Museum of Uttar Pradesh

उत्तर प्रदेश के प्रमुख संग्रहालय

उत्तर प्रदेश राज्य के प्रमुख संग्रहालय
(Museum of 
Uttar Pradesh)

उत्तर प्रदेश में कला, संस्कृति, इतिहास, पुरातत्त्व विज्ञान, औषधि, वस्त्र, वाद्य यन्त्र आदि अन्य विशिष्ट विषयों से संबंधित दुर्लभ वस्तुओं के संग्रह हेतु लगभग 70 संग्रहालयों की स्थापना की गई है। प्रदेश का सबसे प्राचीन संग्रहालय राजकीय संग्रहालय लखनऊ है जिसकी स्थापना सन् 1853 में की गई थी। प्रदेश के अन्य प्रमुख संग्रहालयों का विवरण इस प्रकार है।

उत्तर प्रदेश राज्य में लगभग 70 संग्रहालय हैं। वे कला, संस्कृति, पुरातत्त्व विज्ञान, इतिहास, औषधि, वस्त्र, वाद्य यन्त्र तथा अन्य विशिष्ट विषयों से सम्बन्धित हैं। इसमें राजकीय संग्रहालय लखनऊ, प्रदेश का सबसे प्राचीन संग्रहालय है। इसकी स्थापना सन् 1853 में की गई थी और इसकी शाखाएँ लखनऊ तथा इलाहाबाद दोनों स्थानों पर स्थित थीं। सन् 1860 में दोनों शाखाओं को मिला दिया गया।

यहाँ अनेक दुर्लभ वस्तुओं का संग्रह किया गया है। शोध कार्य, सुप्रसिद्ध विद्वानों के भाषण तथा जनता के लिए प्रदर्शनियाँ यहाँ आयोजित की जाती हैं। अनेक दुर्लभ वस्तुओं को खरीदा भी जाता है। मलिक मोहम्मद जायसी कृत ‘पद्मावत’ की सचित्र पोथी क्रय की गई कलाकृतियों में विशेष महत्त्व की उपलब्धि है। इसमें 337 रंगीन चित्र हैं। ऐसा समझा जाता है कि देवनागरी अक्षरों में लिखी गई ‘पद्मावत’ है। यह प्राचीनतम पोथी है, इसका रचनाकाल सन् 1693 ई० (संवत सुदी 5 शुक्रवार, सम्वत् 1750) है। इसके अलावा अन्य संग्रहालय निम्नलिखित हैं –

राज्य संग्रहालय, लखनऊ
(State Museum, Lucknow)

राज्य संग्रहालय, लखनऊ उ0 प्र0 का प्राचीनतम तथा विशालतम् बहुउद्देशीय संग्रहालय है। इसकी स्थापना सन् 1863 ई0 में लखनऊ डिवीजन के तत्कालीन कमिश्नर कर्नल एबट द्वारा सींखचे वाली कोठी में की गयी थी। सन् 1883 में यह प्रान्तीय संग्रहालय के रूप में लाल बारादरी में व्यवस्थित हुई। सन् 1950 में इसका नाम प्रान्तीय संग्रहालय के स्थान पर राज्य संग्रहालय रखा गया तथा वर्ष 1963 में नवीन भवन का निर्माण बनारसी बाग, प्राणि उद्यान में किया गया। इस संग्रहालय के संकलन में लगभग एक लाख से अधिक कलाकृतियां हैं, जिसमें पुरातत्व अनुभाग, चित्रकला अनुभाग, प्राणि शास्त्र अनुभाग, मुद्रा अनुभाग, कला एवं सज्जा कला अनुभाग और धातु कला अनुभाग आदि प्रमुख हैं। इसके साथ ही राज्य संग्रहालय, लखनऊ में एक वृहद पुस्तकालय भी है, जहां भारतीय संस्कृति, कला, पुरातत्व, इतिहास तथा प्राच्य विद्या से सम्बन्धित दुर्लभ पुस्तकें हैं, जो विशेष रूप से शोधार्थियों के लिये उपयोगी हैं। संग्रहालय ज्ञान का वातायन, भविष्य का शिक्षक, अतीत का संरक्षक एवं भविष्य का उन्नायक है। संग्रहालय सांस्कृतिक सम्पदा, ऐतिहासिक एवं पुरातातिवक धरोहरों को सुरक्षित एवं संरक्षित रखने का वह केन्द्र है, जहां प्राचीन कलाकृतियों को संग्रहीत कर राष्ट्र के अतीत की गौरवशाली संस्कृति का दर्शन शोधार्थियों बुद्विजीवियों तथा सामान्य जनमानस को कराया जाता है। संग्रहालय का कार्य कलाकृतियों एवं पुरावशेषों का संग्रह करना, संरक्षित करना, शोध करना तथा उन्हें प्रदर्शित करना है।

मथुरा का संग्रहालय
(Museum of Mathura)

