Rashtrakuta Dynasty

मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश – (राष्ट्रकूट राजवंश)

मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश

राष्ट्रकूट राजवंश (Rashtrakuta Dynasty)

राष्ट्रकूट (Rashtrakuta) शब्द का अर्थ है – राष्ट्र नामक क्षेत्रीय इकाई के अधिकार वाला अधिकारी। राष्ट्रकूट (Rashtrakuta) मूलतः महाराष्ट्र के लात्रालुर, आधुनिक लातूर के थे। वे कन्नड़ मूल के थे तथा कन्नड़ उनकी मातृभाषा थी।

दांतिदुर्ग (Dantidurg)

  • दांतिदुर्ग ने अपना जीवन चालुक्यों के सामंत के रूप में प्रारम्भ किया था। उसके एक दीर्घकालीन राज्य की नींव रखी। 
  • दांतिदुर्ग के विजय अभियानों के बारे में हमें दो स्रोतों से पता चलता है – प्रथम, समागद पत्र तथा द्वितीय, एलोरा का दशावतार गुफा अभिलेख। 

कृष्णा – I (Krishna – I)

  • दांतिदुर्ग के कोई संतान नहीं थी। उसके बाद गद्दी पर उसके चाचा कृष्णा-I आए। 
  • महाराष्ट्र एवं कर्नाटक में अपनी स्थिति मजबूत करने के बाद कृष्णा-I दक्षिण की तरफ बढ़े। 
  • कृष्णा-I ने गंगावड़ी (आधुनिक मैसूर) पर आक्रमण किया जो उस समय गंगा राजा श्रीपुरुष के अधीन था। 
  • श्रीपुरुष को अपने अधीनस्थ के रूप में शासन की अनुमति देकर वे वापस लौट गए। 
  • एक महान विजेता के साथ-साथ कृष्णा-I एक महान निर्माता भी था। उन्होंने एलोरा में एक भव्य विशाल एकल शिलाखंडीय पत्थरों को काटकर बनाए गए मंदिर का निर्माण करवाया जिसे अब कैलाश के नाम से जाना जाता है।

गोविंद II (Govinda – II) 

  • कृष्णा-I के बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र गोविंद-II गद्दी पर बैठा। 
  • उसने वस्तुतः सारा प्रशासन अपने छोटे भाई ध्रुव के भरोसे छोड़ दिया। ध्रुव महत्वाकांक्षी था, उसने स्वयं गद्दी पर कब्जा कर लिया।

ध्रुव (Dhruv)

  • गद्दी पर आने के तुरंत बाद ध्रुव ने उन राजाओं को दंडित करना प्रारंभ किया जिन्होंने उसके भाई का साथ दिया था। 
  • ध्रुव ने उत्तर भारत की राजनीति पर नियंत्रण स्थापित करने का साहसिक प्रयास किया जिसे सातवाहनों के बाद कोई भी दक्षिण भारतीय शक्ति नहीं कर पाई थी। 
  • जब वत्सराज दोआब में धर्मपाल के साथ युद्धरत था, ध्रुव ने नर्मदा पार कर मालवा पर बिना ज्यादा प्रतिरोध का सामना किए, अधिकार कर लिया। 
  • उसके बाद वह कन्नौज की तरफ बढ़ा तथा वत्सराज को इतनी बुरी तरह पराजित किया कि उसे राजस्थान के रेगिस्तान में शरण लेनी पड़ी। 
  • उत्तर की ओर बढ़ते हुए ध्रुव ने गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र में धर्मपाल को पराजित किया। 
  • उनके चार पुत्र थे कारक, स्तंभ, गोविंद तथा इंद्र। कारक की मृत्यु पिता से पहले ही हो गई थी। बाकी बचे तीनों बेटों में से राजा ने सबसे योग्य गोविंद को अपना उत्तराधिकारी चुना तथा युवराज बना दिया।

गोविंद III (Govinda – III)

  • यद्यपि गोविंद शांति के साथ पद पर आया परंतु शीघ्र ही उसे अपने बड़े भाई स्तंभ के विरोध का सामना करना पड़ा जिसके गद्दी के दावे को निरस्त कर उसे राजा बनाया गया था। 
  • स्तंभ को पराजित करने तथा दक्षिण में अपनी स्थिति मजबूत करने के बाद गोविंद ने भी अपना ध्यान उत्तर भारत की राजनीतिक स्थिति की तरफ मोड़ा। 
  • गोविंद ने उत्तर भारत की तरफ रुख किया तथा नागभट्ट II को पराजित किया। 
  • शक्तिशाली गुर्जर प्रतिहार तथा पाल राजाओं के अलावा उत्तर भारत के दूसरे राजाओं को भी गोविंद III ने पराजित किया।

अमोघवर्ष – I (Amoghvarsh – I)

