Ras ke Bhed - Page 2

श्रृंगार रस (Shringar Ras)

श्रृंगार रस (Shringar Ras)

  • नायक-नायिका के सौन्दर्य एवं प्रेम संबंधी वर्णन की सर्वोच्च (परिपक्व) अवस्था को श्रृंगार रस कहा जाता है।
  • श्रृंगार रस को रसों का राजा/रसराज कहा जाता है।

श्रृंगार रस के अवयव (उपकरण)

  • श्रृंगार रस का स्थाई भाव – रति।
  • श्रृंगार रस का आलंबन (विभाव) – नायक और नायिका ।
  • श्रृंगार रस का उद्दीपन (विभाव) – आलंबन का सौदर्य, प्रकृति, रमणीक उपवन, वसंत-ऋतु, चांदनी, भ्रमर-गुंजन, पक्षियों का कूजन आदि।
  • श्रृंगार रस का अनुभाव – अवलोकन, स्पर्श, आलिंगन, कटाक्ष, अश्रु आदि।
  • श्रृंगार रस का संचारी भाव – हर्ष, जड़ता, निर्वेद, अभिलाषा, चपलता, आशा, स्मृति, रुदन, आवेग, उन्माद आदि।

श्रृंगार रस के उदाहरण –  

दूलह श्रीरघुनाथ बने दुलही सिय सुंदर मंदिर माही ।
गावति गीत सबै मिलि सुन्दरि बेद जुवा जुरि विप्र पढ़ाही।।
राम को रूप निहारित जानकि कंकन के नग की परछाही ।
यातें सबै भूलि गई कर टेकि रही, पल टारत नाहीं। (तुलसीदास)

श्रृंगार के भेद (Shringar ke bhed)

श्रृंगार के दो भेद होते हैं-

  • संयोग श्रृंगार
  • वियोग श्रृंगार

(i) संयोग श्रृंगार – नायक-नायिका की संयोगावस्था का वर्णन करने वाले श्रृंगार को संयोग श्रृंगार कहा जाता है, यहाँ पर संयोग का अर्थ ‘सुख की प्राप्ति’ से है।
उदाहरण –
(1) बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय
सौंह करे, भौंहनि हँसे, दैन कहै, नटि जाए। (बिहारी)

(2) थके नयन रघुपति छबि देखें। पलकन्हिहूँ परिहरीं निमेषें॥
अधिक सनेहँ देह भै भोरी। सरद ससिहि जनु चितव चकोरी॥ (रामचरितमानस)

(3) एक पल, मेरे प्रिया के दृग पलक
थे उठे ऊपर, सहज नीचे गिरे।
चपलता ने इस विकंपित पुलक से,
दृढ़ किया मानो प्रणय संबन्ध था।। (सुमित्रानंदन पंत)

(4) लता ओर तब सखिन्ह लखाए।
श्यामल गौर किसोर सुहाए।।
थके नयन रघुपति छबि देखे।
पलकन्हि हूँ परिहरी निमेषे।।
अधिक सनेह देह भई भोरी।
सरद ससिहिं जनु चितव चकोरी।। (तुलसीदास)

(5) दुलह श्रीरघुनाथ बने, दुलही सिय सुन्दर मन्दिर माही।
गावति गीत सखै मिलि सुन्दरी, बेद गुवा जुरि विप्र पढ़ाही।
राम को रूप निहारति जानकी, कंकन के नग की परछाही।
यतै सबै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारत नाहीं। (तुलसीदास)

(6) देखि रूप लोचन ललचाने
हरषे जनु निज निधि पहचाने
अधिक सनेह देह भई मोरी
सरद ससिहिं जनु वितवचकोरी। (तुलसीदास)

(7) मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई। (मीराबाई)

(ii) वियोग श्रृंगार – इस प्रकार के श्रृंगार में नायक-नायिका की वियोगावस्था का वर्णन किया जाता है,
उदाहरण –
(1) निसिदिन बरसत नयन हमारे
सदारहित पावस ऋतु हम पै
जब ते स्याम सिधारे।। (सूरदास)

(2) चलत गोपालन के सब चले
यही प्रीतम सौ प्रीति निरंतर, रहे ने अरथ चले। (सूरदास) 

(3) रे मन आज परीक्षा तेरी !
सब अपना सौभाग्य मनावें।
दरस परस निःश्रेयस पावें।
उद्धारक चाहें तो आवें।
यहीं रहे यह चेरी ! (मैथिलीशरण गुप्त)

(4) गोपालहीं पावौ धौ किहि देस।
सिंगी मुद्राकर खप्पर लै, करि हौ, जोगिनी भेस। – (सूरदास)

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रस – हिन्दी व्याकरण

“विभावानुभावव्यभिचारि संयोगाद्रसनिष्पत्तिः।” अर्थात् विभाव, अनुभाव एवं व्यभिचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। यह रस-दशा ही हृदय का स्थाई भाव है। रस का शाब्दिक अर्थ ‘आनन्द’ है। रस को काव्य की आत्मा कहा जाता है। 

उल्लेखनीय है कि रस का सर्वप्रथम उल्लेख ‘भरत मुनि’ ने किया है। भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र में आठ प्रकार के रसों का वर्णन किया है, जो निम्नलिखित हैं-

  1. श्रृंगार रस
  2. हास्य रस
  3. करुण रस 
  4. रौद्र रस
  5. वीर रस
  6. वीभत्स रस
  7. भयानक रस
  8. अद्भुत रस

रस के अंग (Parts of Ras)

