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लिंग व वचन

इससे पूर्व हमने संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया चारों का अध्ययन किया है। हम जानते हैं कि शब्द के दो भेद (1) विकारी और (2) अविकारी में से संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया ये चारों विकारी शब्द के अन्तर्गत आते है क्योंकि लिंग, वचन और कारक के कारण इनमें विकार, रूपान्तरण (परिवर्तन) होता हो। अतः इस इकाई में लिंग, वचन और कारक की जानकारी दी गई है। 

लिंग 

व्याकरण में पुरूष या स्त्री शब्द को लिंग कहते है। शब्द के जिस रूप से यह पता चले कि वह पुरूष जाति का है अथवा स्त्री जाति का हिन्दी व्याकरण में उसे लिंग कहते है। 

हिन्दी भाषा के शब्द भण्डार में सामान्यतः पुरूषवाचक या स्त्रीवाचक शब्द अधिक होते है इसलिए हिन्दी में लिंग के दो भेद किए गए है – 

  • पुल्लिंग 
  • स्त्रीलिंग

पुल्लिंग 一 पुरूष या नर जाति का बोध कराने वाले शब्द को पुल्लिंग कहते है।
जैसे 一 छात्र, मोहन, बालक, गाँव, देश, शहर, बंदर आदि। 

स्त्रीलिंग 一 नारी या स्त्री जाति का बोध कराने वाले शब्दों को स्त्रीलिंग कहते है।
जैसे 一 शेरनी, चुहिया, नारी, बहन, लडकी, चिड़िया आदि 

अधिकांश प्राणियों के लिंगनिश्चित होते है और प्रत्येक भाषा का व्यक्ति उसे अपनी परम्परा से ग्रहण कर लेता है किंतु निर्जीव वस्तुओं के लिंग का निर्धारण करने में असमंजस्य की स्थिति रहती है दही, मेज, किताब आदि शब्द।

लिंग निर्धारण संबंधी नियम

हिन्दी भाषा में तीन प्रकार के संज्ञा शब्द प्रचलित हैं। 

  • वे जो प्राणी जगत में अंग अथवा शरीर रचना की भिन्नता के आधार पर किसी जाति या व्यक्ति को दिए हुए है। 
  • वे जिनके लिंग निर्धारण के पीछे कोई प्रत्यक्ष या तर्क-संगत आधार नहीं, उन्हें पुरूषवाचक या स्त्रीवाचक संज्ञा दे दी गई है। यद्यपि उनमें न कोई पुरूष है न स्त्री। जैसे – समुद्र, पत्थर (पुल्लिंग) नदी, शिला (स्त्रीलिंग) 
  • वे जो रूढि के आधार पर प्रचलित हो गए हैं जैसे नर कौवा अथवा मादा कौवा, नर कोयल अथवा मादा कोयल। 

पुल्लिग शब्द – पुल्लिंग शब्द के लिंग निर्धारण के नियम निम्नानुसार है – 

  • दिनों (वार) के नाम 一 सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरूवार, शुक्रवार, शनिवार, रविवार
  • मास (महीनों) के नाम पुल्लिंग है 一 आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ आदि। अंग्रेजी मास में जनवरी, फरवरी, मई, जुलाई, अपवाद है। 
  • रत्नों के नाम 一 हीरा, मोती, पन्ना, नीलम, मँगा, पुखरा पुल्लिंग किन्तु मणि अपवाद है। 
  • द्रव्य पदार्थ 一 रक्त, घी, पैट्रोल, डीजल, तेल, पानी पुल्लिंग 
  • धातुओं के नाम 一 सोना, पीतल, लोहा, ताँबा, पुल्लिंग है किन्तु चाँदी स्त्रीलिंग है। 
  • प्राणी जगत में 一 कौआ, मेंढक, खरगोश, भेडिया, उल्लू, तोता, खटमल, पक्षी, पशु, जीवन, प्राणी 
  • वृक्षों के नाम 一 नीम, पीपल, जामुन, बड़, गुलमोहर, शीशम, अशोक, आम, कंदब, देवदार, चीड़ शब्द पुल्लिग। 
  • पर्वतों के नाम 一 कैलश, अरावली, हिमाचल, विंध्याचल, सतपुड़ा। 
  • अनाजों के नाम 一 गेहँ, बाजरा, चावल, मूंग आदि शब्द पुल्लिग है। किन्तु मक्का, ज्वार, अरहर, अपवाद। 
  • ग्रहों के नाम 一 रवि, चंद्र, सूर्य, ध्रुव, मंगल, शनि, बृहस्पति शब्द पुल्लिंग हैं किन्तु पृथ्वी आपवाद है। 
  • शरीर के अंग 一 पैर, पेट, गला, मस्तक, अँगूठा, मस्तिष्क, हृदय, सिर, हाथ, दाँत, ओठ, कंधा, वक्ष, बाल पुल्लिग है।
  • वर्णमाला के अक्षर 一 स्वरों में (इ, ई, ऋ, ए, ऐ, को छोडकर) सभी पुल्लिंग है। 
  • संस्कृत शब्द (तत्सम शब्द) जैसे 一 दास, अनुचर, मानव, मनुष्य, देव, दानव, राजा, ऋषि, पुष्प, पत्र, फल, गृह, दीपक। 
  • समुद्रों के नाम 一 प्रशांत महासागार, अंध महासागार, अरब सागर, भूमध्यसागर, हिन्द महासागर 
  • आकार-प्रकार, देखने में भारी भरकम, विशाल और बैडोल वस्तुएँ पुल्लिंग होती है 一 ट्रक, इंजन, बोरा, खंभा, स्तंभ। 
  • विशिष्ट स्थान 一 वाचनालय, शिवालय, मंदिर, भंडारघर, स्नानागार, रसोईघर, शयनगृह, सभाभवन, न्यायालय, परीक्षा केन्द्र, मंत्रालय 
  • व्यवसाय सूचक 一 उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार, कर्मचारी, अधिकारी, व्यापारी, सचिव, आयुक्त, राज्यपाल, उद्योगपति, दुकानदार, देनदार, लेनदार, सेठ, श्रेष्ठी, सैनिक, सुनार, सेनापति। 
  • समुदायवाचक शब्द 一 समाज, दल, संघ, गुच्छा, मंडल, सम्मेलन, परिवार, कुटुंब, वंश, कुल, झुंड। 
  • भाववाचक संज्ञा 一 बाबा, बहाव, नचाव, दिखावा, मोटापा। 
  • एरा, दान, वाला, खाना, बाज, वान तथा शील, दाता और अर्थी प्रत्येय वाले शब्द सपेरा, फूलदान, दूधवाला, कारखाना, दयावाद, सुशील, परमार्थी, विद्यार्थी, शरणार्थी, मतदाता, रक्तदाता आदि। 

स्त्रीलिंग शब्द – स्त्रीलिंग शब्द के लिंग निर्धारण के नियम निम्नानुसार है – 

  • लिपियों के नाम 一 देवनागरी, रोमन, शारदा, खरोष्ठी। 
  • नदियों के नाम 一 गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी, नर्मदा। 
  • भाषाओं के नाम 一 हिन्दी, अरबी, फारसी, अंग्रेजी, जर्मन, मराठी। 
  • तिथियों के नाम 一 अमावस्या, पूर्णिमा, प्रतिपदा 
  • बेलों के नाम 一 जूही, चमेली, मधुमति। 
  • प्राणियों में 一 कोयल, चील, मैना, मछली, गिलहरी 
  • वर्णमाला के अक्षर 一 ई, ई, ऋ 
  • शरीर के अंग 一 आँख, नाम, नाभि, भौ, पलक, छाती। 
  • हथियारों में 一 तलवार, कटार, तोप, बंदूक, गोली, गढा।
  • समुदायों में 一 संसद, परिषद्, सभा, सेना।
  • नक्षत्रों के नाम 一 भरणी, कृतिका, रोहिणी। 
  • जिन शब्दों के अंत में इ, नी, आनी, आई, इया, इमा आदि से जुड़े शब्द -गर्मी कहानी, मलाई, बुढ़िया, कालिमा। 

वचन

शब्द के जिस रूप से उसके एक अथवा अनेक होने का बोध होता है, उसे वचन कहते है।

वचन भेद – वचन दो प्रकार के होते है 

  • एकवचन – शब्द के जिस रूप से उसके संख्या में एक होने का बोध होता है उसे एकवचन कहते है, जैसे पुस्तक, आदमी, संन्यासी पतंगा आदि। 
  • बहुवचन – शब्द के जिस रूप से उसके संख्या में अनेक का बोध हो, एक से अधिक वस्तुओं, संस्थाओं और स्थानों का बोध हो उसे बहुवचन कहते है। 

वचन संबंधी नियम

हिन्दी में कुछ शब्द सदा एकवचन में होते हैं और कुछ सदा बहुवचन में प्रयुक्त होते है। इनके नियम निम्नानुसार है 

