निर्देश (प्रश्न सं. 81 से 85) : दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
गद्यांश – 1
भाषा ही वह माध्यम है द्वारा मनुष्य अपने भावों और विचारों को अभिव्यक्त करता है और समाज समूह या व्यक्ति तक संप्रेषित करता है। वस्तुतः संप्रेषण का प्रमुख माध्यम है। मनुष्य अपने समाज और परिवेश से भाषा का अर्जन करता है, परंतु भाषा भी समाज के विकास के साथ विकसित और परिवर्तित होती है। भाषा की गतिशीलता का संबंध हमारे सामाजिक व्यवहार से जुड़ा होता है इसलिए एक और भाषा का एक रूप स्थिर रहता है तो दूसरा रूप परिवर्तित होता रहता है। भाषा का जो परिवर्तित नहीं होता उसके शब्दों को व्याकरण की भाषा में अविकारी कहा जाता है। शब्दों में कोई विकार नहीं होता इसलिए वे अविकारी शब्द हैं। जैसे लिंग, वचन, कारक आदि के फल स्वरुप जिन शब्दों में परिवर्तन होता है उन्हें विकारी शब्द कहा जाता है। क्रिया-विशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक और विस्मयादिबोधक अविकारी शब्द हैं। इन सभी का महत्व है।
81. संप्रेषण का प्रमुख माध्यम है।
(A) भाव
(B) भाषा
(C) विचार
(D) समाज
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82. मनुष्य भाषा का अर्जन किससे करता है ?
(A) अपने समाज एवं परिवेश से
(D) पुस्तकों से
(C) अपनी अनुभूतियों से
(D) अपने विद्यालय से
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83. भाषा की गतिशीलता का सम्बन्ध किससे है।
(A) औद्योगिक विकास से
(B) भाषा के व्याकरण से
(C) सामाजिक व्यवहार से
(D) जलवायु परिवर्तन से
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84. जिन शब्दों के रूप परिवर्तित नहीं होते है, उनका जाता है
(A) तत्सम
(B) देशज
(C) विकारी
(D) अविकारी
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85. संज्ञा और सर्वनाम शब्द है
(A) विकारी
(B) अधिकारी
(C) तद्भव
(D) संकर
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निर्देश (86 मे 90) : दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
गद्यांश – 2
स्वाध्याय से कभी मुंह ना मोड़ो। वह तुम्हें प्रमाद से बचाएगा। जिस आचार्य ने तुम्हारी इतने दिनों तक रक्षा की उसके प्रति तुम्हारा जो कर्तव्य है, उसे अपने हृदय से पूछो। माता-पिता, आचार्य और अतिथि, ये तुम्हारे देवता हैं; इनकी सदा शुश्रूषा करना धर्म समझो। पुराने ऋषि बड़े उदार और निराभिमान थे। वे कभी पूर्ण या दोष रहित होने का दावा नहीं करते थे। उन्हीं का प्रतिनिधि होकर मैं तुमसे कहता हूं कि हमारे अच्छे गुणों का अनुकरण करो और दोषों को छोड़ दो, इस संसार की अंधियारी में किसी को अपना ज्योति स्तम्भ बनाओ। पड़ा पड़ा या कुछ अंश तक पथ प्रदर्शक होता है पर सच्चे पथ प्रदर्शक महापुरुष होते हैं जो अपना नाम संसार में छोड़ जाते हैं वे जीवन समुद्र में ज्योति स्तंभ का काम देते हैं।
86. स्वाध्याय किससे बचाता है?
(A) प्रमाद से
(B) शत्रुओं से
(C) निराशा से
(D) परिश्रम से
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87. माता-पिता, आचार्य और अतिथि किसके समान है ?
(A) ज्योति-स्तम्भ
(B) देवता
(C) ऋषि-मुनि
(D) महापुरुष
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88. किसका अनुकरण करो ?
(A) अनुशासन का
(B) धर्म की मर्यादा का
(C) अच्छे गुणों का
(D) अपनी आत्मा का
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89. सच्चे पथ-प्रदर्शक कौन होते है?
(A) माता-पिता
(B) आचार्य
(C) मित्र
(D) महापुरुष
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90. पुराने ऋषि कैसे थे?
