बांग्लादेश में हाल ही में हुए तख्तापलट ने दक्षिण एशिया में भारी उथल-पुथल मचा दी है। इस तख्तापलट के परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है, और उनका भविष्य अब अनिश्चित हो गया है। इस घटना ने भारत और पूरे दक्षिण एशिया में चिंता और सवालों को जन्म दिया है।
तख्तापलट की पृष्ठभूमि
चुनावी विवाद और विपक्ष का दमन
बांग्लादेश में इसी साल चुनाव हुए थे, जिनमें शेख हसीना की अवामी लीग ने विवादास्पद परिस्थितियों में भारी बहुमत हासिल किया था। चुनाव से पहले ही वहां विपक्ष का दमन शुरू हो गया था। शेख हसीना को लगता था कि फौज के हाथ मजबूत करके, उसे सभी सुविधाएं देकर और फौजी अधिकारियों के स्पष्ट भ्रष्टाचार को नजरअंदाज करके वे उन्हें अपने पक्ष में कर लेंगी।
सेना का रुख
2009 में जब अर्धसैनिक बांग्लादेश राइफल्स ने तख्तापलट करने की कोशिश की थी, तब फौज ने शेख हसीना का समर्थन किया था। लेकिन इस बार फौज का रुख बदल गया है। हालांकि, शेख हसीना ने बांग्लादेशी वायुसेना के विमान से ही देश छोड़ा है, और वहां के सैन्य प्रमुख हसीना के आलोचक नहीं हैं।
तख्तापलट के कारण
सेना की भूमिका और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध
बांग्लादेश में यह तर्क दिया जा रहा था कि विपक्ष कमजोर है, इसलिए फौज ही विपक्ष की भूमिका निभाएगी। लेकिन अगर सेना ऐसा करती है, तो उसे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा, जिसे बांग्लादेश झेल नहीं सकता। फौज दबाव से राहत चाहती थी, इसलिए वह अंतरिम नागरिक सरकार बना रही है, जिसके सफल होने की कोई संभावना नहीं है।
अमेरिका और बांग्लादेश के रिश्ते
अमेरिका ने बांग्लादेश के चुनावों में हुई धांधली की निंदा की थी, लेकिन पाकिस्तान के चुनावों को सराहा था। इस कारण शेख हसीना ने अपनी हाल की वॉशिंगटन यात्रा के दौरान अमेरिकी अधिकारियों से बातचीत करने से इनकार कर दिया था और अमेरिकी-बांग्लादेश चैंबर ऑफ कॉमर्स के कार्यालयों में बैठकें की थीं।
भारत के लिए परिणाम
शेख हसीना का भारत के प्रति दृष्टिकोण
शेख हसीना ने भारत के विरुद्ध बेकार के दुष्प्रचार से इनकार कर दिया था। उन्होंने बांग्लादेश की तमाम समस्याओं के लिए भारत को दोष नहीं दिया, बल्कि अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित किया और इसे प्रभावशाली ढंग से संभाला। उन्होंने भारत के साथ मित्रता सुनिश्चित की और भारत में बांग्लादेशियों के प्रवास की आवश्यकता को समाप्त किया।
अवैध बांग्लादेशी प्रवासी
भारत के लिए सबसे बड़ा उलटफेर यह है कि नई हुकूमत भारत के लिए मैत्रीपूर्ण नहीं होगी। ऐसे में भारत उन लगभग 3 करोड़ अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को वापस भेजने की शुरुआत कर सकता है, जो यहां रह रहे हैं।
बांग्लादेश की स्थिति
आर्थिक स्थिति
बांग्लादेश की बगावत आर्थिक तंगहाली के चलते नहीं हुई है। इसके विपरीत, बांग्लादेश ने कुछ आर्थिक संकेतकों पर भारत को भी पीछे छोड़ दिया है। बांग्लादेश को एक समय गरीबी के लिए काम करने वाले एनजीओ के लिए स्वर्ग के रूप में जाना जाता था, लेकिन अब इन एनजीओ की कोई आवश्यकता नहीं रह गई थी।
हिंदू समुदाय का समर्थन
बांग्लादेश के हिंदू ऐतिहासिक रूप से अवामी लीग, शेख हसीना और उनके पिता मुजीबुर्रहमान के समर्थक रहे हैं। हालांकि, 1971 के बाद से वहां की सभी अवामी सरकारें हिंदुओं के प्रति स्पष्ट रूप से मैत्रीपूर्ण रही हैं। विपक्ष ने अवामी लीग को एक ‘हिंदू पार्टी’ के रूप में चित्रित किया और भारत पर निशाना साधा।
भविष्य की संभावनाएं
शेख हसीना की सत्ता में वापसी
शेख हसीना के पास सत्ता में वापसी की गुंजाइश अभी बाकी है। बांग्लादेश में बार-बार विरोध-प्रदर्शन होते रहते हैं, लेकिन वे आर्थिक तंगहाली के चलते नहीं हुए हैं। अगर नई हुकूमत असफल होती है, तो शेख हसीना की सत्ता में वापसी संभव है।
निष्कर्ष
बांग्लादेश में तख्तापलट ने दक्षिण एशिया में अस्थिरता पैदा कर दी है। भारत के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण स्थिति है, क्योंकि नई हुकूमत भारत के लिए मैत्रीपूर्ण नहीं होगी। भारत को अपने विकल्पों पर विचार करना होगा और अपने हितों की रक्षा के लिए उचित कदम उठाने होंगे।