वे शब्द जो हमेशा एकवचन में होते है 

  • धातु पदार्थो का ज्ञान कराने वाली जातिवाचक संज्ञाएं – सोना, चाँदी, लोहा, पीतल, ताँबा, घी, राँगा आदि। 
  • भाववाचक संज्ञाएँ – प्रेम, करूणा, दया, कृपा, क्रोध, घृणा, प्यार, डर, मिठास, खटास, अपनापन, अहंकार। 
  • आग, पानी, हवा, पवन, जल, वायु, वर्षा, दूध, दही, जनता, शब्द, धरती, आकाश, पाताल, सत्य, व्यथा आदि 
  • समूहवाचक संज्ञा – सेना, जाति, संस्था, कक्षा, गुच्छा, मण्डल, सभा, गण, वृंद, केन्द्र, संसद, प्रशासन आदि।

वे शब्द जो हमेशा बहुवचन में होते है 

  • दर्शन, समाचार, हस्ताक्षर, प्राण, केश, आँसू, रोम, लोग, सदैव बहुवचन में प्रयुक्त होते है। 
  • आदरसूचक शब्दो का प्रयोग सदैव बहुवचन में ही होता है
    जैसे – माताजी, पिताजी, दादाजी, आप, गुरू आदि।
    ऐतिहासिक पुरूषों, नारियों, पौराणिक नामों, सार्वजनिक, महान नेताओं, साहित्यकारों, वैज्ञनिकों के नाम इसी श्रेणी में आते है। 

इस प्रकार स्पष्ट है कि धातु-पदार्थो का ज्ञान प्रदान कराने वाली जातिवाचक संज्ञाए, भाववाचक संज्ञाए, समूह वाचक संज्ञाए एकवचन के अन्तर्गत आती हैं। 

 

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अव्यय (Indeclinable)

अव्यय 

जिन शब्दों के रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक आदि के कारण कोई भी विकार उत्पन्न नहीं होता है, उन्हें अव्यय कहते हैं। ऐसे शब्द हर स्थिति में अपने मूलरूप में बने रहते हैं, अतः ऐसे शब्द अविकारी होते हैं।
जैसे – इधर, उधर, जब, तब, यहाँ, वहाँ, अतः, अतएव, अवश्य, अर्थात्, चूँकि, आह, अरे, और, तथा, किन्तु, परन्तु, एवं, इत्यादि।

अव्यय के भेद

अव्यय के चार भेद होते हैं

  1. क्रिया-विशेषण
  2. संबंधबोधक 
  3. समुच्चयबोधक
  4. विस्मयादिबोधक 

1. क्रिया-विशेषण 

जिस शब्द से क्रिया, विशेषण तथा अन्य क्रिया-विशेषण शब्दों की विशेषता प्रकट हो, उसे क्रिया-विशेषण कहते हैं। 

जैसे

  • सीता धीरे-धीरे आ रही है।
  • श्याम अभी खा रहा है।
    उपरोक्त वाक्य ‘धीरे-धीरे’ तथा ‘अभी’, ‘आने’ तथा ‘खाने’ की क्रिया की विशेषता बताते हैं। 
  • वह बहुत धीरे चलता है।
    इस वाक्य में ‘बहुत’ क्रिया-विशेषण है, क्योंकि यह दूसरे क्रिया-विशेषण ‘धीरे’ की विशेषता बतलाता है। 

क्रिया-विशेषण के भेद 

1. प्रयोग के आधार पर

प्रयोग के आधार पर क्रिया-विशेषण के तीन भेद हैं – 

1. साधारण क्रिया-विशेषण – वाक्य में स्वतन्त्र रूप से प्रयुक्त क्रिया-विशेषण को ‘साधारण क्रिया-विशेषण’ कहते हैं। 

जैसे – 

  • जल्दी आ जाओ। 

यहाँ ‘जल्दी’ स्वतन्त्र रूप से वाक्य में प्रयुक्त हुआ है। 

2. संयोजक क्रिया-विशेषण – जिन क्रिया-विशेषणों का संबंध किसी उपवाक्य से रहता है, उन्हें ‘संयोजन क्रिया-विशेषण’ कहा जाता है;

जैसे – 

  • जहाँ अभी महल है, वहाँ कभी जंगल था। 

3. अनुबद्ध क्रिया-विशेषण – वाक्य में प्रयुक्त होकर निश्चय (अवधारणा) का बोध कराने वाले क्रिया-विशेषण शब्द को ‘अनुबद्ध क्रियाविशेषण’ कहते हैं। 

2. रूप के आधार पर 

रूप के आधार पर क्रिया-विशेषण को तीन भागों में बाँटा जाता है।

1. मूल क्रिया-विशेषण – ऐसे क्रिया-विशेषण, दूसरे शब्दों के मेल से नहीं बनते।
जैसे – ठीक, अचानक, नहीं इत्यादि।

2. यौगिक क्रिया-विशेषण – ऐसे क्रिया विशेषण, जो किसी दूसरे शब्द में प्रत्यय अथवा पद जोड़ने से बनते हैं,
जैसे – मन से, जिस से, भूल से इत्यादि।

3. स्थानीय क्रिया-विशेषण – ऐसे क्रिया विशेषण, बिना रूपान्तरण के किसी विशेष स्थान में आते हैं।
जैसे – क्यों अपना सिर खपाते हो?

3. अर्थ के आधार पर 

अर्थ के आधार पर क्रिया-विशेषण के नौ भेद हैं 

  1. कालवाचक क्रिया-विशेषण – जो शब्द क्रिया के समय से संबद्ध विशेषता बताएँ, उन्हें कालवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।
    जैसे – अभी-अभी, आज, कल, परसों, प्रतिदिन, अब, जब, कब, तब, लगातार, बार-बार, पहले, बाद में, निरन्तर, नित्य, दोपहर, सायं आदि। 
  2. स्थानवाचक क्रिया-विशेषण – जो शब्द क्रिया के स्थान से संबद्ध विशेषता बताते हैं, उन्हें स्थानवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।
    जैसे – वहाँ, कहाँ, पास, दूर, अन्यत्र, आसपास आदि। 
  3. दिशावाचक क्रिया-विशेषण – जो शब्द क्रिया की दिशा से संबद्ध विशेषता बताएँ, उन्हें दिशावाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।
    जैसे – इधर, जिधर, किधर, सामने आदि।
  4. परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण – जो शब्द क्रिया के परिमाण (मात्रा) से संबद्ध विशेषता प्रकट करें, उन्हें ‘परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण’ कहते हैं।
    जैसे – थोड़ा, पर्याप्त, जरा, खूब, अत्यन्त, तनिक, बिलकुल, स्वल्प, केवल, सर्वथा, अल्प आदि।
    यह कई प्रकार के होते हैं –
    (i) अधिकताबोधक – बहुत, अति, बड़ा, बिलकुल, सर्वथा, खूब, निपट, अत्यन्त, अतिशय।
    (ii) न्यूनताबोधक – कुछ, लगभग, थोड़ा, टुक, प्रायः, जरा, किंचित्।
    (iii) पर्याप्तिवाचक – केवल, बस, काफी, यथेष्ट, चाहे, बराबर, ठीक, अस्तु।
    (iv) तुलनावाचक – अधिक, कम, इतना, उतना, जितना, कितना, बढ़कर।
    (v) श्रेणिवाचक – थोड़ा-थोड़ा, क्रम-क्रम से, बारी-बारी से, तिल-तिल, एक-एककर, यथाक्रम। 
  5. रीतिवाचक क्रिया – विशेषण-जो शब्द क्रिया की रीति या ढंग बताते हैं, उन्हें रीतिवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।
    जैसे – धीरे, जल्दी, ऐसे, वैसे, कैसे, ध्यानपूर्वक, सुखपूर्वक, शान्तिपूर्वक आदि। रीतिवाचक क्रिया-विशेषण प्रायः निम्नलिखित अर्थों में आते हैं –
    (i) प्रकार – ऐसे, वैसे, कैसे, मानो, धीरे, अचानक, स्वयं, स्वतः, परस्पर, यथाशक्ति, प्रत्युत, फटाफट।
    (ii) निश्चय – अवश्य, सही, सचमुच, नि:सन्देह, बेशक, जरूर, अलबत्ता, यथार्थ में, वस्तुतः, दरअसल।
    (iii) अनिश्चय – कदाचित्, शायद, यथासम्भव।
    (iv) स्वीकार – हाँ, जी, ठीक, सच।
    (v) कारण – इसलिए, क्यों, काहे को।
    (vi) निषेध – न, नहीं, मत।
    (vii) अवधारणा – तो, ही, भी, मात्र, भर, तक, सा। 
  6. निश्चयवाचक क्रिया – विशेषण-जो शब्द क्रिया में निश्चय संबंधी विशेषता को प्रकट करें, उन्हें निश्चयवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।
    जैसे – अलबत्ता, जरूर, बेशक आदि। 
  7. अनिश्चयवाचक क्रिया-विशेषण – जो क्रिया-विशेषण शब्द क्रिया में अनिश्चय संबंधी विशेषता को प्रकट करें, उन्हें अनिश्चयवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।
    जैसे – कदाचित्, सम्भव है, मुमकिन है आदि। 
  8. निषेधवाचक क्रिया-विशेषण – जो शब्द क्रिया के करने या होने का निषेध प्रकट करें, उन्हें निषेधवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।
    जैसे – न, ना। 
  9. कारणवाचक क्रिया-विशेषण – जो शब्द क्रिया के होने या करने का कारण बताएँ, उन्हें कारणवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।
    जैसे – के मारे, अतः, अतएव, उद्देश्य से, किस लिए आदि। 

