सबसे अधिक महत्वपूर्ण लक्षण है। ये परिवर्तनशील मानसून पवनें वर्ष के दौरान ऋतु परिवर्तन के लिये उत्तरदायी हैं। भारत में जलवायु के अनुसार वर्ष को निम्न चार ऋतुओं में बांटा जाता है :
- शीत ऋतु – दिसम्बर से फरवरी
- ग्रीष्म ऋतु – मार्च से मई दक्षिणी भारत में तथा मार्च से जून उत्तरी भारत में
- आगे बढ़ते दक्षिण पश्चिम मानसून की ऋतु (वर्षा ऋतु) – जून से सितम्बर
- पीछे हटते दक्षिण पश्चिम मानसून की ऋतु (शरद ऋतु) – अक्टूबर और नवम्बर
शीत ऋतु (Winter Season)
- उत्तरी भारत में यह ऋतु प्रायः नवम्बर के अन्तिम सप्ताह में प्रारम्भ हो जाती है।
- देश के अधिकतर भागों में जनवरी व फरवरी सबसे अधिक ठन्डे महीने होते हैं, क्योंकि सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर वृत पर लम्बवत् चमकता है।
- इन महीनों में उत्तर के मैदानों व पर्वतीय प्रदेशों में दैनिक औसत तापमान 21° C से कम रहते हैं।
- कभी-कभी रात का तापमान हिमांक से नीचे चला जाता है, इससे पाला पड़ता है।
- उत्तर से दक्षिण की ओर जाने पर तापमान में क्रमिक वृद्धि होती है।
- निम्न तापमान के कारण उच्च वायुदाब क्षेत्र विकसित हो जाता है। इस उच्चदाब के कारण उत्तरी-पूर्वी अपतट (स्थलीय) पवनें चलती हैं।
- उत्तरी मैदानों में उच्चावच के कारण इन पवनों की दिशा पछुआ होती है।
- ये स्थलीय पवनें ठन्डी व शुष्क होती हैं। अतः शीत ऋतु में देश के अधिकांश भागों में वर्षा नहीं करती।
- यही पवनें बंगाल की खाड़ी से आर्द्रता ग्रहण करके जब कारोमण्डल तट पर पहुंचती है तो वर्षा करती हैं।
- इस ऋतु का एक अन्य लक्षण अवदावों का एक के बाद एक आगमन है। इन अवदावों को ‘पश्चिमी विक्षोभ’ कहते हैं, क्योंकि ये भूमध्य सागरीय प्रदेश में विकसित होते हैं।
- ये अवदाब पश्चिमी जेट वायुधारा के साथ चलते हैं।
- ईराक व पाकिस्तान के ऊपर से होते हुये एक लम्बी दूरी तय करके भारत में ये मध्य दिसम्बर के आस-पास पहुंचते हैं। इनके आने से तापमान में वृद्धि होती है तथा उत्तरी मैदानों में हल्की वर्षा होती है।
ग्रीष्म ऋतु (Summer Season)
- सूर्य के उत्तरायण होने पर उत्तर के मैदानों में तापमान बढ़ने लगता है। इसके परिणामस्वरूप बसंत ऋतु का आगमन होता है जो शीघ्र ही ग्रीष्म ऋतु का रूप ले लेती है।
- ग्रीष्म ऋतु जून के अन्त तक रहती है।
- इस ऋतु में तापमान उत्तर की ओर बढ़ता है तथा उत्तर के मैदानों के अधिकांश भागों में कई माह में लगभग 45° C हो जाता है।
- दोपहर के बाद धूल भरी आंधियों और लू का चलना ग्रीष्म ऋतु के विशिष्ट लक्षण हैं। लू गर्म और शुष्क पवनें हैं।
- लू मई व जून के महीनों में उत्तरी मैदानों में चलती हैं।
- इस ऋतु में पवनों की दिशा परिवर्तनशील होती है।
- सम्पूर्ण देश में मौसमी दशायें सामान्यतया गर्म व शुष्क होती हैं।
- केरल, पश्चिम बंगाल और असम में हल्की वर्षा होती है।
- केरल में मानसून से पूर्व की इस वर्षा को ‘आम्र वृष्टि’ के नाम से जाना जाता है।
- पश्चिम बंगाल और असम में इसे ‘काल वैसाखी’ कहते हैं।
आगे बढ़ते दक्षिण पश्चिम मानसून की ऋतु (वर्षा ऋतु) [Rainy Season]
