एशिया महाद्वीप का अपवाह तन्त्र | TheExamPillar
Drainage System of Asia Continent

एशिया महाद्वीप का अपवाह तन्त्र (Drainage System of Asia Continent)

अपवाह तन्त्र (Drainage System)

किसी भी क्षेत्र की धरातली आकृतियाँ उस क्षेत्र के अपवाह तन्त के स्वरूप को निर्धारित करती हैं साथ ही अपवाह तंत्र भी धरातीलय आकृतियों के स्वरूप को प्रभावित करता है। एशिया महाद्वीप में मिलने वाले धरातलीय स्वरूपों के अनुरूप ही यहाँ के अपवाह तन्त्र का विकास हुआ है। एशिय महाद्वीप के मध्यवर्ती भाग में उच्च पर्वतीय एवं पठारी भागों का अस्तित्व मिलता है। इसी उच्च प्रदेश से निकल कर उत्तर पूर्व दक्षिण दिशा में सैकड़ों नदियों बहती हैं और क्रमशः आर्कटिक प्रशान्त तथा हिन्द महासागर में प्रमुख रूप से गिरती हैं। वस्तुतः एशिया महाद्वीप के अपवाह प्रतिरूप का निर्धारण यहाँ की उच्च-भूमियों द्वारा किया जाता है। इस आधार पर हम इसे निम्नांकित अपवाह क्षेत्रों में विभक्त कर सकते हैं –

  1. आर्कटिक महासागरीय अपवाह क्षेत्र (Arctic Ocean Drainage System)
  2. प्रशान्त महासागरीय अपवाह क्षेत्र (Pacific Ocean Drainage System)
  3. हिन्द महासागरीय अपवाह क्षेत्र (Indian Ocean Drainage System)
  4. भूमध्य सागरीय अपवाह क्षेत्र (Mediterranean Sea Drainage System)
  5. आन्तरिक अपवाह क्षेत्र (Inland Drainage System)

आर्कटिक महासागरीय अपवाह क्षेत्र

  • एशिया के मध्यवर्ती पर्वतीय क्रम से निकल कर दक्षिण से उत्तर की ओर बहने वाली नदियाँ इस अपवाह में सम्मिलित हैं।
  • इन नदियों में ओबे (Obe), यनीस (yenisei) लीना (Leena) सर्व प्रमुख नदियाँ हैं जिनकी लम्बाई क्रमशः 5410 किमी, 4092 किमी तथा 4400 किमी है।
  • ओबे नदी का नदी बेसिन 29.75 लाख वर्ग किमी, यनीसी नदी का नदी बेसिन 25.8 लाख वर्ग किमी. तथा लीना नदी बेसिन 24.90 लाख वर्ग किमी. क्षेत्रफल में विस्तृत है।
  • दिवीना (Divina), पिचोरा (Pichora), याना (Yana), इन्दीगिरीका (Indigirica) तथा कोलिमा (Kolima) इस अपवाह क्षेत्र की अन्य महत्त्वपूर्ण नदियाँ हैं।
  • इन नदियों के अधिकाशं जलीय भाग शीतकाल के 7 महीने अत्यधिक शीत के कारण जम जाते हैं।
  • ओबे, यनीसी तथा लीना विश्व की 11 लम्बी नदियों में से हैं जो एशिया के मध्यवर्ती पर्वतीय भाग से निकलती हुई वृक्षाभ अपवाह (Dendritic Dranaige) के साथ उत्तर की ओर बहती है।
  • ग्रीष्मकाल में इस अपवाह तन्त्र की अधिकांश नदियों का प्रयोग नावों व स्टीमरों द्वारा प्रमुख परिवहन मागों के रूप में होता है। जबकि शीतकान में स्लेज (Sleighs) सड़क के रूप में इन नदियों का प्रयोग किया जाता है।

