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भारतीय नदियों का अपवाह तंत्र

अपवाह तंत्र से तात्पर्य किसी क्षेत्र की जल प्रवाह प्रणाली से है अर्थात् किसी क्षेत्र के जल को कौन-सी नदियां बहाकर ले जाती हैं। नदी अपना जल किस दिशा में बहाकर समुद्र में मिलाती है, यह कई कारकों पर निर्भर करता है जैसे — भूतल का ढाल, भौतिक संरचना, जल प्रवाह की मात्रा तथा जल का वेग। भारत में भूमि के जल को बहाकर ले जाने वाली छोटी-बड़ी अनेक नदियां हैं। भारत के अपवाह तंत्र को दो भागों में विभाजित करके उसका अध्ययन किया जा सकता है-उत्तरी भारत का अपवाह तंत्र तथा दक्षिणी भारत का अपवाह तंत्र।

Drainag System of Indian Rivers

उत्तरी भारत के नदियों का अपवाह तंत्र

उत्तरी भारत के अपवाह तंत्र में हिमालय का बड़ा महत्व है; क्योंकि उत्तर भारत की नदियों का उद्गम हिमालय और उसके पार से है। ये नदियां दक्षिण भारत की नदियों से भिन्न हैं, क्योंकि ये तेज गति से अपनी घाटियों को गहरा कर रही हैं। अपरदन से प्राप्त मिट्टी आदि को बहाकर ले जाती हैं और मैदानी भाग में जल प्रवाह की गति मंद पड़ने पर मैदानों और समुद्रों में जमा कर देती हैं।

  • उत्तरी विशाल मैदान का निर्माण इन्हीं नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी से हुआ है।
  • हिमालय से निकलने वाली कुछ नदियां हिमालय से भी पहले विद्यमान थीं। जैसे-जैसे हिमालय की पर्वत श्रेणियां ऊपर उठती गईं, ये नदियां अपनी घाटियों को गहरा और गहरा काटती रहीं। इसके परिणामस्वरूप इन नदियों ने हिमालय की श्रेणियों में बहुत गहरी घाटियां या महाखड्ड बना लिए हैं।
  • बुंजी (जम्मू-कश्मीर) के पास सिंधु नदी का महाखड्ड 5200 मीटर गहरा है। सतलुज और ब्रह्मपुत्र नदियों ने भी ऐसे ही महाखड्ड बनाए हैं।
  • उत्तरी भारत के अपवाह तंत्र के तीन भाग हैं – सिंधु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र का अपवाह तंत्र।
  • सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, व्यास और सतलुज सिंधु नदी तंत्र की प्रमुख नदियां हैं।
  • गंगा नदी तंत्र में रामगंगा, घाघरा, गोमती, गंडक, कोसी, अपनी दक्षिणी सहायक नदियों सहित यमुना, सोन और दामोदर नदियों का प्रमुख स्थान है।
  • ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र में दिबांग, लोहित, तिस्ता, और मेघना प्रमुख नदियां हैं।
  • दिबांग और लोहित अरूणाचल प्रदेश में, तिस्ता सिक्किम, प. बंगाल में और मेघना बांग्लादेश के उत्तर पूर्व में बहती है।

दक्षिण भारत का अपवाह तंत्र

  • दक्षिण भारत क्षेत्र की सभी नदियां अपने आधार तल पर पहुंच गई हैं और अपनी घाटी को लंबवत् काटने की उनकी क्षमता लगभग समाप्त हो गई है।
  • ये नदियां धीरे-धीरे अपने किनारों को काट रही है, जिससे इनकी घाटियां चौड़ी होती जा रही हैं, इसी के परिणामस्वरूप इनके निचले भागों में बाढ़ का पानी बहुत बड़े क्षेत्र में भर जाता है। ऐसा विश्वास है कि हिमालय के निर्माण के समय झटके लगने के कारण दक्षिण भारत का ढाल पूर्व की ओर हो गया था।
  • नर्मदा और तापी को छोड़कर शेष सभी बड़ी नदियां पूर्व की ओर बहती हैं।
  • नर्मदा और तापी नदियां भ्रंश घाटियों से होकर गुजरती हैं।
  • महानदी, गोदावरी, कृष्णा, पेन्नार, पालार, कावेरी और वेगाई दक्षिणी भारत के अपवाह तंत्र की प्रमुख नदियां हैं।

दक्षिणी प्रायद्वीप के उत्तरी भाग का ढाल उत्तर की ओर है। अतः विंध्याचल-पर्वत से निकलकर कुछ नदियां उत्तर की ओर बहती हुई यमुना और गंगा में मिल जाती हैं। इनमें चंबल, सिन्ध, बेतवा, केन और सोन नदियां मुख्य हैं।

