जल स्रोत (Water Source)

जल स्रोत (Water Source)

1. भूमिगत जल (Subsoil Water)

वर्षा या पिघले बर्फ से प्राप्त जल का वह भाग जो धरातल पर बहने या भाप बनने के बजाय धीरे-धीरे जमीन के अंदर रिसने की इस प्रक्रिया को अंतःस्पंदन (Intermediate Quivering) कहते हैं। धरातलीय जल का कुछ अंश चट्टानों के रन्ध्रों से, जो खनिज कणों के मध्य होता हैं, दरारों से धरातल जल के नीचे प्रवेश करता है। चट्टानों की जलधारणा करने की क्षमता रन्ध्रों के आकार पर निर्भर करती है। सरन्ध्रता और पारगम्यता चट्टानी पदार्थों के दो अलग-अलग गुण हैं। जिसमें पहले गुण के कारण जल रिसता है और दूसरे के कारण अंदर-ही-अंदर बहता है। चट्टानों को पारगम्य बनाती हैं। यदि ये आपस में न मिली हों तो चट्टानें अपारगम्य होती हैं और जल उनके अंदर से होकर नहीं बह सकता है। जो जल वर्षा और हिम द्वारा चट्टानों की संधियों और दरारों में रिसकर नीचे पहुँच जाता है, उसे आकाशी जल (Meteoric Water) कहा जाता है झीलों और सागरों में निक्षेपित अवसादी शैलों के छिद्रों और सुराखों में स्थित जल को सहजात जल (Connate Water) कहा जाता है। मैग्मा जल ज्वालामुखी क्रिया के कारण तप्त मैग्गा शैलों में घुसता है। अतः इन साधनों से प्राप्त किया गया जल धरातल के नीचे अपारगम्य और अप्रवेश्य चट्टानों के पास भूमिगत जल के रूप में इकट्ठा रहता है। 

Read Also ...  स्थानीय पवनें (Local wind)

भौम जलस्तर (Ground Water Level)

पृथ्वी के धरातल से नीचे चट्टानी पदार्थों के सभी रन्ध्र ऊपर से रिसने वाले जल से भरे रहते हैं। पारगम्य और सरन्ध्र चट्टानों का वह संस्तर जो भूमिगत जल से भरा रहता है, संतृप्त स्तर कहलाता है। भूमिगत क्षेत्र के इस जल को जिसकी नीचे के चट्टानी पदार्थ भूमिगत जल से संतृप्त होते हैं, भौस जलस्तर कहा जाता है। यह भौम जलस्तर नीचे के संतृप्त से अलग करता है। 

2. जल का सोता और जल स्रोत (Springs and Seeps)

नदी, झील या सागर के तली से प्राकृतिक तली से प्राकृतिक रूप से निकलने वाले बोधगम्य जल धारा को जल का स्रोत कहते है। वहीं दूसरी ओर सतह पर निकलने वाले अबोधगम्य जल धारा को जलस्रोत कहते है। ये दोनों ही भूमिगत जल के हाइड्रोकॉलिक चरण को प्रदर्शित करते हैं। दोनो का वृहत विस्तार महाद्वीपों और द्वीपों पर दिखाई देता है। जल सोता के निम्नलिखित प्रकार हैं:

बहुवर्षी जल सोता (Multi-Year Water Sleeps) – जब जल सोता का जल अविरल रूप से बहता रहता है तो इसे बहुवर्षी जल सोता कहते हैं।

आंतराषिक जल सोता (Intermittent Water Sleeps) – धरातल से गर्म जल बाहर आकर बहता है। ऐसा जल रिसकर गर्म ज्वालामुखी चट्टानी क्षेत्रों या पृथ्वी के अति गहरे भाग से पहुँच जाता है।

गर्म (तापीय) जल सोता (Hot Water Sleeps) – धरातल से गर्म जल बाहर आकर बहता है। ऐसा जल रिसकर गर्म ज्वालामुखीय चट्टानी क्षेत्रों या पृथ्वी के अति गहरें भाग में पहुँच जाता है। 

खनिज या सल्फर जल सोता (Mineral or Sulfur Water Sleeps) – ऐसे जल के सोतों के जल में घुले हुए सल्फर और अन्य खनिजों की बड़ी मात्रा होती है। 

