उत्तराखंड लोकसेवा आयोग व अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा आयोजित की जानेवाली आगामी परीक्षाओं (UKPSC/ UKSSSC) को मध्यनजर रखते हुए Exam Pillar आपके लिए Daily MCQs प्रोग्राम लेकर आया है। इस प्रोग्राम के माध्यम से अभ्यर्थियों को उत्तराखंड लोकसेवा आयोग व अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के परीक्षाओं के प्रारूप के अनुरूप वस्तुनिष्ठ अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराये जायेंगे।
Daily UKPSC / UKSSSC MCQs : उत्तराखंड (Uttarakhand)
18 December, 2025
| Read This UKPSC / UKSSSC Daily MCQ – (Uttarakhand) in English Language |
Q1. कुलूत वंश का शासन मुख्य रूप से किस भौगोलिक क्षेत्र में स्थापित था?
(A) देहरादून घाटी
(B) कांगड़ा जिले की कुल्लू घाटी
(C) काशीपुर क्षेत्र की तराई भूमि
(D) अल्मोड़ा की सोमेश्वर घाटी
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Explanation: कुलूत वंश का राज्य क्षेत्र वर्तमान हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित कुल्लू घाटी में फैला हुआ था। यह स्थान उस काल के उत्तर-पश्चिमी पर्वतीय राजनीतिक भूगोल का महत्वपूर्ण केंद्र था, जहाँ से स्थानीय शासकों ने अपने प्रभाव का विस्तार किया। विकल्प (A) देहरादून घाटी गढ़वाल क्षेत्र में स्थित है और इसका संबंध गोत्रीय या कुणिन्द वंशों से रहा; विकल्प (C) काशीपुर क्षेत्र तराई क्षेत्र का हिस्सा है जहाँ कुषाण और कुणिन्द शासन के अवशेष पाए गए; विकल्प (D) अल्मोड़ा की सोमेश्वर घाटी कत्यूर वंश से संबंधित क्षेत्र था। अतः कुलूत वंश का सटीक भौगोलिक निर्धारण केवल कांगड़ा जिले की कुल्लू घाटी में ही उचित बैठता है।
Q2. कुलूत वंश के संदर्भ में ‘वृहतसंहिता’ और ‘मुद्राराक्षस’ का महत्व क्या है?
(A) इन ग्रंथों में कुलूत वंश की सांस्कृतिक परंपराओं और राजवंशीय संदर्भों का उल्लेख मिलता है
(B) इन ग्रंथों में कुलूत वंश के धार्मिक सुधारों और बुद्ध धर्म के प्रचार का विवरण है
(C) इन ग्रंथों में कुलूत वंश के व्यापारिक मार्गों और रेशम उद्योग का वर्णन है
(D) इन ग्रंथों में कुलूत वंश के अंतर्गत कृषिगत उत्पादन और सिंचाई पद्धति का विवरण है
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Explanation: ‘वृहतसंहिता’ और ‘मुद्राराक्षस’ दोनों ग्रंथ ऐसे स्रोत हैं जो कुलूत वंश की ऐतिहासिक उपस्थिति और उसकी सामाजिक-सांस्कृतिक स्थिति की जानकारी प्रदान करते हैं। वृहतसंहिता एक प्राचीन ज्योतिष-भौगोलिक ग्रंथ है जिसमें विभिन्न जनपदों और राजवंशों का उल्लेख किया गया है; वहीं मुद्राराक्षस, जो विशाखदत्त का प्रसिद्ध नाटक है, प्राचीन भारतीय राजनीति और राजवंशीय संघर्षों का साहित्यिक चित्रण करता है। इन दोनों स्रोतों से कुलूत वंश के अस्तित्व की पुष्टि होती है, जो इस वंश के ऐतिहासिक-सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य को रेखांकित करती है। विकल्प (B), (C) और (D) अनुमानाधारित या संदर्भविहीन हैं क्योंकि इन ग्रंथों में न तो धार्मिक सुधारों, न व्यापारिक रेशम मार्ग, और न ही कृषि प्रणाली का उल्लेख कुलूत वंश के संदर्भ में किया गया है। अतः विकल्प (A) ही सटीक और ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित उत्तर है।
Q3. कुलूत वंश का प्रतापी शासक कौन था, और उसकी विशिष्ट उपलब्धि क्या मानी जाती है?
