भयानक रस (Bhayanak Ras)

भयानक रस (Bhayanak Ras)

भयानक रस (Bhayanak Ras)

  • जब किसी भयानक या अनिष्टकारी व्यक्ति या वस्तु को देखने या उससे सम्बंधित वर्णन करने या किसी अनिष्टकारी घटना का स्मरण करने से मन में जो व्याकुलता उत्पन्न होती है उसे भय कहते हैं उस भय के उत्पन्न होने से जिस रस कि उत्पत्ति होती है उसे भयानक रस कहते हैं।
  • भरतमुनि ने इसका रंग काला तथा देवता कालदेव को बताया है।

भयानक रस के अवयव (उपकरण)

  • भयानक रस का स्थाई भाव – भय ।
  • भयानक रस का आलंबन (विभाव) – बाघ, चोर, सर्प, शून्य स्थान, भयंकर वस्तु का दर्शन आदि।
  • भयानक रस का उद्दीपन (विभाव) – भयानक वस्तु का स्वर, भयंकर स्वर आदि का डरावनापन एवं भयंकर छेष्टाएँ।
  • भयानक रस का अनुभाव – कंपन, पसीना छूटना, मूह सूखना, चिंता होना, रोमांच, मूर्च्छा, पलायन, रुदन आदि ।
  • भयानक रस का संचारी भाव – दैन्य, सम्भ्रम, चिंता, सम्मोह, त्रास आदि ।

भयानक रस के उदाहरण –

(1) अखिल यौवन के रंग उभार, हड्डियों के हिलाते कंकाल।
कचो के चिकने काले, व्याल, केंचुली, काँस, सिबार।।

(2) उधर गरजती सिंधु लहरियाँ, कुटिल काल के जालों सी।
चली आ रहीं फेन उगलती, फन फैलाये व्यालों सी।

(3) ‘सूवनि साजि पढ़ावतु है निज फौज लखे मरहट्ठन केरी।
औरंग आपुनि दुग्ग जमाति बिलोकत तेरिए फौज दरेरी।
साहि-तनै सिवसाहि भई भनि भूषन यों तुव धाक घनेरी।
रातहु द्योस दिलीस तकै तुव सेन कि सूरति सूरति घेरी’।

(4)  आज बचपन का कोमल गात
जरा का पीला पात !
चार दिन सुखद चाँदनी रात
और फिर अन्धकार , अज्ञात !

(5) पुनि किलकिला समुद महं आए। गा धीरज देखत डर खाए।
था किलकिल अस उठै हिलोरा जनु अकास टूटे चहुँ ओरा।।

Read Also :

 

Read Also :

Leave a Reply

Your email address will not be published.

error: Content is protected !!