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Major Crops of India

दालें (Pulses)

दालें (Pulses)

भारत में अधिकांश जनसंख्या शाकाहारी है और हमारे आहार में दालें प्रोटीन का प्रमुख स्त्रोत है। दालों के उत्पादन में उस अनुपात में वृद्धि नहीं हुई जिस अनुपात में अनाजों के उत्पादन में हुई अन्य दालें है। सकल फसल-क्षेत्र में दालों का क्षेत्र कम हुआ है। दालों का 90% क्षेत्र वर्षा पर ही निर्भर करता है। शस्यवर्तन (Crop Rotation) द्वारा दालों का क्षेत्र बढ़ाया जा सकता है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बिहार, हरियाण, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलानाडु तथा पश्चिमी बंगाल मुख्य उत्पादक राज्य हैं। दालें खरीफ तथा रबी दोनों ही ऋतुओं में उगाई जाती हैं। अरहर (तुर), मूंग, उर्द, मोठ आदि खरीफ की फसलें हैं जबकि चना, मटर, मसूर, आदि रबी की फसलें हैं। दालों का उत्पादन बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय दाल विकास कार्यक्रम सन् 1986-87 में शुरु किया गया।

अरहर (Cajanus Indicus ) – यह पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार तथा अन्य राज्यों में सर्वाधिक खाई जानेवाली दाल है। अरहर में प्रोटीन 27.67%, वसा 2.31%, कार्बोहाइड्रेट 57.27%, लवण 5.50% तथा जल 10.08% रहता है। इसमें विटामिन B पाया जाता है।

मूँग (Phaseolus Mungo) – इसमें प्रोटीन 23.62%, वसा 2.69%, कार्बोहाइड्रेट 53.45%, लवण 6.57% तथा जल 10.87% रहता है। इसमें विटामिन B मिलता है। अन्य दालों की अपेक्षा यह शीघ्र पचती है। अत: रोगियों को पथ्य के रूप में भी दी जाती है।

उड़द (Phaseolus Radiatus) – इसी को माष भी कहते हैं इसमें प्रोटीन 25.5%, वसा 1.7%, कार्बोहाइड्रेट 53.4%, लवण 3.3% एवं जल 13.1% होता है। इस दाल का पंजाब, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मद्रास एवं मध्य प्रदेश में अत्यधिक प्रचलन है दाल के अतिरिक्त बड़ा, कचौड़ी, इमिरती, इडली और दोसे इत्यादि के बनान में उड़द की दाल का ही विशेष उपयोग होता है।

मसूर (Lentil) –इटली , ग्रीस और एशिया का देशज है। भारत में उत्तरप्रदेश, मद्रास, बंगाल एवं महाराष्ट्र में इसका व्यवहार अत्यधिक हाता है और इसे पौष्टिक आहार समझा जाता है। इसमें 25.5% प्रोटीन, 1.9% तेल, 52.2% कार्बोहाइड्रेट, 3.4% रफेज एवं 2.8% लोहा होता है।इसकी राख में पोटाश एवं फॉस्फेट अधिक मात्रा में रहता है।

मटर (Pisum Arvense) –पूर्वी यूरोप का देशज है। इसकी दूसरी जाति पीसम सैटिवम (Pisum sativum) है , जो एशिया का देशज है। इसमें 22.5% प्रोटीन, 1.6% तेल, 53.7% कार्बोहाइड्रेट, 5.4% रफेज तथा 2.9% राख रहती है। लगभग सभ राज्यों में इसका उपयोग होता है।हरी फली से निकली मटर सब्जी के का आती है और पक जाने पर दाल के लिय इसका उपयोग होता है।

चना (Chick Pea or Cicer Arietinum) – इसका प्रयोग भारत में लगभग सभी प्रदेशों में सामान्य रूप से हाता है।  यह सभी दलहनों में सर्वाधिक पौष्टिक पदार्थ है। पालतू घोड़े को भी यह खिलाया जाता है। घोड़े कोखिलाया जानेवाला चना अंग्रेजी में हॉर्स ग्राम (Horse Gram) कहलाता है। सका वानस्पतिक नाम डॉलिकोस बाइफ्लोरस (Dolichos biflorus) है। इसमें विटामिन सी पर्याप्त मात्रा में रहता है।चने का बेसन पकौड़ी, बेसनी , कढ़ी तथा मिठाई बनाने के काम में आता है। हरा चना सब्जी बनाने एवं तलकर खाने के काम में आता है।

