Irrigation and Projects in Uttar Pradesh

उत्तर प्रदेश मे सिंचाई और प्रमुख सिंचाई परियोजनाएं

लघु सिंचाई

प्रदेश में लगभग 77% सिंचाई लघु सिंचाई साधनों से की जाती है। इसमें से, लगभग 79% सिंचाई निजी साधनों से की जाती है। प्रदेश में लघु सिंचाई सम्बन्धी निम्न कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं –

  • निःशुल्क बोरिंग योजना – सामान्य श्रेणी के लघु सीमान्त तथा अनुसूचित जाति/जनजाति के कृषकों हेतु यह योजना 1985 से चल रही है। इसमें 5, 7 या 10 हजार दिये जाते हैं।
  • हैवी रिंग मशीनों द्वारा गहरे नलकूपों के निर्माण की योजना – यह योजना कठिन स्ट्रेटा वाले पठारी आदि क्षेत्रों में चल रही है। इसमें किसानों को सरकार द्वारा लागत का 50% अधिकतम ₹ 1 लाख का अनुदान प्रदान किया जाता है। इसमें 60 मीटर से अधिक गहराई की बोरिंग की जाती हैं।
  • इनवेल रिंग मशीनों द्वारा पथरीले स्थानों पर बोरिंग योजना – यह योजना बुन्देलखण्ड व इलाहाबाद, आगरा, मिर्जापुर व सोनभद्र आदि जिलों में चल रही है। इसमें भी सरकार द्वारा लागत का 50% अधिकतम ₹ 7,500 का अनुदान प्रदान किया जाता है।
  • मध्यम गहराई नलकप योजना – यह योजना 2004-05 में प्रारंभ की गई। इस योजना में सरकार द्वारा 50% (अधिकतम ₹ 7,500) का । अनुदान प्रदान किया जाता है। इसमें 31-60 मीटर गहराई तक की बोरिंग की जाती है।
  • चेकडैम निर्माण योजना – प्रदेश के पठारी क्षेत्रों (बुन्देo) में वर्षा जल का उपयोग सिंचाई के साथ-साथ भूगर्भ जल को अधिक-से-अधिक रिचार्ज करने के लिए नदी/नालों पर चेकडैम बनाने सम्बन्धी यह योजना 2008-09 से चलाई जा रही है।
  • आर्टीजन वेल योजना – जालौन में नदी गाँव ब्लॉक में पाताल तोड़ कूप बनाये जाते हैं। इस योजना में हैण्डसेट आर्टीजन वेल के लिए कुल लागत का 50%, अधिकतम ₹ 5 हजार और मशीन निर्मित वेल के लिए 50%, अधिकतम ₹ 15 हजार तक अनुदान दिया जाता है।
  • सामुदायिक ब्लास्ट वेल योजना – यह योजना प्रदेश के झाँसी, ललितपुर, चित्रकूट, महोबा, इलाहाबाद, मिर्जापुर, सोनभद्र व चन्दौली जिलों के 39 पठारी/अर्द्ध पठारी ब्लॉकों में लघु एवं सीमान्त कृषकों के लिए उन स्थानों पर लागू है जहाँ निःशुल्क बोरिंग सम्भव नहीं। इस योजना में 6 मी० व्यास के 15 मी० गहरे कूप का निर्माण किया जाता है।
  • डॉ० राम मनोहर लोहिया सामूहिक नलकूप योजना – नवम्बर, 2012 से संचालित यह योजना भी गहरे स्ट्रेटा वाले क्षेत्रों में चलाई जा रही है, जहाँ निःशुल्क बोरिंग सम्भव नहीं है। इस योजना में सामान्य श्रेणी के लघु व सीमान्त कृषक बाहुल्य समूह को अधिकतम ₹ 3 लाख 92 हजार का अनुदान, जबकि एससी/एसटी/बीसी/अल्पसंख्यक श्रेणी के बाहुल्य समूह को अधिकतम ₹ 5 लाख का अनुदान दिया जाता है।

भूगर्भ जल कार्यक्रम

प्रदेश की भू-जल सम्पदा एवं उससे सम्बन्धित समस्याओं का अध्ययन, आंकलन, सर्वेक्षण, नियोजन तथा विकास हेतु दिशा-निर्देशन तथा प्रबन्धन के लिए 1975 में भू-गर्भ जल विभाग की स्थापना की गयी।

