Agricultural Collection and Marketing of Herbs in Uttarakhand

उत्तराखण्ड में जड़ी-बूटी की कृषि संग्रहण

January 23, 2020

उत्तराखण्ड में जड़ी-बूटी की कृषि संग्रहण एवं विपणन
(Agricultural Collection and Marketing of Herbs in Uttarakhand)

सन् 1903 में उत्तर प्रदेश कृषि निदेशालय द्वारा कुमाऊँ में बैलाडोना का कृषि प्रयोग किया गया यह प्रयोग सफल रहने के बाद उत्तराखण्ड में अन्य जड़ी-बूटी की खेती की गयी। जड़ी-बूटी के संग्रहण व विपणन का नवीन रूप सहकारिता विभाग उत्तर प्रदेश की जड़ी-बूटी विकास योजना 1972 के तहत् आया। तत्पश्चात् 1980 से इसे संरक्षण देने की दिशा में प्रभावी कदम हेतु जिलेवार, भेषज सहकारी संघों की स्थापना की गयी। वर्तमान में उत्तराखण्ड में नौ भेषज संघ कार्यरत हैं।

उत्तराखण्ड में जड़ी-बूटी संग्रहण व निर्मित दवाओं का विपणन करने वाले संस्थान

संस्थान का नाम स्थान 
इण्डियन ड्रग्स एवं फार्मास्युटिकल्स  ऋषिकेश 
इण्डियन मेडिसन फार्मास्युटिकल्स लि. (IMPCL) मोहान (अल्मोड़ा) 
को-ऑपरेटिव ड्रग फैक्ट्री रानीखेत 
कुमाऊँ मंडल विकास निगम  नैनीताल 
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद फॉर ड्रग रिसर्च ताड़ीखेत (अल्मोड़ा) 
गढ़वाल मंडल विकास निगम गढ़वाल

उत्तराखण्ड में प्रमुख जड़ी-बूटी शोध संस्थान 

जड़ी-बूटी शोध संस्थान  स्थान 
जी. बी. पन्त हिमालय पर्यावरणीय एवं विकास संस्थान कटारमल कोसी (अल्मोड़ा) 
जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान  गोपेश्वर (चमोली) 
उच्चस्थलीय पौध शोध संस्थान  श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल) 
सीमैष पंतनगर 
सीमैष बैजनाथ 
कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल का रसायन विभाग  नैनीताल
कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल का वानस्पतिक विभाग  नैनीताल
हेमवतीनन्दन बहुगुणा विश्वविद्यालय गढ़वाल का रसायन विभाग  टिहरी गढ़वाल 
हेमवतीनन्दन बहुगुणा विश्वविद्यालय गढ़वाल का वानस्पतिक विभाग  टिहरी गढ़वाल 
वन अनुसंधान संस्थान देहरादून

उत्तराखण्ड में प्रतिबंधित जड़ी-बूटी (Banned herbs in Uttarakhand)

वन प्रबंधन अधिनियम, 1982 के द्वारा औषधीय पौधों का संग्रहण निर्देशित है। उत्तराखण्ड में आज भी 114 जड़ीबटियाँ प्रतिबंधित हैं। इसके अतिरिक्त भारतीय आयात प्राधिकरण भी 44 प्रजातियों के आयात पर प्रतिबंध लगाया गया है जिसमें खैरा अफीम (पोस्त), चरस (गांजा), कुटकी (पिकोराइजा कुर्वा), धुनरे (टैक्सस बकाटा), किल्मोडा (बरबरिस एरिस्टाटा), वन क्कड़ी (पाडौफाइलम हेक्जेण्ड्रम) आदि प्रजाति पायी जाती हैं जिन पर प्रतिबंध हैं। कृषक को कृषि के अतिरिक्त विपणन का भी अधिकार नहीं हैं क्योंकि यह कार्य भी वन विभाग की अनुमति से भेषज सहकारी संघों द्वारा किया जाता है।

 

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