हिमालयी और प्रायद्वीपीय भारत की नदियों में अन्तर

हिमालयी नदियां प्रायद्वीपीय नदियां
अधिकतर नदियां सदानीरा हैं। कुछ नदियां सदानीरा हैं।
उनमें वर्षभर जल बना रहता है, क्योंकि शुष्क ऋतु में हिमाद्रि में फैली हिमानियों का जल पिघल–पिघल कर नदियों में बहता रहता है।प्रायद्वीपीय भारत की नदियों में जल कम ज्यादा होता रहता है। वर्षा ऋतु में खूब पानी होता है, जबकि लंबी शुष्क ऋतु में बहुत कम पानी रहता है। कहीं-कहीं तो वे सूख भी जाती है।

 

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भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक इस प्रकार हैं –

1. स्थिति एवं अक्षांशीय विस्तार (Position and Latitudinal Extent)

  • भारत विषुवत् वृत्त के पास होने के कारण दक्षिणी भागों में वर्ष भर उच्च तापमान पाये जाते हैं। दूसरी ओर उत्तरी भाग गर्म शीतोष्ण पेटी में स्थित है।

2. समुद्र से दूरी (Distance From The Sea)

  • प्रायद्वीपीय भारत अरब सागर, हिन्द महासागर तथा बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है। अतः भारत के तटीय प्रदेशों की जलवायु सम या अनुसमुद्री है। इसके विपरीत जो प्रदेश देश के आंतरिक भागों में स्थित हैं, वे समुद्री प्रभाव से अछूते हैं। फलस्वरूप उन प्रदेशों की जलवायु अति विषम या महाद्वीपीय है।

3. उत्तर पर्वतीय श्रेणियाँ (Northern Mountain Ranges)

  • हिमालय व उसके साथ की श्रेणियाँ जो उत्तर-पश्चिम में कश्मीर से लेकर उत्तर-पूर्व में अरुणाचल प्रदेश तक फैली हुई हैं, भारत को शेष एशिया से अलग करती हैं।
  • ये श्रेणियाँ शीतकाल में मध्य एशिया से आने वाली अत्यधिक ठन्डी व शुष्क पवनों से भारत की रक्षा करती हैं।
  • साथ ही वर्षादायिनी दक्षिण पश्चिमी मानसून पवनों के सामने एक प्रभावी अवरोध बनती हैं, ताकि वे भारत की उत्तरी सीमाओं को पार न कर सकें। इस प्रकार, ये श्रेणियाँ भारतीय उपमहाद्वीप तथा मध्य एशिया के बीच एक जलवायु विभाजक का कार्य करती हैं।

4. स्थलाकृति (Topography)

  • देश के विभिन्न भागों में स्थलाकृतिक लक्षण वहां के तापमान, वायुमण्डलीय दाब, पवनों की दिशा तथा वर्षा की मात्रा को प्रभावित करते हैं।

5. मानसून पवनें (Monsoon Winds)

  • भारत में पवनों की दिशा के पूर्णतया उलटने से, ऋतुओं में अचानक परिवर्तन हो जाता है और कठोर ग्रीष्मकाल अचानक उत्सुकता से प्रतीक्षित वर्षा ऋतु में बदल जाता है। इस प्रकार दिशा बदलने वाली पवनों को मानसून पवनें कहते हैं।
  • मानूसन को ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन मानसून के रूप में वर्णित किया जा सकता है।

(i) उत्तर-पूर्वी मानसून एवं उसका प्रभाव

  • शीतकाल में, मौसमी दशायें सामान्यतया उपमहाद्वीप के उत्तर पश्चिमी भाग में विकसित उच्चदाब क्षेत्र के द्वारा प्रभावित होती हैं। परिणामस्वरूप इस प्रदेश से ठण्डी शुष्क पवनें दक्षिण के प्रायद्वीपीय भारत को घेरे हुये जलीय भागों पर फैले निम्न दाब क्षेत्रों की ओर चलने लगती है।
  • ये पवनें ठण्डी व शुष्क होती हैं अतः वर्षा नहीं करतीं तथा इन पवनों के प्रभाव से मौसमी दशायें ठण्डी व शुष्क रहती हैं।
  • उत्तर-पूर्वी मानसून पवनें बंगाल की खाड़ी से गुजरते हुये आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं और कारोमण्डल तट पर वर्षा करती हैं।
  • वास्तव में ये पवनें स्थायी या भू–मण्डलीय पवनें हैं, जिन्हें उत्तर पूर्वी व्यापारिक पवनें कहते हैं। भारत में मूलतः ये स्थलीय पवनें हैं।

(ii) दक्षिण-पश्चिमी मानसून एवं उसका प्रभाव

  • ग्रीष्मकाल में, भारत का उत्तर-पश्चिमी भाग ऊँचे तापमानों के कारण अत्यधिक गर्म हो जाता है। इस समय सूर्य की स्थिति उत्तरी गोलार्द्ध में होती है। इसके परिणामस्वरूप न केवल उत्तर-पश्चिमी भारत में बल्कि प्रायद्वीप को घेरने वाले जलीय भागों में भी वायुमण्डलीय दशायें एकदम उलट जाती हैं।
  • उत्तर पूर्वी व्यापारिक पवनों का स्थान दक्षिण पश्चिमी मानसून पवनें ले लेती हैं। चूंकि ये पवनें गर्म समुद्र के ऊपर से बहने के कारण आर्द्र हो जाती हैं अतः आर्द्रता से लदी हुई ये पवनें भारत के अधिकांश भागों में दूर-दूर तक भारी वर्षा करती हैं।
  • इन दक्षिण पश्चिमी मानूसन पवनों को वर्षा ऋतु के नाम से जाना जाता है। इसकी अवधि जून से सितम्बर तक की होती है।

6. ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper Air Circulation)

  • भारत में मानूसन के अचानक आगमन का एक अन्य कारण भारतीय भू–भाग के ऊपर वायु परिसंचरण में होने वाला परिवर्तन भी है। ऊपरी वायुतंत्र में बहने वाली जेट वायु धारायें भारतीय जलवायु को निम्न प्रकार से प्रभावित करती हैं।

(i) पश्चिमी जेट वायुधारा तथा उसका प्रभाव

  • शीतकाल में, समुद्र तल से लगभग 8 कि.मी. की ऊँचाई पर पश्चिमी जेट वायुधारा अधिक तीव्र गति से समशीतोष्ण कटिबन्ध के ऊपर चलती है।
  • यह जेट वायुधारा हिमालय की श्रेणियों द्वारा दो भागों में विभाजित हो जाती है।
  • उत्तरी शाखा इस अवरोध के उत्तरी सिरे के सहारे चलती है।
  • दक्षिणी शाखा हिमालय श्रेणियों के दक्षिण में 25° उत्तर अक्षांश के ऊपर पूर्व की ओर चलती है।
  • जेट वायुधारा भूमध्य सागरीय प्रदेशों से पश्चिमी विक्षोभों को भारतीय उपमहाद्वीप में लाने के लिये उत्तरदायी हैं।
  • उत्तर पश्चिमी मैदानों में होने वाली शीतकालीन वर्षा व ओलावृष्टि तथा पहाड़ी प्रदेशों में कभी-कभी होने वाला भारी हिमपात इन्हीं विक्षोभों का परिणाम है।
  • तत्पश्चात् सम्पूर्ण उत्तरी मैदान में शीत लहरें चलती हैं।

(ii) पूर्वी जेट वायुधारा व उसका प्रभाव

  • ग्रीष्मकाल में, सूर्य के उत्तरी गोलार्द्ध में लम्बवत होने के कारण ऊपरी वायु परिसंचरण में उलटफेर हो जाता है।
  • पश्चिमी जेट वायुधारा के स्थान पर पूर्वी जेट वायुधारा चलने लगती है।
  • तिब्बत के पठार के गर्म होने के कारण पश्चिमी जेट उत्तर की ओर खिसक जाती है। इसके परिणामस्वरूप दक्षिणी भाग में पूर्वी ठण्डी जेट वायुधारा विकसित हो जाती है।
  • यह 15° उत्तरी अक्षांश के आसपास प्रायद्वीपीय भारत के ऊपर चलती है।
  • यह दक्षिण पश्चिम मानसून पवनों के अचानक आने में मदद करती हैं।

7. पश्चिमी विक्षोभ तथा उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Western Tropical Cyclone and Tropical Cyclone)

  • पश्चिमी विक्षोभ भारतीय उपमहाद्वीप में पश्चिमी जेट प्रवाह के साथ भूमध्य सागरीय प्रदेश से आते हैं।
  • यह देश के उत्तरी मैदानी भागों व पश्चिमी हिमालय प्रदेश की शीतकालीन मौसमी दशाओं को प्रभावित करते हैं।
  • ये शीतकाल में थोड़ी वर्षा लाते है।
  • उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात बंगाल की खाड़ी में पैदा होते हैं।
  • इन चक्रवातों की तीव्रता तथा दिशा पूर्वी तटीय भागों की मौसमी दशाओं को अक्टूबर, नवम्बर और दिसम्बर में प्रभावित करते हैं।

8. एल-नीनो प्रभाव (EL-Nino Effect)

  • भारत में मौसमी दशायें एल-नीनो से भी प्रभावित होती हैं।
  • यह संसार के उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में विस्तृत बाढ़ों और सूखों के लिये उत्तरदायी है।
  • एल-नीनो एक संकरी गर्म समुद्री जलधारा है जो कभी-कभी दक्षिणी अमेरिका के पेरू तट से कुछ दूरी पर दिसम्बर के महीने में दिखाई देती है।
  • पेरू ठण्डी धारा जो सामान्यतया इस तट के सहारे बहती है, के स्थान पर यह अस्थायी धारा के रूप में बहने लगती है।
  • कभी-कभी अधिक तीव्र होने पर यह समुद्र के ऊपरी जल के तापमान को 10° C तक बढ़ा देती है।
  • उष्ण कटिबन्धीय प्रशांत महासागरीय जल के गर्म होने से भूमण्डलीय दाब व पवन तंत्रों के साथ-साथ हिन्द महासागर में मानसून पवनें भी प्रभावित होती हैं।
  • 1987 में भारत में भयंकर सूखा एल-नीनो का ही परिणाम था।