राजकीय संग्रहालय, मथुरा की स्थापना भारतीय कला के मनीषी विद्वान पुरातत्ववेत्ता तत्कालीन जिलाधीश श्री एफ0 एस0 ग्राउज द्वारा वर्ष 1874 ई0 में कचहरी के समीप कलात्मक भवन में की गई थी। राजकीय संग्रहालय, मथुरा अपने प्रारम्भ में ‘‘कर्जन म्यूजियम ऑफ आर्कियोलॉजी’’ के नाम से विख्यात रहा। वर्ष 1933 ई0 में संग्रहालय वर्तमान भवन में स्थानान्तरित हुआ। वर्ष 1945 से इसे ‘‘पुरातत्व संग्रहालय’’ तथा वर्ष 1974 से ‘‘राजकीय संग्रहालय, मथुरा’’ के रूप में जाना जाता है।

मूर्ति शिल्प में मथुरा कला शैली का स्थानीय केन्द्र होने तथा प्रारम्भ से ही संग्रहालय का स्वरूप मूलरूप से पुरातात्विक होने के कारण स्पष्टतः संग्रहालय के संकलन में अधिसंख्य कुषाण एवं गुप्तकालीन मथुरा शैली की प्रस्तर कलाकृतियां हैं, परन्तु अन्य वर्गों जैसे मृण्मूर्ति, सिक्के, लघुचित्र, धातुमूर्ति, काष्ठ एवं स्थानीय कला के अनेक दुर्लभ कलारत्न संग्रहीत हैं, जो संस्था के लिए गौरव स्वरूप हैं। मृण्मूर्तियों में शुंगकालीन मातृ देवी, कामदेव फलक, गुप्तकालीन नारी व विदूषक, कार्तिकेय, सॉचे, सिक्कों में बलराम अंकित आहत मुद्राओं के सॉचे, गोविन्द नगर से प्राप्त निधि तथा सौंख से प्राप्त सिक्के एवं कुषाण कालीन धातु मूर्तियों में कार्तिकेय, देव युगल प्रतिमा व नाग मूर्तियां, स्थानीय कला में मन्दिरों की पिछवईयां, सांझी के चित्र आदि संग्रहालय की अत्यन्त मूल्यवान धरोहर हैं।

राजकीय पुरातत्व संग्रहालय, कन्नौज
(Government Archaeological Museum, Kannauj)

इत्र और इतिहास की नगरी ‘‘कान्यकुब्ज‘‘ वर्तमान जिला कन्नौज ईसा की छठी शती के उत्तरार्द्ध से लेकर बारहवीं शती ई. के अन्त तक उ0 भारत का महत्वपूर्ण अग्रणी नगरों में से एक था। कन्नौज लगभग 600 वर्ष तक उत्तर भारत का केन्द्र बिन्दु था। जहां मौखरी वंश, वर्द्धन वंश, प्रतिहार वंश, गहड़वाल वंश, पुष्पित पल्लवित हुये, नवीं शती ई. में कन्नौज दक्षिण के ‘‘राष्ट्रकूट‘‘ पूर्व के ‘‘पाल‘‘ और उत्तर पश्चिम के ‘प्रतिहार‘ शक्तियों के मध्य त्रिकोणात्मक शक्ति संतुलन का केन्द्र बन गया था। जिस प्रकार मौर्य युग से लेकर गुप्त काल तक पाटलीपुत्र (पटना) का शासक भारत का सार्वभौम चक्रवर्ती सम्राट माना जाता था। उसी प्रकार हर्षोत्तर काल में ‘कान्यकुब्जाधिपति‘ को शक्ति का प्रतीत माना जाता था। कन्नौज संग्रहालय समिति ने 25 फरवरी, 1975 को कन्नौज में संग्रहालय की स्थापना की। कन्नौज संग्रहालय में प्रागैतिहासिक अस्थि उपकरण महाभारत कालीन स्लेटी भूरे चित्रित पात्र, उत्तरी कृष्ण मार्जित मृद्भांड, पाटल मुद्रा, सील, सिक्के, मृण्मूर्ति, हाथी दांत की कलाकृतियां, मनकें, पाषाण प्रतिमायें संग्रहित है, जिसमें विशेष रावणानुग्रह, भैरवरूप में विषपान, तपस्विनी पार्वती, कार्तिकेय, नृत्य गणेश, विष्णु, विश्वरूप विष्णु, हरिहर, सूर्य प्रतिमांए, ब्रहमा, अग्नि, देवी प्रतिमाएं, महिषासुरमर्दिनी दुर्गा, शान्ती रूप दुर्गा, चामुण्डा, सप्तमातृका, नवग्रह, तीर्थकर प्रतिमाएं संग्रहीत है। यह संग्रहालय प्रतिहार काल की कलाकृतियां के लिये विश्वविख्यात है।

कन्नौज संग्रहालय समिति ने 25 फरवरी, 1975 को कन्नौज में एक संग्रहालय की स्थापना की। वर्ष 1995 में संस्कृति विभाग द्वारा इस संग्रहालय को अधिग्रहण करने का निर्णय शासन द्वारा किया गया। 29 फरवरी, 1996 को पुरातत्व संग्रहालय को शासकीय संग्रहालय घोषित करते हुये राजकीय पुरातत्व संग्रहालय का स्वरूप प्रदान किया गया। उक्त संग्रहालय का नवीन भवन बनकर तैयार हो गया है, जिसमें संग्रहालय का संचालन किया जा रहा है।

राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय, मेरठ
(State Freedom Struggle Museum, Meerut)

वर्ष 1995 में उ0प्र0 शासन द्वारा राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय का निर्माण का निर्णय लिया गया, तत्क्रम में वर्ष 1997 में टास्कफोर्स द्वारा की गई संस्तुतियों के अनुरूप उ0प्र0 शासन के अधीन उ0प्र0 संग्रहालय निदेशालय द्वारा संचालित राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय, मेरठ की स्थापना हुई। जिसका औपचारिक लोकार्पण 10 मई, 2007 को हुआ।

पश्चिमी उ0 प्र0 स्वतंत्रता आन्दोलन का उद्भव एवं क्रान्ति स्थल रहा है। स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी घटनाओं से सम्बन्धित स्थान मेरठ छावनी, देवबन्द, बरेली, बुलन्दशहर, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बिजनौर एवं बागपत इत्यादि इसके महत्वपूर्ण साक्ष्य हैं। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मेरठ का विशिष्ट स्थान है, जहाँ से प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी फूटी। स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी घटनाओं एवं संस्मरणों, जीवन गाथाओं को संरक्षित करना, भावी पीढ़ी को नवीन दिशा प्रदान करना तथा राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय, मेरठ को राष्ट्रीय स्तर पर विशिष्ट संग्रहालय के रूप में स्थापित करने का लक्ष्य है। स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी घटनाएं कैसी थीं एवं स्वतंत्रता संग्राम किस प्रकार से लड़ा गया इसका उल्लेख लिखित रूप से तो किताबों एवं अभिलेखों में मिलता है लेकिन दृश्य रूपों में इसका अभाव है, मुख्य रूप से 10 मई 1857 को मेरठ में घटित घटनाएं जो आम जनसामान्य की पहुँच से दूर रही हैं । इन तथ्यों को संग्रहालय में दिखाने का अनूठा प्रयास किया गया है।

जनपदीय संग्रहालय, सुल्तानपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 01 किमी0 एवं बस स्टेशन से 500 मीटर दूरी पर सुल्तानपुर, सुपर मार्केट में स्थित है। गूगल मैप के अनुसार यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया के सामने संग्रहालय स्थित है।

संग्रहालय सुलतानपुर जनपद के अनेक महत्वपूर्ण पुरास्थलों जैसे शनिचरा कुंड भांटी, सोमना भार, कालूपाठक का पुरवॉ, अहिरन पलिया, सोहगौली, महमूदपुर आदि स्थलो पर पुरासांस्कृतिक सम्पदा बिखरी दिखायी देती है। यही नहीं इस जनपद के आस-पास के जनपदों में भी धरती के गर्भ से बराबर अतीत की धरोहर निकलती रहती है। इनके विविध आयामों से सम्बन्धित सामग्रियां और बिखरी सांस्कृतिक पुरा सम्पदा को संकलित, सुरिंक्षत, प्रदर्शित, प्रलेखीकृत व प्रकाशन कर उन पर अध्ययन अनुसंधान करने कराने के बहुउद्देश्य से वर्ष 1988-89 में इस संग्रहालय की स्थापना की गई।

अन्तर्राष्ट्रीय रामकथा संग्रहालय एवं आर्ट गैलरी, अयोध्या, फैजाबाद
(International Ramakatha Museum & Art Gallery, Ayodhya, Faizabad)

अयोध्या के महत्व तथा रामकथा की व्यापकता को दृष्टिगत रखते हुए मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम की जन्म स्थली तथा भारतीय जनमानस की वन्दनीया नगरी अयोध्या में संस्कृति विभाग, उ0 प्र0 सरकार द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय रामकथा संग्रहालय एवं आर्ट गैलरी की स्थापना माह जनवरी, 1988 में की गयी तब से निरन्तर अपने उद्देश्यों के प्रति रामकथा संग्रहालय अग्रसर है।

संग्रहालय का उद्देश्य जहां एक ओर रामकथा विषयक सचित्र, पाण्डुलिपियों, मूर्तियों, रामलीला व अन्य प्रदर्श कलाओं से सम्बन्धित सामग्री, अयोध्या परिक्षेत्र के पुरावशेषों, दुर्लभ सांस्कृतिक सम्पदा व प्रदर्श कलाओं, अनुकृतियों, छायाचित्रों का संकलन व परिवीक्षा करना है वहीं दूसरी तरफ संकलित सामग्री का वीथिकाओं में प्रदर्शन, छायाचित्रीकरण व अभिलेखीकरण तथा शैक्षिक कार्यक्रमों के अन्तर्गत व्याख्यानों, गोष्ठियों प्रतियोगिताओं व कार्यशालाओं तथा अस्थायी प्रदर्शिनियों का आयोजन करना भी है।

संग्रहालय में अभी तक 1020 कलाकृतियों का संकलन हो चुका है तथा 313 कलाकृतियों को संग्रहालय वीथिका में प्रदर्शित किया गया है। संग्रहालय देखने के लिए दर्शकों के लिए निःशुल्क व्यवस्था है।

राजकीय जैन संग्रहालय, मथुरा
(State Jain Museum, Mathura)