2. संबंधबोधक अव्यय 

जो शब्द वाक्य में किसी संज्ञा या सर्वनाम के साथ आकर वाक्य के दूसरे शब्द से उनका संबंध दिखाते हैं, तो शब्द ‘संबंधबोधक अव्यय’ कहलाते हैं।
जैसे – दूर, पास, अन्दर, बाहर, पीछे, आगे, बिना, ऊपर, नीचे आदि। 

उदाहरण – 

  • वृक्ष के ‘ऊपर’ पक्षी बैठे हैं। 
  • धन के ‘बिना’ कोई काम नहीं होता। 
  • दफ्तर के ‘पीछे’ गली है।
    उपरोक्त प्रथम वाक्य में ‘ऊपर’ शब्द ‘वृक्ष’ और ‘पक्षी’ के संबंध को, दूसरे वाक्य में ‘बिना’ शब्द ‘धन’ और ‘काम’ में संबंध को और तीसरे वाक्य में ‘पीछे’ शब्द दफ्तर और ‘गली’ में संबंध को दर्शाता है।
    अतः ‘ऊपर’, ‘बिना’, ‘पीछे’ शब्द संबंधबोधक हैं।

प्रयोग, अर्थ और व्युत्पत्ति के अनुसार संबंधबोधक अव्यय के निम्नलिखित भेद हैं – 

प्रयोग के अनुसार संबंधबोधक के भेद 

  1. सम्बद्ध संबंधबोधक – ऐसे शब्द संज्ञा की विभक्तियों के पीछे आते हैं।
    जैसे – भोजन के उपरांत, समय से पहले। 
  2. अनुबद्ध संबंधबोधक – ऐसे शब्द अव्यय संज्ञा के विकृत रूप के बाद आते हैं।
    जैसे – किनारे तक, मित्रों सहित, कटोरे भर, पुत्रियों समेत। 

अर्थ के अनुसार संबंधबोधक के भेद

  1. कालवाचक – आगे, पीछे, पहले, बाद, पूर्व, अनन्तर, पश्चात् उपरांत, लगभग। 
  2. स्थानवाचक – आगे, पीछे, नीचे, तले, सामने, पास, निकट, भीतर, समीप, नजदीक, यहाँ, बीच, बाहर, परे, दूर। 
  3. दिशावाचक – आसपास, ओर, तरफ, पार, आरपार, प्रति। 
  4. साधनवाचक – द्वारा, जरिए, मार्फत, बल, सहारे। 
  5. हेतुवाचक – लिए, निमित्त, वास्ते, हेतु, खातिर, कारण, मारे, चलते। 
  6. विषयवाचक – विषय, बाबत, नाम, लेखे, भरोसे। 
  7. व्यतिरेकवाचक – सिवा, अलावा, अतिरिक्त, बिना, बगैर, रहित। 
  8. विनिमयवाचक – पलटे, बदले, जगह, एवज। 
  9. सादृश्यवाचक – बराबर, समान, तरह, भाँति, तुल्य, योग्य, लायक, देखादेखी, सदृश, अनुसार, अनुरूप, अनुकूल, सरीखा, सा, ऐसा, जैसा, मुताबिक। 
  10. विरोधवाचक – विरुद्ध, खिलाफ, उलटे, विपरीत। 
  11. सहचरवाचक – संग, साथ, समेत, सहित, पूर्वक, अधीन, स्वाधीन। 
  12. संग्रहवाचक – तक, पर्यन्त, भर, मात्र।
  13. तुलनावाचक – अपेक्षा, आगे, सामने। 

व्युत्पत्ति के अनुसार संबंधबोधक के भेद

  1. मूल संबंधबोधक – बिना, पर्यन्त, पूर्वक इत्यादि। 
  2. यौगिक संबंधबोधक – 
    1. संज्ञा से – पलटे, लेखे, अपेक्षा। 
    2. विशेषण से – तुल्य, समान, उलटा, ऐसा, योग्य। 
    3. क्रिया विशेषण से – ऊपर, भीतर, यहाँ, बाहर, पास, परे, पीछे।
    4. क्रिया से – लिए, मारे, चलते, कर, जाने। 

3. समुच्चयबोधक अव्यय 

जो अविकारी शब्द दो या दो से ज्यादा शब्दों, वाक्यों या वाक्यांशों को परस्पर जोड़ते हैं, उन्हें समुच्चयबोधक कहते हैं।
जैसे – यद्यपि, चूँकि, परन्तु, और, किन्तु आदि।

उदाहरण

  • आँधी आयी और पानी बरसा।
    यहाँ ‘और’ अव्यय समुच्चयबोधक है; क्योंकि यह पद दो वाक्यों- ‘आँधी आयी’, ‘पानी बरसा’ को जोड़ता है।

समुच्चयबोधक के दो मुख्य भेद हैं –

1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक – जिन पदों या अव्ययों द्वारा मुख्य वाक्य जोड़े जाते हैं, उन्हें ‘समानाधिकरण समुच्चयबोधक’ कहते हैं। इसके पाँच उपभेद हैं –

(i) संयोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक – दो शब्दों, पदबंधों या उपवाक्यों को आपस में जोड़ने वाले अव्यय को संयोजक कहते हैं। जैसे – जोकि, कि, तथा, व, एवं, और, आदि।
उदाहरण – 

  • मैंने उसका तथा उसके भाई का संदेश दे दिया था। राम, लक्ष्मण और सीता वन में गए। 

(ii) विभाजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक – जो शब्द, विभिन्नता प्रकट करने के लिए प्रयुक्त होते हैं, उन्हें विभाजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।
जैसे – या, व, अथवा, कि, चाहे, न…. न, न कि, नहीं तो, ताकि, मगर, तथापि, किन्तु, लेकिन आदि।

उदाहरण – 

  • तुम चलोगे तो मैं चलूँगा।
  • रीना बाजार गई अथवा स्कूल। 

(iii) विकल्पसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक – जिन शब्दों से विकल्प का पता चलता है, उन्हें ‘विकल्पसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक’ शब्द कहते हैं।
जैसे – तो, न , अथवा, या, आदि। 

उदाहरण – 

  • मेरी किताब कैलाश ने चुराई या रवि ने।
    इस वाक्य में ‘कैलाश’ और ‘रवि’ के चुराने की क्रिया करने में विकल्प है। 

(iv) विरोधसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक – दो वाक्यों में परस्पर विरोध प्रकट करके उन्हें जोड़ने वाले अथवा प्रथम वाक्य में कही गयी बात का निषेध दूसरे वाक्य में करने वाले अव्यय को विरोधसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।
जैसे – किन्तु, परन्तु, पर, लेकिन, मगर, वरन, बल्कि। 

उदाहरण – 

  • मेरा मित्र इस गाड़ी से आने वाला था, परन्तु वह नहीं आया। 
  • नीतीश ने उसे रोका था, लेकिन वह नहीं रुका। 

(v) परिणामसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक – प्रथम वाक्य का परिणाम या फल दूसरे वाक्य में बताने वाले अव्यय को परिणामसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।
जैसे – इसलिए, अतः, सो, अतएव। 

उदाहरण – 

  • वह बीमार था इसलिए उसने खाना नहीं खाया। 
  • वर्षा हो रही थी अत: मैं पाठशाला नहीं गया।
    इन वाक्यों में ‘इसलिए’ और ‘अत:’ अव्यय प्रथम वाक्य का परिणाम दूसरे वाक्य में बताते हैं, अतः ये परिणामसूचक समुच्ययबोधक हैं। 

 

2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक – जिन पदों या अव्ययों के द्वारा किसी मुख्य वाक्य में एक या अधिक आश्रित वाक्य जोड़े जाते हैं, उन्हें ‘व्यधिकरण समुच्चयबोधक’ कहते हैं। इसके चार उपभेद हैं –

(i) कारणवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक – जिस अव्यय से पहले वाक्य के कार्य का कारण दूसरे वाक्य में लक्षित हो, उसे कारणवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।
जैसे – क्योंकि, जोकि, इसलिए कि।
उदाहरण – 

  • मैं पाठशाला नहीं जा सका क्योंकि वर्षा हो रही थी। 

(ii) उद्देश्यवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक – जिस अव्यय से एक वाक्य का उद्देश्य या फल दूसरे वाक्य द्वारा प्रकट हो, उसे उद्देश्यवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।
जैसे – ताकि, कि, जो, जिससे, इसलिए कि।
उदाहरण – 

  • श्रेष्ठ कार्य करो जिससे माता-पिता गर्व कर सकें। 
  • मैं वहाँ इसलिए गया था ताकि पुस्तक ले आऊँ। 

(iii) संकेतवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक – जिन शब्दों से दो योजक दो उपवाक्यों को जोड़ते हैं, उन्हें संकेतवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।
जैसे – यदि…… तो, यद्यपि….. तथापि, जो….. तो, चाहे….. परन्तु, कि।
उदाहरण – 

  • यद्यपि मैंने उनसे निवेदन किया तथापि वे नहीं माने। 
  • अगर उसे काम नहीं होगा तथापि वह आ जाएगा। 

(iv) स्वरूपवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक – जो अव्यय दो उपवाक्यों को इस प्रकार जोड़े कि पहले वाक्य का स्वरूप दूसरे वाक्य से ही स्पष्ट हो, उसे स्वरूपवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।
जैसे – यानी, कि, जैसे, जो, अर्थात्, मानो।
उदाहरण – 

  • दिनेश ने कहा कि मैं आज खाना नहीं खाऊँगा। 
  • रोहन इस तरह डर रहा है मानो उसने ही चोरी की हो। 

4. विस्मयादिबोधक अव्यय

जो शब्द आश्चर्य, हर्ष, शोक, घृणा, आशीर्वाद, क्रोध, उल्लास, भय आदि भावों को प्रकट करें, उन्हें ‘विस्मयादिबोधक’ कहते हैं।
जैसे – हाय! अब मैं क्या करूँ?

