Parliamentary committee system

संसदीय समिति व्यवस्था (Parliamentary Committee System)

संसद अपने उत्तरदायित्व को निभाने के लिए अनेक समितियों की सहायता लेती है। यह समितियां सरकार की गतिविधियों पर निरन्तर तथा प्रभावी रूप से नियन्त्रण रखती हैं। इन समितियों के सदस्य संसद के विभिन्न दलों तथा समूहों से लिए जाते हैं। इन समूहों तथा दलों को समितियों में प्रतिनिधित्व उनकी सदन में संख्या के अनुपात में दिया जाता है। समितियों की कार्यवाही सदन की कार्यवाही की भांति ही संचालित की जाती है परन्तु इन समितियों में काम करने का वातावरण घनिष्ठ तथा अनौपचारिक होते हैं वह दलीय व्यवहार से ऊपर उठ कर कार्य करते है

लोक सभा की कुछ प्रमुख समितियां इस प्रकार हैं

1. कार्य मंत्रणा समिति (Business Advisory Committee)

इस समिति के 15 सदस्य हैं तथा अध्यक्ष इसका सभापति है यह समिति सदन का कार्यक्रम नियन्त्रित करती है तथा विभिन्न मामलों के विचार के लिए समय निश्चित करती है। यह निर्णय करना भी इसी समिति का कार्य है कि सदन का अधिवेशन कब बुलाया जाए।

2. गैर-सरकारी विधेयक तथा प्रस्ताव समिति (Committee on Private Members Bills and Resolutions)

इस सति के 15 सदस्य हैं। इस समिति का मुख्य कार्य सदस्यों द्वारा प्रस्तुत किए गए विधेयकों का उनके महत्त्व अनुसार वर्गीकरण करना है।

3. प्रवर समितियां (Select Committees)

विभिन्न प्रकार के विधेयकों पर विचार करने के लिए इन समितियों का गठन किया जाता है। यह समितियां उन विधेयकों के बारे में, जो उन्हें सौंपे गए हैं आवश्यक सूचना एकत्रित करती हैं तथा उनके बारे में रिपोर्ट प्रस्तुत करती हैं।

4. निवेदन समिति (Committee on Petitions)

इस समिति के 15 सदस्य हैं। यह समिति, इसके सम्मुख प्रस्तुत किए गए निवेदन पत्रों पर विचार करती तथा समस्याओं का समाधान सुझाती है।

5. नियम समिति (Rules Committee)

इस समिति के 15 सदस्य हैं। स्पीकर इस समिति का पदेन सभापति है। यह समिति प्रक्रिया तथा कार्य संचालन सम्बन्धी मामलों पर विचार करती है तथा सदन की प्रक्रिया को सुधारने के लिए सुझाव देती है। प्रायः इस समिति के सभी निर्णय एकमत से लिए जाते है।

6. विशेषाधिकार समिति (Committee on Privileges)

इस समिति के 15 सदस्य हैं। यह समिति सदस्यों के विशेषाधिकारों के उल्लंघन संबंधी मामलों पर ध्यान देती है तथा उपयुक्त कार्यवाही सुझाती है।

7. अधीनस्थ विधायन समिति (Committee on Subordinate Legislation)

यह समिति संसद द्वारा बनाए गए अधिनियमों की व्याख्या हेतु कार्यकरिणी द्वारा बनाए गए नियमों का परीक्षण करती है तथा सुनिश्चित करती है कि यह नियम मुख्य कानून के अनरूप हैं या नहीं।

8. अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण संबंधी समिति (Committee on Welfare of Scheduled Castes and Scheduled Tribes)

इस समिति के 30 सदस्य हैं। इसमें से 20 लोक सभा तथा 10 राज्य सभा से लिए जाते हैं। समिति अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति आयुक्त की रिपोर्ट पर विचार करती है तथा संसद को रिपोर्ट देती है कि इन सब को लागू करने के लिए प्रशासन क्या कदम उठाएं। समिति यह भी सुनिश्चित करती है कि पिछड़ी जातियों के लिए संविधान द्वारा प्रायोजित संरक्षणों को प्रभावशाली रूप से लागू किया जाए।