जैन संग्रहालय, मथुरा. राजकीय जैन संग्रहालय, मथुरा. विवरण, प्रारम्भ में यह संग्रहालय स्थानीय तहसील के पास एक छोटे भवन में रखा गया था। कुछ परिवर्तनों के बाद सन् 1881 में उसे जनता के लिए खोल दिया गया।

राजकीय जैन संग्रहालय – इसकी मथुरा रेलवे स्‍टेशन से दूरी मात्र 2 कि‍लोमीटर की है। यह मथुरा तहसील के बराबर में स्थित है। आप यहां ऑटों या रिक्‍शा कर आसानी से पहुंच सकते है। मथुरा में बौद्धकला के साथ-साथ जैन कला का विकास हुआ था और यहां की कला विश्व भर में प्रसिद्ध है। राजकीय जैन संग्रहालय में सारी मूर्तियां मथुरा कला की ही हैं। जिसकी खासियत लाल पत्थर पर जीवंत कारीगरी है। मथुरा कला की पहचान है कि लाल पत्थर पर मूर्तियां बनती थीं और उनमें चेहरे के हाव भाव को जीवंत किया जाता है। मथुरा में अग्रेजों के शासन काल में कंकाली टीला के पास की गयी खुदाईं में जैन धर्म के तीर्थकरों की मू‍र्तियां प्राप्‍त की गयी थीं, लेकिन स्‍वतंत्रता प्रा‍प्ति के पश्‍चात कंकाली टीला से प्राप्‍त अधिकांश मूर्तियों को लखनऊ संग्रहालय में भेज दिया गया और कुछ मूर्तियों को मथुरा के जैन संग्रहालय में रखा गया है इन मूर्तियों में अधिकांश मू‍र्तियां खं‍डित है।

राजकीय बौद्ध संग्रहालय, गोरखपुर
(State Buddhist Museum, Gorakhpur)

पूर्वी क्षेत्र में यत्र-तत्र बिखरी सम्पदा के संग्रह, संरक्षण, अभिलेखीकरण, प्रदर्शन एवं शोध के साथ ही इस क्षेत्र के गरिमामय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व की जानकारी जन सामान्य को उपलब्ध कराने के उद्देश्य से संस्कृति विभाग, उ0 प्र0 शासन द्वारा सन् 1988 में राजकीय बौद्ध संग्रहालय, गोरखपुर की स्थापना की गई। पूर्व में यह संग्रहालय किराये के भवन में था। वर्तमान में रामगढ़ताल परियोजना गोरखपुर के अन्तर्गत निर्मित संग्रहालय भवन, गोरखपुर रेलवे एवं बस स्टेशन से लगभग 6 किमी0 दक्षिण एवं सर्किट हाउस से लगभग 1 कि0मी0 दक्षिण-पूर्व में स्थित है।

पूर्वी उत्तर प्रदेश बौद्ध धर्म के उद्भव और विकास का हृदय स्थल रहा है। भगवान बुद्ध के जीवन की घटनाओं से सम्बन्धित स्थान लुम्बिनी, देवदह, कोलियों का रामग्राम, कोपिया एवं तथागत की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर इसके महत्वूपर्ण साक्ष्य हैं। जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर महावीर की परिनिर्वाण स्थली पावानगर भी इसी क्षेत्र में विद्यमान है। आमी नदी के तट पर स्थित संत शिरोमणि कबीरदास की निर्वाण स्थली मगहर और नाथ पंथ के गोरखनाथ की तपोभूमि भी यहां के इतिहास के कलेवर को उद्घाटित करता है।

डा. भीमराव अम्बेडकर संग्रहालय एवं पुस्तकालय, रामपुर
(Dr. Bhimrao Ambedkar Museum & Library, Rampur)

डॉ0 भीमराव अम्बेडकर संग्रहालय एवं पुस्तकालय, रामपुर का निर्माण वर्ष 1997 में प्रारम्भ किया गया तथा 30 नवम्बर 1999 में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ । इसके उपरान्त 12 अगस्त, 2000 को उ0 प्र0 शासन के संस्कृति विभाग ने इसे अपने अधिकार में ले लिया और 21 अगस्त 2004 को माननीय मो0 आज़म खाँ, तत्कालीन मंत्री, नगर विकास एवं संसदीय कार्य, उ0 प्र0 सरकार द्वारा इसका औपचारिक लोकार्पण किया गया।

जनपद रामपुर प्रचीन काल से ही ऐतिहासिक महत्व को बनाये हुए है। यह क्षेत्र उत्तर पाँचाल के नाम से विख्यात रहा है। यहाँ से लगभग 100 किमी0 की दूरी पर प्राचीन नगर अहिछत्र भी अवस्थित है जिसका सम्बन्ध महाभारत काल से जोड़ा जाता है । ऐसा कहा जाता है कि पाँचाल राजा द्रुपद ने इसको बसाया था । कालान्तर में रामपुर रोहिला राजाओं के अधीन रहा और इसके उपरान्त नवाबों के अधिकार क्षेत्र में रहा । रामपुर में संगीत घराने भी देश विदेश तक ख्याति प्राप्त रहे हैं । इसी जनपद में ऐतिहासिक दस्तावेजों को सहेजे रजा लाइब्रेरी भी स्थित है।