9. दक्षिणी दोलन तथा उसका प्रभाव (Southern Oscillation and Its Effect)

  • दक्षिणी दोलन मौसम विज्ञान से संबंधित वायुदाब में होने वाले परिवर्तन का प्रतिरूप है।
  • यह हिन्द व प्रशान्त महासागरों के मध्य प्रायः देखा जाता है।
  • जब वायुदाब हिन्द महासागर में अधिक होता है तो प्रशान्त महासागर पर यह कम होता है। अथवा इन दोनों महासागरों पर वायु दाब की स्थिति इसके उलट होती है।
  • जब वायुदाब प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र पर अधिक होता है तथा हिन्द महासागर पर निम्न या कम होता है तो भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून अधिक कमजोर होता है।

 

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भारत के तटीय मैदान और भारतीय द्वीप

हमारे देश का विशाल पठार चारों ओर से घिरा हुआ है। उत्तर में उत्तरी विशाल मैदान तथा दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में तटीय मैदान हैं।

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पूर्वी तटीय मैदान उत्तर में गंगा नदी के मुहाने से ले कर कन्याकुमारी तक बंगाल की खाड़ी के तट के साथ-साथ फैला है। पश्चिमी तटीय मैदान की तुलना में यह अधिक चौड़ा है।

  • इस मैदान में महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों के डेल्टा सम्मिलित हैं।
  • इस मैदान में चिल्का और पुलीकट दो बड़े-बड़े अनूप (लैगून) हैं।
  • ये झीलें बंगाल की खाड़ी के थोड़े से जलीय भाग के बालू-भित्ति के द्वारा घिर जाने से बनी हैं।
  • चिल्का महानदी डेल्टा के दक्षिण में हैं। यह 75 किलोमीटर लम्बी है।
  • पुलीकट झील चेन्नई नगर के उत्तर में है।
  • गोदावरी और कृष्णा नदियों के डेल्टाओं के मध्य में कोल्लेरू झील है।
  • पूर्वी तटीय मैदान बहुत उपजाऊ है। इसमें धान की फसल बहुत अच्छी होती है।

भारत का भौतिक पश्चिमी तटीय मैदान उत्तर में कच्छ के तट से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक अरब विन्यास सागर के साथ-साथ फैला है।

  • गुजरात के मैदान को छोड़कर यह मैदान पूर्वी तटीय मैदान से कम चौड़ा है।
  • दक्षिणी गुजरात से लेकर मुंबई तक पश्चिमी तटीय मैदान अपेक्षाकृत चौड़ा है और दक्षिण की ओर संकरा होता गया है।
  • गुजरात, कच्छ के रन तथा काठियावाड़ के मैदानों में कहीं-कहीं चट्टानी टीले और छोटी पहाड़ियां दिखाई पड़ती हैं।
  • गुजरात का मैदान काली मिट्टी से बना है।
  • उत्तर में दमण से लेकर दक्षिण में गोवा तक लगभग 500 कि.मी. का तटीय भाग कोंकण कहलाता है। यह कटा-फटा है।
  • इसमें कई छोटी-छोटी नदियां बहती हैं।
  • गोवा से मंगलोर तक के तट को कर्नाटक तट कहते हैं।
  • मंगलौर से कन्याकुमारी तक के तट को मलाबार तट कहते हैं।
  • यहां तटीय मैदान कुछ चौड़ा है।
  • मलाबार तट में अनेक लंबे और सकरे अनूप हैं।
  • 80 कि.मी. से भी अधिक लंबा वेम्बनाड ऐसा ही एक अनूप है। इसी पर कोच्चि बन्दरगाह बसा है।

भारतीय द्वीप (Indian Islands)

भारत में छोटे-छोटे द्वीप समूह भी हैं। एक द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी में म्यांमार के तट से कुछ दूरी पर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह है। दूसरा लक्षद्वीप द्वीप समूह केरल तट से कुछ दूरी पर अरब सागर में स्थित है

अंडमान द्वीप

अंडमान द्वीपों में (i) उत्तरी (ii) मध्य (iii) दक्षिणी तथा (iv) लघु अंडमान द्वीप सम्मिलित है।

  • पोर्टब्लेअर नगर इस संपूर्ण संघ राज्य क्षेत्र की राजधानी है। यह दक्षिण अंडमान में स्थित है।
  • 10° जलमार्ग इस द्वीप समूह को निकोबार द्वीप समूह से अलग करता है।
  • निकोबार द्वीप समूह की स्थिति अंडमान द्वीप समूह के दक्षिण में है। इस द्वीप समूह में कार निकोबार, लघु निकोबार तथा वृहत् निकोबार द्वीप सम्मिलित हैं।
  • भारत संघ का दक्षिणतम छोर वृहत् निकोबार द्वीप में है। श्रीमती इन्दिरा गांधी के नाम पर इसका नाम इन्दिरा पाइण्ट रखा गया है।
  • ये द्वीप समूह समुद्री जल में डूबी पर्वत श्रृंखला के जैसा प्रतीत होता है।
  • अंडमान का बैरन द्वीप भारत का अकेला जागृत ज्वालामुखी है।
  • सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण इन द्वीपों में वायु सेना और नौसेना के अड्डे हैं।
  • सात देशों – बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैण्ड, मलेशिया, सिंगापुर, इण्डोनेशिया और श्रीलंका के सम्मुख इस द्वीप समूह की स्थिति है।

