शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना (Establishment of S.C.O.) – 15 जून 2001
शंघाई सहयोग संगठन का मुख्यालय (Headquarter of S.C.O.) – बीजिंग (चीन)
शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य (Member of the S.C.O.) – 8 (चीन, रूस, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, भारत, पाकिस्तान)
शंघाई सहयोग संगठन के पर्यवेक्षक देश (Observe States of S.C.O.) – 4 (ईरान, अफगानिस्तान, मंगोलिया, बेलारूस (2016))
शंघाई सहयोग संगठन के वार्ता देश (Talk State of S.C.O.) – 6 (अजरबैजान, अर्मेनिया, नेपाल, श्रीलंका, कम्बोडिया, तुर्की)
शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation)
सन् 1996 में स्थापित ‘शंघाई-5 (Shanghai-5)’ का औपचारिक रूपांतरण सन् 2001 में अपेक्षाकृत अधिक व्यापक ‘शंघाई सहयोग संगठन’ (Shanghai Cooperation Organisation) के रूप में हो गया है। जून 2001 में स्थापित शंघाई सहयोग संगठन में ‘शंघाई-5’ के पाँच सदस्यों – चीन, रूस, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान व तजाकिस्तान के अतिरिक्त छठे राष्ट्र उज्बेकिस्तान को भी संस्थापक सदस्य के रूप में शामिल किया गया। फलतः यह ‘शंघाई-5’ से ‘शंघाई-6’ हो गया। इसके साथ ही इसका नाम ‘शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation)’ रख दिया गया।
नए नाम के साथ संगठन का प्रथम शिखर सम्मेलन 14-15 जून, 2001 को शंघाई (चीन) में संपन्न हुआ। शंघाई सहयोग संगठन के 6 सदस्य राष्ट्रों ने संगठन के चार्टर पर 7 जून, 2002 को सेंट पीटर्सबर्ग (रूस) में आयोजित संगठन के द्वितीय शिखर सम्मेलन में हस्ताक्षर कर इसे औपचारिक अंतरराष्ट्रीय संगठन बना दिया।
10 जुलाई, 2015 को रूस के उफा (Ufa) में आयोजित 15वें शंघाई सहयोग संगठन में भारत एवं पाकिस्तान को इस संगठन का पूर्व सदस्य बनाया गया, जिससे इस संगठन के सदस्यों की संख्या 6 से बढ़कर 8 हो गई।
सन् 1996 में स्थापित ‘शंघाई-5’ जहाँ सदस्य राष्ट्रों के सीमावर्ती विवादों को हल करने में मध्यस्थता करता रहा है, वहीं ‘शंघाई सहयोग संगठन’ का प्रमुख उद्देश्य आतंकवाद (Terrorism), अलगाववाद (Seperatism) एवं धार्मिक कंट्टरवाद (Extremism) के विरुद्ध मिलकर कार्य करना है।
शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन (Shanghai Cooperation Organisation Summit)
सम्मेलन | स्थान |
पहला सम्मेलन 2001 | शंघाई (चीन) |
दूसरा सम्मेलन 2002 | सेंट पीटर्सबर्ग (रूस) |
तीसरा सम्मेलन 2003 | मॉस्को (रूस) |
चौथा सम्मेलन 2004 | ताशकंद (उज्बेकिस्तान) |
पाँचवाँ सम्मेलन 2005 | अस्ताना (कजाकिस्तान) |
छठा सम्मेलन 2006 | शंघाई (चीन) |
सातवाँ सम्मेलन 2007 | बिश्केक (किर्गिस्तान) |
आठवाँ सम्मेलन 2008 | दुशांबे (तजाकिस्तान) |
नौवाँ सम्मेलन 2009 | येकाटेरिनबर्ग (रूस) |
दसवाँ सम्मेलन 2010 | ताशकंद (उज्बेकिस्तान) |
ग्यारहवाँ सम्मेलन 2011 | अस्ताना (कजाकिस्तान) |
बारहवाँ सम्मेलन 2012 | बीजिंग (चीन) |
तेरहवाँ सम्मेलन 2013 | बिश्केक किर्गिस्तान |
चौदहवाँ सम्मेलन 2014 | दुशांबे (ताजिकिस्तान) |
पंद्रहवाँ सम्मेलन 2015 | उफा (रूस) |
सोलहवाँ सम्मेलन 2016 | ताशकंद (उज्बेकिस्तान) |
सत्रहवाँ सम्मेलन 2017 | अस्ताना (कजाखस्तान) |
अठारहवाँ सम्मेलन 2018 | चिंगदाओ (चीन) |
उन्नीसवां सम्मेलन 2019 | बिश्केक (किर्गिस्तान) |
भारत एवं शंघाई सहयोग संगठन (India and S.C.O.)
भारत को ‘शंघाई सहयोग संगठन’ में सम्मिलित होने का पहले से ही प्रस्ताव है, लेकिन वर्तमान में भारत इस पर गंभीरता से विचार कर रहा है। संभावना है कि जल्द ही भारत इस संगठन का सदस्य बन जाएगा। वैसे भारत इस समय संगठन का एक पर्यवेक्षक है। भारत इस संगठन का सदस्य निम्नलिखित कारणों से बनना चाहता है –
- दक्षेस (SAARC), बिम्सटेक (BIMSTEC) और हिंमतक्षेस (I.O.R.A.R.C.) के गतिहीन हो जाने के कारण शंघाई सहयोग संगठन में शामिल होना भारत के लिए जरूरी है। इस संगठन में शामिल होने से भारत को आर्थिक एवं अन्य लाभ प्राप्त हो सकते हैं।
- इस संगठन का सदस्य बनने से उसके तथा रूस और चीन के बीच एक मजबूत समझ विकसित होगी। इन तीनों के बीच मजबूत संबंध अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अमेरिकी वर्चस्व को संतुलित करने हेतु आवश्यक है।
- चीन के साथ एक क्षेत्रीय संगठन में शामिल होने से चीन की तरफ से खतरे की आशंका में कुछ कमी आएगी।
- इस संगठन में शामिल होकर भारत चीन को पाकिस्तान की सैन्य तैयारी में मदद | कम करने के लिए प्रभावित कर सकता है।
- मध्य-पूर्व एशिया एवं दक्षिण एशिया में बढ़ती आतंकवादी गतिविधियों को । कम करने में भारत को इस संगठन के सदस्यों का साथ मिल जाएगा।
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