उत्तराखण्ड विशेष अधीनस्थ शिक्षा (प्रवक्ता संवर्ग) सेवा (सामान्य तथा महिला शाखा)
द्वितीय चरण (विषयवार लिखित परीक्षा – वस्तुनिष्ठ प्रकार) पाठ्यक्रम
विषय | प्रश्नों की संख्या | अधिकतम अंक | समय अवधि |
कृषि (Agriculture) | 200 | 200 | 03 घण्टे |
नोटः- लिखित परीक्षा में मूल्यांकन हेतु ऋणात्मक पद्धति प्रयुक्त की जाएगी।
परीक्षा पाठ्यक्रम (कृषि)
1. सस्य और कृषि मौसम विज्ञान
कृषि और इसके क्षेत्र, बीज और बुवाई, जुताई और जोती हुई जमीन, फसल घनत्व और ज्यामिति, फसल पोषण, खाद और उर्वरक, पौष्टिक तत्व उपयोग दक्षता, जल संसाधन, मृदा – पौध-जल सम्बन्ध, फसल जल आवश्यकता, जल उपयोग दक्षता, सिंचाई निर्धारण मानदंड और विधियाँ, सिंचाई के पानी की गुणवत्ता, जल भराव । खरपतवार – महत्व, वर्गीकरण, फसल – खरपतवार प्रतिस्पर्धा, खरपतवार प्रबन्धन की संकल्पना – सिद्धान्त एवं विधियाँ, खरपतवार नाशक का वर्गीकरण, चयनात्मकता और प्रतिरोध ।
खरपतवार, उसके लक्षण, प्रसार एवं वर्गीकरण, विभिन्न फसलों के साथ सम्बन्ध; एवं उनके गुणन; खरपतवार का सांस्कृतिक, जैविक तथा रासायनिक नियंत्रण ।
फसल की वृद्धि एंव विकास; वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले कारक, फसल चक्र एवं उसके सिद्धान्त, फसलों का अनुकूलन एवं वितरण, फसलों की कटाई एवं मड़ाई ।
पारिस्थितिकी, प्राकृतिक संसाधनों एवं उनके प्रबन्धन तथा संरक्षण में मानव के लिए प्रासंगिकता । फसल के वितरण एवं उत्पादन के पर्यावरणीय कारक । फसल वृद्धि के लिए जलवायवीय तत्व, बदलते हुए पर्यावरण का फसलों के स्वरूप में प्रभाव । पर्यावरण प्रदूषण तथा फसल, पशुओं एवं मानव से सम्बन्धित जोखिम ।
पृथ्वी का वायुमण्डल–इसकी रचना, सीमा तथा संरचना, वायुमण्डल में मौसम परिवर्तनियता; वायुमण्डलीय दबाव तथा उँचाई के साथ इसमें भिन्नता; हवा, हवा के प्रकार, चक्रवात, प्रतिचक्रवात, स्थल एवं समुद्र समीर सौर विकिरण की प्रकृति एंव गुण; वायुमण्डलीय तापमान, तापमान का व्युत्क्रमण, ह्रास दर, तापमान का उर्ध्वाधर स्वरूप; वायुमण्डलीय आर्द्रता, वाष्प दबाव, संघनन प्रक्रिया, ओस, कोहरा, पाला, बादल का बनना; वर्षण एवं इसकी प्रक्रिया, वर्षण एवं इनके प्रकार जैसे वर्षा, फुहार, हिम, सहिम वृष्टि एवं ओले; बादल का बनना एवं वर्गीकरण; कृत्रिम वर्षा, मानसून तथा कृ षि में उसका महत्व, ओजोन अल्पीकरण, मौसम सम्बन्धी खतरे – सूखा, बाढ़, पाला और अति- मौसम जैसे गरम एवं ठंडी लहरे, बादल फटना । मौसम पूर्वानुमान – मौसम पूर्वानुमान के प्रकार एवं उपयोग । जलवायु परिवर्तन एवं परिवर्तिता, भूमण्डलीय उष्णता, जलवायु परिवर्तन के कारण एवं क्षेत्रीय व राष्ट्रीय कृषि पर इसका प्रभाव ।