लक्षद्वीप

  • लक्षद्वीप समूह केरल तट के पश्चिम में अरब सागर में स्थित है।
  • ये सभी प्रवाल द्वीप हैं।
  • इनका निर्माण प्रवाल जैसे अत्यन्त सूक्ष्म जीवों के चूने से बने कवचों के लगातार जमाव से हुआ है। ये सभी द्वीप बहुत छोटे हैं।
  • इनमें सबसे बड़े द्वीप मिनीकाय का क्षेत्रफल 4.5 वर्ग कि.मी. है।
  • कवारत्ती इस द्वीप समूह की राजधानी है।
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भारत के उत्तरी विशाल मैदान

यह मैदान हिमालय के दक्षिण में तथा भारतीय विशाल पठार के उत्तर में पश्चिम से पूर्व तक विस्तृत है। यह मैदान पश्चिम में राजस्थान के शुष्क और अर्ध शुष्क भागों से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी तक फैला है। इस मैदान का क्षेत्रफल 7 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक है। यह मैदान बहुत उपजाऊ है। देश की कुल जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग इसी मैदान के असंख्य गाँवों और अनेक बड़े नगरों में रहता है।

यह मैदान उत्तर में हिमालय और दक्षिण में भारतीय विशाल पठार से बहाकर लाई गई मिट्टी से बना है। लाखों वर्षों से प्रति वर्ष पर्वतीय क्षेत्रों से मिट्टी ला कर इस मैदान में जमा करती रहती हैं। अतः इस मैदान में मिट्टी की परतें बहुत गहराई तक पाई जाती हैं। कहीं-कहीं तो इनकी गहराई 2000 से 3000 मीटर तक है।

  • समुद्र तल से इसकी औसत ऊँचाई लगभग 200 मीटर है।
  • समुद्र की ओर मंद ढाल होने के कारण इस मैदान में नदियाँ बहुत ही धीमी गति से बहती हैं।
  • वाराणसी से गंगा के मुहाने तक ढाल केवल 10 से.मी. प्रति किलोमीटर है।
  • अंबाला के आस-पास की भूमि अपेक्षाकृत ऊँची हैं। अतः यह भाग पूर्व में गंगा और पश्चिम में सतलुज नदी-घाटियों के बीच जल विभाजक का काम करता है।
  • इस जल विभाजक के पूर्व की ओर की नदियाँ बंगाल की खाड़ी में तथा पश्चिम की ओर की नदियाँ अरब सागर में मिलती हैं।

मैदान के अपेक्षाकृत ऊँचे भाग को ‘बॉगर’ कहते हैं। इस भाग में नदियों की बाढ़ का पानी कभी नहीं पहुँचता। इसके विपरीत ‘खादर’ मैदान का अपेक्षाकृत नीचा भाग है, जहाँ बाढ़ का पानी हर साल पहुँचता रहता है।

  • पंजाब में खादर को ‘बेट’ कहते हैं।
  • पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में शिवालिक पर्वत श्रेणी के साथ-साथ 10-15 कि. मी. चौड़ी मैदानी पट्टी को ‘भाबर’ कहते हैं। यह पट्टी कंकरीली बलुई मिट्टी से बनी है।
  • ग्रीष्म ऋतु में छोटे-छोटे नदी-नाले इस पट्टी में भूमिगत हो जाते हैं और इस पट्टी को पार करके इनका जल धरातल पर पुनः आ जाता है। यह जल भाबर के साथ-साथ फैली 15-30 कि.मी. चौड़ी ‘तराई’ नाम की पट्टी में जमा हो जाता है। इससे यहाँ दलदली क्षेत्र बन गया है। तराई का अधिकांश क्षेत्र कृषि योग्य बना लिया गया है।

Indias Northern Plains

उत्तरी विशाल मैदान को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है – 

  1. पश्चिमी मैदान
  2. उत्तरी मध्य मैदान
  3. पूर्वी मैदान
  4. ब्रह्मपुत्र का मैदान

1. पश्चिमी मैदान

  • राजस्थान का मरुस्थल तथा अरावली पर्वत श्रेणी का पश्चिमी बांगर क्षेत्र सम्मिलित हैं।
  • मरुस्थल का कुछ भाग चट्टानी तथा कुछ भाग रेतीला है।
  • प्राचीन काल में यहाँ सरस्वती और दृषद्वती नाम की सदानीरा नदियाँ बहती थीं।
  • उत्तरी मैदान के इस भाग में बीकानेर का उपजाऊ क्षेत्र भी है।
  • पश्चिमी मैदान से लूनी नदी कच्छ के रन में जाकर विलीन हो जाती हैं।
  • सांभर नाम की खारे पानी की प्रसिद्ध झील इस क्षेत्र में है।

