कुचिपुड़ी (Kuchipudi)
कुचिपुड़ी (Kuchipudi) आंध्र प्रदेश का प्रसिद्ध नृत्य है। इसका आधार भरतमुनि का नाट्यशास्त्र हैं। कुचिपुड़ी (Kuchipudi) नृत्य शैली में अनुचालन पर विशेष ध्यान दिया जाता है। दक्षिण भारत में प्रचलित विभिन्न नृत्य शैलियों में कुचिपुड़ी (Kuchipudi) अपनी विशेषता के कारण विलय लगता है।
- कुचिपुड़ी नृत्य में अंग संचालन स्प्रिंग की भांति होता है। इसमें शिव प्रधान व कथानक प्रधान होने के कारण नाटकत्व अधिक होता है। इसमें लाश्य व ताण्डव नृत्य का समन्वय देखने को मिलता है।
- इसकी वेशभूषा सामान्यतः भरतनाट्यम नृत्यशैली के प्रकार की होती है। इसमें पद संचालन, हस्त मुद्राओं, ग्रीवा संचालन आदि पर विशेष बल दिया जाता है।
- इसमें मृदंग, मजीरा आदि वाद्य प्रयुक्त किए जाते है। ‘दशावतार शब्दम्’, ‘मण्डूक शब्दम्’, ‘प्रहलाद शब्दम्’, ‘श्रीरामपट्टाभिषेकम्’, ‘शिवाजी शब्दम्’ आदि कुचिपुड़ी शैली के अन्य नृत्य नाटक है। आधुनिक कुचिपुड़ी नृत्य-शैली मंदिर के प्रांगणों से निकलकर खुले तथा आधुनिक रंगमंच पर आ गई है। ताल चित्र में नर्तक/नर्तकी नृत्य करते समय अपने अंगूठे से फर्श पर आकृति बनाते हैं।
- इन कथानकों के अतिरिक्त कुचिपुड़ी में अनेक कथानकों पर नृत्य होता है जो धार्मिक, पौराणिक व सामाजिक संदर्भो से जुड़े होते हैं, यथा गीत गोविन्द (जयदेव), कृष्ण लीला (नारायण तीर्थ) तरंगय, क्षेत्रज्ञ के पद्म सुग्रीव विजयक तथा यक्षगान प्रसिद्ध नृत्य हैं।
- वर्तमान में इस नृत्य को प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचाने का श्रेय लक्ष्मी नारायण शास्त्री को जाता है। इन्होंने कतिपय उत्साही एवं निष्ठावान् शिष्यों को विशुद्ध रूप से प्रशिक्षित किया।
- टी. बाला सरस्वती ने कुचिपुड़ी की नृत्यांगना के रूप में पर्याप्त ख्याति अर्जित की। इसे अत्यधिक लोकप्रिय बनाने के लिये चिन्ता कृष्णमूर्ति ने उक्त नृत्य हेतु स्थायी रूप से संगठनों की स्थापना की।
- वी. चिन्न सत्यम् कुचिपुड़ी शैली के महान् प्रशिक्षक हैं। यामिनी कृष्णमूर्ति, राजा रेड्डी इस शैली की महान् नृत्यांगनाएं हैं।
कुचिपुड़ी नृत्य के प्रमुख कलाकार
लक्ष्मी नारायण शास्त्री, स्वप्नसुंदरी, राजा और राधा रेड्डी, यामिनी कृष्णमूर्ति, यामिनी रेड्डी, कौशल्या रेड्डी
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