Shant Ras

शान्त रस (Shant Ras)

शान्त रस (Shant Ras)

  • अनित्य और असार तथा परमात्मा के वास्तविक रूप के ज्ञान से हृदय को शान्ति मिलती है और विषयों से वैराग्य हो जाता है। यह अभिव्यक्त होकर शांत रस में परिणत हो जाता है।
  • जहाँ न दुःख होता है, न द्वेष होता है मन सांसारिक कार्यों से मुक्त हो जाता है मनुष्य वैराग्य प्राप्त कर लेता है शान्त रस कहा जाता है।

शान्त रस के अवयव (उपकरण)

  • शान्त रस का स्थाई भाव − निर्वेद (उदासीनता)।
  • शान्त रस का आलंबन (विभाव) − परमात्मा  चिंतन एवं संसार की क्षणभंगुरता।
  • शान्त रस का उद्दीपन (विभाव) − सत्संग, तीर्थस्थलों की यात्रा, शास्त्रों का अनुशीलन आदि।
  • शान्त रस का अनुभाव − पूरे शरीर मे रोमांच, पुलक, अश्रु आदि।
  • शान्त रस का संचारी भाव − धृति, हर्ष, स्मृति, मति, विबोध, निर्वेद आदि।

शान्त रस के उदाहरण – 

(1) लम्बा मारग दूरि घर विकट पंथ बहुमार
कहौ संतो क्युँ पाइए दुर्लभ हरि दीदार

(2) मन रे तन कागद का पुतला।
लागै बूँद बिनसि जाए छिन में,  गरब करे क्या इतना॥

(3) मन पछितैहै अवसर बीते।
दुरलभ देह पाइ हरिपद भजु, करम वचन भरु हीते
सहसबाहु दस बदन आदि नृप, बचे न काल बलीते॥

(4) जब मैं था तब हरि नाहिं अब हरि है मैं नाहिं,
सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं।

(5) भरा था मन में नव उत्साह सीख लूँ ललित कला का ज्ञान
इधर रह गंधर्वों के देश, पिता की हूँ प्यारी संतान।

Read Also :

 

Read Also :
error: Content is protected !!