Administrative System of Mauryan Empire

मौर्य साम्राज्य की शासन व न्याय व्यवस्था (Governance and Justice System of Mauryan Empire)

मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था (Administrative System of Mauryan Empire)

चन्द्रगुप्त मौर्य एक वीर, योग्य, प्रतिभाशाली और सफल शासक था। उसने अपने विस्तृत साम्राज्य को संगठित शासन-व्यवस्था से सुदृढ़ किया। विशाल साम्राज्य को स्थायी बनाने के लिए शासन-व्यवस्था की ओर विशेष ध्यान दिया। जो शासन व्यवस्था उसने निर्मित की वह इतनी श्रेष्ठ और लाभप्रद हुई कि चन्द्रगुप्त के बाद के राजाओं ने उसका अनुकरण किया और शासन प्रबन्ध की आदर्श बन गई। इस शासन व्यवस्था में कौटिल्य (चाणक्य) का बड़ा ही सहयोग रहा। चन्द्रगुप्त के प्रशासन के प्रमुख तीन भाग थे-
1. केन्द्रीय शासन
2. प्रान्तीय शासन और
3. स्थानीय शासन 

केन्द्रीय शासन (Central Government)

राजा केन्द्रीय शासन का सर्वोच्च अधिकारी सम्राट् होता था। इसके परामर्श एवं सहयोग हेतु मंत्रिपरिषद् होती थी। यह व्यवस्था केन्द्रीय राजधानी मगध से संचालित थी। चन्द्रगुप्त मौर्य वहीं पर वैठकर शासन संचालित करता था। शासन व्यवस्था अनेक उपविभागों में विभक्त थी। मौर्यकाल में शासन के विविध विभागों को तीर्थ कहा जाता था। इनकी संख्या अठारह थी। इन तीर्थों के अधीन विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष कार्य करते थे। ये सभी मंत्रिपरिषद के सदस्य होते थे ।

प्रान्तीय शासक (Provincial Ruler)

मध्यप्रदेश में अवन्तिराष्ट्र प्रमुख प्रान्त था जिसकी राजधानी उज्जयिनी थी। यहाँ का शासन राजकुमारों के अधीन था। प्रान्तीय शासक राजवंश से सम्बिन्धित ही होते थे। प्रान्तीय शासक प्रमुख रूप से सम्राट् के आधिपत्य में थे। वे सम्राट् की आज्ञा का उलंघन नहीं कर सकते थे। प्रान्तीय शासक सम्राट् को अवश्यकता के समय सैनिक सहायता देते थे। यदा-कदा प्रान्तों में विद्रोह हो जाते थे तब केन्द्रीय सेना वहाँ का विद्रोह शान्त करती थी। प्रान्तीय शासन की कार्य प्रणाली पर सम्राट् के प्रमुख कर्मचारी और गुप्तचर तीक्ष्ण दृष्टि रखते थे। वे गुप्त रूप से प्रान्तों की सूचना सम्राट् को भेजते रहते थे। 

स्थानीय शासन (Local Government)

प्रत्येक प्रान्त में कई जनपद अथवा नगर हुआ करते थे। नगर के मुखिया को नगर अध्यक्ष या प्रादेशिक कहा जाता था। इससे नगर में शान्ति स्थापित करना, भूमिकर तथा अन्य कर एकत्रित करना, शिक्षा का प्रबन्ध करना, कृषि एवं सिंचाई के प्रबन्ध की देखभाल करना, जंगलों तथा खानों का प्रबन्ध करना आदि कार्य होते थे। उसकी सहायता के लिए कई अधिकारी हुआ करते थे। यह समाहर्ता के प्रति उत्तरदायी होता था। जनपद के निम्नांकित विभाग थे। एक स्थानीय के अन्तर्गत 800 ग्राम हुआ करते थे। स्थानीय के अन्तर्गत दो द्रोणमुख 400-400 ग्राम के होते थे। द्रोणमुख के अन्तर्गत दो खार्वटिक 200 – 200 ग्राम तथा खार्वटिक के अन्तर्गत 20 संग्रहण होते थे। प्रत्येक संग्रहण में 10 ग्राम होते थे। संग्रहण का अधिकारी गोप हुआ करता था। इस प्रकार ग्राम ही साम्राज्य की सबसे छोटी ईकाई थी। इसके संचालन हेतु अनेक अधिकारी, कर्मचारी हुआ करते थे। 

मौर्य साम्राज्य की न्याय व्यवस्था (Judicial System of Maurya Empire)

मौर्य शासन में सम्राट् ही सर्वोच्च न्यायाधीश होता था। लेकिन सम्पूर्ण साम्राज्य में अनेक न्यायालय होते थे। प्रमुख न्यायालय पाटलिपुत्र में था लेकिन अन्य छोटे न्यायालय स्थानीय शासन पर भी थे। ये न्यायालय दो प्रकार के थे।
1. धर्मस्थीय तथा
2. कण्टकशोधन
इनमें तीन – तीन न्यायाधीश बैठकर न्याय करते थे। चन्द्रगुप्त के शासनकाल में उज्जयिनी अत्यन्त समृद्धशाली नगरी माने जानी लगी थी। अशोक ने अपराधियों के दण्ड के लिए उज्जैन में एक नरक-घर बनवाया था जो आज भी विद्यमान है, जिसमें भेरूगढ़ जेल संचालित है। साम्राज्य के प्रमुख नगर तुमैन, बेसनगर, दशपुर और उज्जयिनी, त्रिपुरी थे। ये न्यायालय प्रान्तीय, स्थानीय, द्रोणमुख, खार्वटिक स्तर तक की पृथक-पृथक होती थी। 

 

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