प्रशान्त महासागरीय अपवाह क्षेत्र

  • यह अपवाह क्षेत्र एशिया महाद्वीप के पूर्वी भाग पर विस्तृत हैं इसमें साइबेरिया का पूर्वी भाग चीन तथा हिन्द चीन सम्मिलित हैं।
  • इस अपवाह क्षेत्र की प्रमुख नदियाँ, आमूर (4416 किमी) ह्वांगहों (4845 किमी) याँगटि सिक्याँग (5520 किमी) सिक्याँग (2655 किमी) मीकांग (4500) किमी तथा मीनाम हैं अधिकाशं नदियाँ एशिया के मध्यतर्वी पर्वतीय भागों से निकलकर पूर्व की ओर बहती हुई प्रशान्त महासागकर में गिरती हैं।
  • मीनाम तथा मीकांग नदी का प्रवाह उत्तर से दक्षिण की ओर मिलता है।
  • ह्वांगहो अपनी सहायक नदियों के साथ जालीनुमा (Trellis) अपवाह निर्मित करती है, जबकि याँगटिसीक्याँग नदी अपनी सहायक नदियों के साथ वृक्षाभ अपवाह (Dendritic Drainage) बनाती है।
  • शांतुग प्रायद्वीप के दक्षिण में यालूलिओं तथा हो नदियाँ, ह्वांगाहो तथा याँगटिसिक्याँग के मध्य में हाई नदी, तथा याँगटिसिक्याँग नदी के दक्षिण में सी तथा लाल नदियाँ प्रशान्त महासागरीय अपवाह की अन्य नदियाँ हैं।

हिन्द महासागरीय अपवाह क्षेत्र

  • इस अपवाह क्षेत्र का विस्तार दक्षिणी एशिया में मध्यवर्ती पर्वतीय पठारी क्रम के दक्षिण की ओर मिलती है।
  • इस अपवाह क्षेत्र की अधिकांश नदियों के उद्गम स्थल एशिया के मध्यवर्ती पर्वती पठारी क्रम में ही स्थित हैं।
  • इस अपवाह तन्त्र में पूर्व की ओर सालविन (2820 किमी) सिवांग तथा इरावदी नदियाँ स्थिति हैं।
  • मध्यवर्ती भाग में गंगा (2700 किमी), ब्रह्मपुत्र (2960 किमी), सिन्धु (3190 किमी.) नर्मदा तथा महानदी प्रमुख नदियाँ हैं।
  • इस अपवाह तन्त्र के पश्चिम की ओर दजला (1850 किमी) तथा फरात 2760 किमी) नदियाँ बंगाल की खाड़ी में, सिन्धु, नर्मदा तथा ताप्ती अरब सागर में तथा दजला फरात फारस की खाड़ी अपना जल डालती हैं।
  • यह नदियाँ संकरी तथा गहरी घाटियों में बहती हैं।

भूमध्यसागरीय अपवाह क्षेत्र

  • इस अपवाह क्षेत्र का विस्तार एशिया महाद्वीप के सुदूर पश्चिमी भागों में मिलता है।
  • इस प्रवाह क्षेत्र के अन्तर्गत अधिकांश तुर्की (आन्तरिक अपवाह वाले अनातोलिया पठार को छोड़कर) लीवेन्ट उच्च भूमि एवं उसके पश्चिमी भूमध्यसागरीय तटवर्ती क्षेत्र सम्मिलित है।
  • अनातोलिया पठार के उत्तरी भागों, पोन्टस पर्वत-मालाओं सहित काला सागर के समस्त तटवर्ती क्षेत्र का जल काला सागर में गिरता है।
  • अनातोलिया पठार के पश्चिमी भाग में तथा टारस पर्वत श्रेणियों में मेन्डेरिस (Menderes), गेडिज (Gediz), ब्यूक (Buyuk), दालामन (Dalaman), सेहान (Seyhan) तथा केहान (Ceyhan) नदियाँ प्रमुख हैं।
  • लीवेन्ट उच्च भूमि से लितानी (Litani) (उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हुई) तथा ओरन्टस (Oronter) (दक्षिण से उत्तर की ओर बहती हुई) नदियाँ निकलकर भूमध्यसागर में गिरती हैं।

आन्तरिक अपवाह क्षेत्र

  • इस अपवाह क्षेत्र का विस्तार एशिया के मध्य में आनातोलिया के पठार, ईरान, केस्पियन निम्न भूमि, तिब्बत तथा सिक्यॉग से होता हुआ उत्तरी मंगोलिया तक विस्तृत है।
  • यह क्षेत्र तूरानी निम्न भूमि और मध्यवर्ती पठारों पर स्थित है।
  • इस क्षेत्र की प्रमुख नदियाँ आमू नदियाँ (लम्बाई 2620 किमी) तथा सर दरिया हैं, जो अरल-के स्पियन-तूरानी निम्न भूमि में स्थित अरल सागर में गिरती हैं।
  • उत्तरी मंगोलिया के पठार पर मासगोल तथा कुलीन, सिक्याँग के पठार पर इजीकुल तथा टेलेजकोई तथा तिब्बत के पठार पर दारु, पालटी, कोकोनोर, धलारिंग, चरोल, इकनोमूर तथा हौरापा प्रमुख खारे पानी की झीलें हैं।
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