बिहार में फ्रांसीसी कंपनियों का आगमन

भारत में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी (French East India Company) की स्थापना फ्रेंकोइस मार्टिन के नेतृत्व में 1664 ई. में की गई। मार्टिन ने 1674 ई. में पांडिचेरी की स्थापना की तथा शीघ्र ही उसने माही, कराइकल एवं दूसरी जगहों पर फ्रांसीसी व्यापारिक केंद्रों की स्थापना की। कुछ वर्षों के उपरांत फ्रांसीसियों ने बंगाल में प्रवेश किया एवं चंद्रनगर की स्थापना की। इसके तत्काल बाद 1734 ई. में उन्होंने पटना में माल गोदाम की स्थापना की। फ्रांसीसी कंपनी की मुख्य दिलचस्पी बिहार में शोरा प्राप्त करना था। अपने प्रभुत्व एवं व्यापार के उद्देश्य से अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी एवं फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच तनाव की स्थिति बनी रहती थी। अंग्रेजों ने मार्च, 1757 में चंद्रनगर पर कब्जा कर लिया। कासिम बाजार में फ्रांसीसी कंपनी के प्रमुख एम. जीयालों को बंगाल छोड़ने पर विवश होना पड़ा। जींयालॉ 2 मई, 1757 को भागलपुर पहुँचा और 3 जून को पटना आया। पटना में बिहार के डिप्टी गवर्नर राजा राम नारायण ने उसका स्वागत किया तथा बैरक के निर्माण के लिए जगह प्रदान की। प्लासी के युद्ध में विजयी होने के बाद अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी के तत्कालीन बिहार के जनरल आयरकुट ने जींयालॉ को पटना से निष्कासित कर फ्रांसीसी माल गोदामों पर कब्जा कर लिया। 1761 ई. में पांडिचेरी भी फ्रांसीसियों के हाथ से निकल गया। 1763 ई. में डैरिफ की संधि के तहत फ्रांसीसी कंपनी को अपने खोए हुए क्षेत्र वापस मिले। 1793 ई. में लॉर्ड कार्नवालिस के समय भारत में फ्रांसीसियों की व्यापारिक गतिविधि सिमटकर पांडिचेरी तक रह गई। धीरे-धीरे 1814 ई. तक बिहार एवं भारत से फ्रांसीसी गतिविधियाँ लुप्तप्राय हो गई।

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