  • इस विभाग के अन्तर्गत राज्य के नगरीय तथा ग्रामीण क्षेत्रों में जल स्तर मापन हेतु हाइडोग्राफ स्टेशन (निरीक्षण कूप/पोजोमीटर) का नेटवर्क स्थापित है, जिन पर वर्ष में 6 बार (जनवरी, मई, जून, अगस्त, अक्टूबर व नवम्बर) जल-स्तर की मॉनीटरिंग की जाती है। 2010-11 तक राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में 9170 तथा शहरी क्षेत्रों में 1770 हाइड्रोग्राफ स्थापित थे।
  • भूगर्भ जल के नियोजित विकास व प्रबंधन हेतु जनपदवार/विकास खण्डवार भूगर्भ जल का आंकलन तथा विकास खण्डों का वर्गीकरण अतिदोहित, क्रिटिकल, सेमी-क्रिटिकल तथा सेफ श्रेणी में जीईसी-97 के दिशा-निर्देशों के अनुसार किया जाता है।
  • भूगर्भ जल की सघन मॉनीटरिंग हेतु हाइड्रोग्राफ स्टेशन नेटवर्क के विस्तार हेतु पीजोमीटर का निर्माण ग्रामीण क्षेत्रों में न्याय पंचायत को इकाई मानकर 5×5 किमी ग्रिड पर तथा शहरी क्षेत्रों में वाटर सप्लाई जोन को इकाई मानकर 2×3 किमी ग्रिड पर किया जा रहा है।
  • प्रदेश के सभी विकास खण्डों के भूजल गुणवत्ता मॉनीटरिंग स्टेशनों से एकत्र किए गए जल नमूनों से भूजल की रासायनिक गुणवत्ता (13 अवयव) का आंकलन/अनुश्रवण, कृषि उपयुक्तता की दृष्टि से किया जाता है।

जी०आई०एस० बेस मानचित्र – इस विभाग द्वारा भूगर्भ जल से सम्बन्धित विकास खण्डवार विविध प्रकार के जी०आई०एस० आधारित मानचित्र तैयार किए जाते हैं, जिसका उपयोग अन्य विभाग किसी विकास कार्यक्रम को तैयार करने में करते हैं।

रेन वाटर हार्वेस्टिग एवं रिचार्जिंग – वर्षा जल संचयन व भूजल रिचार्जिंग हेतु प्रदेश के विभिन्न विभागों द्वारा अनेक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। इसके तहत सरकारी भवनों पर रूफ टॉप रेन वाटर हार्वेस्टिग, एल्यूवियम क्षेत्रों में तालाबों तथा पठारी क्षेत्रों में परकोलेशन टैंकों का निर्माण किया जाता है।

पेयजल गुणता अनुश्रवण एवं निगरानी – प्रदेश के समस्त ग्रामीण पेयजल स्रोतों का गन्दलापन (टर्बिडिटी), पीएच, क्लोराइड, कठोरता, आयरन, नाइट्रेट, फ्लोराइड, अवशेष क्लोरीन एवं जैविक परीक्षण के लिए अनुश्रवण एवं निगरानी हेतु ग्राम पंचायत, जनपद एवं राज्य-स्तर की त्रिस्तरीय व्यवस्था स्थापित की जा रही है।

जल प्रबन्धन व नियामक प्राधिकरण – अंधाधुंध भूगर्भ जलदोहन पर लगाम लगाने हेतु 2010 में जल प्रबंधन सम्बन्धी एक कानून बनाकर उसको कड़ाई से लागू करने के लिए इस प्राधिकरण का गठन किया गया है। अत्यधिक भूजल दोहन को अब अपराध की श्रेणी लाते हुए दोषी को एक वर्ष की कैद की सजा या प्रतिदिन के 2,000 के हिसाब से (अधिकतम 1 लाख तक) जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