खेसारी (Lathyrus Sativum) – यह अत्यंत निम्नकोटि का दलहन है। पशुओं के खिलाने और खेतों में हरी खाद के लिए इसका उपयोग अधिक होता है। यह अल्प मात्रा में ही दाल के रूप में खाई जाती है। इसकेअधिक सेबन से कुछ रोग हो जाने की सूचना मिली है।

सोयाबीन (Glycinemax) – यह पूर्वी एशिया का देशज है। इसकी फलियाँ छोटी, रोएँदार होती हैं , जिनमें दो से चार तक बीज होते हैं। इसमें 66-71% जल , 5.5% राख, 14 से 19% वसा , 4.5 से 5.5 % रफेज , 5 से 6 % नाइट्रोजन , 1.5 से 3% स्टार्च , 8 से 9.5% हेमिसेलूलोज़, 4 से 5% पेंटोसन रहता है। इनके अतिरिक्त कैल्सियम , मैग्नीशियम और फॉस्फोरस रहते हैं।

सेम (Bean) –यह कई प्रकार की होती है , जिसमें लाल और सफेद अधिक प्रचलित है। इसमें प्रोटीन 15 से 20%, राख 6 से 7%, शर्करा 21 से 29%, स्टार्च और डेक्सट्रिन 14 से 23% हेमिसेलूलाज 8.5 से 11% तथा पेंटोसन लगभग 7% रहता है। इसके प्रोटीन बिना पकाए शीघ्र नहीं पचते।

उत्पादन – वित्त वर्ष 2017-18 में भारत में 245.1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र दलहनों के लिये था जिसमे मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश द्वारा योगदान किया गया था। 

 

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भारत के प्रमुख फसलें – गेहूँ (Wheat)

गेहूँ (Wheat)

चावल के बाद गेहूँ हमारे देश का दूसरा महत्वपूर्ण खाद्यान्न पदार्थ है। भारत गेहूं का विश्व में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है और यह विश्व का लगभग 8% गेहूँ उत्पन्न करता है। देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में रहने वाले लोगों का यह मुख्य आहार है।

गेहूँ की उपज के लिए निम्नलिखित दशाएँ उपलब्ध है।

तापमान – यह एक शितोष्ण कटिबन्धीय पौधा है, जिसके लिए 10 से 15° सोल्सियम तापमान होना आवश्यक है। गेहूँ को उगाते समय 10° सेल्सियस वर्द्धन के समय 15°C और पकते समय 20 से 25° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।

वर्षा – गेहूँ की कृषि के लिए 80 से०मी० वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। 100 से०मी० से अधिक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में गेहूं की कृषि नहीं की जाती। वास्तव में 100 से०मी० वार्षिक वर्षा की समवर्षा रेखा गेहूँ तथा चावल के क्षेत्रों को विभाजित करती है। सिंचाई की सहायता से गेहूं 20 से०मी० वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है।

मिट्टी – गेहूँ की कृषि अनेक प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती हैं। परंतु हल्की चिका मिट्टी, चिकायुक्त दोमट मिट्टी, भारी दोमट मिट्टी तथा बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए उपयुक्त होती है। भारत में अधिकांश गेहूँ विशाल मैदान के जलोढ़ मिट्टियों के क्षेत्र में उगाया जाता है।

भूमि – गेहूँ की कृषि में बड़े पैमाने पर यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है इसलिए इसे समतल मैदानी भाग की आवश्यकता होती है।

श्रम – गेहूं की कृषि में यन्त्रों का प्रयोग अधिक किया जाता है अतः इसकी कृषि के लिए अधिक श्रम की आवश्यकता नहीं होती।

उत्पादन तथा वितरण – भारत की लगभग एक-तिहाई कृषि भूमि पर गेहूँ की कृषि की जाती हैं। यह भारत में रबी (शीतकालीन) की फसल है जो शीत ऋतु के समाप्त होने पर काट ली जाती है। हमारे देश में गेहूं के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। पैकेज टेकनोलॉजी के कारण देश में 1967 में हरित क्रान्ति आई जिसके प्रभावाधीन भारत में कृषि उत्पादन बढ़ा परंतु हरित क्रान्ति का सबसे अधिक प्रभाव गेहूँ के उत्पादन पर पड़ा। सन् 1970-71 में 1960-61 की तुलना में गेहूं का उत्पादन दुगुने से भी अधिक हो गया। इसी अवधि में गेहूँ के क्षेत्रफल तथा प्रति हेक्टेयर उपज में लगभग डेढ़ गुना वृद्धि हुई। 2017-2018 में लगभग 986.1 लाख टन गेहूँ पैदा किया गया।