राज्य के विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्र में फसल पद्धतियाँ। अधिक उत्पाद एवं अल्पकालिक प्रजातियों का फसल पद्धतियों पर प्रभाव । बहुफसलीय, बहुमंजली, रीले एवं अन्तरफसल की संकल्पना एवं सतत फसल उत्पादन में उसका महत्व । राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में खरीफ एवं रवी मौसम के दौरान पैदा होने वाले महत्वपूर्ण अनाज, दलहनी, तिलहन, फाइबर, चीनी तथा नगदी फसलों के उत्पादन के लिए पद्धतियों का संकुल । कृषि एवं सामाजिक वानिकी के संदर्भ में विभिन्न प्रकार के वानिकी पौधों के प्रमुख लक्षण, महत्व एवं प्रसारण।
2. मृदा विज्ञान और कृषि रसायन
मृदा उत्पत्ति : मिट्टी बनाने वाली चट्टानें और खनिज अपक्षय, प्रक्रिया और मिट्टी के गठन के कारक; मृदा स्वरूप, मृदा घटक, मृदा के भौतिक गुण, समस्याग्रस्त मृदायें, भारत में उनका विस्तार, वितरण और सुधार। मृदा और पौधों में आवश्यक पौध पोषक तत्व एवं अन्य लाभकारी तत्व। सहजीवी और गैर-सहजीवी नाइट्रोजन यौगिकीकरण ।
मिट्टी की उर्वरता के सिद्धान्त और उसका सही उर्वरक उपयोग हेतु मूल्यांकन । जैविक खाद, भारी एवं केन्द्रित खाद तैयार करने की विधियाँ और गुण । हरी खाद । खाद संस्तुति की पद्धतियाँ । एकीकृ त पोषक तत्व प्रबन्धन पौधों में पोषक प्रवाह तंत्र, पौधों में पोषक तत्व उपलब्धता को प्रभावित करने वाले कारक |
मृदा के नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्सियम, मैग्निशियम, सल्फर और सूक्ष्म पोषक तत्वों के रासायनिक गुणधर्म। मृदा के विभिन्न पोषक तत्वों के महत्वपूर्ण स्तर । जल विभाजन आधार पर मृदा संरक्षण योजना। पर्वतीय क्षेत्रों, तलहटी और घाटियों में अपरक्षण और अपवाह प्रबन्धन; प्रक्रिया एवं उनको प्रभावित करने वाले कारक ।
शुष्क कृषि और उनकी समस्याए। वर्षा आधारित कृषि में कृषि उत्पादन के स्थायीकरण की तकनीक। फसल उत्पादन के लिए जल उपयोग दक्षता, सिंचाई निर्धारण के मानदंड, सिंचाई योग्य जल के अपवाह हानि को कम करने वाले तरीके एवं साधन । मिट्टी में जलभराव की निकासी।
कृषि भूमि प्रबन्धन, क्षेत्र, महत्व एवं विशेषताएं, कृषि योजना और बजट । विभिन्न प्रकार की कृषि प्रणालियों का अर्थशास्त्र । कृषि निवेश व उत्पाद का विपणन एवं मूल्य निर्धारण, मूल्य में उतार चढ़ाव व उनकी लागत, कृषि अर्थव्यवस्था में सहकारिता की भूमिका, कृषि के प्रकार एवं प्रणाली और उनको प्रभावित करने वाले कारक । आर्थिक विश्लेषण का दृष्टिकोण, बुनियादी अवधारणाएं: वस्तु एवं सेवा, अभीष्ट, माँग, खपत, उपयोगिता, लागत और मूल्य, धन, पूंजी, आय और कल्याण ।
कृषि प्रसार, इसका महत्व एवं भूमिका, प्रसार कार्यक्रमों के मूल्यांकन की विधियाँ, विसरण, संचार और नवप्रवर्तन को अपनाने में लोगों की भागीदारी एवं प्रेरणा । कृषि यंत्रीकरण और कृषि उत्पादन व ग्रामीण रोजगार में इसकी भूमिका ।
III. कृषि सांख्यिकी
