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राजस्थान इतिहास का मध्य पाषाण काल (Middle Stone Age of Rajasthan History)

राजस्थान इतिहास का मध्य पाषाण काल
(Middle Stone Age of Rajasthan History)

मध्य पाषाण (Middle Stone Age) का मानव इतिहास में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक क्रम माना जाता है। पुराविदो का मानना है कि इस काल में पृथ्वी के धरातल पर नदियों, पहाड़ों व जगलो का स्थिरीकरण हो गया था तथा अब पुराप्रमाण भी अधिक संख्या में मिलने लगते हैं।

भारत में मध्य पाषाणकालीन स्थल निम्न स्थलों से प्राप्त होते हैं – 

  1. बाडमेर मे स्थित तिलवाडा,
  2. भीलवाड़ा मे स्थित बागोर, 
  3. मेहसाणा मे स्थित लघनाज,
  4. प्रतापगढ़ मे स्थित सरायनाहर, 
  5. उत्तरप्रदेश मे स्थित लेकडुआ, 
  6. मध्य प्रदेश होशंगाबाद में स्थित आदमगढ़,
  7. वर्धमान (बंगाल) जिले ने स्थित वीरभानपुर, 
  8. दक्षिण भारत के वेल्लारी जिले में स्थित संघन कल्लू 

मध्य पाषाणकालीन सर्वाधिक पुरास्थल गुजरात मारवड़ एवं मेवाड के क्षेत्रों से प्राप्त होते है। 

मध्यपाषाणकालीन मानव ने प्रधान रुप से जिन स्थलों को अपने निवास के लिए चुना उनको निम्न भागो में विभक्त किया जा सकता हैं – 

  1. रेत के थुहे – मध्यपापाणकालीन मानव ने रेत के थुहों को अपना निवास स्थान बनाया था। 
  2. शैलाश्रय – मध्यभारत के रिमझिम सतपुड़ा और कैमुर पर्वतों मे शिलाओ और शैलाश्रयों में मध्यपाषाणकालीन मानव के सर्वाधिक निवास स्थल थे, इन शैलाश्रयों से मध्यपाषाणकालीन मानवों के सर्वाधिक प्रमाण मिलते है । 
  3. चट्टानी क्षेत्र – मेवाड मे चट्टानों से संलग्न मैदानी क्षेत्रों में मध्यपाषाणकालीन स्थल मिलते है दक्षिण में भी ऐसे स्थल मिलते हैं। 

मध्यपाषाणकालीन संस्कृति के प्रचार-प्रसार के बाद भारत में अन्य स्थानों की तरह राजस्थान में नवपाषाणकाल के कोई प्रमाण नही मिले हैं। 

 

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प्रागैतिहासिक राजस्थान (Prehistoric Rajasthan)

प्रागैतिहासिक राजस्थान (Prehistoric Rajasthan)

राजस्थान (Rajasthan) के मरुभूमि क्षेत्र में प्रारंभिक पुरापाषाणकालीन (Palaeolithic) संस्कृति के पाए जाने वाले प्रस्तर उपकरणों मे हस्तकुठार (Hand Axe) कुल्हाडी, क्लीवर और खंडक (चौपर) मुख्य है यहाँ से प्राप्त प्रस्तर उपकरण सोहनघाटी क्षेत्र में पाए जाने वाले प्रस्तर उपकरणों की तरह ही है। प्राप्त उपकरण पंजाब की सोन संस्कृति एवं मद्रास की हस्त कुल्हाडी संस्कृति के मध्य संबंध स्थापित करती है ।

चित्तौडगढ (मेवाड) मे सर्वेक्षण कर डॉ. वी. एन मिश्रा ने 1959 में गभीरी नदी के पेटे से जो चित्तौड़गढ़ के किले के दक्षिणी किनारे पर स्थित है 242 पाषाण उपकरण खोजे थे। यह 242 उपकरण दो सर्वेक्षण कर एकत्रित किए गए । 

प्रथम संग्रह मे 135 उपकरण तथा दूसरे संग्रह मे 107 उपकरण एकत्र किए गए हैं। 135 उपकरणों में से तीन हस्त कुल्हाड़ी दो छीलनी (स्क्रेपर) एक कछुए की पीठ, के सहश कोड और नौ फलक है ।  

निम्न पुरापाषाणकालीन उपकरण (Lower Paleolithic Tools)

इस काल के उपकरणों में मुख्यत पेबुल, उपकरण, हैन्डएक्स, क्लीवर फ्लेक्स पर बने ब्लेड और स्केपर, चौपर और चापिग उपकरण आदि है, इन्हें कोर उपकरण समूह में सम्मिलित किया जाता है। 