  • अरे! पीछे हो जाओ, गिर जाओगे। 

विस्मयादिबोधक अव्यय का अपने वाक्य या किसी पद से कोई संबंध नहीं होता। इनका प्रयोग मनोभावों को तीव्र रूप में प्रकट करने के लिए होता है। इसके लिए विशेष चिह्न (!) का प्रयोग किया जाता है। विस्मयादिबोधक के निम्नलिखित भेद हैं – 

  • हर्षबोधक – अहा!, वाह-वाह!, धन्य-धन्य, शाबाश!, जय, खूब आदि। 
  • शोकबोधक – अहा!, अफ, हा-हा!, आह, हाय, त्राहि-त्राहि आदि। 
  • आश्चर्यबोधक – वाह!, हैं!, ऐ!, क्या!, ओहो, अरे, आदि।  
  • क्रोधबोधक – हट, दूर हो, चुप आदि। 
  • स्वीकारबोधक – हाँ!, जी हाँ!, जी, अच्छा, जी!, ठीक!, बहुत अच्छा! आदि। 
  • संबोधनबोधक – अरे!, अजी!, लो, रे, हे आदि। 
  • भयबोधक – अरे, बचाओ-बचाओ आदि।

 

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क्रिया (Verb)

क्रिया 

क्रिया का सामान्य अर्थ है – काम करना या होना। अतः वाक्य में जिस शब्द से कार्य करने या होने का बोध हो, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे – सोना, जागना, खाना, हँसना, रोना, दौड़ना आदि। क्रिया विकारी शब्द है, क्योंकि इसमें लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार रूपान्तरण होता है। जैसे – पढ़ता है, पढ़ती है, पढ़ते हैं आदि।

धातु

क्रिया के मूल रूप को ‘धातु’ कहते हैं। धातु से ही क्रिया पद का निर्माण होता है, इसलिए क्रिया के सभी रूपों में ‘धातु’ उपस्थित रहती है। जैसे – पढ़, लिख, खा, पी, जा, चल, सुन, आ, बैठ, दौड़ इत्यादि। 

क्रिया धातु का सामान्य रूप 

मूल धातु में ‘ना’ प्रत्यय लगाकर प्रयोग किए जाने वाले रूप को क्रिया का सामान्य रूप कहा जाता है; जैसे – पढ़ना, लिखना, बोलना, हँसना, भागना, चलना, खाना, उड़ना, जाना आदि।

क्रिया के भेद

  1. कर्म के आधार पर
    1. अकर्मक
    2. सकर्मक
      1. एककर्मक
      2. द्विकर्मक
  2. संरचना के आधार पर
    1. प्रेरणार्थक क्रिया
    2. नामधातु क्रिया
    3. संयुक्त क्रिया
    4. सहायक क्रिया 
    5. पूर्वकालिक क्रिया 
    6. मुख्य क्रिया
  3. अर्थ की पूर्णता के आधार पर
    1. पूर्ण क्रिया
    2. अपूर्ण क्रिया

कर्म के आधार पर क्रिया के भेद

क्रिया के दो भेद होते हैं

1. सकर्मक क्रिया – 

सकर्मक क्रिया उसे कहते हैं, जिसमें कर्म जुड़ा हो। कर्म के बिना उसका अर्थ पूरा नहीं होता, क्योंकि सकर्मक क्रियाओं का फल कर्म पर पड़ता है। 

जैसे – 

  • उसने पेड़ काटा। 
  • माँ ने बेटी को मारा। 

इन वाक्यों में ‘पेड़’ और ‘बेटी’ कर्म हैं। यदि इन्हें (कर्म) हटा दिया जाए तो यह स्पष्ट नहीं होगा कि ‘उसने’ क्या काटा अथवा ‘माँ’ ने किसको मारा।
कभी-कभी सकर्मक क्रिया में कर्म के होने की भी सम्भावना रहती है। 

जैसे – 

  • वह गाता है। 
  • वह पढ़ता है।

सकर्मक क्रिया के भी दो भेद हैं – एककर्मक क्रिया और द्विकर्मक क्रिया। 

एककर्मक क्रिया – जिस क्रिया का एक ही कर्म (कारक) हो, उसे एककर्मक क्रिया कहते हैं। 

जैसे – 

  • रीता रोटी खाती है। 

इस वाक्य में ‘खाना’ क्रिया का एक ही कर्म ‘रोटी’ है। 

द्विकर्मक क्रिया – द्वि + कर्मक अर्थात् दो कर्म वाली क्रिया। कुछ सकर्मक क्रियाओं में दो-दो कर्म होते हैं, उन्हें द्विकर्मक क्रिया कहते हैं। 

जैसे – 

  • शिक्षक ने छात्र से प्रश्न पूछा। (दो कर्म-छात्र, प्रश्न)
  • माँ बच्चे को दूध पिलाती है। (दो कर्म-बच्चे, दूध) 

2. अकर्मक क्रिया 

अकर्मक अर्थात् बिना कर्म के। अकर्मक क्रिया उसे कहते हैं, जिसमें कर्म नहीं होता। अकर्मक क्रिया का सीधा संबंध कर्ता से है। इसका फल स्वयं कर्ता पर पड़ता है। 

जैसे

  • वह हँसता है। 
  • बच्चा रोता है।

इन वाक्यों में ‘हँसता है’, ‘रोता है’ अकर्मक क्रियाएँ हैं, क्योंकि इनका फल क्रमशः ‘वह’ और ‘बच्चा’ पर पड़ता है।
निम्नलिखित क्रियाएँ सदैव अकर्मक रहती हैं – 

  • जातिबोधक क्रियाएँ – आना, जाना, घूमना, दौड़ना आदि। 
  • अवस्थाबोधक क्रियाएँ – होना, रहना, सोना आदि।

संरचना के आधार पर क्रिया के भेद

  1. प्रेरणार्थक क्रिया
  2. नामधातु क्रिया
  3. संयुक्त क्रिया
  4. सहायक क्रिया
  5. पूर्वकालिक क्रिया
  6. मुख्य क्रिया

1. प्रेरणार्थक क्रिया – जिस क्रिया को करने के लिए कर्ता दूसरों की प्रेरणा या सहायता लेता अथवा दूसरों को देता है – ऐसी क्रियाओं को प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं। 

जैसे

  • मैंने नौकर से पेड़ कटवाया।
    इस वाक्य में ‘कटवाया’ प्रेरणार्थक क्रिया है, क्योंकि कार्य कर्ता (मैंने) द्वारा नहीं ‘नौकर’ द्वारा किया गया है।

2. नामधातु या नामबोधक क्रिया – संज्ञा या विशेषण के साथ जुड़कर बनने वाली क्रिया नामबोधक या नामधातु कहलाती है। 

उदाहरण

  • भस्म (संज्ञा) + करना (क्रिया) – भस्म करना। 
  • निराश (विशेषण) + होना (क्रिया) – निराश होना। 

3. संयुक्त क्रिया – दो क्रियाओं के मेल से बनी क्रिया संयुक्त क्रिया होती है। संयुक्त क्रिया की विशेषता यह है कि उसमें पहली क्रिया प्रधान होती है और दूसरी क्रिया उसके अर्थ में विशेषता उत्पन्न करती है। 

जैसे–

  • मैं चल सकता हूँ।
    इस वाक्य में ‘चल’ प्रधान क्रिया है और ‘सकना’ सहायक क्रिया, जो प्रधान क्रिया ‘चल’ की विशेषता बताती है।

संयुक्त क्रिया के भेद – 

संयुक्त क्रिया के निम्नलिखित भेद हैं

1. आरम्भबोधक – जहाँ कार्य आरम्भ होने का बोध हो।
जैसे –
पानी बरसने लगा।
मैं पढ़ने लगा। 

2. समाप्तिबोधक – जहाँ कार्य समाप्त होने का बोध हो।
जैसे –
वह खा चुका है।
वह पढ़ चुकी है।