9. सरकारी आश्वासनों सम्बन्धी समिति (Committee on Government Assurances)

इस समिति के 15 सदस्य हैं जो यह समीक्षा करते हैं। कि मंत्रियों द्वारा सदन में दिए गए आश्वासन कहां तक निश्चित समय में कार्यान्वित किए गए हैं।

10. सदस्यों की अनुपस्थिति सम्बन्धी समिति (Committee on Absence of Members)

यह समिति सदस्यों की अवकाश सम्बन्धी प्रार्थनापत्रों का विवेचन करती है। यह उन सब मामलों की भी छानबीन करती है जहां कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना 6 मास तक सदन से अनुपस्थित रहता है। यह समिति इस अनुपस्थिति को या तो माफ कर सकती है अथवा उसकी सीट को रिक्त घोषित कर उप-चुनाव द्वारा उस सीट को भर सकती है।

उपरोक्त समितियों के अतिरिक्त सदन की तीन वित्तीय समितियां हैं –

  • प्राक्कलन समिति (Estimates Committee),
  • लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee) तथा
  • सार्वजनिक उपक्रम समिति (Committee on Public Undertakings)।

यह समितियां संसद के संरक्षक के रूप में कार्य करती है तथा प्रशासन को चुस्त बनाने का प्रयास करती है ताकि वह अपनी नीतियों व कार्यक्रमों को अधिक कुशलता व गति से लागू कर सके।

11. प्राक्कलन समिति (Estimates Committee)

इस समिति में लोकसभा के 30 सदस्य है। इन सदस्यों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त पर चुना जाता है। यह समिति सरकार के वार्षिक अनुमानों का परीक्षण करती है। तथा प्रशासन में आर्थिक बचत व कुशलता के लिए विकल्प नीति सुझाती है।

12. लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee)

इस समिति के 22 सदस्य होते हैं जिनमें से 15 लोक सभा व 7 राज्य सभा से लिए जाते हैं। भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक इस समिति की सहायता करता है। यह समिति यह सुनिश्चित करती है कि सरकार का खर्च संसद द्वारा पारित मांगों से अधिक नहीं है तथा धन उसी उद्देश्य के लिए खर्च किया गया है जिसके लिए वह पास किया गया था। संक्षेप में यह समिति यह सुनिश्चित करती है कि धन नियमों के अनुसार किफायत से खर्च किया गया है।

13. सार्वजनिक उपक्रम समिति (Public undertaking committee)

इस समिति में कुल 15 सदस्य (10 लोकसभा से एवं पांच राज्यसभा) सदस्य होते हैं जो आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय पद्धति द्वारा निर्वाचित होते हैं। प्रत्येक वर्ष समिति के 1/5 सदस्य अवकाश ग्रहण कर लेते हैं उनके स्थान पर नए सदस्य निर्वाचित हो जाते हैं। समिति का अध्यक्ष लोक सभा द्वारा निर्वाचित सदस्यों में से मनोनीत किया जाता है कि निम्न कार्य है –

  1. यह समिति सरकारी उपक्रमों की कार्य प्रणाली तथा अन्य वित्तीय मामलों और नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के प्रतिवेदन का परीक्षण करती है
  2. यह समिति सरकारी उपक्रमों के लेखों का परीक्षण करती है

14. वेतन व भत्तों से सम्बन्धित संयुक्त समिति (Joint Committee on Salaries and Allowances)

इस समिति के 15 सदस्य हैं। इनमें से 10 को लोक सभा का स्पीकर तथा 5 को राज्य सभा का सभापति मनोनीत करता है। यह समिति सदस्यों के वेतन तथा अन्य सुविधाओं, जैसे निवास, टेलीफोन, डाक, सचिवालय, तथा डाक्टरी सेवाओं को नियन्त्रित करने के लिए आवश्यक नियम बनाती है।

15. लाभ के पदों से सम्बन्धित संयुक्त समिति (Joint Committee on Offices of Profit)

