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Development of Indian Education after Independence

स्वाधीनता के पश्चात भारतीय शिक्षा का विकास (1947-1950 ई.)

स्वाधीनता के पश्चात भारतीय शिक्षा का विकास (1947-1950 ई.)
(Development of Indian Education after Independence (1947-1950))

1947 में स्वाधीन भारत में 1 लाख 73 हजार प्रारंभिक स्कूल, वह हजार माध्यमिक स्कूल, 199 इण्टरमीडिएट कॉलेज, 297 कला और विज्ञान के कॉलेज, 140 व्यावसायिक और टेक्नीकल कॉलेज तथा 20 विश्वविद्यालय थे । 1947 में राजपूताना विश्वविद्यालय, सागर विश्वविद्यालय तथा पंजाब विश्वविद्यालय, 1948 में गोहाटी, पूना, रुड़की और जम्मू काश्मीर में विश्वविद्यालयों 1949 में बडौदा में विश्वविद्यालय और 1950 में कर्नाटक और गुजरात में विश्वविद्यालयों की स्थापना की गयी ।

स्वाधीन भारत की सरकार ने 1848 में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षतता में एक विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग गठित किया। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय शिक्षा पद्धति के गुण-दोषों की जाँच करना तथा उसके सुधार तथा प्रसार के सुझाव प्रस्तुत करना था। आयोग ने शिक्षा में व्यापक सुधार लाने के लिये अपनी अनुशंसा सहित एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की । राधाकृष्णन आयोग (1949) राधाकृष्णन आयोग ने निम्नलिखित सिफारिशें प्रस्तुत की – 

  • स्कूली पाठ्यक्रम की अवधि 12 वर्ष की होनी चाहिए । इसमें इंटरमीडिएट की कक्षायें भी सम्मिलित होनी चाहिए । 
  • हाई स्कूल तथा इंटरमीडिएट कॉलेजों के अध्यापकों के लिये रिफ्रेशर कोर्स प्रारंभ किया जाना चाहिए । 
  • वर्ष में कम से कम 180 दिन कक्षायें लगनी चाहिए । 
  • विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम इंटरमीडियएट के बाद प्रारंभ होना चाहिए। उसकी अवधि तीन वर्ष की होनी चाहिए।
  • स्नात्कोत्तर कक्षाओं के पाठ्यक्रम और उनके लिये विद्यार्थियों के चयन में एकरूपता होनी चाहिए । 
  • अनुसंधान या पी.एच.डी. डिग्री के लिये प्रशिक्षण की अवधि कम से कम दो वर्ष होनी चाहिए । 
  • कला और साहित्य के विद्यार्थियों को विज्ञान की, और विज्ञान के विद्यार्थियों को कला और साहित्य के विषयों की शिक्षा देनी चाहिए।
  • विश्वविद्यालय शिक्षकों को तीन वर्गों में विभाजित करना चाहिए । 
    • प्रोफेसर 
    • रीडर, 
    • व्याख्याता या लैक्चरर और निर्देशक 
  • उनकी सेवानिवृत्ति की उम्र 60 वर्ष होनी चाहिए। प्रोफेसरों को 04 वर्ष तक कार्य करने की स्वीकृति होनी चाहिए। उनकी पदोन्नति केवल योग्यता के आधार पर होनी चाहिए । 
  • विश्वविद्यालय के पुस्तकालयों और प्रयोगशालाओं में सुधार होना चाहिए।
  • विश्वविद्यालय शिक्षा को समवर्ती सूची में सम्मिलित करना चाहिए।
  • विश्वविद्यालय एक स्वायत्त संस्था होनी चाहिए तथा केन्द्र सरकार को इसके वित्तीय दायित्वों को पूरा करना चाहिए।
  • इन्जीनियरिंग कॉलेजों, औद्योगिक संस्थाओं, कानून और कृषि सम्बन्धी कॉलेजों में व्यापक सुधार की आवश्यकता है । उन्हें पुन: संगठित करना चाहिए ।
  • विज्ञान के नये-नये विषयों के अध्ययन और अनुसंधान की व्यवस्था की जानी चाहिए। 
  • औद्योगिक तथा वैज्ञानिक विषयों में अन्तर्राष्ट्रीय पारिभाषिक शब्दों को अपनाना चाहिए । 
  • उच्च शिक्षा के लिये शीघ्रातिशीघ्र अंग्रेजी भाषा के स्थान पर किसी भारतीय भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाना चाहिए | संघीय भाषा हिन्दी को विकसित करना चाहिए।
  • केन्द्रीय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग गठित किया जाना चाहिए ।

राधाकृष्णन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए भारत सरकार ने एक परिपत्र सभी विश्वविद्यालयों को भेजा। अनेक विश्वविद्यालयों ने इन सिफारिशों को क्रियान्वित भी किया। 1953 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की गयी । इस प्रकार स्वाधीन भारत की सरकार ने शिक्षा को अधिक सार्थक और उपयोगी बनाने का प्रयास किया।

 

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