नन्द वंश (364 – 324 ईसा पूर्व) (Nanda Dynasty)
- संस्थापक – नरेश महापद्मनन्द
- अन्तिम शासक – धनानन्द
नन्द वंश (Nanda Dynasty) का संस्थापक नरेश महापद्मनन्द था। पुराणों में उसे ‘उग्रसेन’ कहा गया है। वह बड़ा योग्य, साहसी और महत्वाकांक्षी सम्राट् था। मगध के पूर्व नरेशों ने मगध साम्राज्य के विस्तार का जो कार्य प्रारम्भ किया था उसे महापद्मनन्द ने पूर्ण किया। जैन ग्रन्थ उसे एक नाई और वेश का पुत्र बताते हैं। यूनानी लेखकों के अनुसार वह एक नाई और शिशुनाग वंश (Shishunaga Dynasty) के अंतिम राजा की एक रानी का पुत्र था। पुराण उसे नाग वंश (Naag Dynasty) के अंतिम राजा महानन्दी और उसकी एक शूद्र पत्नी का पुत्र बताते हैं। अतः इतना तो स्पष्ट है कि वह शूद्र वर्ण का था।
पुराणों के अनुसार महापद्मनन्द ने सभी क्षत्री कुलों के राज्यों को नष्ट कर दिया। इक्ष्वाकु, पांचाल, हैहय, कलिंग, अस्सक, कुरू, मैथिल, शूरसेन आदि सभी राजवंशों के राज्य मगध राज्य में सम्मिलित कर लिए गये। इस प्रकार पंजाब से पूर्व का सम्पूर्ण भारत, मालवा, मध्यप्रदेश, कलिंग तथा दक्षिण में गोदावरी नदी तक का क्षेत्र नन्द राज्य में सम्मिलित कर लिया गया। इस कार्य का श्रेय महापद्मनन्द को जाता है। महापद्मनन्द ने बिम्बिसार द्वारा प्रारम्भ किए गये कार्य की पूर्ति की। मगध को भारत का सर्व-शक्तिशाली एवं विस्तृत राज्य बना दिया और भारतीय इतिहास में साम्राज्यों के युग का सूत्रपात किया।
नन्दवंश के नौ राजाओं ने मगध पर राज्य किया। लेकिन इस सन्दर्भ में ऐतिहासिक तथ्य प्राप्त नहीं होते कि मध्य प्रदेश से इनका क्या सम्बन्ध रहा। केवल अन्तिम शासक धनानन्द का उल्लेख मिलता है कि वह सिकन्दर का समकालीन था जिसके साम्राज्य की सीमाएँ दूर-दूर तक थी जिसमें अवन्तिराष्ट्र सम्मिलित था। वह एक शक्तिशाली सम्राट् था। इसी धनानन्द को सिंहासन से हटाकर चन्द्रगुप्त मौर्य ने मगध का राज्य प्राप्त किया।
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