लोक कला संग्रहालय, लखनऊ
(Lok Art Museum, Lucknow)

लोक कला हमें विरासत एवं परम्पराओं से प्राप्त होती है, जिनका मूल अति प्राचीन है। जन्म से लेकर मृत्यु तक यह हमारे जीवन में रची बसी होती है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती हैं किन्तु सामयिक परिवर्तन के कारण आधुनिकीकरण एवं औद्योगिकीकरण की आंधी में हमारे प्रदेश की लोक परम्परायें शनैः शनैः विलुप्त होती जा रही हैं एवं इनका मूल स्वरूप भी परिवर्तित हो रहा है। इन प्राचीन लोक कलाओं एवं परम्पराओं के मूल स्वरूप को अक्षुण्ण बनाये रखने एवं भविष्य के लिए सुरक्षित रखने के उद्देश्य से संस्कृति विभाग, उ0 प्र0 द्वारा फरवरी, 1989 में लोक कला संग्रहालय की स्थापना कैसरबाग में की गयी थी। वर्तमान में नवनिर्मित लोक कला संग्रहालय भवन, राज्य संग्रहालय परिसर, बनारसीबाग, लखनऊ में स्थापित है।  लोक कलाओं के संकलन, संरक्षण तथा प्रदर्शन की दिशा में कार्यरत् लोक कला संग्रहालय प्रदेश का एक मात्र संग्रहालय है।

संग्रहालय में प्रदेश के विभिन्न अंचलों की उत्कृष्ट एवं दुर्लभ लोक कलाओं से सम्बन्धित लगभग 1800 कलाकृतियों का संग्रह किया गया है, जिसके अन्तर्गत डायोरामा लोक नृत्य, लोक वाद्य, लोक कला आलेखन, आभूषण, पोशाक, टेराकोटा, पारम्परिक मुखौटे, काष्ठ, लौह एवं प्रस्तर के खिलौने बर्तन आदि के उत्कृष्ठ कला प्रदर्श उपलब्ध हैं। संग्रहालय में भूमि एवं भित्ति अलंकरण से सम्बन्धित लोक कला चित्रों का विशाल संग्रह है, जो संरक्षित संकलन के रूप में व्यवस्थित है। उक्त संग्रह के अन्तर्गत धार्मिक अनुष्ठान व तीज त्यौहार विषयक पेन्टिंग, रामलीला से सम्बन्धित मुखौटे, लोकनृत्यों के डायोरामा विभिन्न अंचलों के लोक नृत्यों में प्रयुक्त होने वाले लोकवाद्य, हस्त निर्मित टेराकोटा धातु निर्मित खिलौने तथा लगभग विभिन्न प्रकार के आभूषण और उत्कृष्ट पोशाकों आदि का संग्रह संग्रहालय में विशेष आकर्षण का क्रन्द्र है।

राजकीय बौद्ध संग्रहालय, पिपरहवां (सिद्धार्थनगर)
(State Buddhist Museum, Piparhava (Siddhartha Nagar))

भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित प्रमुख स्थलों में से एक इस स्थल की पहचान प्राचीन कपिलवस्तु के रूप में की जाती है। प्राचीन काल में कपिलवस्तु शाक्यों की राजधानी थी तथा भगवान बुद्ध के पिता शुद्धोधन शाक्य गणराज्य के प्रमुख थे। छठी शताब्दी ईसापूर्व के दस प्रमुख गणराज्यों में इसकी गणना की जाती थी। इस स्थल पर भगवान बुद्ध का बाल्यकाल व्यतीत हुआ था तथा राजकुमार सिद्धार्थ के रूप में 29 वर्ष की अवस्था में सत्य की खोज के लिये उन्होंने यहां से प्रस्थान किया। बौद्ध साहित्य में इस बात का उल्लेख है कि बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात उनके अस्थि अवशेषों को आठ भागों में विभक्त किया गया था, जिसका एक भाग शाक्यों को भी प्राप्त हुआ था। यहां का मुख्य स्तूप मूल रूप से शाक्यों द्वारा भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेषों के अपने भाग पर निर्मित किया गया था। यहां पर सर्वप्रथम पुरातात्विक कार्य प्रारम्भ करने का श्रेय डब्ल्यू0 सी0 पेप्पे को है। उत्खनन के परिणामस्वरूप यहां स्थित स्तूप से एक धातु मंजूषा प्राप्त हुई थी, जिस पर ब्राह्मी में लेख है-सुकिति-भतिनं स भगिनिकनम स-पुत-दलनं, इयं सलिल निधने बुधस भगवते सकियानं। अर्थात इस स्तूप का निर्माण उनके शाक्य भाईयों द्वारा अपनी बहनों, पुत्रों एवं पत्नियों के साथ मिलकर किया गया था। यहां से प्राप्त मृण मृदाओं पर ‘‘देव पुत्र विहारे कपिलवस्तु भिक्खु संघस’’ तथा ‘‘महा कपिलवस्तु भिक्खुसंघस’’ अंकित है। इससे यह प्रमाणित होता है कि यह स्थल प्राचीन कपिलवस्तु का बौद्ध प्रतिष्ठान था।