  • इस कानून के अनुसार अब शहरी क्षेत्रों में 0.5 हॉर्सपावर व ग्रामीण क्षेत्रों में 7.5 हॉर्सपावर से अधिक क्षमता के पम्प बिना अनुमति के नहीं लगाये जा सकते हैं।
  • भूगर्भ जल के व्यावसायिक यूजर को अब न केवल अपना रजिस्ट्रेशन कराना पड़ेगा, बल्कि वह जितने भूगर्भ जल का उपयोग करेगा, उससे ज्यादा उसे रेन वाटर हार्वेस्टिग की व्यवस्था से रिचार्ज करना पड़ेगा। वाटर यूजर से फीस लेने की भी व्यवस्था की गई है।
  • अब 300 वर्ग मी० या उससे अधिक क्षेत्रफल के नवनिर्मित भवनों के रूफ टॉप रेन वाटर हार्वेस्टिग की व्यवस्था करना अनिवार्य कर दिया गया है।
  • 20 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल की योजनाओं में कम-से-कम 5% भूमि पर भूजल रिचार्ज जलाशय अनिवार्य है।
  • आवासी भूखण्डों में 200 वर्ग मीटर से कम क्षेत्रफल के भूखण्ड के अन्दर कम-से-कम एक पेड़, 200 से 300 वर्ग मीटर से कम क्षेत्रफल के भूखण्डों में दो पेड़, 300 से 500 वर्ग मीटर से कम क्षेत्रफल के भूखण्डों में चार पेड़, समूह आवासीय योजना में प्रति हेक्टेयर 50 पेड़ व आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग, मलिन बस्ती सुधार आदि योजना में प्रति 50 परिवार पर न्यूनतम 100 वर्ग मीटर क्षेत्रफल पर समूह के रूप में पेड़ लगाना अनिवार्य है।
  • औद्योगिक क्षेत्र में प्रति 80 वर्ग मीटर भूखण्ड पर एक पेड़ की दर से पेड़ लगाना व बड़े प्रदूषणकारी उद्योगों को आवासीय क्षेत्र में सघन ग्रीन बेल्ट द्वारा पृथक् करना जो औद्योगिक क्षेत्रफल का 15 प्रतिशत होना अनिवार्य है।
  • भूगर्भ जल प्रभावित क्षेत्र – प्रदेश के लखनऊ, उन्नाव, आगरा, प्रतापगढ़, झाँसी, मुरादाबाद, मथुरा, बाँदा, मिर्जापुर, गाजियाबाद, रामपुर, बागपत, इलाहाबाद, सहारनपुर आदि 36 जिलों के 108 ब्लॉक अतिदोहित विकास खण्ड के रूप में चिह्नित किए गए हैं। अतः इन ब्लॉकों में भू-जल सुधार कार्यक्रम गंभीरता से चलाये जाने की आवश्यकता है। उपरोक्त 108 ब्लाकों में से सर्वाधिक 66 ब्लॉक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं।

Note –

  • सिंचाई की सुविधा के दृष्टिकोण से उत्तर प्रदेश का तीसरा स्थान है।
  • नहरों द्वारा 20.9% से अधिक सिंचाई की जाती है।
  • राज्य में सबसे ज्यादा सिंचाई नलकूपों द्वारा की जाती है।
  • उत्तर प्रदेश के रिहन्द बाँध की ऊँचाई 91 मीटर है।
  • उत्तर प्रदेश के रामगंगा बाँध (1978) की ऊँचाई 128 मीटर है।
  • उत्तर प्रदेश की आगरा नहर का उद्गम स्थल ओखला (यमुना नदी) है।
  • उत्तर प्रदेश की केन नहर का लाभान्वित जिला बांदा है।
  • उत्तर प्रदेश का अर्जुन बाँध नहर का उद्गम स्थल निकट चरखारी (हमीरपुर) अर्जुन नदी है।
  • उत्तर प्रदेश की चन्द्रप्रभा बाँध नहर का उद्गम स्थल चकिया (वाराणसी) चन्द्रप्रभा नदी है।
  • उत्तर प्रदेश में राजस्व मण्डल तथा जनपद मेरठ है और मेरठ की नहर की कुल लम्बाई 758.10 (किमी में) है।
  • पीलीभीत जनपद की नहर की लम्बाई 971.01 (किमी में) है।
  • उन्नाव जनपद की नहर की लम्बाई 1868.99 (किमी में) है।
  • वाराणसी जनपद की नहर की लम्बाई 306.20 (किमी में) है।
  • देवरिया जनपद की नहर की लम्बाई 411.00 (किमी में) है।
  • राजघाट बाँध परियोजना से सहारनपुर, मुजफ्फरनगर एवं मेरठ जिले लाभान्वित हैं।
  • प्रदेश में लगभग 77% सिंचाई लघु सिंचाई साधनों से की जाती है।
  • 20 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल की योजनाओं में कम-से-कम 5% भूमि पर भूजल रिचार्ज जलाशय अनिवार्य है।

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