सूखे की त्रास्दी मानव को धीरे-धीरे पर विशाल स्तर पर प्रभावित करती है। यह एक अलग तरह का दर्द है, पर है बड़ा कष्ट कारक।
क्या है सूखा?
मौसम विज्ञानियों के शब्दों में काफी लंबे समय तक एक विस्तृत प्रदेश में वर्षण की कमी ही सूखा है।” सूखे के लिए अकाल और अनावृष्टि जैसे शब्दों का प्रयोग भी किया जाता है।
सूखे का कारण
सूखे का एक मात्र कारण वर्षा की कमी है। लेकिन मानव ने प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ करके अपने क्रिया कलापों से पर्यावरण का संतुलन बिगाड़ दिया है। लोगों ने जलाशयों (तालाबों, झीलों, जोहड़ों) को पाट दिया है। वनस्पति का आवरण नष्ट कर दिया है। वनस्पति के कारण वर्षा का जल भूमि में रिसता रहता है। क्योंकि वनस्पति उसके प्रवाह को अवरूद्ध करती रहती है। मनुष्य ने लाखों की संख्या में नलकूप लगाकर भूमिगत जल के भंडारों को भी कम किया है।
सूखे के दुष्परिणाम
सूखे के कारण भोजन और पानी की कमी हो जाती है। भूखे-प्यासे लोग त्राहि-त्राहि कर उठते हैं। भुखमरी, कुपोषण और महामारियों से अकाल मौतें होने लगती हैं। मजबूरन लोगों को अपना क्षेत्र छोड़ कर पलायन करना पड़ता है। पानी की कमी से फसलें सूख जाती हैं। मवेशी चारे-पानी के अभाव में मरने लगते हैं। खेती करने वाले लोगों का रोजगार छिन जाता है। भोजन, पानी, हरे चारे और रोजगार की तलाश में लोग गाँव के गाँव छोड़ कर बच्चों के साथ दूर-बहुत दूर की अनिश्चित यात्रा के लिए निकल पड़ते हैं।
भारत के सूखा प्रवण क्षेत्र
सूखा प्रवण क्षेत्रों की एक प्रमुख पट्टी दक्षिणी राजस्थान और तमिलनाडु के बीच है। इस पट्टी में दक्षिणी पश्चिमी राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी मध्य प्रदेश, मध्यवर्ती महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु है।
मानसूनी वर्षा की कमी और पर्यावरण ह्रास के कारण राजस्थान और गुजरात प्रायः सूखे की चपेट में रहते हैं। भारत के 593 जिलों में से 191 जिले भयंकर रूप से सूखा प्रवण है।
सूखे से निपटने के उपाय
- सूखे क्षेत्रों के अनुकूल कृषि पद्धति – शुष्क प्रदेशो में मोटे अनाज पैदा करके, गहरी जुताई करके मृदा की नमी को संजोकर, छोटे-छोटे बाधों के पीछे पानी रोककर, जोहड़ों में पानी एकत्र करके तथा फुहारा सिंचाई अपनाकर सूखे से एक सीमा तक निपटा जा सकता है।
- सूखा सहन करने वाली फसलें बोकर – कपास, मूंग, बाजरा, गेहूं आदि सूखे को सहन करने वाली फसलें बोकर सूखे के प्रभाव को कुछ कम किया जा सकता है।
- वर्षा जल संग्रहण – वर्षा की एक-एक बूंद को संग्रहित करके सूखे से निपटा जा सकता है।
- खेतों की ऊँची मेंड बनाकर, सीढ़ीदार खेत बनाकर और खेतों के किनारों पर पेड़ लगाकर वर्षा के पानी का अधिकतम उपयोग किया जा सकता है।
- सिंचाई की नहरों को पक्का करके पानी को संरक्षित किया जा सकता है।
- टपकन विधि अपनाने से थोड़े पानी से अधिक क्षेत्र की सिंचाई की जा सकती है।
सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम
यह कार्यक्रम 1973 में शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम के निम्नलिखित उद्देश्य हैं: –
- फसलों, मवेशियों, भूमि की उत्पादकता, जल और मानव संसाधनों पर सूखे के प्रतिकूल प्रभावों को कम करना। जिस तरह से गुजरात क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों के समन्वित विकास के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकियों का प्रयोग किया गया है, वैसा करके अन्य भागों में सूखे के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
- वर्षा जल का विकास, संरक्षण और समुचित उपयोग करके लंबे समय तक पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखा जा सकता है।
- संसाधनों के अभाव से ग्रस्त और सुविधाओं से वंचित समाज की आर्थिक और सामाजिक स्थिति सुधारना।
Read More : |
---|