कंकोड़ाखाल आन्दोलन (Kankodakhal Movement) | TheExamPillar
Kankodakhal Movement

कंकोड़ाखाल आन्दोलन (Kankodakhal Movement)

कंकोड़ाखाल आन्दोलन

चमोली तहसील में आन्दोलन की बागडोर अनुसूया प्रसाद बहुगुणा को सौपी गयी थी। 1921 में नवयुवकों का एक सम्मेलन श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित किया गया। दशजूला पटटी के कंकोड़ाखाल (Kankodakhal) स्थान पर बेगार विरोधी समितियों की स्थापना की तथा जनता से किसी भी अधिकारी को बेगार न देने के लिए कहा। सबसे बड़ी जनसभा का आयोजन बैरासकुंड में किया गया जिसमें लगभग 4,000 ग्रामीण जनता सम्मिलित हुई थी। इसी समय दिसम्बर 1921 में गढ़वाल कांग्रेस कमेटी के कार्यकर्ताओं की दुगड्डा (गढ़वाल) में एक बैठक आयोजित की गई। इसकी अध्यक्षता पुरूषोत्तम दास टण्डन ने की थी। इस बार भी अन्य बैठकों की भांति कुली बेगार न देने की मांग की गई तथा सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव को पारित किया गया। साथ ही असहयोग के अन्तर्गत विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार का निर्णय लिया गया और दुगड्डा में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई।

डिप्टी कमिश्नर ने ग्रामीणों से अधिक से अधिक सुविधा प्राप्त करने के लिए 12 जनवरी 1921 को ककोड़ाखाल में कैम्प लगाया। दूसरी तरफ अनुसूया प्रसाद बहुगुणा 3-4 दिन पहले से ही बेगार विरोधी आन्दोलन को जन-जन तक पहुँचाने के लिए गाँव-गाँव में घूम रहे थे। जब उन्हें डिप्टी कमिश्नर के कैम्प की सूचना मिली तो बेसौड़ से आलम सिंह प्रधान को साथ लेकर कंकोड़ाखाल के लिये चल दिये। “कुली–बरदायष बन्द करो-बन्द करो” आदि के नारे लगाते हुये जुलूस ककोड़ाखाल की तरफ चल दिया, रास्ते में गाँव के अन्य लोग भी साथ हो लिये जिससे वहाँ पहुँचते-पहुँचते जुलूस की संख्या हजारों में पहुँच गयी।

ककोड़ाखाल में पहुँचकर जुलूस सभा में परिवर्तित हो गया। चार–चार स्वयंसेवक के दल चार मार्गों पर कुली बरदायष रोकने के लिए तैनात किये गये। प्रधानों, थोकदारों व पटवारियों के डर से कुछ लोग बरदायष ला रहे थे, उन्हें रोकने के लिये अनसूया प्रसाद बहुगुणा रास्ते पर लेट गये और उन्होंने बरदायरा (खान पीने का मुफ्त सामान) ले जाने वाले को अपने सीने पर पांव रखकर आगे बढ़ने को कहा। उनको लांघकर जाने का साहस कोई भी न कर सका और उन लोगों को बरदायष का सामान नहीं पहुँचाने दिया गया। डिप्टी कमिश्नर मेषन सुलझे व्यक्ति थे, उन्होंने अपनी सूझबूझ का परिचय दिया और आन्दोलनकारियों से बातचीत की। अन्ततः 1923 में इस बेगार प्रथा को बंद कर दिया गया। जिससे एक बड़ी घटना होने से बच गयी। गांधीजी ने इसे रक्तहीन क्रांति की संज्ञा दी। स्वामी सत्यदेव ने इस आंदोलन को असहयोग की प्रथम ईंट कह कर पुकारा था।

 

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2 Comments

  1. Mai aapka dil se sukrgujhar hun ki aap itni behtrin jaankaari de rhe hain aapka bahut bahut danywaad sayad aise jankaari aur kahien na mile

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