3. अवकाशबोधक – जहाँ कार्य को सम्पन्न करने में अन्तराल (अवकाश) का बोध हो।
जैसे –
माला सो न पायी।
वह जा नहीं पाया।

4. अनुमतिबोधक – जहाँ कार्य करने की अनुमति दिए जाने का बोध हो।
जैसे –
उसे घर जाने दो।
मुझे अपनी बात कहने दो।

5. आवश्यकताबोधक – जहाँ कार्य की आवश्यकता या कर्तव्य का बोध हो।
जैसे –
तुम्हें पढ़ना चाहिए।
उसे तुरन्त जाना पड़ा।

6. शक्तिबोधक – जहाँ कार्य करने की शक्ति या सामर्थ्य का बोध हो।
जैसे –
अब वह चल सकता है।
मैं पढ़ सकता हूँ।

7. निश्चयबोधक – जहाँ कार्य की निश्चयता का बोध हो।
जैसे –
वह पेड़ से गिर पड़ा।
अब उसकी किताब दे ही दो। 

8. इच्छाबोधक – जहाँ कार्य करने की इच्छा व्यक्त हो।
जैसे –
मैं अब सोना चाहता हूँ।
बेटा घर आना चाहता है।

9. अभ्यासबोधक – जहाँ क्रिया के करने के अभ्यास का बोध हो।
जैसे –
वह हमेशा पढ़ा करती है।
वह गाया करती है।

10. नित्यताबोधक – जहाँ कार्य के चालू रहने का बोध हो।
जैसे –
वर्षा हो रही है।
वह रात भर पढ़ती रही।

11. आकस्मिकताबोधक – जहाँ अचानक कार्य होने का बोध हो।
जैसे –
वह एकाएक रो उठी।
वह बेटे को मार बैठा।

12. पुनरुक्तिबोधक क्रिया – जहाँ समान वर्ग के दो कार्यों का एक साथ बोध हो।
जैसे –
वह यहाँ आया-जाया करता है।
आपस में मिलते-जुलते रहो। 

4. सहायक क्रिया 

सहायक क्रियाएँ मुख्य क्रिया के अर्थ को स्पष्ट और पूरा करने में सहायक होती हैं। एक से अधिक सहायक क्रियाएँ भी प्रयुक्त होती हैं।
जैसे – 

  • मैंने पढ़ा था। 
  • तुम सोए हुए थे।
    इन वाक्यों में ‘पढ़ना’ और ‘सोना’ मुख्य क्रियाएँ हैं। शेष ‘था’, ‘हुए थे’ सहायक क्रियाएँ हैं, जो मुख्य क्रिया के अर्थ को पूरी तरह स्पष्ट करती हैं।

5. पूर्वकालिक क्रिया

इसमें प्रथम कार्य की समाप्ति का बोध होता है। इसमें कर/करके/पर जैसे शब्दों का प्रयोग होता है। 

जैसे – 

  • मैंने उसे जानबूझकर नहीं मारा। 
  • यह चमत्कार देखकर मैं दंग रह गया। 
  • सूर्योदय होने पर वह घर आया। 
  • नौकर काम करके चला गया। 

कभी-कभी पुनरुक्ति में भी पूर्वकालिक क्रिया का प्रयोग होता है। 

जैसे – 

  • उसने रो-रो कर सारी बात कही। 
  • वह खोज-खोज कर हार गया।

पूर्वकालिक क्रियाएँ विशेषण का भी काम करती हैं, क्योंकि ये क्रिया की विशेषता (कार्य करने की रीति) बताती हैं। 

जैसे – 

  • वह मुझे आँखें फाड़कर देखता रहा। 
  • उसने मुझसे हँसकर कहा। 

पूर्वकालिक क्रिया से कार्य का कारण भी स्पष्ट होता है। 

जैसे – 

  • रात होने पर सब लोग चले गए। 
  • सूर्योदय होने पर अन्धकार छंट गया।

6. तात्कालिक क्रिया

तात्कालिक क्रिया वास्तव में पूर्वकालिक क्रिया का ही एक भेद है। जहाँ एक क्रिया की समाप्ति के अनन्तर ही दूसरी पूर्ण क्रिया का होना पाया जाये, वहाँ पहली ‘तात्कालिक क्रिया’  कहलाती है।

तात्कालिक क्रिया धातु के अन्त में ‘ते’ प्रत्यय लगाकर उसके आगे ‘ही’ जोड़ने से बनती है।

जैसे – 

  • भोजन करते ही वह सो गया।
  • दीपा काम करते ही थक गयी। 

7. मुख्य क्रिया 

क्रिया का एक अंश, जो मुख्य अर्थ प्रदान करता है, उसे मुख्य क्रिया कहते हैं अथवा कर्ता या कर्म के मुख्य कार्यों को व्यक्त करने वाली क्रिया ‘मुख्य क्रिया’ कहलाती है। 

जैसे – 

  • नीमा पानी लाई। 
  • दीपा ने दुकान खोली।

उपर्युक्त वाक्यों में ‘लाई’ और ‘खोली’ शब्द ही ‘कर्ता’ या ‘कर्म’ के मुख्य कार्यों को व्यक्त कर रहे हैं, अतः ये मुख्य क्रियाएँ हैं। 

अर्थ की पूर्णता के आधार पर

अपूर्ण क्रिया

कई बार वाक्य में क्रिया के होते हुए भी उसका अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाता। ऐसी क्रियाएँ अपूर्ण क्रिया कहलाती हैं। 

जैसे – 

  • तुम हो।
  • गाँधीजी थे। 

यहाँ पर ये क्रियाएँ अपूर्ण हैं।

इन वाक्यों में क्रमशः ‘बुद्धिमान’ और ‘राष्ट्रपिता’ शब्दों को जोड़ने से शब्दों के प्रयोग में स्पष्टता आ जाएगी। ये सभी शब्द ‘पूरक’ हैं।

 

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विशेषण (Adjective)

विशेषण 

संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताने वाले शब्दों को विशेषण कहते हैं अर्थात् जो शब्द गुण, दोष, भाव, संख्या और परिमाण आदि से संबंधित विशेषता का बोध कराते हैं, उसे विशेषण कहते हैं और जिसकी विशेषता बताई जाती है, उसे विशेष्य कहा जाता है। विशेषण विकारी शब्द होते हैं। 

उदाहरण – 

  • यह काली गाय है। 
  • लीची मीठी है।
  • गीता सुन्दर है। 

उपर्युक्त वाक्यों में ‘काली’, ‘मीठी’ और ‘सुन्दर’ शब्द गाय, लीची और गीता की विशेषता बता रहे हैं। 

विशेष्य :-  विशेषण शब्द जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं, उन्हें विशेष्य कहते हैं।
उपर्युक्त वाक्यों में ‘गाय’, ‘लीची’ और ‘गीता’ शब्दों की विशेषता बताई गई है, इसलिए ये शब्द विशेष्य हैं। 

विशेषण और विशेष्य 

विशेषण शब्द विशेष्य से पूर्व भी आते हैं और उसके बाद भी।

विशेष्य से पूर्व वाक्य,

जैसे

  • थोड़ी-सी चाय पी लो। 
  • दो कप ले आओ।
  • ताजी मौसमी है। 

बाद में लगने वाले शब्द, 

जैसे

  • ताजमहल खूबसूरत है। 
  • दही खट्टा है। 
  • यह सड़क लम्बी है।

विशेषण के भेद

विशेषण के चार भेद होते हैं- 

  1. सार्वनामिक विशेषण
    1. संकेतवाचक/ निश्चयवाचक
    2. अनिश्चयवाचक सार्वनामिक
    3. प्रश्नवाचक सार्वनामिक
    4. संबंधवाचक सार्वनामिक
  2. गुणवाचक विशेषण
  3. संख्यावाचक विशेषण
    1. निश्चित संख्यावाचक
      1. गुणवाचक/ पूर्ण संख्या बोधक
      2. क्रम वाचक
      3. आवृत्ति वाचक
      4. समुदाय वाचक
      5. समुच्चय बोधक
      6. प्रत्येक बोधक
    2. अनिश्चित संख्यावाचक
  4. परिमाणबोधक विशेषण
    1. निश्चित परिमाणवाचक
    2. अनिश्चित परिमाणवाचक

1. सार्वनामिक विशेषण 

सर्वनाम के रूप में प्रयुक्त होने वाले विशेषण या विशेषण के रूप में प्रयुक्त होने वाले सर्वनाम, सार्वनामिक विशेषण कहलाते हैं। जब कोई सर्वनाम शब्द, किसी संज्ञा शब्द के पहले आते हैं, तब वे सार्वनामिक विशेषण कहलाते हैं। 

जैसे

  • यह लड़का कक्षा में अव्वल आया। 
  • वह लड़की पढ़ाई में अच्छी है।
  • यह लड़की अच्छा नृत्य करती है। 
  • किस आदमी से बात कर रही हो?

