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Powers of Parliament

संसद की शक्तियां (Powers of Parliament)

संसद को अनेक प्रकार की शक्तियां प्राप्त हैं जिनमें प्रमुख इस प्रकार हैं।

1. संसद संघीय तथा समवर्ती सूची में दिए गए विषयों पर कानून बनाती है। यह राज्य सूची में दिए गए विषयों पर भी कानून बना सकती है यदि

  1. राज्य सभा दो-तिहाई बहुमत से यह प्रस्ताव पास कर दे कि संसद द्वारा राज्य सूची के विषय पर कानून बनाना राष्ट्रीय हित में है (अनुच्छेद-249)
  2. दो या उससे अधिक राज्यों की विधान सभाएं सिफारिश करें कि संसद राज्य सूची के विषय पर कानून बनाए (अनुच्छेद-252)
  3. विदेशी शक्तियों के साथ की गई संधियों व समझौतों को लागू करने के लिए (अनुच्छेद-253)
  4. राष्ट्रीय संकट के समय तथा राज्यों में संवैधानिक तंत्र के टूटने की स्थिति में (अनुच्छेद-250)

यहां यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि शेष विषयों पर भी कानून बनाने का संसद को पूर्ण अधिकार है (अनुच्छेद-248)

2. केन्द्र के वित्त पर भी संसद को पूर्ण अधिकार है। संसद की अनुमति के बिना न कोई कर लगाया जा सकता है और न ही कोई खर्च किया जा सकता है।

3. कार्यकारिणी पर भी संसद को पूर्ण नियंत्रण प्राप्त है। मंत्री परिषद् जो कि देश की वास्तविक कार्यपालिका है, संसद के प्रति उत्तरदायी है और अपने पद पर तब तक बनी रह सकती है जब तक इसे संसद का विश्वास प्राप्त हो। यदि संसद मंत्री-परिषद् के प्रति अविश्वास प्रकट करती है तो इसे त्यागपत्र देना पड़ता है। संसद सरकार पर अनेक प्रकार से नियंत्रण रखती है जैसे कि प्रश्नों, तथा पूरक प्रश्नों द्वारा, प्रस्तावों तथा स्थगन प्रस्तावों इत्यादि द्वारा वास्तव में कठोर दलीय अनुशासन के कारण संसद के सदस्य मंत्री-परिषद् पर वास्तविक नियंत्रण नहीं रख पाते तथा वह मंत्री परिषद् द्वारा अपनाई गई नीतियों व कार्यों को सहज स्वीकृति प्रदान कर देते हैं।

4. संविधान के संशोधन में भी संसद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है (अनुच्छेद-368) । संविधान के अधिकतर भाग संसद द्वारा साधारण बहुमत अथवा दो-तिहाई बहुमत से संशोधित किए जा सकते हैं। केवल संविधान के कुछ भागों में संसद अधिकतर राज्यों की अनुमति से संशोधन कर सकती है।

5. संसद उप-राष्ट्रपति को निर्वाचित करती है तथा राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा पद से हटा सकती है (अनुच्छेद-66, 67)

6. नई अखिल भारतीय सेवाओं की स्थापना के सम्बन्ध में सिफारिश करने का अधिकार संसद के उच्च सदन (राज्य सभा) को है। (अनुच्छेद-312)

7. संसद सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उनके पद से हटाने की सिफारिश राष्ट्रपति को कर सकती है । (अनुच्छेद-124, 217)

8. राष्ट्रपति द्वारा घोषित आपातकालीन स्थिति को चालू रखने के लिए भी संसद की स्वीकृति की आवश्यकता है।

राज्य सभा की विशेष शक्तियां (Special Powers of Rajya Sabha)

संविधान द्वारा राज्य सभा को अनेक विशेष शक्तियां प्रदान की गई हैं जो इस प्रकार हैं-

1. उप-राष्ट्रपति को उसके पद से हटाने के लिए प्रस्ताव केवल राज्य सभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है। जब यह प्रस्ताव राज्य सभा द्वारा बहुमत से पारित कर दिया जाता है तो इसे स्वीकृति के लिए लोक सभा को भेज दिया जाता है (अनुच्छेद 67)

2. नई अखिल भारतीय सेवाओं की स्थापना सम्बन्धी प्रस्ताव केवल राज्य सभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है। प्रस्ताव राज्य सभा के सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित होने के पश्चात ही संसद आवश्यक कानून बना सकती है (अनुच्छेद-312)

3. राज्य सूची में दिए गए किसी भी विषय पर विधेयक केवल राज्यसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है। परन्तु इस प्रकार के कानून का निर्माण करने के से पूर्व इसे सन्तुष्ट हो जाना चाहिए कि ऐसा करना देश के लिए आवश्यक तथा राष्ट्रीय हित में है। (अनुच्छेद-349)

लोक सभा की विशेष शक्तियां (Special Powers of Lok Subhu)

एक लोकप्रिय सदन होने के नाते लोक सभा को कुछ विशेष शक्तियां प्राप्त हैं, जो इस प्रकार हैं:

1. सभी धन विधेयक केवल लोक सभा में प्रस्तुत किए जा सकते है।

2. धन विधेयक को पारित करने की अन्तिम शक्ति लोक सभा के पास है। भले ही राज्य सभा को वित्तीय विधेयकों से सम्बन्धित सुझाव देने का अधिकार है परन्तु उन्हें स्वीकार करना अथवा न स्वीकार करने का अधिकार लोक सभा को ही प्राप्त है।

3. मंत्री परिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित कर उसे अवधि से पूर्व पद से हटाने का अधिकार केवल लोक सभा को है।

सदस्यों के विशेषाधिकार (Privileges of Members)

संसद के सदस्यों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं जो कि इस प्रकार हैं :-

1. सदस्यों को दीवानी मामलों में सदन की बैठक से 40 दिन पूर्व तथा 40 दिन बाद बन्दी नहीं बनाया जा सकता। यह सुविधा उन्हें फौजदारी मामलों तथा निवारक विरोध (Preventive Detention) अधिनियम के विरुद्ध उपलब्ध नहीं है।

2. सदन द्वारा निर्मित नियमों के अन्तर्गत उन्हें सदन में भाषण की पूर्ण स्वतन्त्रता है । सदस्य सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के व्यवहार के बारे में चर्चा नहीं कर सकते ।

3. सदन की अनुमति के बिना, संसद के अधिवेशन के दौरान, किसी भी सदस्य को गवाही देने के लिए नहीं कहा जा सकता।

4. संसद के किसी भी सदन के आदेशानुसार छापी गई किसी रिपोर्ट, परचे अथवा कार्यवाही के लिए उनके विरुद्ध न्यायालय में कार्यवाही नहीं की जा सकती।

5. संसद के सदस्य जूरी के सदस्य के रूप में कार्य करने की जिम्मेदारी से भी मुक्त हैं।

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