भगवान बुद्ध की स्मृतियों से जुड़ा होने के कारण यह क्षेत्र पर्यटन की दृष्टि से अन्तर्राष्ट्रीय महत्व का है। इस क्षेत्र में यत्र-तत्र बिखरी कला सम्पदा एवं देश के अन्य भागों से प्राप्त कलाकृतियों का संकलन, संरक्षण, अभिलेखीकरण, शोध एवं प्रदर्शन कर जन सामान्य को इसके गरिमामय इतिहास की जानकारी प्राप्त कराने के बहुउद्देश्य से बौद्ध हेरिटेज सेन्टर, पिपरहवा, सिद्धार्थ नगर के अन्तर्गत बौद्ध संग्रहालय एवं प्रशासनिक भवन कला वीथिका सहित अनेक परियोजनाओं का शिलान्यास वर्ष 1997 में मा0 मुख्यमंत्री जी, उ0 प्र0 के कर कमलों द्वारा किया गया था। शासन द्वारा दिये गये निर्देश के क्रम में संग्रहालय/प्रशासनिक भवन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, भारत सरकार को दिनांक 03 अक्टूबर, 2009 को हस्तांतरित कर दिया गया है।

जनपदीय संग्रहालय, सुल्तानपुर
(Janpadian Museum, Sultanpur)

जनपदीय संग्रहालय, सुल्तानपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 01 किमी0 एवं बस स्टेशन से 500 मीटर दूरी पर सुल्तानपुर, सुपर मार्केट में स्थित है। गूगल मैप के अनुसार यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया के सामने संग्रहालय स्थित है।
संग्रहालय सुलतानपुर जनपद के अनेक महत्वपूर्ण पुरास्थलों जैसे शनिचरा कुंड भांटी, सोमना भार, कालूपाठक का पुरवॉ, अहिरन पलिया, सोहगौली, महमूदपुर आदि स्थलो पर पुरासांस्कृतिक सम्पदा बिखरी दिखायी देती है। यही नहीं इस जनपद के आस-पास के जनपदों में भी धरती के गर्भ से बराबर अतीत की धरोहर निकलती रहती है। इनके विविध आयामों से सम्बन्धित सामग्रियां और बिखरी सांस्कृतिक पुरा सम्पदा को संकलित, सुरिंक्षत, प्रदर्शित, प्रलेखीकृत व प्रकाशन कर उन पर अध्ययन अनुसंधान करने कराने के बहुउद्देश्य से वर्ष 1988-89 में इस संग्रहालय की स्थापना की गई।

वर्तमान में संग्रहालय में दो वीथिकायें जनसामान्य के अवलोकनार्थ खुली हैं। एक वीथिका में प्रस्तर प्रतिमायें, मृण मूर्तिया एवं काष्ठ कलाकृतियॉ प्रदर्शित है। द्वितीय वीथिका रफी अहमद किदवई को समर्पित है। इस वीथिका में उनके जीवन से जुड़ी वस्तुओं को संजोया गया है। आलोच्य अवधि में बड़ी संख्या में लोगों ने संग्रहालय का भ्रमण किया।

पाषाण प्रतिमाएं, मृण्मूर्तियां, ताम्र सिक्के, रजत सिक्के, स्वर्ण सिक्के, चित्र/पाण्डुलिपियां, ताम्र/पाषाण अभिलेख, विशिष्ट सिक्के, रजत/ताम्र पदक, आभूषण, कलात्मक वस्तुएं संग्रहालय में संग्रहीत है।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी का भारत कला विज्ञान
(Kashi Hindu University Varanasi of India Arts Science)

श्री राय कृष्णदास के निजी संग्रहालय से स्थापित भारतीय चित्रकारी, वस्त्र, रत्नाभूषण, मुद्राएँ टेरोकोइ एवं पाण्डुलिपियाँ आदि इसमें संगृहीत हैं।

सारनाथ संग्रहालय
(Sarnath Museum)

इसकी स्थापना सन् 1904 ई० में हुई। इसमें ईसा से तीसरी शताब्दी पूर्व से 12वीं शताब्दी तक की पुरातन वस्तुओं का भण्डार है।

राहुल सांकृत्यायन संस्थान, गोरखपुर
(Rahul Sankrityayan Institute, Gorakhpur)

इसमें मुहरें, मृदा पात्र, सिक्के, मनके, प्रस्तर मूर्तियाँ एवं पाण्डुलिपियों का संग्रह है।

इलाहाबाद संग्रहालय
(Allahabad Museum)

इसकी स्थापना नगरपालिका द्वारा सन् 1931 ई० में की गई। इसमें पुरातत्त्व, कला एवं हस्तशिप की वस्तुएँ संगृहीत हैं।

राजकीय संग्रहालय, झाँसी
(State Museum, Jhansi)

