Biography of Emperor Ashoka

सम्राट अशोक की जीवनी (Biography of Emperor Ashoka)

सम्राट अशोक की जीवनी
(Biography of Emperor Ashoka)

चन्द्रगुप्त का पुत्र बिंदुसार था। यह एक पराक्रमी राजा था। अशोक (Ashoka) बिंदुसार का ही पुत्र था, जो मौर्य वंश की तीसरी पीढ़ी में हुआ था। अशोक (Ashoka) का समय लगभग सन् 273 से 232 ई० पू० माना जाता है। कहा जाता है कि अशोक के कई भाई थे। इसलिए पिता की मृत्यु के बाद राज्य पाने के लिए भाइयों में युद्ध हुआ। इस युद्ध में अशोक ने अपने अनेक भाइयों की हत्या की। भाइयों को मारकर अशोक राजा बना। लेकिन कुछ विद्वान इसमें विश्वास नहीं करते। उनके विचार से अशोक भाइयों को बहुत चाहता था। फिर भी यह सत्य है कि अशोक के राज्य प्राप्त करने में बाधाएं उत्पन्न हुई थीं। अशोक ने चालीस वर्ष तक राज्य किया था।

अशोक का असली नाम वस्तुतः अशोक वर्धन था। अशोक को इतिहास में देवनाम प्रिय (देवताओं का प्यारा) भी कहा जाता है। उसकी प्रशंसा में उसे यह उपाधि मिली होगी। 

राज्याभिषेक के बाद अशोक ने और राजाओं की ही तरह अपना जीवन बिताया अर्थात् शिकार करना, घूमना-फिरना और सुख पूर्वक रहना। उस समय देश में बौद्ध धर्म का भी प्रचार हो चुका था। भगवान बुद्ध के चलाये इस धर्म में अहिंसा को विशेष महत्व दिया गया है। किसी जीव की हिंसा मत करो, न किसी जीव को सताओ – यह बौद्ध धर्म का मुख्य उपदेश है। बौद्ध धर्म में दया और करुणा कूट-कूट कर भरी है। पर अशोक इस धर्म से बिल्कुल प्रभावित न था। वह आरम्भ में इस धर्म का विरोधी ही था। यहाँ तक कहा जाता है कि उस समय उसने बौद्ध धर्म को हानि भी पहुँचायी।

कलिंग पर आक्रमण 

राज्य सिंहासन पर बैठने के आठ वर्ष बाद अशोक ने कलिंग राज्य पर आक्रमण किया। पुराने समय में उड़ीसा को कलिंग कहा जाता था। भयानक युद्ध हुआ। एक ओर शक्तिशाली राजा अशोक की विशाल सेना थी और दूसरी ओर कलिंग को जोशीली सेना। कलिंग के वीरों के अशोक की सेना का डटकर सामना किया। फिर भी अशोक की सेना के सामने कलिंग की सेना हार गई। यह युद्ध इतना विनाशकारी था कि चारों ओर चीख-पुकार मच गयी। माताएं अपने पुत्रों को खोकर बिलख-बिलख कर रो उठीं, स्त्रियां अपने पतियों को खोकर तड़प उठी, बहनें भाइयों को खोकर रोने लगी, और बेटे अपने पिता से बिछुड़कर व्याकुल हो उठे। युद्ध में लगभग एक लाख लोग मारे गये, अनगिनत लोग कैद हुए और बाद में भी भारी संख्या में लोग मौत के शिकार हुए। 

अशोक पर युद्ध का प्रभाव 

अशोक ने युद्ध का यह कारुणिक दृश्य देखा। उसका हृदय फटने लगा। वह अपने को धिक्कारने लगा कि उसके ही कारण यह सब हुआ है। उसकी राज्य बढ़ाने की इच्छा ही इसका कारण थी। पश्चाताप ने उसका मन बदल दिया। युद्ध भावना दया भाव में बदल गयी। उसने संकल्प किया कि अब वह कभी युद्ध नहीं करेगा। वह अब दया, प्रेम और करुणा से लोगों का हृदय जीतेगा। उसका झुकाव बौद्ध धर्म की ओर हुआ।

अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया और बौद्ध धर्म के प्रचार में लग गया जिससे सबके हृदय में दया और प्रेम की भावना आ जाय। अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद इकतीस साल तक शासन किया, पर युद्ध नहीं किया। उसने अपने उत्तराधिकारियों को भी आदेश दिया कि वे कभी युद्ध न करें। अब उसने शिकार करना और मांस खाना भी छोड़ दिया। वह धार्मिक यात्राएँ करने लगा और बौद्ध धर्म के तीर्थ स्थलों पर गया। वह स्वयं भी धार्मिक उपदेश देने लगा और प्रजा को बौद्ध धर्म स्वीकार करने के लिए प्रेरित करने लगा। अपने राज्य के अधिकारियों को उसने आदेश दिया कि वे केवल राज्य का ही काम न करें, धर्म प्रचार भी करें। अपने राज्य में उसने ऐसे अधिकारी भी नियुक्त किये जो केवल धर्म का प्रचार करते थे। अशोक अपनी प्रजा को संतान के समान मानता था और यही चाहता था कि प्रजा को कोई कष्ट न हो, सभी सुखी रहें।

अपने देश में बौद्ध धर्म का प्रचार करने के साथ ही अशोक ने पड़ोसी देशों में भी बौद्ध धर्म का प्रचार करवाया। सीरिया, मिस्र, श्रीलंका और बर्मा आदि में अशोक के धर्म प्रचारक गये। लंका में तो उसका पुत्र महेन्द्र स्वयं धर्म प्रचार के लिए गया। उसकी बहन संघमित्रा भी उसके साथ गयी। संघमित्रा ने वहाँ के राज परिवार की स्त्रियों को बौद्ध धर्म की शिक्षा प्रदान की।

अपने ढंग का अकेला राजा 

अब अशोक के जीवन का एक ही उद्देश्य था- बौद्ध धर्म का प्रचार और प्रजा की भलाई। लोगों की भलाई के लिए उसने मार्गों के किनारे-किनारे पेड़ लगाये और पानी के लिए कुएँ खुदवाये। मनुष्यों और पशुओं की चिकित्सा के लिए चिकित्सालय बनवाये। उसने उन राज्यों में भी मनुष्यों की भलाई के लिए काम किये जहाँ उसका शासन नहीं था। संसार में और कोई ऐसा राजा नहीं दिखाई देता जिसने मनुष्यों की भलाई के लिए इतना कार्य किया हो। अशोक ने पूरे संसार के सामने मानव कल्याण का एक उदाहरण रखा। उसने जन-जन तक कल्याण भावना का प्रचार किया। उसने जगह-जगह स्तम्भ खड़े करके शिलालेख लगवाये जिन पर दया और करुणा का संदेश खुदवाया! ऐसा ही एक स्तम्भ सारनाथ (वाराणसी) में भी स्थापित कराया गया। इस पर शेर की आकृतियाँ और चक्र बना है। भारत का राज चिह्न यहीं से लिया गया है। भारत के झंडे के बीच में जो चक्र है वह भी अशोक के इसी स्तम्भ पर बना है। उसने माता-पिता और गुरुजनों की आज्ञा मानने, उनकी सेवा करने, पशुओं के प्रति दया दिखाने और सबके प्रति नम्र भाव रखने का भी उपदेश दिया। इस प्रकार दया, प्रेम और करुणा से अशोक ने सबका हृदय जीत लिया। 

अशोक के अंतिम समय के विषय में अधिक जानकारी नहीं मिलती। उसकी मृत्यु के बाद उसका कोई पुत्र सिंहासन पर नहीं बैठा, बल्कि उनके पौत्र दशरथ और संप्रति ने राज्य को बाँट लिया। अशोक की मृत्यु सम्भवतः तक्षशिला में हुई थी।

 

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