Biography of Srinivasa Ramanujan

श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी (Biography of Srinivasa Ramanujan)

Srinivasa Ramanujan
श्रीनिवास रामानुजन (Srinivasa Ramanujan)
जन्म 22 दिसम्बर, 1887
जन्म स्थानमद्रास (इरोड )
पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर
मात का नाम श्रीमती कोमलताम्मल
पत्नी का नाम जानकी 
मृत्यु26 अप्रैल, 1920

श्रीनिवास रामानुजन (Srinivasa Ramanujan) का जन्म 22 दिसम्बर 1887 को मद्रास से 400 किलोमीटर दूर स्थित इरोड में हुआ। उनके पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर था, जो एक साड़ी की दुकान में नौकरी करते थे। घर में गरीबी का बोलबाला था। रोजमर्रा की चीजों की जुगाड़ कर पाना भी बड़ा दुश्वार था। रामानुजन की मां कोमलताम्मल अपने विचारों की पक्की थीं और अपने बेटे के उत्थान के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थीं। उनसे रामानुजन ने गहरी धार्मिकता सीखी जो सारी जिंदगी उनके जीवन का अभिन्न अंग रही। रामानुजन पास के शहर कुम्भकोणम में अपनी ननिहाल में ही पले-बढ़े।

रामानुजन की शिक्षा 

उनकी गणितीय प्रखरता 10 साल की उम्र में ही साफ दिखने लगी। वो गणित न केवल आसानी से खुद समझ लेते परंतु अपने से ऊंची कक्षाओं के छात्रों की शंकाओं का भी समाधान कर देते। हाई स्कूल में उन्होंनें जी. एस. कार की पुस्तक ए सिनौपसिस ऑफ एलीमेंट्री रिजल्टस इन मैथिमैटिक्स का अध्ययन किया। पुस्तक की विशिष्टता थी- बिना तरीका समझाए अंतिम परिणाम लिखना। रामानुजन ने भी यही पद्धति अपनाई। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए कुछ समय एक कॉलेज में दाखिला भी लिया। परंतु गणित में मगन रहने के कारण उन्होंनें बाकी विषयों पर कुछ ध्यान ही नहीं दिया। वो परीक्षा में फेल हुए और स्नातक की डिग्री पाने में असमर्थ रहे।

अगले कुछ वर्ष रामानुजन के लिए विपत्तियों से भरे रहे। उन्होंनें छात्रों को प्राइवेट ट्यूशन देने की सोची। पर इसमें भी वो असफल रहे। गणित पढ़ाते समय वो उसकी उच्च स्तरीय व्याख्या करने लगते। छात्र उनकी विद्वत्ता का आदर करते परंतु पढ़ाया गया उन्हें कुछ समझ में नहीं आता। ऐसी घटनाओं ने रामानुजन को सारी जिंदगी परेशान किया। उनकी मौलिकता तमाम गणितज्ञों की समझ के बाहर थी। लोग हमेशा इस भ्रम में रहते रामानुजन सच में एक दिग्गज गणितज्ञ हैं या फिर कोई बहुरुपिया !

प्रसिद्ध नोटबुक्स ऑफ रामानुजन भी इसी काल में रची गयीं। रामानुजन का अंकों से एक विशिष्ट लगाव था। हर अंक उनका अभिन्न मित्र था। कठोर प्रमाण देने की उन्हें कभी

जरूरत महसूस नहीं हुई। यह विशिष्टता पाश्चात्य गणितज्ञों की थी। उनकी प्रतिभा विलक्षण थी। वो एक ऊंची मानसिक उछाल के बाद सिर्फ प्रश्न का अंतिम हल लिखते थे। उस हल के चरणों को लिपिबद्ध करने की उन्होंनें कभी परवाह नहीं की। गणितज्ञ दो पीढ़ियों से उनके प्रतिपादनों के हल खोज रहे रहे हैं। आज भी वो इस कार्य में पूरी तरह सफल नहीं हुए हैं। 

परिवारिक जीवन 

रामानुजन अब बीस साल के हो गए थे। रिश्तेदारों की निगाह में ‘वो अपनी ही दुनिया में खोए थे’। रामानुजन की मां ने उन्हें अपनी जिम्मेदारियां का बोध कराने के लिए पुराना भारतीय तरीका अपनाया – उन्होंनें रामानुजन की शादी कर दी ! क्योंकि उन दिनों बड़ों के आदेश को मानने का रिवाज था। इसलिए रामानुजन ने 14 जुलाई 1909 को अपने से 11 साल छोटी जानकी अम्मल से विवाह किया। शादी के बाद रामानुजन परिवार चलाने के लिए नौकरी खोजने के लिए मजबूर हुए। 1912 में उन्हें मद्रास पोर्ट ट्रस्ट के लेखा-जोखा विभाग में एक क्लर्क की नौकरी मिली। वहां के प्रमुख अकाउन्टेन्ट नारायण राव एक गणितज्ञ थे। पोर्ट ट्रस्ट के चेयरमैन सर फ्रांसिस स्प्रिंग और राव दोनों ने रामानुजन की गणितीय प्रतिभा में खूब दिलचस्पी ली। 