गेहूँ की कृषि मुख्यतः पंजाब, हरियाण तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में की जाती है। राजस्थान और गुजरात के कुछ चयनित क्षेत्रों में कृषि की जाती है। देश में कुल गेहूँ उत्पादन का लगभग दो-तिहाई भाग पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से प्राप्त होता है गेहूँ के अन्तर्गत क्षेत्र को भी अब काफी बढ़ा दिया गया है, विशेष तौर पर बिहार और पश्चिमी बंगाल जैसे गैर-परम्परागत क्षेत्रों तक। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी गेहूँ की कृषि पर्याप्त बड़े क्षेत्र पर की जाती है। बिहार और पश्चिमी बंगाल दोनों मिलकर देश में गेहूं के कुल उप्पादन का 8% भाग उत्पन्न करते हैं। पश्चिमी बंगाल में गेहूं की उपज प्रति हेक्टेयर बहुत अधिक है।

वैश्विक बाजार

डेरिवेटिव्स एक्सचेंजेस शिकागो मर्कन्टाइल एक्सचेंज जिसने शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड का अधिग्रहण किया, कानसास सिटी बोर्ड ऑफ ट्रेड, झेंगझोउ कमोडिटी एक्सचेंज, दक्षिण अफ्रीकी फ्यूचर्स एक्सचेंज, एमसीएक्स और एनसीडीईएक्स। यूएसएफओबी और ईयू (फ्रांस) एफओबी कीमतें भौतिक मूल्यों का निर्धारण करती हैं।

आयात और निर्यात

अमेरिका , यूरोपीय संघ -28, कनाडा , ऑस्ट्रेलिया अर्जेंटिना और भारत  प्रमुख निर्यातक हैं वहीं ऐसे कई देश हैं जो विकासशील देशों से उत्पन्न अधिकतम मांग के लिए गेहूं का आयात करते हैं। मध्य-पूर्व एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया और उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका आयात करने वाले प्रमुख क्षेत्र हैं। इजिप्ट, ब्राजील, इंडोनेशिया और अल्जीरिया सबसे महत्वपूर्ण आयातक राष्ट्र हैं।

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भारत के प्रमुख फसलें – चावल (Rice)

चावल (Rice)

चावल (Rice) भारत की सर्वप्रमुख फसल है जिस पर भारत की लगभग आधी से भी अधिक जनसंख्या रहती करती है। चीन के बाद भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चावल का सर्वाधिक उत्पादक करता है। विश्व का लगभग 29% चावल क्षेत्र भारत में ही होता हैं। भारत की कुल कृषि भूमि के 25% भाग पर चावल बोया जाता हैं। 150 से० मी० से अधिक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में चावल लोगों का मुख्य आहार है।

चावल की उपज के लिए निम्नलिखित दशाएँ अनुकूल हैं:

तापमान – यह एक उष्ण कटिबंधीय फसल है जिसके लिए कम-से-कम 24° सेल्सियम तापमान होना आवश्यक है। इसे बोते समय 21° सेल्सियस बढ़ते समय 24° सेल्सियस तथा पकते समय 27° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती हैं।

वर्षा – चावल की फसल के लिए 125 से 200 से०मी० वार्षिक वर्षा आवश्यक है।

मिट्टी – चावल के लिए बहुत उपजाऊ मिट्टी चाहिए। इसके लिए उपजाऊ चीका या दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टी में यह पौधा भली-भाँति उगता हैं।

भूमि – चावल की कृषि के लिए हल्की ढाल वाले मैदानी भाग अनुकूल होते हैं। नदियों के डेल्टों तथा बाढ़ के मैदानों में चावल खूब फलता है।

श्रम – चावल की कृषि में मशीनों से काम नहीं लिया जा सकता, इसलिए इसकी कृषि के लिए अत्यधिक श्रम की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि चावल साधारणतया घनी जनसंख्या वाले क्षेत्रों में बोया जाता हैं।

उत्पादन – भारत में चावल का उत्पादन निरन्तर बढ़ रहा है। 1950-51 में केवल 205 लाख टन चावल का उत्पादन हुआ था। यह उत्पादन 2017-2018 बढ़कर 1115.2 लाख टन हो गया।

यद्यपि हमारे देश में पिछले कुछ वर्षों में चावल की कृषि में उल्लेखनीय प्रगति हुई है फिर भी हम अन्य देशों की तुलना में काफी पिछड़े हुए हैं। उदाहरणतः भारत में चावल की प्रति हेक्टेयर उपज केवल 1990 किलोग्राम हैं जबकि रूस में 2,630, चीन में 3,600 अमेरिका में 4,770 जापान में 6,220 तथा कोरिया में 6,670 किलाग्राम प्रति हेक्टेयर चावल प्राप्त किया जाता है।