कृषि में सांख्यिकीय अनुप्रयोग, केन्द्रीय प्रवृत्ति और विक्षेपण की माप, प्रायिकता, जोड़ और गुणा प्रमेय (बिना प्रमाण) की परिभाषा । प्रायिकता पर आधारित सरल समस्याएँ । द्विपदीय और पॉयसन वितरण, सह-संबंध की परिभाषा, स्कैटर आरेख । कार्ल पियरसन का सह-संबंध गुणांक । रेखीय प्रतिगमन समीकरण । सार्थकता परीक्षण का परिचय, माध्य के लिए एक नमूना व दो – नमूना t-परीक्षण, 2×2 आकस्मिकता तालिका में गुणों की स्वतंत्रता का काई – स्क्वायर परीक्षण । विचरण, एकपक्षीय वर्गीकरण के विश्लेषण का परिचय । नमूनाकरण पद्धतियों का परिचय, नमूनाकरण बनाम पूर्ण गणना, प्रतिस्थापन के साथ एवं प्रतिस्थापन के बिना सरल याहच्छिक नमूनाकरण, सरल याहच्छिक नमूने के चयन के लिए याहच्छिक संख्या टेबल्स का उपयोग ।
2. आनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन
मेण्डल के वंशानुक्रम का नियम, वंशानुक्रम के गुणसूत्र का सिद्धान्त, सेक्स से जुड़े, सेक्स प्रभावित और सेक्स उत्परिवर्तन । महत्त्वपूर्ण क्षेत्र फसलों की किस्मों व सम्बन्धित प्रजातियों के बदलाव का आकारिकी स्वरूप। फसल सुधार में भिन्नता के कारण और उपयोग । प्रमुख कृषि फसलों के सुधार के लिए पौध प्रजनन के सिद्धान्तों का उपयोग, स्वतः व पर परागण फसलों के प्रजनन की विधियाँ । सूत्रपात, चयन, संकरण । पुरूष बाँझपन और आत्मविहीनता, प्रजनन में बहुगुणित के उत्परिवर्तन का उपयोग ।
आनुवंशिक विकार। आनुवंशिक पदार्थ की प्रकृति, संरचना और पुनरावृत्ति । प्रोटीन संश्लेषण, जीन अवधारणाः जीन संरचना, कार्य और विनियमन ।
बीज प्रौद्योगिकी और उसके महत्व, उत्पादन, प्रसंस्करण, भण्डारण और बीज परीक्षण । उन्नत बीजों के उत्पादन, प्रसंस्करण एवं विपणन में राष्ट्रीय और राज्य बीज संगठनों की भूमिका । फसल कार्यिकी और कृषि में इसका महत्व; प्रोटोप्लाजम का भौतिक गुण व रसायनिक संघटन, अवरोध, पृष्ठ तनाव, विस्तार, परासरण, पानी का अवशोषण और स्थानान्तरण, पादप कोशिका में वाष्पोत्सर्जन ।
3. पादप कार्यिकी विज्ञान
पादप वृद्धि नियंत्रकः कार्यिकी भूमिका और कृषिक उपयोग, प्रमुख फसलों के वृद्धि और विकास के कार्यिकी पक्षः वृद्धि विश्लेषण, फसल उत्पादकता में कार्यिकी विकास मानकों की भूमिका।
किण्वक और पौध रंजक, प्रकाश संश्लेषण – आधुनिक अवधारणाए और प्रभावित करने वाले कारक, प्रकाश व अंधकारकृत प्रतिक्रियाए, सी3, सी4 और कैम पौधे; वायुजीवी व अवायवीय श्वसन, वृद्धि और विकास, दीप्तिकालिता और बसंतीकरण |
प्रमुख फल और सब्जी फसलों की खेती एवं जलवायु सम्बन्धी आवश्यकताएँ: अभ्यास का संकुल और उसका वैज्ञानिक आधार । फलों और सब्जियों के कटाई के पूर्व व बाद की कार्यिकी । प्रसंस्करण तकनीक और उपकरण । भूदृश्य और पुष्पोत्पादन सहित सजावटी पौधों की खेती । लान और बगीचों की रूपरेखा व खाका ।