Read Also ...  भारत में प्राकृतिक वनस्पति

भारत में जल का सोता मुख्यातः तीन क्षेत्रों में पाया जाता है। कुमायूँ हिमालय (उत्तराखण्ड), छोटानागपुर के निचले एवं उच्च भूमि क्षेत्रों, सह्याद्री के पश्चिम भाग (कोंकण क्षेत्र)। 

 

3. गीजर (Geyser)

गीजर शब्द का उपयोग सामान्यतः ऐसे जल के सोतों के लिए किया जाता है, जिनसे नियमित अंतराल पर गर्म जल और जलवाष्प की धारा कुछ सेंटीमीटर से लेकर सैकड़ों मीटर तक निकलती रहती है। गीजर प्रायः ऐसे क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ हालिया ज्वालामुखीय क्रियाओं से निकले लावा अभिपूर्ण रूप से ठंडे नहीं हुए हों। ऐसी स्थिति में धरातल से निकलने वाले भूमिगत जल इस गर्म लावा के संपर्क के कारण गर्म जल और जलवाष्प के रूप में बाहर निकलते हैं। गीजर के स्थिति के तीन मुख्य क्षेत्र हैं- यथा येलोस्टोन नेशनल पार्क (यूएसए), न्यूजीलैंण्ड का उत्तरी द्वीप तथा आईसलैण्ड। इसके अतिरिक्त अलास्का, कमचटका, जापान, मलय प्रायद्वीप, पूर्वी तिब्बत और मोरक्को में भी गीजर पाये जाता हैं। गीजर के जल सामान्यतः एल्कलाइन होते हैं जो मिलिका युक्त होते है। 

4. कुएँ (Wells) 

कुएँ मानव निर्मित होते है। कुँओं का निर्माण यांत्रिक एवं हाथ से गड्ढा खोदकर जल प्राप्ति हेतु किया जाता है। प्रचीन काल से ही । मनुष्य कुँओं का निर्माण अपने पीने के पानी और सिंचाई हेतु करता रहा है। कुएँ या तो डग-पिट्स के रूप में हो सकते हैं या फिर साफ्ट के रूप में जैसे कि ट्यूबेल। डग कुएँ कई तरह के हो सकते हैं। स्प्रिंग कुओं में एक छिद्र होता है जो कि धरातलीय मिट्टी के प्रथम चरण से होते हुए जलधारित बालूका के सम्पर्क में आता है। यदि जलधारित बालूका में पर्याप्त मात्रा में जल होता है तो तत्काल ही जल कुएँ में निकल आता है। भारत में ऐसे स्प्रिंग कुएँ हिमालय की तलहटी और गंगा के मैदानों में पाए जाते हैं। 

Read Also ...  भारत के प्रमुख फसलें - गेहूँ (Wheat)

आर्टीजियन कूप (Artesian Wells) 

पातालतोड़ या आर्टीजियन कुएँ ऐसे प्राकृतिक जलस्रोत होते हैं जो धरातल से स्वतः ऊपर प्रकट होते है और सतह पर जल निकलता रहता है। जल स्रोत और आर्टीजियन कुएँ में मुख्य अंतर यह है कि प्रथम में जल स्वयं ऊपर आ जाता है परंतु दूसरे के लिए मनुष्य को धरातलीय सतह पर पहले कुआँ खोदना पड़ता है और बाद में जल स्वयः निकलता रहता है। इस प्रकार के कुएँ मुख्यतः ऑस्ट्रेलिया में बनाए गए हैं। आस्ट्रेलिया में विश्व का सबसे बड़ा आर्टीजियन बेसिन है। इसके अतिरिक्त ये लंदन बेसन, सहारा, फ्रांस, लीबिया, भारत में तराई और गुजरात तथा अमरीका के दक्षिणी डकोटा में पाए जाते हैं।

 

Read More :

Read More Geography Notes

1 Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.

close button
Uttarakhand Current Affairs Jan - Feb 2023 (Hindi Language)
Uttarakhand Current Affairs Jan - Feb 2023 (Hindi Language)
error: Content is protected !!