बैठक को सम्बोधित करता है।
- राज्यपाल द्विसदनीय विधानमंडल वाले राज्यों में वह दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाता है तथा उसका सत्रावसान करता है।
- अनुच्छेद 174 के अनुसार वह विधानसभा का विघटन कर सकता है।
- अनुच्छेद 200 के अनुसार राज्यपाल की अनुमति के बिना कोई विधेयक अधिनियम नहीं बन सकता भले ही उसे दोनों सदन पारित कर दें। लेकिन वित्त विधेयक पर उसे प्रथम बार में ही स्वीकृति देनी पड़ती है।
- अनुच्छेद 213 के तहत उसे विधानमंडल के अवकाश के समय अध्यादेश जारी करने की महत्वपूर्ण शक्ति प्राप्त है। लेकिन वह उन्हीं विषयों पर अध्यादेश जारी कर सकता है जिन विषयों पर राज विधानमंडल को कानून बनाने का अधिकार है। ऐसे अध्यादेश की मान्यता विधानसभा के सत्र शुरू होने के 6 सप्ताह बाद तक रह सकती है। यदि विधानमंडल चाहे तो इसे अधिनियमित कर कानून बना सकता है या फिर इसे निरस्त कर सकता है।
वित्तीय शक्तियाँ (Financial Powers)
- अनुच्छेद 202 के अनुसार राज्यपाल का यह उत्तरदायित्व है कि वह प्रत्येक वर्ष राज्य में वित्तीय लेख को तैयार करवाकर सदन के समक्ष प्रस्तुत करवाए।
- राज्यपाल के स्वीकृति के बिना कोई भी धन विधेयक विधानसभा में पुरः स्थापित नही किया जा सकता। उसकी स्वीकृति के बिना राज्य के राजस्वों की राशि भी व्यय नही की जाएगी।
- राज्य की अकास्मिक निधि पर राज्यपाल का अधिकार होता है और उसमें से अप्रत्याशित व्यय के लिए धन दे सकता है। परन्तु इस प्रकार की राशि का बाद में विधानसभा द्वारा अनुमोदन किया जाना आवश्यक है।
न्यायिक शक्तियाँ (Judicial Powers)
- राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायधीशों की नियुक्ति में राज्यपाल का परामर्श लिया जाता है।
- राज्यपाल राज्य के उच्च न्यायालय के कर्मचारियों की सेवा शर्ते भी बना सकता है।
- राज्यपाल दंडित अपराधियों के दंड का अल्पीकरण, परिवर्तन या निलंबन कर सकता है बशर्ते कि उसका अपराध राज्य सरकार के क्षेत्रान्तर्गत हो। लेकिन राज्यपाल का यह अधिकार स्वविवेक पर आधारित न होकर कुछ स्थापित नियमों और न्यायिक पुनर्विलोकन के अधीन है।
अन्य कार्य (Other Tasks)
- राज्यपाल राज्य लोक सेवा आयोग का वार्षिक प्रतिवेदन प्राप्त करता है और समीक्षा हेतु मंत्रीपरिषद् के पास भेजता है।
- राज्य के आय-व्यय के मामले में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (महालेखापाल) के प्रतिवेदन को भी राज्यपाल इसी प्रकार राज्य विधानमंडल के समक्ष रखवाता है।
- राज्यपाल विश्वविद्यालयों का भी कुलाधिपति होता है।
राज्यपाल के विवेकाधिकार (Governor’s Discretion)
किसी राज्य के राज्यपाल को संविधान द्वारा प्रदत्त विवेकाधिकार को दो भागों में बांटा जा सकता हैं – संवैधानिक विवेकाधिकार तथा पारस्थितिकीय विवेकाधिकार।
संवैधानिक विवेकाधिकार (Constitutional Discrimination)
कुछ विशिष्ट मामलों में राज्यपाल मंत्रिपरिषद के निर्णय से स्वतंत्र होकर व्यक्तिगत निर्णय से कार्य करता है।
- अनुच्छेद 356 – राष्ट्रपति को राज्य की स्थिति के बारे में प्रतिवेदन करते समय खासकर संवैधानिक संकट के बारे में रिपोर्ट भेजते समय राज्यपाल अपने विवेक के आधार पर कार्य करता है।
- अनुच्छेद 200 – राज्य विधायिका द्वारा पारित किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ रखने का निर्णय राज्यपाल अपने विवेक से ही करता है। केन्द्र और राज्य सरकार के बीच किसी मामले पर विरोध पैदा होने पर भी राज्यपाल अपने विवेक से कार्य करता है।
- यद्यपि किसी अध्यादेश को जारी करने के लिए राष्ट्रपति की सलाह अनिवार्य है, फिर भी वह ऐसे समय भी अपने विवेक से कार्य करता है।
परिस्थितिकीय विवेकाधिकार (Ecological discretion)
सामान्य परिस्थितियों में राज्यपाल मंत्रिपरिषद् की सलाह और सहायता से कार्य करता है, लेकिन असमान्य परिस्थितियों में वह राष्ट्रपति के एजेंट के रूप में कार्य करता है। निम्नलिखित परिस्थितियों में राज्यपाल अपने विवेक से निर्णय लेता है –
1. मुख्यमंत्री की नियुक्ति
2. मंत्रिपरिषद को भंग करने में
राज्यपाल को निम्नलिखित परिस्थितियों में मंत्रिपरिषद को भंग करने का अधिकार है –
- जब राज्यपाल को विश्वास हो जाये कि मंत्रिपरिषद का विधानसभा में बहुमत नहीं रह गया है।
- जब मंत्रिपरिषद के विरुद्ध विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाये।
- जब मंत्रिपरिषद संविधान के प्रावधानों के अनुसार कार्य न कर रही हो या मंत्रिपरिषद की नीतियों से राष्ट्र का अहित संभाव्य हो या केन्द्र से संघर्ष होने की संभावना हो।
- जब किसी स्वतंत्र अधिकरण द्वारा जांच में मुख्यमंत्री को भ्रष्टाचार में लिप्त पाया गया हो।
विधानसभा भंग करना
सामान्यतः राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर ही विधानसभा को भंग करता है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में वह मुख्यमंत्री की सलाह के बिना भी विधानसभा को भंग कर सकता है।
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