झांसी उत्तर प्रदेश में बुन्देलखण्ड क्षेत्र का मण्डल मुख्यालय है। यह दिल्ली-मद्रास तथा लखनऊ-भोपाल रेलवे लाइन पर स्थित मध्य रेलवे का जंक्शन स्टेशन है। झांसी सड़क मार्ग से भी आगरा, लखनऊ, खजुराहो, सागर आदि से जुड़ा है।
चारों तरफ चार दीवारी के अन्दर स्थित झांसी नगर को ओरछा नरेश वीरसिंह देव ने बसाया था और यहां की पहाड़ी पर सन् 1613 ई0 में एक किले का निर्माण भी कराया था। सन् 1857 ई0 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का महत्वपूर्णं योगदान रहा है। यद्यपि रानी लक्ष्मीबाई के वीरगति को प्राप्त करने के बाद झांसी पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया था, परन्तु उनके अदम्य साहस एवं वीरतापूर्णं योगदान के कारण झांसी भारत में ही नहीं सम्पूर्णं विश्व के इतिहास में अमर हो गयी।

बुन्देलखण्ड में यत्र-तत्र बिखरी पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक सम्पदा को सजाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने सन् 1978 में झांसी में राजकीय संग्रहालय की स्थापना की। इसका शुभारम्भ ग्वालियर रोड स्थित संस्कृत विद्यालय के किराये के भवन से किया गया। वर्तमान में संग्रहालय झांसी दुर्ग के पास अपने नवीन भवन में पूर्णं विकसित रूप में राजकीय संग्रहालय के रूप में स्थित है। पुरातात्विक संग्रह की दृष्टि से बुन्देलखण्ड क्षेत्र के एरच से प्राप्त प्राचीन सिक्के, अभिलिखित ईंट एवं मृण्मूर्तियां तथा सीरौनखुर्द, ललितपुर, महोबा, मैहर इत्यादि स्थानों से प्राप्त मध्यकालीन पाषाण कलाकृतियां प्राप्त हुई हैं। परन्तु सर्वेक्षण, क्रय, पुलिस सहयोग एवं दान से वर्तमान में धातुमूर्तियां, लघुचित्र, पाण्डुलिपि, सिक्के, अस्त्र-शस्त्र, मृण्मूर्तियां, प्रागैतिहासिक मृद्भाण्ड एवं हथियार, लोक कला से सम्बन्धित सामग्री, लोक वाद्य यन्त्र, अमर शहीदों के तैल चित्र, 1857 के दुर्लभ फोटो चित्र, काष्ठ कला के नमूने, डाक टिकट एवं दुर्लभ साहित्य आदि संग्रहीत है। जो अध्ययन एवं शोध की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं।

वर्तमान में संग्रहालय भवन की दस वीथिकाओं में प्रदर्शन की व्यवस्था की गयी है। भूतल पर स्थित प्रथम वीथिका महारानी लक्ष्मीबाई एवं 1857 के युद्ध को समर्पित है। इस वीथिका को चार भागों में विभक्त किया गया है। प्रथम भाग में महारानी लक्ष्मीबाई के जीवन एवं युद्ध की झलकियों को अट्ठारह डायोरामा के द्वारा प्रस्तुत किया गया है। इन डायोरामा में ध्वनि एवं प्रकाश की व्यवस्था के द्वारा भी महारानी की बाल्यावस्था, किशोरावस्था एवं उनके अन्तिम युद्ध को दर्शकों को दिखाने की व्यवस्था भी की गयी है।

बरेली का पांचाल इतिहास परिषद् संग्रहालय
(Panchal History Council Museum of Bareilly)

यहाँ ऐतिहासिक महत्त्व की वस्तुओं का संग्रह है।

बुन्देलखण्ड छत्रसाल संग्रहालय (बाँदा)
(Bundelkhand Chhatrasal Museum (Banda))

इसमें बुन्देलखण्ड क्षेत्र की दुर्लभ वस्तुएँ संगृहीत हैं।

मोतीलाल नेहरू बाल संग्रहालय (लखनऊ)
(Motilal Nehru Children’s Museum (Lucknow))

यह 1957 ई० में मोतीलाल नेहरू मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा खोला गया। यहाँ बालकों के विकास के लिए ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति सम्बन्धी कक्ष हैं।

राजकीय बौद्ध संग्रहालय, कुशीनगर
(State Buddhist Museum, Kushinagar)

भारत के बौद्ध स्थलों में कुशीनगर (कुशीनारा) का प्रमुख स्थान है। बौद्ध धर्म प्रवर्तक भगवान बुद्ध ने लगभग 80 वर्ष की अवस्था में अपना भ्रमण पूर्ण जीवन व्यतीत करने के पश्चात यहां के शालवन में महापरिनिर्वाण प्राप्त (शरीर त्याग) किया था। कुशीनगर जैसे पवित्र स्थल पर असंख्य पर्यटक एवं बौद्ध धर्मानुयायी प्रति वर्ष भगवान बुद्ध को श्रद्धाजंलि अर्पित करने आते हैं। कुशीनगर की धार्मिक महत्ता एवं समृद्ध ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक धरोहर ने कई देशों एवं विभागों को इस क्षेत्र में अपने धार्मिक एवं सांस्कृतिक संगठन स्थापित करने की प्रेरणा दी। परिणामस्वरूप यह स्थल सम्पूर्ण विश्व में आर्कषण का केन्द्र बन गया। कालान्तर में कुशीनगर की पुरातात्विक सम्पदा सहित भारतीय संस्कृति को संकलित तथा सुरक्षित करने के उद्ेदश्य से संग्रहालय के निर्माण की आवश्यकता प्रतीत हुई। एतदर्थ पूर्वी क्षेत्र में यत्र-तत्र बिखरी कला सम्पदा के संग्रह, संरक्षण, अभिलेखीकरण, प्रदर्शन एवं शोध के साथ ही इस क्षेत्र के गरिमामय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व की जानकारी जन सामान्य को उपलब्ध कराने के उद्देश्य से संस्कृति विभाग, उ0 प्र0 शासन द्वारा सन् 1993-94 मे राजकीय बौद्ध संग्रहालय की स्थापना की गयी।