2. उत्तरी मध्य मैदान

  • पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फैला है।
  • इस मैदान का पंजाब और हरियाणा में फैला भाग, सतलुज, रावी, और व्यास नदियों के द्वारा लाई गई मिट्टी से बना है।
  • यह भाग बहुत उपजाऊ है।
  • इस मैदान का उत्तर प्रदेश में फैला भाग गंगा, यमुना, रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक नदियों के द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी से बना है।
  • मैदान का यह भाग भी बहुत उपजाऊ है और भारतीय सभ्यता और संस्कृति का पालना रहा है।

3. पूर्वी मैदान

  • गंगा की मध्य और निचली घाटी में फैला है।
  • इस मैदान का विस्तार बिहार और पश्चिम बंगाल के राज्यों में है।
  • बिहार राज्य में गंगा नदी इस मैदान के बीच से होकर बहती है।
  • उत्तर की ओर से घाघरा, गंडक और कोसी तथा दक्षिण की ओर से सोन इसी मैदान में गंगा में मिलती हैं।
  • पश्चिम बंगाल राज्य में जो मैदानी भाग है, उसका विस्तार हिमालय के पाद प्रदेश से लेकर बंगाल की खाड़ी तक है। यहां यह मैदान कुछ अधिक चौड़ा हो गया है। इसका दक्षिणी भाग डेल्टा क्षेत्र है। इस डेल्टा क्षेत्र में गंगा अनेक वितरिकाओं में बंट जाती है।
  • हुगली गंगा की वितरिका का सबसे अच्छा उदाहरण है। यह मैदानी भाग भी बहुत उपजाऊ है।

4. ब्रह्मपुत्र का मैदान

  • भारतीय विशाल मैदान का उत्तर पूर्वी भाग असम में विस्तृत है।
  • यह मैदान ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी से बना है।
  • ब्रह्मपुत्र की धारा में बना माजुली (1250 वर्ग कि.मी.) द्वीप संसार का सबसे बड़ा नदी द्वीप है।
  • यह मैदानी भाग भी बहुत उपजाऊ है।
  • यह मैदानी भाग तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा है।
  • गंगा और ब्रह्मपुत्र तथा उनकी सहायक नदियों के द्वारा संयुक्त रूप से बनाए गए मैदान और डेल्टा प्रदेश में बांगलादेश स्थित हैं।
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भारत के उत्तरी विशाल पर्वत

भारत की उत्तर सीमा पर स्थित कश्मीर की उत्तरी पर्वत श्रृंखलाएँ तथा पठार, खास हिमालय पर्वत और अरूणाचल प्रदेश, नागालैंड, असम, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और मेघालय की पहाड़ियाँ सम्मिलित हैं। इन सभी को तीन वर्गों में रखा जा सकता है।
(i) हिमालय पर्वत
(ii) हिमालय पार की पर्वत श्रेणियाँ
(iii) पूर्वाचल या पूर्वी पहाड़ियाँ

Landforms-of-India

1. हिमालय पर्वत

हिमालय संसार की सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला है। यह पर्वत भारत की उत्तरी सीमा पर पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में 2500 किलोमीटर की दूरी में फैला है। जम्मू-कश्मीर में सिंधु नदी के महाखड्ड से लेकर अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र के महाखड्ड तक हिमालय का विस्तार है।

इसकी चौड़ाई पूर्व में 150 किलोमीटर से लेकर पश्चिम में 400 किलोमीटर तक है। हिमालय लगभग 5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। इसकी तीन प्रमुख पर्वत श्रेणियाँ हैं। इन पर्वत श्रेणियों के बीच-बीच में गहरी घाटियाँ और विस्तृत पठार है। हिमालय के ढाल भारत की ओर तीव्र तथा तिब्बत की ओर मंद हैं।

हिमालय पर्वत पश्चिम बंगाल के मैदानी भाग से एकदम ऊपर उठे हुए दिखाई पड़ते हैं। यही कारण है कि इसके दो सर्वोच्च शिखर, एवरेस्ट (नेपाल में) और काँचनजंगा, मैदानी भाग से ज्यादा दूरी पर नहीं है। इसके विपरीत हिमालय का पश्चिमी भाग मैदानी क्षेत्र से धीरे-धीरे ऊपर उठा है। इसी कारण यहाँ ऊँची चोटियों और मैदानों के बीच कई श्रेणियाँ मिलती हैं। इसीलिए इस भाग की ऊँची चोटियाँ जैसे नंगा पर्वत, नंदा देवी, बद्रीनाथ आदि मैदानी भाग से काफी दूर हैं।

हिमालय में तीन समान्तर पर्वत श्रेणियाँ स्पष्ट दृष्टिगोचर होती हैं। ये पर्वत श्रेणियाँ है—
(i) हिमाद्रि,
(ii) हिमाचल,
(ii) शिवालिक

(i) हिमाद्रि (सर्वोच्च हिमालय)