राजस्थान मे इन उपकरणों को प्रकाश मे लाने का श्रेय प्रो.वी.एनमिश्रा, एस.एन.राजगुरु, डी.पी अग्रवाल, गोढी, गुरदीप सिंह वासन, आर. पी. धीर को जाता है, इन्होने जायल और डीडवाना मेवाड मे चित्तौड़गढ (गंभीरी बेसीन) कोटा (चम्बल बेसीन) और नगरी (बेड़च बेसीन) क्षेत्रों में अनेक निम्न पुरापाषाणकालीन स्थल स्तरीकृत ग्रेवेल से प्राप्त किये । 

मध्य पुरापाषाण कालीन उपकरण (Middle Palaeolithic Tools)

इस काल की संस्कृति के अवशेष भारत में सर्वप्रथम नेवासा (महाराष्ट्र) से प्राप्त हुए है, इसलिए प्रो. एच. डी. सांकलिया ने इस संस्कृति के उपकरणों को नवासा उपकरण का नाम दिया है। बीसवी शताब्दी के साठवे दशक के बाद हुई खोजों के फलस्वरुप मध्य पुरापाषाणकाल का भारत के सभी भागों में विस्तार मिला हैं । इस काल की संस्कृति के अवशेष महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्धप्रदेश, तमिलनाडु उड़ीसा, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, उत्तरी केरल, मेघालय, पजाब और कश्मीर के विभिन्न स्थलों से प्राप्त हुए हैं। 

मध्य पुरापाषाणकालीन संस्कृति के स्थलों को मुख्य रुप से तीन भागो मे विभाजित किया जा सकता है –

(i) Cave & Rock Shelter Site इस प्रकार के उपकरणों के उदाहरण भीम बैठका के शैलाश्रयों से मिलते है, जो मध्य प्रदेश में स्थित हैं ।

(ii) Open air work Shopes site ऐसे पुरास्थलों से तात्पर्य यह है कि मध्यपुरापाषाणकालीन मानव उपकरण बनाता था, यह क्षेत्र कई हैक्टयर में फैला हुआ होता हैं इस प्रकार के पुरास्थल कर्नाटक में काफी संख्या में मिले है । 

(iii) River site ऐसे पुरास्थल कृष्णागोदावरी, नर्बदा पंजाब के सोहन नदी आदि के किनारों से प्राप्त होते है । नदी किनारों के पुरास्थलों से एक लाभ यह होता है कि इनके उपकरणों का सापेक्ष निर्धारण किया जा सकता है ।

उच्च पुरापाषाणकाल (Upper Palaeolithic Period)

1970 से पूर्व तक यह माना जाता था कि भारत में उच्च पुरापाषाण काल का अभाव रहा हैं परन्तु पुरातत्व वेत्ताओ ने इस काल की संस्कृति के अध्ययन हेतु सर्वेक्षण कर इस ओर शोधकार्य आरंभ किया। जिसमें उत्तर प्रदेश तथा बिहार के दक्षिणी पठारी क्षेत्र मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और राजस्थान से इस काल की संस्कृति के प्रमाण अस्तित्व में आयें । उच्च पुरापाषाणकाल के प्रस्तर उपकरणों की मुख्य विशेषता ब्लेड उपकरणों की प्रधानता रही । ब्लेड सामान्यतः पतले और संकरे आकार के लगभग समानान्तर पार्श वाले उन पाषाण फलको को कहते है, जिनकी लम्बाई उनकी चौडाई की कम से कम दुगुनी होती है । उच्च पुरापाषाणकाल मे मनुष्यों ने अपने प्रत्येक कार्यो के लिए विशिष्ट प्रकार के उपकरण बनाने की तकनीकी विकीसत कर ली थी। इसका प्रयोग हड्डी, हाथीदाँत, सीग आदि की नक्काशी करने के काम मे लिया जाता था इस काल की संगति की दूसरी विशेषता यह रही कि आधुनिक मानव जिसे जीव विज्ञान की भाषा मे होमोसेपियन्स (Homo Sapines) कहते है । 

उच्च पुरापाषाणकाल से संबंधित संस्कृति के उपकरणों की खोज का श्रेय आस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी, कैनबरा के ग्रुप के साथ, गुरुदीपसिह, वी.एन.मिश्रा आदि को जाता है, राजस्थान मे बूढ़ा पुष्कर से इस संस्कृति के उपकरण प्राप्त हुए हैं ये उपकरण मुख्यतः ब्लेड पर निर्मित है। 

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