उपरोक्त उदाहरणों में, ‘यह’, ‘वह’, ‘किस’ आदि शब्द संज्ञा शब्द से पहले आए हैं और विशेषण की तरह उन संज्ञा शब्दों की विशेषता बता रहे हैं।

सार्वनामिक विशेषण के दो उपभेद हैं- 

  1. मौलिक सार्वनामिक विशेषण और 
  2. यौगिक सार्वनामिक विशेषण

1. मौलिक सार्वनामिक विशेषण 

जो शब्द, अपने मूल रूप में संज्ञा के आगे लगकर संज्ञा की विशेषता बताते हैं, उन्हें मौलिक सार्वनामिक विशेषण कहा जाता है। 

उदाहरण – 

  • यह किताब बहुत पुरानी है। 
  • वह गमला काफी नक्काशीदार है। 
  • कोई आदमी गा रहा था। 
  • कुछ दाने कबूतरों के खाने के लिए डाल दो। 

2. यौगिक सार्वनामिक विशेषण 

यौगिक सर्वनाम, मूल सर्वनामों में प्रत्यय लगाने से बनते हैं। जो सर्वनाम रूपान्तरित रूप में संज्ञा शब्दों की विशेषता बतलाते हैं, उन्हें यौगिक सार्वनामिक विशेषण कहा जाता है। 

उदाहरण –

  • कैसा घर है, पानी टपक रहा है? 
  • अगर तुम्हें कोई ऐसी लड़की दिखाई दे तो तुरंत सूचित करना। 
  • जैसा देश वैसा भेष। 
  • जितना काम वो करता है, उतना काम करना मेरे बस की बात नहीं। 

2. गुणवाचक विशेषण 

जो शब्द संज्ञा अथवा सर्वनाम के गुण-धर्म, दशा, स्वभाव आदि का बोध कराते हैं, गुणवाचक विशेषण कहलाते हैं। गुणवाचक विशेषण में आकारबोधक, कालबोधक, गुणबोधक, रंगबोधक और दशाबोधक शब्द भी सम्मिलित हैं।

जैसे – 

गुणबोधक – अच्छा, उचित, ईमानदार, सरल, विनम्र, भला, सुन्दर, बुरा, खराब, झूठा, इत्यादि।
आकारबोधक – गोल, चौकोर, तिकोना, लम्बा, चौड़ा, सुडौल, मोटा, पतला आदि।
कालबोधक – नया, पुराना, नवीन, प्राचीन, ताजा आदि।
रंगबोधक – लाल, काला, पीला, नीला, हरा, गुलाबी।
दशाबोधक – मोटा, पतला, गीला, सूखा, युवा, वृद्ध। 

उदाहरण

  • गुण – वह एक अच्छा पंडित है। 
  • आकार – यह मीनार बहुत लम्बी है।
  • काल – वह एक प्राचीन महल है।
  • रंग – उसकी गाय काली है। 
  • दशा – कालीन गीली हो गई है। 

3. संख्यावाचक विशेषण 

जो शब्द संज्ञा अथवा सर्वनाम की संख्या का बोध कराते हैं, उन्हें संख्यावाचक विशेषण कहा जाता है। जैसे – एक, दो, तीन, चार, पाँच आदि संख्यावाचक विशेषण हैं। ये विशेषण शब्द, अन्य शब्दों के आगे लगकर बनने वाले विशेष्य शब्दों की विशेषता बताते हैं।

उदाहरण – 

  • एक आम 
  • दो लड़की 
  • तीन खिड़की
  • चार कबूतर 

संख्यावाचक विशेषण दो प्रकार के होते हैं – 

1. निश्चित संख्यावाचक – वे विशेषण शब्द, जो विशेष्य की निश्चित संख्या का बोध कराते हैं, निश्चित संख्यावाचक विशेषण कहलाते हैं।

उदाहरण

  • एक किलो आलू ले आना। 
  • मेरी कक्षा में 25 छात्र हैं। 
  • मुझे 2 जलेबी खानी है। 
  • पाँच लोग खाना खा रहे हैं। 

निश्चित संख्यावाचक विशेषण को प्रयोग के अनुसार निम्न भेदों में बाँटा जा सकता है 

  • गणनावाचक – एक, दो, तीन, पाँच इत्यादि। 
  • क्रमवाचक – पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा इत्यादि। 
  • आवृत्तिवाचक – दोगुना, तिगुना, चौगुना, सौगुना इत्यादि। 
  • समुदायवाचक – दोनों, तीनों, पाँचों, चारों इत्यादि। 
  • प्रत्येकबोधक – प्रत्येक, हर-एक, दो-दो, सवा-सवा इत्यादि।

2. अनिश्चित संख्यावाचक – वे विशेषण शब्द, जिनसे संख्या में अनिश्चितता का बोध हो, अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण कहलाते हैं।

उदाहरण

  • कुछ लोग आने वाले हैं। 
  • पार्टी में बहुत से लोग मौजूद थे। 
  • बहुत सारे विद्यार्थी प्रार्थना में उपस्थित थे। 
  • थोड़ा-सा खाना खा लिया है। 

4. परिमाणवाचक विशेषण 

जिन विशेषण शब्दों से, किसी वस्तु या पदार्थ की मात्रा का परिमाण का बोध होता हो, उसे परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं। यह किसी वस्तु की नाप या तौल का बोध कराता है। जैसे— ‘दो’ लीटर दूध, ‘एक’ किलो घी, ‘तोला’ भर सोना, ‘पाँच’ किलो फल।

परिमाणवाचक विशेषण के दो भेद होते हैं

1. निश्चित परिमाणवाचक – जिन विशेषण शब्दों से किसी वस्तु की निश्चित मात्रा अथवा माप-तौल का बोध हो, वे निश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहलाते हैं। 

जैसे– 

  • ‘पाँच किलो’ सब्जी 
  • ‘सवा सेर’ दूध
  • ‘दो गज’ जमीन
  • ‘चार हाथ’ मलमल।

2. अनिश्चित परिमाणवाचक – जिन विशेषण शब्दों से किसी वस्तु की निश्चित मात्रा अथवा माप-तौल का बोध नहीं होता हो, वे अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहलाते हैं।
जैसे – 

  • ‘सब’ धन, 
  • ‘थोड़ा’ पानी
  • ‘बहुत’ खाना

विशेषण और विशेष्य में संबंध 

वाक्य में विशेषण का प्रयोग दो प्रकार से होता है – कभी विशेषण विशेष्य के पहले आता है और कभी विशेष्य के बाद।
प्रयोग की दृष्टि से विशेषण के दो भेद होते हैं

1. विशेष्य-विशेषण – जो विशेषण विशेष्य के पहले आए, उसे विशेष्य-विशेषण कहते हैं।

जैसे –

  •  राकेश तेज विद्यार्थी है। 
  • उमा सुन्दर लड़की है। 

उपरोक्त वाक्यों में ‘तेज’ और ‘सुन्दर’ क्रमशः ‘विद्यार्थी’ और ‘लड़की’ के विशेषण हैं, जो संज्ञाओं (विशेष्य) के पहले आए हैं।

2. विधेय-विशेषण – जो विशेषण, विशेष्य और क्रिया के बीच आए, उसे विधेय-विशेषण कहते हैं। 

जैसे- 

  • मेरी गाय भूरी है। 
  • मेरा नौकर ईमानदार है। 

उपरोक्त वाक्यों में ‘भूरी’ और ‘ईमानदार’ ऐसे विशेषण हैं, जो क्रमशः गाय (संज्ञा) और है (क्रिया) तथा नौकर (संज्ञा) और है (क्रिया) के बीच में आए हैं।

प्रविशेषण 

जो शब्द विशेषण शब्दों की विशेषता बताते हैं, प्रविशेषण कहलाते हैं। 

जैसे— 

  • मैं पूर्णतया स्वस्थ हूँ।
  • राजेश बहुत अच्छा है।

उपरोक्त वाक्य में ‘पूर्ण’ एवं ‘बहुत’ शब्द, ‘स्वस्थ’ तथा ‘अच्छा’ (विशेषण) की विशेषता दर्शा रहे हैं, इसलिए ये शब्द प्रविशेषण हैं।

विशेषण की अवस्था 

इसे तुलनात्मक विशेषण भी कहा जाता है। तुलना के विचार से विशेषण की तीन अवस्थाएँ होती हैं

  1. मूलावस्था
  2. उत्तरावस्था
  3. उत्तमावस्था

1. मूलावस्था – जिस अवस्था में विशेषण अपने मूलरूप में आता है अर्थात् इसमें विशेषण अन्य किसी विशेषण से तुलित न होकर सीधे व्यक्त होता है। 

जैसे- 

  • कमल ‘सुन्दर’ फूल है। 
  • महारानी गायत्री देवी ‘खूबसूरत’ थी। 
  • दूध ‘मीठा’ होता है।

इसमें कोई तुलना नहीं होती, बल्कि सामान्य विशेषता बताई जाती है।

2. उत्तरावस्था – इसमें दो विशेष्यों की विशेषताओं से तुलना की जाती है अर्थात् इसमें दो व्यक्ति, वस्तु अथवा प्राणियों के गुण-दोष बताते हुए उनकी आपस में तुलना की जाती है।

जैसे- 

  • अमर सुशील से अधिक तेज है। 
  • ऐश्वर्या सुष्मिता से अधिक सुन्दर है। 
  • गंगा नदी, यमुना नदी से ज्यादा स्वच्छ है।