  • गोविंद III के बाद गद्दी पर उसका पुत्र सार्व आया जिसे अमोघवर्ष के नाम से जाना जाता है। 
  • उसे अपने 64 वर्ष के लम्बे शासन काल में शांति नसीब नहीं हुई। 
  • मालवा तथा गंगावड़ी उसके राज्य से छीन लिए गए।
  • युद्ध के स्थान पर उन्हें शांति, धर्म तथा साहित्य में ज्यादा रुचि थी। 
  • अपने जीवन के पूर्वार्द्ध में उनका झुकाव जैन धर्म की ओर हो गया तथा आदिपुराण के लेखक जिनसेन उनके मुख्य शिक्षक हुए। 
  • अमोघवर्ष खुद भी एक लेखक थे तथा उन्होंने साहित्यकारों को काफी प्रोत्साहन दिया। कन्नड़ भाषा में कविता पर पहली पुस्तक कविराजमार्ग के लेखक वे खुद थे। 
  • उन्होंने भवन निर्माण के क्षेत्र में भी काफी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने मान्यखेत नगर का निर्माण करवाया तथा वहां एक वैभवशाली महल भी बनवाया। 
  • उनके बाद उनका पुत्र कृष्ण-II गद्दी पर आया।

कृष्णा – II (Krishna – II)

  • वह न तो एक अच्छा शासक था, न कुशल सेना अध्यक्ष। 
  • उनकी एकमात्र उपलब्धि गुजरात शाखा की समाप्ति थी। 
  • अपने पिता अमोघवर्ष की तरह कृष्ण भी जैन था।

इंद्र-III (Indra – III)

  • कृष्णा-II के बाद उनका पोता इन्द्र III आया। 
  • अपने महान पूर्वजों का गौरव बढ़ाते हुए इन्द्र ने गुर्जर प्रतिहार राजा महिपाल के साथ युद्ध छेड़ दिया। उसने कन्नौज पर अधिकार कर लिया। 

अमोघवर्ष – II (Amoghvarsh – II)

  • इंद्र III के बाद उनके पुत्र अमोघवर्ष II आया परंतु गद्दी पर आने के एक वर्ष के अंदर उसकी मृत्यु हो गई तथा उसकी जगह उसके छोटे भाई गोविंद ने ली।

गोविंद – IV (Govinda – IV)

  • गोविंद एक क्रूर शासक था जिसके विरुद्ध व्यापक असंतोष था। 
  • उसके एक सरदार ने गोविंद IV के शासन को समाप्त करने में व्यापक सहयोग दिया तथा सत्ता अमोघवर्ष III के पास स्थानांतरित हो गई।

अमोघवर्ष III (Amoghvarsh – III

  • प्रशासन के बदले धर्म में इनकी ज्यादा रुचि थी। शासन का कार्य युवराज कृष्ण III के हाथों में था।

कृष्ण III (Krishna – III)

  • गद्दी पर आने के बाद कृष्ण ने कुछ वर्ष प्रशासन को सुधारने में बिताया। 
  • कृष्ण ने चोल राज्य पर अचानक हमला कर कांची तथा तंजौर पर अधिकार कर लिया। 
  • चोलों को उबरने में कुछ वर्ष लग गए तथा 949 ई०पू० में उत्तरी आरकोट में ताक्कोलम का निर्णायक युद्ध लड़ा गया। 
  • कृष्ण ने दक्षिण की ओर बढ़ते हुए केरल तथा पांड्य शासकों को भी पराजित किया तथा कुछ समय तक रामेश्वरम् पर उसका अधिकार रहा। 
  • उनसे जीते हुए प्रदेश में अनेक मंदिरों का निर्माण करवा जिसमें रामेश्वरम के कृष्णवेश्वर तथा गंदमातंड्य मंदिर प्रमुख हैं। 
  • अपने शासन के अंतिम दिनों में कृष्ण ने मालवा के परमार शासक हर्ष सियाक पर आक्रमण किया तथा उज्जैन पर अधिकर कर लिया।
  • कृष्ण की मृत्यु के कुछ वर्षों में ही तैलाप इतना शक्तिशाली हो गया कि उसने राष्ट्रकूटों को उखाड़ फेंका तथा कल्याणी के पश्चिमी चालुक्य वंश की स्थापना की। 

खोट्टिगा (Khottiga)

  • कृष्ण III के बाद उसका भाई खोट्टिगा आया। 
  • सियाक ने राष्ट्रकूट राजधानी मालखेद पर आक्रमण किया तथा खोट्टिगा इस अपमान के साथ ज्यादा दिनों तक जिंदा नहीं रह पाया। 
  • उसके बाद उसका भतीजा करक II आया।

करक II (Karaka – II)

  • जब करक गद्दी पर आया उस समय तक राज्य की प्रतिष्ठा को काफी नुकसान हो चुका था। 
  • नए राजा के कुशासन के कारण स्थिति और भी खराब हो गई। 
  • चालक्य वंश का तेल II (तैलाप) ने करक को गद्दी पर आने के 18 महीनों के अंदर उसका दक्षिण का राज्य छीन लिया। 

 

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