मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश
पाल वंश (Pal Dynasty)
गोपाल (Gopal)
- सम्भवतः बंगाल के मुख्य लोगों ने गोपाल को समूचे राज्य का शासक चुना।
- गोपाल ने पाल वंश (Pal Dynasty) की स्थापना की, जिसने बंगाल में लगभग चार शताब्दी तक शासन किया।
- उसका जन्म सम्भवतः पुंडरवर्धन (बोगरा जिला) में हुआ था।
- गोपाल की वास्तविक शासन सीमा को तय करना कठिन है लेकिन सम्भवतः उसने सम्पूर्ण बंगाल पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था।
- गोपाल बौद्ध धर्म का प्रबल अनुयायी था और ओदंतपुरी (आधुनिक बिहार शरीफ) का बौद्ध बिहार सम्भवतः उसी ने बनवाया था।
धर्मपाल (Dharmpal)
- गोपाल का उत्तराधिकारी उसका पुत्र धर्मपाल था जिसने पाल राज्य को महानता प्रदान की।
- प्रतिहार शासक वत्सराज ने धर्मपाल को एक युद्ध में हरा दिया, जो गंगा के दोआब क्षेत्र में कहीं लड़ा गया था।
- धर्मपाल के अधीन पाल साम्राज्य काफी विस्तृत था। बिहार और बंगाल सीधे उसके शासन के अधीन आते थे।
- कन्नौज का राज्य धर्मपाल पर आश्रित था तथा वहां के शासक को धर्मपाल ने नामजद किया था।
- कन्नौज से आगे पंजाब, राजपूताना, मालवा तथा बेरार के कई छोटे-छोटे राज्यों ने भी धर्मपाल की अधीनता स्वीकार की।
- धर्मपाल के विजय अभियान को उसके प्रतिहार प्रतिद्वन्द्वी नागभट्ट द्वितीय ने चुनौती दी तथा कन्नौज से उसके आश्रित चक्रयुद्ध को खदेड़ दिया।
- लगभग 32 वर्षों के शासन काल के बाद धर्मपाल की मृत्यु हो गई तथा उसके विशाल राज्य का स्वामी उसका बेटा देवपाल बना।
- धर्मपाल बौद्ध था तथा उसने भागलपुर के निकट विक्रमशील के प्रसिद्ध महाविहार का निर्माण कराया।
- सोमपुर (पहाड़पुर) के विहार के निर्माण का श्रेय भी उसी को दिया जाता है।
- तारानाथ के अनुसार धर्मपाल ने 50 धार्मिक संस्थानों की स्थापना की तथा वह महान बौद्ध लेखक हरिभद्र का संरक्षक भी था।
देवपाल (Devpal)
- धर्मपाल का उत्तराधिकारी देवपाल बना जिसे सर्वाधिक शक्तिशाली पाल शासक माना जाता है।
- शिलालेखों से प्राप्त जानकारी के अनसार उसे हिमालय से विंध्य तक तथा पूर्वी से पश्चिमी समुद्र तक के क्षेत्रों को जीतने का श्रेय दिया जाता है।
- कहा जाता है कि उसने गुर्जरों तथा हूणों को पराजित किया और उत्कल तथा कामरूप पर अधिकार कर लिया।
- अपने पिता की तरह देवपाल भी बौद्ध था तथा इस रूप में उसकी ख्याति भारत के बाहर कई बौद्ध देशों में फैली।
- जावा के शैलेन्द्र शासक बल पुत्र देव ने देवपाल के पास अपना राजदूत भेजकर उससे नालंदा के एक बौद्ध विहार को पांच गांव दान में देने का आग्रह किया। देवपाल ने आग्रह स्वीकार कर लिया।
- बौद्ध कवि वज्रदत्त देवपाल के दरबार में रहता था जिसने लोकेश्वर शतक की रचना की।
- एक अरब व्यापारी सुलेमान, जो भारत आया था और जिसके अपनी यात्रा का विवरण 85 ई० में लिखा, पाल राज का नाम रूमी बताता है।
परवर्ती पाल (Parvarti Pal)
- देवपाल की मृत्यु के साथ ही पाल साम्राज्य का गौरव समाप्त हो गया तथा वह फिर से प्राप्त नहीं किया जा सका।
- उसके उत्तराधिकारियों के काल में राज्य का विघटन धीरे-धीर होता रहा।
- देवपाल का उत्तराधिकारी विग्रहपाल था।
- तीन या चार साल के छोटे शासन काल के बाद विग्रहपाल ने गद्दी त्याग दी।
विग्रहपाल के पुत्र और उत्तराधिकारी नारायण पाल का शासन काल बड़ा था। राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष ने पाल शासक को पराजित किया। नारायणपाल को न सिर्फ मगध से हाथ धोना पड़ा अपितु पाल राज्य का मुख्य भाग उत्तरी बंगाल भी उसके हाथ से निकल गया। यद्यपि अपने शासन के अंतिम चरणों में उसके प्रतिहारों से उत्तरी बंगाल और दक्षिणी बिहार को छीन लिया क्योंकि प्रतिहार राष्ट्रकूटों के आक्रमण के कारण कमजोर हो गए थे।
नारायणपाल का उत्तराधिकारी उसका पुत्र राज्यपाल बना तथा राज्यपाल का उत्तराधिकारी उसका पुत्र गोपाल द्वितीय था। इन दो शासकों का शासन पाल शक्ति के लिए अनर्थकारी सिद्ध हुआ। चंदेल तथा कालचुरी आक्रमणों के कारण पाल साम्राज्य चरमरा गया।
पालों की गिरती हुई साख को कुछ हद तक महिपाल प्रथम ने 98 ई०पू० में अपने राज्यारोहण के बाद संभाला। महिपाल के शासन काल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना बंगाल पर राजेन्द्र चोल का आक्रमण है। राजेन्द्र चोल के उत्तरी अभियान का विवरण उसके तिरुमलाई शिलालेख में मिलता है। यद्यपि चोल आक्रमण द्वारा बंगाल में उसकी संप्रभुता स्थापित नहीं हो सकी। उत्तरी और पूर्वी बंगाल के अलावा महिपाल बर्दवान प्रभाग के उत्तरी भाग को भी वापस पाल राज्य में मिलाने में सफल रहा। महिपाल की सफलता उत्तरी तथा दक्षिणी बिहार में ज्यादा प्रभावशाली रही। वह बंगाल के एक बड़े भाग पर दोबारा अपना अधिकार जमाने में सफल रहा। पाल वंश का अंतिम शासक मदनपाल था।
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