3. उत्तमावस्था –  इसमें विशेषण द्वारा किसी एक विशेष्य को अन्य सभी वस्तुओं की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ बताया जाता है अर्थात् गुणों की तुलना करके एक को सबसे अधिक गुणशाली/उत्तम और दूसरे को नीच/दोषी प्रमाणित किया जाता है। 

जैसे – 

  • अर्जुन अपने चारों भाइयों में सबसे वीर था। 
  • हमारे विद्यालय में दिव्या सबसे अच्छी खिलाड़ी है। 
  • सब जानवरों में हाथी सबसे विशाल है।

 

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सर्वनाम (Pronoun)

सर्वनाम

सर्वनाम उस विकारी शब्द को कहते हैं, जो पूर्वापर संबंध से किसी भी संज्ञा के बदले प्रयुक्त होता है। दूसरे शब्दों में, सर्व (सब) नामों (संज्ञाओं) के बदले जो शब्द प्रयोग में आते हैं, उन्हें सर्वनाम कहते हैं।
जैसे – मैं, तू, यह, वह। 

सर्वनाम के भेद 

  1. पुरुषवाचक (उत्तम, मध्यम, अन्य)
  2. निश्चयवाचक (यह, ये, वह, वे)
  3. अनिश्चयवाचक (कोई, कुछ)
  4. प्रश्नवाचक (कौन, क्या)
  5. संबंधवाचक (जो, सो)
  6. निजवाचक (आप, खुद, स्वयं)

1. पुरुषवाचक सर्वनाम 

पुरुषवाचक सर्वनाम पुरुष और स्त्री दोनों के नाम के बदले आते हैं। इसकी तीन कोटियाँ हैं – प्रथम पुरुष या उत्तम पुरुष में लेखक या वक्ता आता है, मध्यम पुरुष में पाठक या श्रोता और अन्य पुरुष में लेखक और श्रोता को छोड़कर अन्य लोग आते हैं। 

जैसे –
उत्तम/प्रथम पुरुष – मैं, हम
मध्यम पुरुष – तू, तुम, आप
अन्य पुरुष – वह, वे, यह, ये 

2. निश्चयवाचक सर्वनाम 

जिस सर्वनाम से वक्ता के पास अथवा दूर की किसी वस्तु का बोध होता है, उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।  जैसे — यह, वह, ये, वे। 

  • यह किसका कोट है? (निकट की वस्तु के लिए) 
  • वह कौन रो रहा है? (दूर की वस्तु के लिए)

3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम 

जिस सर्वनाम से किसी निश्चित वस्तु या प्राणी का बोध न हो, उसे अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं। अनिश्चयवाचक सर्वनाम केवल दो हैं – ‘कोई’ और ‘कुछ’। ‘कोई’ पुरुष के लिए और ‘कुछ’ पदार्थ या उसके गुण-धर्म के लिए आता है। ‘कोई’ का प्रयोग एकवचन और बहुवचन दोनों में होता है, लेकिन ‘कुछ’ का प्रयोग एकवचन में होता है।

उदाहरण 

  1. देखो, दरवाजे पर कोई खड़ा है।
  2. आज कोई-न-कोई अवश्य आएगा। 
  3. कोई कुछ कहता है, कोई कुछ।
  4. कोई दूसरा होता तो मैं देख लेता। 

4. प्रश्नवाचक सर्वनाम 

प्राणी या वस्तु के सन्दर्भ में प्रश्न करने वाले सर्वनाम प्रश्नवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। ये दो हैं- ‘कौन’ और ‘क्या’। ‘कौन’ व्यक्तियों के लिए और ‘क्या’ वस्तु या उसके गुण-धर्म के लिए प्रयुक्त होता है।

उदाहरण

  1. दरवाजे पर कौन खड़ा है? 
  2. बरात में कौन-कौन आया था? 
  3. मुझे रोकने वाले तुम कौन हो? 
  4. इसमें नाराज होने वाली कौन-सी बात है? 
  5. मैं किस-किस से पूछू?
  6. क्या गाड़ी चली गई? 

5. संबंधवाचक सर्वनाम 

जिस सर्वनाम से वाक्य में किसी दूसरे सर्वनाम से संबंध का बोध हो, उसे संबंधवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे – जो, सो। ‘जो’ के साथ ‘वह’ या ‘सो’ का प्रयोग प्रायः होता है। 

उदाहरण 

  1. जो बोले सो निहाल। 
  2. क्या हुआ जो इस बार हार गए। 
  3. किसी में इतना साहस नहीं, जो उसका विरोध करे।
  4. वह कौन-सा काम है, जो तुम नहीं कर सकते। 

6. निजवाचक सर्वनाम 

निजवाचक सर्वनाम का रूप ‘आप’ है। पुरुषवाचक सर्वनाम भी ‘आप’ है। किन्तु दोनों के अर्थ और प्रयोग में अन्तर है। पुरुषवाचक ‘आप’ बहवचन में आदर के लिए प्रयोग किया जाता है। जैसे – आप आए, हमारा सौभाग्य है। किन्तु निजवाचक ‘आप’ से ‘स्वयं’ या ‘निजता’ का बोध होता है। जैसे – आप भला तो जग भला। यह काम आप ही हो गया।

उदाहरण

निजवाचक सर्वनाम ‘आप’ का प्रयोग निम्नलिखित रूपों में होता है 

  1. ‘आप’ के साथ ‘ही’ जोड़कर –  मैं तो आप ही के साथ आ रहा था। 
  2. ‘आप’ के साथ ‘अपने’ जोड़कर – कोई अपने-आप नहीं सुधरता। 
  3. सर्वसाधारण के रूप में – अपने से बड़ों का आदर करना चाहिए। 
  4. ‘आप’ के साथ ‘स्वयं’ ‘स्वतः’ या ‘खुद’ जोड़कर –
    1. आप स्वयं समझ जाएँगे।
    2. आप खुद आकर देख लीजिए।
  5.  ‘आप’ के साथ ‘आप से आप’ जोड़कर – मेरा हृदय आप से आप उमड़ पड़ा।

सर्वनाम प्रयोग के प्रमुख नियम

  1. सर्वनाम विकारी शब्द है, क्योंकि इसमें पुरुष, वचन और कारक की दृष्टि से रूपान्तरण होता है। जैसे – वह (एकवचन), वे (बहुवचन)। सर्वनाम में लिंग-भेद के कारण रूपान्तरण नहीं होता। जैसे-वह खाता है (पुल्लिंग)। वह खाती है (स्त्रीलिंग)।
  2. सर्वनाम में केवल सात कारक होते हैं। सम्बोधन कारक नहीं होता। कारक की विभक्तियाँ लगने से सर्वनाम में रूपान्तरण होता है। 

उदाहरण

मैं – मुझे, मुझको, मुझसे, मेरा।
तुम – तुम्हें, तुम्हारा, तुम्हारे।
हम – हमें, हमारा, हमारे।
वह – उसने, उसको, उसे, उससे, उसमें, उन्होंने।
यह – इसने, इसे, इससे, इन्होंने , इन्हें, इनको, इससे।
कौन – किसने, किसको, किसे।

 

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संज्ञा (Noun)

संज्ञा की परिभाषा 

संज्ञा उस शब्द को कहते हैं, जिससे किसी विशेष वस्तु अथवा व्यक्ति के नाम का बोध होता है। संज्ञा के अन्तर्गत वस्तु और प्राणी के नाम के साथ ही उसके धर्म-गुण भी आते हैं। संज्ञा विकारी शब्द है, क्योंकि संज्ञा शब्दों में लिंग, वचन और कारक के अनुसार विकार अर्थात् रूप परिवर्तन होता है।

संज्ञा के भेद

  1. व्यक्तिवाचक
  2. जातिवाचक
    1. समूहवाचक
    2. पदार्थवाचक/द्रव्यवाचक
  3.  भाववाचक

व्यक्तिवाचक संज्ञा 

किसी व्यक्ति या वस्तु विशेष नाम का बोध कराने वाले शब्द व्यक्तिवाचक संज्ञा कहलाते हैं। प्रत्येक व्यक्तिवाचक संज्ञा अपने मूल रूप में जातिवाचक संज्ञा होती है, किन्तु जाति विशेष के प्राणी या वस्तु को जब कोई नाम दिया जाता है, तब वह नाम व्यक्तिवाचक संज्ञा बन जाता है। व्यक्तिवाचक संज्ञा निम्नलिखित रूपों में होती है

  • व्यक्तियों के नाम – गीता, अनिल, मंजू। 
  • दिन/महीनों के नाम – रविवार, मंगलवार, जनवरी, फरवरी। 
  • देशों के नाम – भारत, चीन, पाकिस्तान, अमेरिका। 
  • दिशाओं के नाम – पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण। 
  • नदियों के नाम – गंगा, यमुना, गोदावरी, कावेरी, सिन्धु। 
  • त्योहार/उत्सवों के नाम – होली, दीवाली, ईद, बैसाखी। 
  • नगरों/रास्तों के नाम – दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, महात्मा गाँधी मार्ग। 
  • पुस्तकों के नाम – रामायण, गीता, कुरान, बाइबिल। 
  • समाचार पत्रों के नाम – अमर उजाला, दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान।
  • पर्वतों के नाम – हिमालय, विन्ध्याचल, शिवालिक, अलकनंदा। 