वितरण – यदि जल उपलब्ध हो तो हिमालय के 2440 मीटर से अधिक ऊँचे भागों को छोड़कर शेष समस्या भारत में ग्रीष्म ऋतु में चावल की कृषि की जा सकती है। भारत में बोई गई भूमि के अन्तर्गत सबसे अधिक क्षेत्रफल चावल का है।

भारत का अधिकांश चावल डेल्टाई तथा तटीय भागों में होता है। इसके अतिरिक्त इसकी कृषि दक्षिणी पठार के कुछ भागों में भी की जाती हैं। पिछले कुछ वर्षों से सतलुज-गंगा के मैदान में चावल की कृषि ने उल्लेखनीय उन्नति की है। इसका मुख्य कारण सिंचाई की सुविधाओं का विस्तार तथा उत्तम बीजों का प्रयोग हैं। हिमालय पर्वत की निचली घाटियों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर चावल की कृषि की जाती हैं। मुख्य उत्पादक राज्य पश्चिमी बंगाल, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, बिहार, पंजाब आदि है। पश्चिमी बंगाल, असम, बिहार, उड़ीसा तथा तमिलनाडु में वर्ष में कहीं-कहीं चावल की तीन-तीन फसलें उगाई जाती हैं क्योंकि यहाँ पर शरद और ग्रीष्म ऋतुओं में भी चावल उगाया जाता है।

वैश्विक परिदृश्य

विश्व उत्पादन : चावल  विश्व की दूसरी सर्वाधिक क्षेत्रफल पर उगाई जाने वाली फ़सल है। विश्व में लगभग 15 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर 45 करोड़ टन चावल का उत्पादन होता है। विश्व में कुल चावल उत्पादन का 90% चावल दक्षिण – पूर्वी एशिया में प्राप्तकिया जाता है।एशिया में प्रमुख उत्पादन देश चीन, भारत , जापान , बांग्लादेश , पाकिस्तान, इण्डोनेशिया, ताइवान, म्यांमार, मलेशिया, फिलिपींस, वियतनाम तथा कोरिया आदि हैं। एशिया से बाहर चावल के प्रमुख उत्पादक देश मिस्र, ब्राज़ील, अर्जेण्टीना, संयुक्त राज्य अमरीका, इटली, स्पेन, तुर्की गिनी कोस्ट तथा मलागासी हैं। चावल का अंतर्राष्ट्रीय शोध संस्थान मनीला (फिलीपींस ) में स्थित है।

चीन : चीन विश्व का सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है। यहाँ पर 3.2 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर 17.1 करोड़ मीट्रिक टन चावल पैदा किया जाता है जो विश्व के कुल उत्पादन का लगभग एक तिहाई है।

भारत : भारत विश्व में चावल का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है। भारत विश्व में चावल का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है। यहाँ पर विश्व के कुल उत्पादन का 20% चावल पैदा किया जाता है। भारत में 4.2 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर 9.2 करोड़ मीट्रिक टन चावल काउत्पादन किया जाता है। चावल भारत की सर्वाधिक मात्रा में उत्पादित की जाने वाली फ़सल है।

इण्डोनेशिया : इण्डोनेशिया विश्व का तीसरा बड़ा उत्पादक देश है जो कुल उत्पादन का 8% चावल उत्पादन करता है। यहाँ पर  जावा द्वीप  में सबसे अधिक चावल का उत्पादन होता है।

बांग्लादेश: विश्व का 5% चावल उत्पादन कर बांग्लादेश  विश्व का चौथा बड़ा उत्पादक देश है। यहाँ पर भूमि के 60% भाग में चावल का उत्पादन किया जाता है। यहाँ वर्ष में चावल की तीन फ़सलें उगाई जाती हैं।

इसके अतिरिक्त थाईलैण्ड , जापान , म्यांमार तथा कोरिया चावल के प्रमुख उत्पादक देश हैं। चावल का सबसे बड़ा निर्यातक देश थाईलैण्ड है।

इसके अतिरिक्त म्यांमार , वियतनाम , संयुक्त राज्य अमेरिका , संयुक्त अरब गणराज्य , पाक़िस्तान , इटली ,ब्राजील , पेरू तथा आस्ट्रेलिया आदि बड़े निर्यातक देशों में शामिल हैं।

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