इस समिति के 15 सदस्य हैं। इनमें से 10 सदस्य लोक सभा तथा 5 राज्य सभा से लिए जाते हैं। यह समिति संघीय तथा राज्य सरकारों द्वारा गठित विभिन्न समितियों तथा संस्थानों के संगठन का परीक्षण करती है और यह सिफारिश करती है कि क्या उनमें काम करने वाले पदाधिकारियों को संसद की सदस्यता के लिए आयोग्य ठहराया जाए अथवा नहीं।

16. संसदीय विषय समितियां (Parliamentary Subject Committees)

उपरोक्त समितियों के अतिरिक्त अप्रैल 1993 में 17 संसदीय समितियों का गठन किया गया। इनका मुख्य उद्देश्य विभिन्न मंत्रालयों के बजट को संसद से पास कराने से पूर्व उसका परीक्षण सम्बन्धित समिति से कराना था। यह पहले की व्यवस्था से कहीं बेहतर था। पूर्व व्यवस्था के अंतर्गत विभिन्न मंत्रालयों के बजट को निर्वाचित सदस्यों की स्वीकृति के बिना ही पारित कर दिया जाता था। नई व्यवस्था के अंतर्गत समितियां मंत्रालयों के वार्षिक अनुदान के अतिरिक्त उनके काम का भी विस्तारपूर्वक मूल्यांकन करती हैं। समितियां यह सुनिश्चित करती हैं कि बजट के अंतर्गत प्रदान किए गए अनुदान का सरकार द्वारा उपयुक्त प्रयोग किया गया है। वह विभागों द्वारा मांगे गए अतिरिक्त अनुदान का भी परीक्षण कर सकती है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि समितियों से यह आशा की जाती है कि वह संसद की ओर से बजट का गहन परीक्षण करेंगी।

संसद की 17 विषय समितियां हैं, जिनमें से 6 का गठन राज्य सभा के सभापति तथा 11 का लोक सभा के स्पीकर द्वारा किया गया है। इनमें से कुछ समितियां संयुक्त समितियां है। प्रत्येक स्थायी संसदीय समिति के 45 सदस्य हैं। (30 लोक सभा तथा 15 राज्य सभा से) । यह समितियां संसद के अवकाश काल में कार्य करती है। वह प्रत्येक मंत्रालय व विभाग की सभी मांगों पर विचार करती है और अपनी रिपोर्ट संसद को प्रस्तुत करती हैं। इन रिपोर्टों के आधार पर संसद उन पर विचार करती है। यह व्यवस्था पहले की व्यवस्था से कहीं बेहतर है । इस के अंतर्गत संसद सभी मंत्रालयों व विभागों के अनुदानों का परीक्षण विस्तारपूर्वक कर पाती है। कुछ आलोचकों का मत है कि इस नई व्यवस्था के फलस्वरूप संसद | का कार्यकारिणी पर नियंत्रण बहुत कम हो गया है। परन्तु यह आलोचना सही नहीं है। वास्तव में नई व्यवस्था से संसद का नियंत्रण न केवल बढ़ गया है अपितु, अधिक प्रभावशाली भी हो गया है। इस व्यवस्था के अंतर्गत समिति के सदस्य प्रत्येक मंत्रालय के बजट अनुदानों का विस्तारपूर्वक परीक्षण कर पाते हैं और प्रत्येक मंत्रालय के कार्य का, उनकी वार्षिक रिपोर्टों के अध्ययन के आधार पर, मूल्यांकन कर पाते हैं। अतिरिक्त मांगों के सम्बन्ध में भी समिति को उनके औचित्य पर विचार करने का अवसर मिलता है। अतः हम कह सकते हैं कि नई समिति व्यवस्था निष्पादन बजट (Performance Budget) का और अधिक परीक्षण करने की क्षमता रखती है।

17. परामर्श समितियां (Consultative Committees)

प्रत्येक मंत्रालय के लिए संसदीय मामलों का मंत्रालय एक परामर्श समिति का प्रावधान करता है। इन परामर्श समितियों के सदस्य दोनों सदनों से लिए जाते हैं। यह समितियां सदस्यों, मंत्रियों तथा पदाधिकारियों के साथ सरकारी समस्याओं व नीति के बारे में विचार विमर्श करती रहती हैं।

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