संग्रहालय द्वारा संग्रहीत कलाकृतियां जहां एक ओर हमारे समृद्ध कला एवं संस्कृति का आभास कराती हैं, वहीं दूसरी ओर वर्तमान पीढ़ी को उनके गौरवमयी विरासत से परिचित भी कराती हैं।

संग्रहालय का प्रमुख उद्देश्य पूर्वी क्षेत्र एवं देश के अन्य भागों से प्राप्त पुरासम्पदा का संकलन, अभिलेखीकरण, संरक्षण, प्रदर्शन, प्रकाशन तथा देशी-विदेशी पर्यटकों को आकृष्ट कर उन्हें भारतीय संस्कृति के विविध पहलुओं की जानकारी उपलब्ध कराना है। भारतीय इतिहास, कला, संस्कृति और पुरातत्व की जानकारी जन-सामान्य को उपलब्ध कराने के बहुउद्देश्य से संग्रहालय द्वारा शैक्षिक कार्यक्रमों के अन्तर्गत प्रतिष्ठित विद्वानों के व्याख्यान एवं संगोष्ठी के अतिरिक्त विविध प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है।

रामकथा संग्रहालय, अयोध्या (फैजाबाद)
(Ramakatha Museum, Ayodhya (Faizabad))

रामकथा विषयक चित्रों, सचित्र पांडुलिपियों, मूर्तियों, रामलीला व अन्य प्रदर्श कलाओं से सम्बन्धित सामग्री, अयोध्या परिक्षेत्र के पुरावशेषों, दुर्लभ सांस्कृतिक सम्पदा एवं प्रदर्श कलाओं, अनुकृतियों एवं छायाचित्रों के संकलन व उनकी परिरक्षा करने के उद्देश्य से इस संग्रहालय की स्थापना 1988 में तुलसी स्मारक भवन, अयोध्या में की गई।

प्रान्तीय हाइजीन इंस्टीट्यूट (लखनऊ)
(Provincial Hygiene Institute (Lucknow))

इसकी स्थापना 1928 ई० में हुई। इसमें भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, निरोधक रोग, शरीर विज्ञान, जलापूर्ति, सीवर, नालियाँ तथा पोषण से सम्बन्धित अनेक प्रदर्शनीय वस्तुएँ हैं।

  • इसके अलावा राजकीय पुरातत्त्व संग्रहालय, कन्नौज, राजकीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संग्रहालय, मेरठ, जनपदीय संग्रहालय सुल्तानपुर, राजकीय बौद्ध संग्रहालय, रामगढ़ताल, गोरखपुर, अम्बेडकर संग्रहालय एवं पुस्तकालय, रामपुर अन्य संग्रहालय हैं।
  • इसके अलावा, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों द्वारा संचालित अन्य संग्रहालय भी है। इनमें एनाटॉमी, पैथोलॉजी, फार्माकोलॉजी, फोरेन्सिक साइन्स, मैडिसिन, पब्लिक हैल्थ, जूलॉजी, जियोलॉजी, एन्थ्रोपोलॉजी, बायोलॉजी, बॉटनी, कॉमर्स, इण्डियन पेंटिंग्स, आर्केलॉजी तथा अन्य विविध विषयों की सामग्री संगृहीत है, जिनसे शोध कार्यों के प्रयासों में काफी सहायता मिलती है, क्योंकि इन संग्रहालयों द्वारा जनता के लिए प्रदर्शनियों और विचार गोष्ठियों का आयोजन किया जाता है।

Note –

  • उत्तर प्रदेश का सबसे प्राचीन राजकीय संग्रहालय लखनऊ में है।
  • उत्तर प्रदेश राज्य में लगभग 70 संग्रहालय हैं।
  • सारनाथ संग्रहालय की स्थापना सन् 1904 ई० में हुई।
  • इलाहाबाद संग्रहालय की स्थापना नगरपालिका द्वारा सन् 1931 ई० में की गई।
  • बुन्देलखण्ड छत्रसाल संग्रहालय (बाँदा) में बुन्देलखण्ड क्षेत्र की दुर्लभ वस्तुएँ संगृहीत हैं।
  • मोतीलाल नेहरू बाल संग्रहालय (लखनऊ) 1957 ई० में मोतीलाल नेहरू मैमोरियल ट्रस्ट द्वारा खोला गया।
  • प्रान्तीय हाइजीन इंस्टीट्यूट (लखनऊ) की स्थापना 1928 ई० में हुई।

Read Also :

Read Related Posts

 

Leave a Reply

Your email address will not be published.

error: Content is protected !!