राज्य की सब्जियों, फलों और रोपण फसलों के रोग और कीट और पौध बीमारियों के नियंत्रण के उपाय। कीटनाशक और उनका निरूपण व उनका प्रयोग, पौध संरक्षण उपकरण, उनकी देखभाल और रखरखाव ।
4. कृषि कीट विज्ञान
फाइलम आर्थ्रोपोडा का कक्षाओं तक वर्गीकरण । आकारिकी विज्ञानः कीट छल्ली तथा निर्मोचन की संरचना और कार्य । सिर, वक्ष और पेट की संरचना । कीट में एंटीना की संरचना व संशोधन, मुखभाग, पैर, पंखों का शिराविन्यास, संशोधन और पंखों का युग्मन तंत्र । नर व मादा कीट जननांग की संरचना। कीटों में उपरति व कायान्तरण । लार्वा व प्यूपा के प्रकार । कीटों के पाचन, संचलन, उत्सर्गी, श्वसन, तंत्रिका, कार्यदर्शि (अंतः स्त्रावी) और प्रजनन प्रणाली की संरचना व कार्य । सरल और यौगिक आँखे ।
कीट पारिस्थितिकी : वृद्धि एवं विकास पर जैविक व अजैविक कारकों का प्रभाव । कीटनाशकों का वर्गीकरण, उनका नियमन और प्रयोग तकनीक, आई०पी०एम० की अवधारणा, प्रमुख फसलों, सब्जियों, फलों और भण्डारित अनाज के रोग एवं कीट तथा उनका प्रबन्धन ।
लाभकारी कीटों का प्रबन्धः मधुमक्खी पालन, पालने की विधियाँ, मधमक्खी के शत्रु और रोग । रेशम कीट के प्रकार और उनकी जैविकी । शहतूत की खेती, कोकूनो का पालन, बढ़त और कटाई । रेशम कीट के रोग व कीट । लाख कीट, जैविकी, मेजबान पौधा, लाख उत्पादन- बीजू लाख, बटन लाख, चपड़ा, लाख उत्पाद । सामान्य तौर पर जैविक नियंत्रण में इस्तेमाल होने वाले प्रमुख परजीवियों और परभक्षियों की पहचान ।
VII. पादप रोग विज्ञान और प्रबन्धन
पौधों की बीमारियां, क्षेत्र और पादप रोग विज्ञान के उद्देश्यों का महत्व । पादप रोग विज्ञान की शर्ते और अवधारणाएं। रोगजनन । रोग के विकास को प्रभावित करने वाले कारण / कारक: रोग त्रिकोण और चतुष्फलक एवं पौध रोगों का वर्गीकरण।
महत्वपूर्ण पौध रोगजनक जीव, विभिन्न समूहः कवक, जीवाणु, दुराराध्य वायुकोशीय जीवाणु, फाइटोप्लास्मास, स्पिरोप्लास्मास, विषाणु, वाइरोइड्स, शैवाल, प्रोटोजोवा, फोनरोगैमिक परजीवी और सूत्रकृमि, उनके द्वारा होने वाले रोगों के उदाहरणो के साथ । कवकः सामान्य लक्षण और कवक का कक्षाओं तक वर्गीकरण । जीवाणु और श्लेष्मः सामान्य आकारिकी लक्षण । वर्गीकरण की मौलिक विधियाँ। विषाणुः प्रकृति, संरचना, पुनरावृत्ति और संचरण । फोनरोगैमिक पौध परजीवी का अध्ययन । सूत्रकृमिः सामान्य आकारिकी और प्रजनन, वर्गीकरण, लक्षण और पौध सूत्रकृमि की वजह से हुई क्षति की प्रकृति। पौध रोग प्रबन्धन का सिद्धान्त तथा विधियाँ ।
महामारी विज्ञानः रोग के विकास को प्रभावित करने वाले कारक । कवकनाशियों और प्रतिजैविकों की प्रकृति, रसायनिक संयोजन, वर्गीकरण, कार्यविधि और नियमन । क्षेत्र और बागवानी फसलो के महत्वपूर्ण रोग और उनका प्रबन्धन । एकीकृत कीट और रोग प्रबन्धन के सिद्धान्त ।