गणितज्ञ की दिशा में  

रामानुजन ने अपने कार्य को मूल्यांकन के लिए इंग्लैंड के गणितज्ञों को भेजा। पर क्योंकि रामानुजन के पास कोई औपचारिक डिग्री नहीं थी इसलिए किसी ने भी उनके काम को गम्भीरता से नहीं लिया। 1913 में रामानुजन ने जी.एच. हार्डी को एक रोचक पत्र लिखा। हार्डी केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनटी कॉलेज में एक प्रख्यात गणितज्ञ थे। पत्र में रामानुजन ने बिना किसी प्रमाण के 120 गणितीय प्रमेय हार्डी को भेजीं। ‘मैंने ऐसी प्रमेय पहले कभी नहीं देखीं,’ हार्डी ने लिखा, ‘एक झलक में मैं समझ गया कि उन्हें कोई अव्वल दर्जे का गणितज्ञ ही लिख सकता था। उनका सच होना अनिवार्य था क्योंकि अगर वो सच नहीं होतीं तो उन्हें महज कल्पना द्वारा रच पाना असंभव था।’ हार्डी पर रामानुजन के पत्र का गहरा असर हुआ और उनके ही प्रयासों से रामानुजन केम्ब्रिज पहुंचे।

 

इंगलैंड का सफ़र 

शुरु में रामानुजन के धार्मिक परिवार ने उनके सात समन्दर पार जाने पर आपत्ति जताई। कुछ लोगों के अनुसार रामानुजन की मां को एक सपना आया जिसमें नामगिरी देवी ने उन्हें अपने बेटे के रास्ते में रोड़ा नहीं बनने का आदेश दिया। उसके बाद परिवार का मिजाज नर्म पड़ा और 1914 में रामानुजन केम्ब्रिज पहुंचे। वहां उनके अनुसंधान ने जोर पकड़ा और उन्होंनें नम्बर थ्योरी, अनंत श्रेणी आदि विषयों पर शोधपत्र लिखे। 1917 में उन्होंनें सुप्रसिद्ध हार्डी – रामानुजन नियम रचा जो ‘पूर्णांक के विभक्तिकरण’ के बारे में है। रामानुजन के काम की विशिष्टता है उसमें कुछ खास रहस्यमयी चिन्हों और नियमों का समावेश। उनका मानना था कि सपने में नामगिरी देवी उनके काम को दिशा और प्रेरणा देती थीं।

1916 में केम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने रामानुजन को बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री प्रदान की। 1919 में रामानुजन को फेलो ऑफ द रॉयल सोसाइटी (FRS) का सदस्य मनोनीत किया गया। विशुद्ध शाकाहारी होने के कारण रामानुजन अपना भोजन खुद पकाते थे। काम के अत्यधिक दबाव और ठीक भोजन न मिलने के कारण रामानुजन को इंग्लैंड में क्षयरोग हो गया और उन्हें अस्पताल में दाखिल होना पड़ा। हार्डी जब उनसे मिलने गए तब उन्होंनें कहा, ‘मुझे लगता है कि मेरी टैक्सी का नम्बर 1729 था जो मुझे कोई खास विशेष नजर नहीं आता है।’ रामानुजन ने जवाब दिया, ‘नहीं’ हार्डी, यह एक अत्यन्त रोचक नम्बर है। यह वो सबसे छोटी संख्या है जिसे दो घन संख्याओं के जोड़ द्वारा दो अलग-अलग प्रकार से लिखा जा सकता है।’ आजकल इस प्रकार की समस्याओं को टैक्सी कैब प्रश्नों के नाम से जाना जाता है जिनका हल यह समीकरण है –  i3 + j3 = k3 + l3

इन नम्बरों को अब ‘रामानुजन नम्बर्स’ के नाम से जाना जाता है। कई प्रख्यात गणितज्ञों ने रामानुजन की नोटबुक्स से उनके कार्य को समझने का प्रयास किया है। 

इंग्लैंड से वापसी

1919 में रामानुजन इंग्लैंड से वापिस लौटे और 26 अप्रैल, 1920 कुम्भकोणम में उनका देहान्त हो गया। उनके काम को बहुत सराहा गया। 1962 में भारत सरकार ने उनकी 75वीं वर्षगांठ पर एक डाक टिकट भी जारी किया। 

विकासशील देशों के गणितज्ञों को प्रोत्साहित करने के लिए इंटरनेशनल सेंटर फॉर थ्योरिटिकल फिजिक्स (ICTP) ने रामानुजन के नाम पर एक पुरुस्कार स्थापित किया है। पुरुस्कार इंटरनेशनल मैथिमैटिकल यूनियन के सहयोग से दिया जाता है। यही संस्था पुरुस्कार देने वाली समिति के सदस्यों को मनोनीत करती है।

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