जातिवाचक संज्ञा 

प्राणियों या वस्तुओं की जाति का बोध कराने वाले शब्दों को जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। 

  • मनुष्य – लड़का, लड़की, नर, नारी। 
  • पशु-पक्षी – गाय, बैल, बंदर, कोयल, कौआ, तोता। 
  • वस्तु – घर, किताब, कलम, मेज, बर्तन। 
  • पद-व्यवसाय – अध्यापक, छात्रा, लेखक, व्यापारी, नेता, अभिनेता। 
जातिवाचक संज्ञा के दो उपभेद हैं

समूहवाचक संज्ञा 

जिस संज्ञा से एक ही जाति के व्यक्तियों या वस्तुओं के समूह का बोध होता है, उसे समूहवाचक संज्ञा कहते हैं। 

  • व्यक्ति समूह – संघ, वर्ग, दल, गिरोह, सभा, भीड़, मेला, कक्षा, झुंड, समिति, जुलूस।
  • वस्तु-समूह – ढेर, गुच्छा, शृंखला। 

द्रव्यवाचक संज्ञा 

इसे पदार्थवाचक संज्ञा भी कहते हैं। इससे उस द्रव्य या पदार्थ का बोध होता है, जिन्हें हम माप-तौल तो सकते हैं, किन्तु गिन नहीं सकते। यह संज्ञा सामान्यतः एकवचन में होती है। इसका बहुवचन नहीं होता। 

  • धातु अथवा खनिज पदार्थ – सोना, चाँदी, कोयला। 
  • खाद्य पदार्थ – दूध, पानी, तेल, घी।

भाववाचक संज्ञा 

व्यक्ति या वस्तु के गुण-धर्म, कर्म, अवस्था, भाव, दशा आदि का बोध कराने वाले शब्द भाववाचक संज्ञा कहलाते हैं। भाववाचक संज्ञाओं का संबंध हमारे भावों से होता है। इनका कोई रूप या आकार नहीं होता है। भाववाचक संज्ञा का प्रायः बहुवचन नहीं होता। 

  • मनोभाव – प्रेम, घृणा, दु:ख, शान्ति।
  • अवस्था – बचपन, बुढ़ापा, अमीरी, गरीबी। भाववाचक संज्ञाओं की रचना

जातिवाचक संज्ञा से भाववाचक संज्ञा 

जातिवाचक संज्ञा  भाववाचक संज्ञा 
बालक बालकपन 
मनुष्य मनुष्यत्व/मनुष्यता 
देव देवत्व 
नारी नारीत्व
विद्वान विद्वता 
मित्र मित्रता/मैत्री 
अमीर अमीरी 
व्यक्ति व्यक्तित्व 
स्त्री स्त्रीत्व

संज्ञा प्रयोग संबंधी विशेष नियम

समूहवाचक और जातिवाचक संज्ञाओं का संबंध 

सभी समूहवाचक संज्ञाएँ प्रत्येक जातिवाचक संज्ञाओं के साथ प्रयुक्त नहीं होती। दोनों में विशिष्ट संबंध होता है, जिनके आधार पर उनका परस्पर प्रयोग सुनिश्चित होता है, जैसे

अशुद्ध प्रयोग 

  1. नेताओं का गिरोह प्रधानमंत्री से मिला। 
  2. अंगूरों का ढेर कितना ताजा है। 
  3. डाकुओं के शिष्टमण्डल ने आत्मसमर्पण कर दिया। 
  4. लताओं का झुंड बहुत सुन्दर है।

इन वाक्यों में नेताओं, अंगूरों, डाकुओं और लताओं के लिए क्रमशः गिरोह, ढेर, शिष्टमण्डल और झुंड का प्रयोग अशुद्ध है।

अतः अशुद्ध प्रयोग से बचने के लिए समूहवाचक संज्ञा और जातिवाचक संज्ञा के निम्नलिखित संबंध को ध्यान में रखें – 

  1. श्रृंखला – पर्वतों की (अब मानव श्रृंखला भी बनने लगी है)। 
  2. जत्था – सैनिक, स्वयंसेवकों का। 
  3. मण्डल – नक्षत्रों, व्यक्तियों का।
  4. गिरोह – चोर, डाकुओं, लुटेरों, जेबकतरों का। 
  5. काफिला/कारवाँ – ऊँटों, यात्रियों का। 
  6. ढेर – अनाज, फल, तरकारी का। 
  7. मण्डली – गायकों, विद्वानों, मूर्खों की। 
  8. संघ – कर्मचारी, मजदूर, राज्यों का। 
  9. झुंड – भेड़ों या बिना सोचे-समझे काम करने वालों का।
  10. शिष्टमण्डल – अच्छे उद्देश्यों के लिए व्यक्तियों का। 

द्रव्यवाचक संज्ञाओं का वचन 

द्रव्यवाचक संज्ञाओं के साथ यदि मात्रावाचक विशेषण का प्रयोग हो तो वे एकवचन में प्रयुक्त होती हैं, जैसे इन वाक्यों को देखें – 

  1. मुझे दो किलो मिठाइयाँ चाहिए। 
  2. उसने पाँच टन कोयले खरीदे।

इन वाक्यों में ‘मिठाइयाँ’ और ‘कोयले’ का प्रयोग अशुद्ध है, क्योंकि उनके साथ मात्रावाचक शब्दों ‘दो किलो’ और ‘पाँच टन’ का प्रयोग हुआ।

इसके साथ ही खाने-पीने के अर्थ में भी द्रव्यवाचक संज्ञा का प्रयोग सदैव एकवचन में ही करना चाहिए, जैसे

  1. मुझे पूड़ियाँ अच्छी नहीं लगती। 
  2. तेल की बनी मिठाइयाँ अच्छी नहीं होती। 
  3. आज मैंने रोटियाँ और मछलियाँ खायीं।

इन वाक्यों में पूड़ियाँ, मिठाइयाँ, रोटियाँ और मछलियाँ का अशुद्ध प्रयोग है। इसके स्थान पर पूड़ी, मिठाई, रोटी और मछली का प्रयोग शुद्ध होगा।

भाववाचक संज्ञाओं का वचन 

प्रायः भाववाचक संज्ञाओं का प्रयोग बहुवचन में नहीं होता, जैसे 

उदाहरण 

  1. बच्चों की चंचलताएँ मन को मोह लेती हैं। 
  2. भारत-पाक के बीच शत्रुताएँ अधिक हैं, मित्रताएँ कम। 
  3. इन कमरों की लम्बाइयाँ-चौडाइयाँ क्या हैं? 
  4. मरीज कमजोरियों के कारण चल-फिर नहीं सकता। 
  5. तुमने मेरे साथ बहुत भलाइयाँ की हैं।

इन वाक्यों में भाववाचक संज्ञाएँ – चंचलताएँ, शत्रुताएँ, मित्रताएँ, लम्बाइयाँ-चौड़ाइयाँ, कमजोरियों और भलाइयाँ का बहुवचन में अशुद्ध प्रयोग है। इनके स्थान पर इनका प्रयोग एकवचन में ही होना चाहिए। 

अपवाद स्वरूप भाववाचक संज्ञाओं का बहुवचन प्रयोग वहाँ उचित होता है, जहाँ विविधता का बोध होता है। ऐसे स्थलों पर भाववाचक संज्ञा का बहुवचन प्रयोग जातिवाचक संज्ञा के समान होता है। 

उदाहरण

  1. मनुष्य में बहुत-सी कमजोरियाँ होती हैं। 
  2. ‘कामायनी’ की अनेक विशेषताएँ हैं।

आदरसूचक संज्ञा के लिए बहुवचन का प्रयोग

व्यक्तिवाचक और जातिवाचक संज्ञाओं के साथ एकवचन होने पर भी आदर का भाव प्रकट करने के लिए बहुवचन क्रिया का प्रयोग किया जाता है। 

उदाहरण 

  1. तुलसीदास समन्वयकारी कवि थे। 
  2. आप आजकल क्या कर रहे हैं? 
  3. प्रधानमंत्री आज नहीं आयेंगे। 
  4. पिताजी अभी लखनऊ से नहीं लौटे हैं। 
  5. माँजी! आप क्या सोच रही हैं? 
  6. आपके दर्शन के लिए रुका था।

पुल्लिंग बहुवचन की जातिवाचक संज्ञाएँ

कुछ जातिवाचक संज्ञाएँ सदैव पुल्लिंग में प्रयोग की जाती हैं। जैसे—प्राण, आँसू, अक्षत, ओंठ आदि एकवचन में होते हुए भी बहुवचन में प्रयुक्त किए जाते हैं।

उदाहरण

  1. रोगी के प्राण निकल चुके थे। 
  2. शेर के बाल होते हैं, शेरनी के नहीं। 
  3. मैंने अपने हस्ताक्षर कर दिए थे। 
  4. बारातियों पर अक्षत बरसाए गए।

 

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