(A) शीलवर्मन — जिसने अश्वमेध यज्ञ किए
(B) वीरयश — जिसकी वृताकार रजत मुद्राएं प्राप्त हुईं
(C) कनिष्क — जिसने रेशम मार्ग पर नियंत्रण किया
(D) हुविष्क — जिसने स्वर्ण मुद्राएं जारी कीं
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Explanation: कुलूत वंश का प्रमुख और प्रतापी शासक वीरयश था, जो अपनी विशिष्ट रजत मुद्राओं के लिए जाना जाता है। इन मुद्राओं का वृताकार (circular) स्वरूप यह संकेत देता है कि उस काल में मुद्रा-निर्माण की एक विशिष्ट तकनीक अपनाई जा रही थी और यह क्षेत्रीय आर्थिक-सांस्कृतिक संपर्कों का सूचक था। विकल्प (A) में शीलवर्मन गोत्रीय वंश का शासक था, जो देहरादून और यमुना तट पर सक्रिय था; विकल्प (C) में कनिष्क कुषाण वंश से संबंधित था और उसका शासन उत्तर-पश्चिमी भारत और मध्य एशिया तक फैला था; विकल्प (D) में हुविष्क भी कुषाण वंश का उत्तराधिकारी था और स्वर्ण मुद्राओं से संबंधित था। अतः केवल वीरयश ही कुलूत वंश का प्रतापी शासक था जिसकी वृताकार रजत मुद्राएं उसका ऐतिहासिक चिह्न हैं।
Q4. कुलूत वंश से प्राप्त ‘वृताकार रजत मुद्राएं’ ऐतिहासिक अध्ययन में किस कारण से विशेष मानी जाती हैं?
(A) इनसे वंश के शासनकाल, आर्थिक गतिविधियों और राजकीय प्रतीकों की जानकारी मिलती है
(B) इन मुद्राओं पर अशोक के धर्मलेख अंकित हैं जो मौर्य काल से जुड़ते हैं
(C) इन मुद्राओं का प्रयोग केवल धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता था
(D) इनका निर्माण दक्षिण भारत की चोल मुद्रा-प्रणाली से प्रेरित था
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Explanation: वृताकार रजत मुद्राएं इतिहासकारों के लिए बहुमूल्य स्रोत हैं क्योंकि वे न केवल शासक की पहचान (जैसे वीरयश) को स्पष्ट करती हैं, बल्कि उस समय की आर्थिक संरचना, धातु-प्रयोग तकनीक, मुद्रा विनिमय प्रणाली और राजकीय प्रतीकों की समझ भी प्रदान करती हैं। इन मुद्राओं का रजत (silver) स्वरूप यह दर्शाता है कि उस क्षेत्र में धात्विक मुद्रा प्रणाली सुव्यवस्थित थी और व्यापारिक गतिविधियाँ स्थिरता की अवस्था में थीं। विकल्प (B) में अशोक के धर्मलेख मौर्य काल के हैं और इन रजत मुद्राओं से संबंधित नहीं हैं; विकल्प (C) धार्मिक प्रयोजनों तक सीमित नहीं था क्योंकि मुद्रा एक आर्थिक साधन थी; विकल्प (D) दक्षिण भारत की चोल मुद्रा-प्रणाली से प्रेरणा का कोई ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। अतः इन मुद्राओं का ऐतिहासिक मूल्य उनके आर्थिक और प्रतीकात्मक संदर्भ में निहित है, जिससे विकल्प (A) सर्वथा सही सिद्ध होता है।
Q5. काशीपुर (गोविषाण) क्षेत्र से संबंधित मित्र वंश के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
(A) काशीपुर में मित्र वंश के अंतर्गत केवल एक शासक का उल्लेख मिलता है — मातृमित्र
(B) काशीपुर क्षेत्र में मित्र वंश के दो शासक — मातृमित्र और पृथ्वीमित्र — का उल्लेख प्राप्त होता है
(C) मित्र वंश का केंद्र केवल मथुरा क्षेत्र तक सीमित था और काशीपुर से इसका कोई संबंध नहीं था
(D) मित्र वंश के शासकों ने अपनी राजधानी देहरादून क्षेत्र में स्थापित की थी
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Explanation: काशीपुर (प्राचीन गोविषाण) क्षेत्र में प्राप्त ऐतिहासिक साक्ष्य यह स्पष्ट करते हैं कि वहाँ मित्र वंश के दो प्रमुख शासकों का उल्लेख मिलता है — मातृमित्र और पृथ्वीमित्र। इन दोनों राजाओं के नाम इस बात के द्योतक हैं कि मित्र वंश का प्रभाव केवल मथुरा क्षेत्र तक सीमित नहीं था, बल्कि यह उत्तर भारत के अन्य सांस्कृतिक केंद्रों जैसे गोविषाण (वर्तमान काशीपुर) तक विस्तारित था। इस तथ्य से यह भी संकेत मिलता है कि उस समय क्षेत्रीय शक्ति-संरचना में मित्र वंश एक स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र सत्ता के रूप में विद्यमान था।
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