(A) उदार और निराभिमान
(B) पूर्ण और दोष रहित
(C) महान और विद्वान
(D) संसार के ज्ञाता
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निर्देश (91 मे 95) : दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
गद्यांश – 3
देश प्रेम, प्रेम का वह अंश है जिसका आलंबन है सारा देश – उसमें प्रत्येक कण अर्थात मनुष्य, पशु, पक्षी, नदी, नाले, वन, पर्वत इत्यादि। यह एक साहचर्यगत प्रेम है। अर्थात जिसके सानिध्य का हमें अभ्यास पड़ जाता है उनके प्रति लोभ या राग हो जाता है कोई भी व्यक्ति सच्चा देश प्रेमी कहला सकने की तभी सामर्थ्य रखता है जब वह देश के प्रत्येक मनुष्य पशु पक्षी लता, गुल्म, पेड़, पत्ते, वन, पर्वत, नदी, निर्झर आदि सभी को अपना की भावना से देखेगा। इन सब की सुधि करके विदेश में भी आंसू बहाएगा। जो व्यक्ति राष्ट्र के मूलभूत जीवन को भी नहीं जानता और उसके बाद भी देश प्रेमी होने का दावा करे तो यह उसकी भुल है। जब तुम किसी के सुख-दुख के भागीदार ही नहीं बने तो उसे सुखी देखने के स्वप्न तुम कैसे कल्पित करोगे? उससे अलग रहकर अपनी बोली में तुम उसके हित की बात तो करो पर उसमें प्रेम के माधुर्य जैसे भाव नहीं होंगे। प्रेम को तराजू में तोला नहीं जा सकता। यह भाव तो मनुष्य के अंतः करण से जुड़े हुए हैं। परिचय से देश-प्रेम की उत्पत्ति होती है।
91. देश-प्रेम का आलंबन है
(A) सारा देश
(B) देश के लोग
(C) पशु-पक्षी
(D) वन पर्वत
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92. कोई भी व्यक्ति सच्चा देश – प्रेमी कब कहला सकता है।
(A) जब वह मनुष्य को प्यार करेगा
(B) जब यह पशु – पक्षी से प्यार करेगा
(C) जब वह देश की प्रत्येक वस्तु के साथ अपनत्व का भाव रखेगा
(D) जब वह वनों और पर्वतों को अपना समझेगा
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93. जिसके सानिध्य का हमें अभ्यास पड़ जाता है तो प्रति क्या होता है?
(A) लोभ या राग
(B) राग या द्वेष
(C) सुख वा दुःख
(D) मोह या माया
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94. किसको तराजू में नहीं तोला जा सकता?
(A) देश को
(B) प्रेम को
(C) बन-पर्वतों को
(D) नदी-निर्झरों को
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95. देश-प्रेम की उत्पत्ति किससे होती है ?
(A) माधुर्य से
(B) स्वरूप से
(C) परिचय से
(D) भक्ति से
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निर्देश (96 मे 100) : दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
गद्यांश – 4
व्यक्ति के जीवन में संतोष का बहुत महत्व है। संतोषी व्यक्ति सुखी रहता है। असंतोष सब व्याधियों की जड़ है। महात्मा कबीर ने कहा है कि धन दौलत से कभी संतोष नहीं मिलता। संतोष रूपी धन मिलने का समस्त वैभव धूल के समान प्रतीत होता है। व्यक्ति जितना अधिक धन पाता जाता है उतना ही असंतोष उपजता जाता है। यह असंतोष मानसिक तनाव उत्पन्न करता है, जो अनेक रोगों की जड़ है। धन व्यक्ति को उलझनों में फंसाता जाता है। साधु को संतोषी बताया गया है क्योंकि भोजन मातृ की प्राप्ति से उसे संतोष मिल जाता है। हमें भी साधु जैसा होना चाहिए हमें अपनी इच्छाओं को सीमित रखना चाहिए। जब इच्छाएं हम पर हावी हो जाती हैं तो हमारा मन सदा असंतुष्ट रहता है। सांसारिक वस्तुएं हमें कभी संतोष नहीं दे सकती, संतोष का संबंध मन से है। संतोष सबसे बड़ा धन है। इस के सम्मुख सोना-चांदी, रुपया-पैसा व्यर्थ है।
96. सब व्याधियों की जड़ क्या है?
(A) धन-दौलत
(B) सोना-चाँदी
(C) असन्तोष
(D) सन्तोष
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97. संतोष रुपी धन मिलने से क्या होता है ।
(A) वैभव धूल के समान लगने लगता है
(B) मन में संतुष्टि आ जाती है
(C) धन की लालसा बढ़ जाती है
(D) वैभव बढ़ जाता है
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98. जब इच्छाएं हम पर हावी हो जाती है, तब क्या होता है ?
(A) मन में खुशी होती है
(B) मन सदा असंतुष्ट रहता है
(C) मन मन संसार में रम जाता है
(D) मन को संतोष मिलता है
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99. संतोष का सम्बन्ध किससे है?
(A) मन से
(B) धन से
(C) वस्तुओं में
(D) वैभव से
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100, ‘धन-दौलत से कभी संतोष नही मिलता’ यह कथन किसका है ?
(A) महात्मा बुद्ध
(B) महात्मा गाँधी
(C) महात्मा कबीर
(D) महात्मा फुले
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