यह हिमालय की सबसे उत्तरी तथा सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला है। हिमालय की यही एक पर्वत श्रेणी ऐसी है, जो पश्चिम से पूर्व तक अपनी निरन्तरता बनाए रखती है। इस श्रेणी की क्रोड ग्रेनाइट शैलों से बनी है, जिसके आस-पास कायान्तरित और अवसादी शैलें भी मिलती हैं।

  • इस श्रेणी के पश्चिमी छोर पर – नंगापर्वत शिखर (8126 मी.)
  • पूर्वी छोर पर – नामचावरवा शिखर (7756 मी.) है।
  • समुद्र तल से औसत ऊँचाई – लगभग 6100 मी. है।

इस क्षेत्र में 100 से अधिक पर्वत शिखर 6100 मी. से अधिक ऊँचे हैं। संसार की सबसे ऊँची पर्वत चोटी एवरेस्ट (8848 मी.) इसी पर्वत श्रेणी में स्थित है। काँचनहुँगा (8598 मी.) मकालू, धौलागिरि तथा अन्नपूर्णा आदि हिमाद्रि की अन्य चोटियाँ है जिनकी ऊँचाई आठ हजार मीटर से अधिक है। काँचनहुँगा भारत में हिमालय का सर्वोच्च शिखर है।

(ii) हिमाचल (लघु) हिमालय

यह पर्वत श्रेणी हिमाद्रि के दक्षिण में स्थित है। यह पर्वत श्रेणी 60 से 80 किलोमीटर तक चौड़ी तथा 1000 से 4500 मीटर तक ऊँची है। इसके कुछ शिखर 5000 मीटर से भी अधिक ऊँचे हैं। यह श्रेणी बहुत ही ऊबड़-खाबड़ है। इसमें संपीडन के द्वारा बड़े पैमाने पर शैलों का कायान्तरण हुआ है। अतः इस श्रेणी की रचना कायान्तरित शैलों द्वारा हुई है। इस श्रेणी के पूर्वी भाग के मन्द ढाल घने वनों से ढके हैं। अन्यत्र इस श्रेणी के दक्षिणाभिमुख ढाल बहुत ही तीव्र और वनस्पति विहीन हैं। उत्तराभिमुख ढालों पर सघन वनस्पति पाई जाती है।

कश्मीर में इस श्रेणी को पीर पंजाल तथा हिमाचल प्रदेश में धौलाधार के स्थानीय नामों से जाना जाता है। कश्मीर की सुरम्य घाटी, पीर पंजाल और हिमाद्रि श्रेणी के बीच विस्तृत है। हिमाचल पर्वत श्रेणी में ही कांगड़ा और कुल्लू की प्रसिद्ध घाटियाँ है।

हिमाचल पर्वत श्रेणियों पर ही प्रमुख पर्वतीय नगर बसे हैं। शिमला, नैनीताल, मसूरी, अल्मोड़ा और दार्जिलिंग ऐसे ही कुछ प्रसिद्ध पर्वतीय नगर हैं। नैनीताल के आस-पास अनेक सुंदर झीलें हैं।

(iii) शिवालिक (बाह्य हिमालय)

हिमालय की सबसे दक्षिण की श्रेणी शिवालिक के नाम से विख्यात है। हिमालय की हिमाद्रि और हिमाचल पर्वत श्रेणियाँ शिवालिक से पहले बन चुकी थीं। हिमाद्रि और हिमाचल श्रेणियों से निकलने वाली नदियां कंकड़-पत्थर, बालू और मिट्टी भारी मात्रा में बहाकर लाती थीं और इन्हें तेजी से सिकुड़ते टेथिस सागर में जमा कर देती थी। कालांतर में हुई हलचलों से कंकड़-पत्थर और बालू के अवसादों में मोड़ पड़ गए और इस प्रकार शिवालिक श्रेणी का निर्माण हुआ। ये सबसे कम संघटित श्रेणियाँ हैं। हिमाद्रि और हिमाचल पर्वत श्रेणियों की तुलना में शिवालिक श्रेणियां कम ऊँची हैं। इनकी औसत ऊँचाई 600 मीटर है। हिमाचल और शिवालिक श्रेणियों के बीच फैली चौरस घाटियों को ‘दून’ के नाम से जाना जाता है। देहरादून की घाटी इसका उदाहरण है।

2. हिमालय पार की पर्वत श्रेणियाँ

जम्मू-कश्मीर राज्य में हिमाद्रि के उत्तर में कुछ पर्वत श्रेणियां फैली हैं। इनमें जाकर पर्वत श्रेणी हिमाद्रि के समानान्तर विस्तृत है। जास्कर के उत्तर में लद्दाख पर्वत श्रेणी है। इन दोनों पर्वत श्रेणियों के बीच सिन्धु नदी दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर बहती है। अनेक विद्वान जास्कर और लद्दाख श्रेणियों को वृहत हिमालय के ही अंग मानते हैं और उन्हें कश्मीर हिमालय में सम्मिलित करते हैं। लद्दाख पर्वत श्रेणी के उत्तर में कराकोरम पर्वत श्रेणी है। संस्कृत साहित्य में काराकोरम का नाम कृष्णगिरि है। इस पर्वत श्रेणी का एक पर्वत शिखर के (8611 मी.) एवरेस्ट शिखर के बाद संसार का दूसरा सबसे ऊँचा शिखर है।