रस की परिभाषा में प्रयुक्त शब्दों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है, जिन्हें रस का अंग भी कहा जाता है-

  1. विभाव
  2. अनुभाव
  3. संचारी अथवा व्यभिचारी भाव
  4. स्थायी भाव

1. विभाव (Vibhav)

  • वह पदार्थ, व्यक्ति या बाह्य विकार जो अन्य व्यक्ति के हृदय में भावोद्रेक (भावावेश) करे उन कारणों को विभाव कहा जाता है।
  • भावों की उत्पत्ति के कारण विभाव माने जाते हैं।

विभाव के प्रकार (Types of Vibhav)

विभाव दो प्रकार के होते हैं- 1. आलंबन विभाव और 2. उद्दीपन विभाव

आलंबन विभाव (Aalamban Vibhav)

  • जिसका सहारा (आलंबन) पाकर स्थायी भाव जागते हैं उसे आलंबन विभाव कहते हैं; जैसे – नायक-नायिका।
  • आलंबन विभाव के दो पक्ष होते हैं – आश्रयालंबन व विषयालंबन।
  • जिसके मन में भाव जगे उसे आश्रयालंबन एवं जिसके प्रति अथवा जिसके कारण मन में भाव जगे उसे विषयालंबन कहा जाता है;
    जैसे – यदि राम के मन में सीता के प्रति रति का भाव जगता है तो राम आश्रय होंगे एवं सीता विषय

उद्दीपन विभाव (Uddipan Vibhav)

  • जिन वस्तुओं या परिस्थितियों को देखकर स्थायी भाव उद्दीप्त होता है, उसे उद्दीपन विभाव कहते हैं;
    जैसे – रमणीक उद्यान, एकांत स्थल, नायक नायिका की शारीरिक चेष्टाएँ, चाँदनी आदि।

2. अनुभाव (Anubhav)

  • मनोगत भावों को व्यक्त करने वाले शारीरिक विकारों को अनुभाव कहा जाता है। अनुभावों की संख्या 8 बताई गई है-
    (i) स्तंभ (ii) स्वेद (ii) रोमांच (iv) स्वर-भंग (v) कम्प (vi) विवर्णता (रंगहीनता) (vii) अश्रु (viii) प्रलय (संज्ञा हीनता ) ।

3. संचारी अथवा व्यभिचारी भाव (Sanchari adhva Vyabhichari Bhav)

  • मन में आने-जाने वाले (संचरण करने वाले) भावों को संचारी अथवा व्यभिचारी भाव कहा जाता है।
  • संचारी भावों की संख्या 33 बताई गई जिनका विवरण निम्न प्रकार है-
    (1) हर्ष (2) विषाद (3) त्रास (भय) (4) लज्जा (5) ग्लानि (6) चिंता (7) शंका
    (8) असूया (दूसरे के उत्कर्ष के प्रति असहिष्णुता)
    (9) अमर्ष (विरोधी का अपकार करने की अक्षमता से उत्पन्न दुःख)
    (10) मोह (11) गर्व (12) उत्सुकता (13) उग्रता (14) शंका (15) दीनता
    (16) जड़ता (17) आवेग (18) निर्वेद (अपने को कोसना या धिक्कारना)
    (19) धृति (चित्त की चंचलता का अभाव ) (20) मति (21) विबोध (चैतन्य लाभ)
    (22) वितर्क (23) श्रम (24) आलस्य (25) निद्रा (26) स्वप्न (27) स्मृति
    (28) मद (29) उन्माद (30) अवहित्था (हर्ष आदि भावों को छिपाना)
    (31) अपस्मार (मूर्च्छा) (32) व्याधि (33) मरण

4. स्थायी भाव (Sthayi Bhav)

  • स्थायी भाव का तात्पर्य होता है – प्रधान भाव
  • प्रधान भाव वह होता है जो रस की अवस्था तक पहुँचता है।
  • काव्य अथवा नाटक में एक स्थायी भाव शुरू से अंत तक होता है।
  • स्थायी भावों की संख्या 9 बताई गई है। स्थायी भाव ही रस का आधार होता है। एक रस के मूल में एक स्थायी भाव रहता है। अतः रसों की संख्या भी 9 हैं, जिन्हें ‘नवरस’ कहा जाता है।
  • मूलतः नवरस ही माने जाते हैं। बाद के आचार्यों ने 2 और भावों (वात्सल्यभगवद् विषयक रति) को स्थायी भाव की मान्यता दी। इस तरह स्थायी भावों की संख्या 11 हो गई और इसी अनुरूप रसों की संख्या भी 11 हो गई है।

रस के सभी अवयव

  • भावपक्ष
    • स्थायी भाव
    • संचारी भाव
  • विभावपक्ष
    • आलंबन
    • उद्दीपन
      • आन्तरिक चेष्टाएँ
      • बाह्य परिस्थितियाँ
    • आश्रय
      • कायिक
      • मानसिक
      • वाचिक
      • आहार्य
  • अनुभाव

रस के भेद (प्रकार) (Types of Ras)

  1. श्रृंगार रस (Shringar Ras)
  2. करुण रस (Karuna Ras)
  3. अद्भुत रस (Adbhut Ras)
  4. रौद्र रस (Raudra Ras)
  5. वीर रस (Veer Ras)
  6. हास्य रस (Hasya Ras)
  7. भयानक रस (Bhayanak Ras)
  8. वीभत्स रस (Vibhats Ras)
  9. शान्त रस (Shant Ras)
  10. वात्सल्य रस (Vatsalya Ras)
  11. भक्ति रस (Bhakti Ras)

 

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