- भारत के अधिकांश भागों में वर्षा इस ऋतु में होती है। यह दक्षिण पश्चिम मानसून जो केरल तट पर जून के पहले सप्ताह में पहुंचता है, के आगमन से प्रारम्भ होती है।
- ये पवनें भारत के अधिकांश भागों में मध्य जुलाई तक पहुंच जाती है।
- यह ऋतु सितम्बर माह तक रहती है।
- आर्द्रता से लदी इन गर्म पवनों से मौसमी दशाएं पूर्णतः बदल जाती है।
- इन पवनों के आने से अचानक वर्षा होने लगती है, जिससे तापमान काफी कम हो जाता है।
- तापमान में यह गिरावट 5° से 10° C तक होती है।
- अचानक होने वाली इस वर्षा को ‘मानसून का टूटना या फटना’ कहते हैं।
- यह उत्तरी मैदानों तथा हिन्द महासागर पर वायु दाब की दशाओं पर निर्भर करता है।
- भारत की प्रायद्वीपीय आकृति इन दक्षिण-पश्चिमी मानूसनों को दो शाखाओं में विभाजित करती है – अरब सागर की शाखा तथा बंगाल की खाड़ी की शाखा।
1. दक्षिण पश्चिम मानसून की अरब सागर की शाखा
- भारत के पश्चिमी घाट से अवरोध पाकर पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढलानों पर भारी वर्षा करती है।
- पश्चिमी घाट को पार करने के बाद ये पवनें पूर्वी ढलानों पर कम वर्षा करती हैं, क्योंकि उतरते हुये, उनके तापमान में वृद्धि होने लगती है। इसलिये इस क्षेत्र को ‘वृष्टिछाया क्षेत्र’ कहते हैं।
- दक्षिण पश्चिम मानसून पवनें सौराष्ट्र व कच्छ के तट से आगे बढ़ती हुई राजस्थान के ऊपर से गुजरती है और आगे चल कर खाड़ी की बंगाल की शाखा से मिल जाती है।
2. बंगाल की खाड़ी की शाखा
- पूर्वी हिमालय श्रेणियों से अवरोध पाकर दो उपशाखाओं में विभाजित हो जाती है।
- एक शाखा पूर्व व उत्तर पूर्व दिशा की ओर बढ़ती है तथा यह ब्रह्मपुत्र घाटी व भारत की उत्तर पूर्वी पहाड़ियों में भारी वर्षा करती हैं।
- दूसरी शाखा उत्तर पश्चिम की ओर गंगा घाटी व हिमालय की श्रेणियों के साथ-साथ आगे बढ़ती हुई दूर-दराज के क्षेत्र में पश्चिम की ओर भारी वर्षा करती है।
पीछे हटते दक्षिण पश्चिम मानसून की ऋतु (शरद ऋतु) [Autumn Season]
- दक्षिण पश्चिम मानसून पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों व उत्तरी पश्चिमी भारत से सितम्बर के पहले सप्ताह से पीछे हटने लगते हैं, जहाँ वे सबसे अन्त में पहुँचते हैं।
- इन पवनों के पीछे हटने का मुख्य कारण भारत के उत्तर पश्चिमी भाग के निम्न दाब क्षेत्र का कमजोर होना है।
- सूर्य का विषुवत वृत्त की ओर आभासी गति तथा विस्तृत वर्षा का कारण तापमान के नीचे गिरने के साथ वायुदाब धीरे-धीरे उच्चा होने लगता है।
- वायुमण्डलीय दाब के ढांचे में परिवर्तन के कारण दक्षिण पश्चिम मानसून पीछे हटता है।
- भारत के उत्तर पश्चिमी भाग के निम्न दाब का क्षेत्र अक्टूबर के अंत तक बंगाल की खाड़ी के मध्य स्थानान्तरित हो जाता है। इन अस्थायी दशाओं के कारण बंगाल की खाड़ी में अत्यंत तीव्र चक्रवातीय तूफान पैदा होते हैं।
- ये चक्रवातीय तूफान भारत के पूर्वी तट के साथ-साथ तटीय प्रदेशों में भारी वर्षा करते हैं।
- तमिलनाडु तट अपनी वर्षा का अधिकांश भाग अक्टूबर व नवम्बर या मानसून के पीछे हटने की ऋतु में प्राप्त करता है।
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