भक्ति रस (Bhakti Ras)
- इस रस में ईश्वर की अनुरक्ति एवं अनुराग का वर्णन रहता है अर्थात् इस रस में ईश्वर के प्रति प्रेम का वर्णन होता है।
भक्ति रस के अवयव (उपकरण)
- भक्ति रस का स्थाई भाव − देवविषयक रस ।
- भक्ति रस का आलंबन (विभाव) − परमेश्वर, राम, श्रीकृष्ण आदि।
- भक्ति रस का उद्दीपन (विभाव) − परमात्मा के अद्भुत कार्यकलाप, सत्संग, भक्तो का समागम आदि ।
- भक्ति रस का अनुभाव − भगवान के नाम तथा लीला का कीर्तन, आंखो से आँसुओ का गिरना, गदगद हो जाना, कभी रोना, कभी नाचना।
- भक्ति रस का संचारी भाव − निर्वेद, मति, हर्ष, वितर्क आदि।
भक्ति रस के उदाहरण –
(1) अँसुवन जल सिंची-सिंची प्रेम-बेलि बोई
मीरा की लगन लागी, होनी हो सो होई।
(2) एक भरोसो एक बल, एक आस विश्वास
एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास।
(3) मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥
जाके सिर है मोरपखा मेरो पति सोई।
(4) वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, कर किरपा अपणायो।
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग मैं सबै खोवायो।
खरचै न खुटै, कोई चोर न लूट, दिन-दिन बढ़त सवायो।
सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तरि आयो।
न ‘मीरा’ के प्रभु गिरधर नागर, हरष-हरष जस गायो।
(5) राम-नाम छाड़ि जो भरोसो करै और रे।
तुलसी परोसो त्यागि माँगै कूर कौन रे।।
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