कीर्तिशाह (1892 – 1913 ई0) (Kirtishah)
- अपने पिता की मृत्यु के अवसर पर कीर्तिशाह अल्पायु थे। अतः उनके व्यस्क होने तक रानी गुलेरी के संरक्षण में मंत्रियों की एक समिति का गठन शासन चलाने के लिए किया गया।
- कीर्तिशाह ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा बरेली में एवं उसके उपरान्त मेयो कॉलेज जयपुर से ग्रहण की।
- 1892 ई0 में वे पूर्ण अधिकार प्राप्त शासक के रूप में गद्दी पर आसीन हुए।
- कीर्तिशाह सुशिक्षित एवं विद्धान शासक थे।
- उनकी योग्यता से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘कॅम्पेनियन ऑफ इण्डिया’ एवं ‘नॉइट कमाण्डर’ जैसी उपधियों से विभूषित किया।
- वर्ष 1900 ई0 में इंग्लैण्ड की यात्रा पर गए जहाँ उन्हें ग्यारह तोपों की सलामी दी गई।
- मेयो कॉलेज में उन्हें कुल तीन स्वर्ण पदक एवं ग्यारह रजत पदक मिले। अतः आधुनिक शिक्षा की दिशा में अपने पिता की पहल को उन्होंने मजबूती से आगे बढ़ाया।
- टिहरी शहर में प्रताप हाईस्कूल एवं हीवेट संस्कृत पाठशाला की स्थापना की।
- इसके अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक विद्यालय खुलवाए।
- उन्होंने राजकीय विद्यालय, श्रीनगर गढवाल के छात्रावास के निर्माण के लिए 1300 रूपये का दान दिया था।
- नगरपालिकाओं की स्थापना, जंगलात एवं कचहरी की कार्य प्रणाली में संशोधन इत्यादि का श्रेय कीर्तिशाह को जाता है।
- उनके प्रयासों से ही उत्तरकाशी में कोढ़ के रोगियों की चिकित्सार्थ ‘कोढी खाना’, रियासत के कृषकों की सहायता के लिए कृषि बैंक एवं एक आधुनिक छापाखाने की नींव भी पड़ी।
- वे स्वयं हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, फ्रेंच एवं अंग्रेजी भाषाओं के विद्वान थे।
- उन्होंने टिहरी शहर में एक आधुनिक वेधशाला का निर्माण कराया।
- इस वेधशाला के लिए बाहर कि मुल्कों से यंत्र खरीदे गए।
- तारामण्डल और सौर मण्डल का अध्ययन करने के लिए इस वेधशाला में बड़ी-बड़ी दूरबीनें भी लगवाई।
- कीर्तिशाह स्वामी रामतीर्थ के विचारों से प्रभावित थे।
- अपने द्वारा नए शहर की स्थापना की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए कीर्तिशाह ने अलकनन्दा नदी के दाएं तट पर ‘कीर्तिनगर’ की स्थापना की और इसे ही अपनी राजधानी बनाया।
- उनकी विलक्षण प्रतिभा एवं कार्यों से प्रभावित होकर 1892 के वायसराय दरबार में स्वयं वायसराय लार्ड लैन्सडाउन ने कहा कि भारतीय राज्यों के सभी नरेशों को कीर्तिशाह को अपना आदर्श बनाना चाहिए एवं उनके कृत्यों का अनकरण करना चाहिए।