जम्मू-कश्मीर राज्य के ऊत्तर-पूर्वी भाग में लद्दाख का पठार है। यह पठार हमारे देश का बहुत ऊँचा, शुष्क, और दुर्गम क्षेत्र है।

3. पूर्वाचल

ब्रह्मपुत्र महाखड्ड के पार भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में फैली पहाड़ियों का सम्मिलित नाम पूर्वाचल है। इन पहाड़ियों की औसत ऊँचाई समुद्रतल से 500 से 3000 मी. तक है। ये पहाड़ियाँ दक्षिणी-अरूणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम, मेघालय और त्रिपुरा में स्थित हैं। मिश्मी, पटकाई बुम, नागा, मणिपुर और मिजो (लुशाई) तथा त्रिपुरा इस क्षेत्र की प्रमुख पहाड़ियाँ हैं। मेघालय का पठार उत्तर-पूर्वी पहाड़ियों का ही एक भाग है। इस पठार में गारो, खासी और जयन्तिया पहाड़ियाँ हैं। सरंचनात्मक दृष्टि से यह प्रायद्वीपीय भारत का ही भाग माना जाता है।

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भारत की भू-आकृति

भारत भौतिक विविधताओं का देश है। यहाँ लगभग सभी प्रकार की स्थलाकृतियाँ पाई जाती हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार भारत के कुल क्षेत्रफल के 29.3% भाग पर पर्वत, 27.7% भाग पर पठार तथा 43% भाग पर मैदान फैले हुए हैं।

Landforms-of-India
Image Source – NCERT

भू-आकृतिक दृष्टि से भारत को चार विभागों में बाँटा जा सकता है –

  1. उत्तरी विशाल पर्वत,
  2. उत्तरी विशाल मैदान,
  3. विशाल पठार,
  4. तटवर्ती मैदान और द्वीप समूह
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भारत की स्थिति, विस्तार एवं सीमाएँ

प्राचीनकाल में हमारा देश आर्यावर्त के नाम से जाना जाता था। बाद में इसे भारत, हिन्दुस्तान और ‘इण्डिया’ कहने लगे। हिन्द महासागर का नाम हमारे देश के नाम पर ही रखा गया है। यही एक मात्र ऐसा महासागर है जिसका नाम किसी देश के नाम पर रखा गया है। संविधान में हमारे देश के दो ही नाम स्वीकृत हैं – भारत या इण्डिया।

भारतीय उपमहाद्वीप के
उत्तर-पश्चिम, उत्तर और उत्तर पूर्व में ऊँचे-ऊँचे नवीन वलित पर्वत हैं।
दक्षिण-पश्चिम में अरब सागर,
दक्षिण-पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा
दक्षिण में हिन्द महासागर हैं।

India map

भारत की अक्षांशीय और देशान्तरीय विस्तार (India’s Latitudes and Littoral Extensions)

  • भारत पूरी तरह से उत्तरी गोलार्ध में स्थित है।
  • भारत की मुख्य भूमि 8°4′ और 37°6′ उत्तरी अक्षाशों तथा 68° 7′ व 97°25′ पूर्वी देशान्तरों के बीच फैली है।
  • इस प्रकार भारत का अक्षांशीय तथा देशान्तरीय विस्तार लगभग 29° में है। लेकिन धरातल पर वास्तविक दूरी उत्तर से दक्षिण 3214 कि.मी. तथा पूर्व से पश्चिम तक 2933 कि.मी. हैं।

अक्षांशीय और देशान्तरीय विस्तार समान होने पर भी वास्तविक दूरी में इतना बड़ा अन्तर क्यों है?

ऐसा इसलिए है कि विषुवत वृत्त पर दो क्रमिक देशान्तरो के बीच की दूरी घटती जाती है और ध्रुवों पर यह शून्य हो जाती है। ऐसा इसलिए है कि सभी देशान्तर रेखाएँ उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर एक बिन्दु में मिल जाती है। इसके विपरीत किसी भी देशान्तर रेखा पर दो क्रमिक अक्षांश वृत्तों के बीच उत्तर से दक्षिण की दूरी सदैव एक समान अर्थात 111 कि. मी. ही रहती है। निम्नलिखित सारिणी से यह बात भली भांति स्पष्ट हो जाती है।

अक्षांश0102030405060708090
दूरी कि.मी.111109.6104.696.485.471.755.838.219.40

भारत की मुख्य भूमि का उत्तरी छोर जम्मू-कश्मीर राज्य में है तथा तमिलनाडु में कन्याकुमारी इसका दक्षिणी छोर है। लेकिन देश का दक्षिणतम छोर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में है। इसे इन्दिरा पाइंट कहते हैं। यह 6°30′ उत्तरी अक्षांश पर स्थित है। भारत का पश्चिमी सिरा गुजरात में तथा पूर्वी सिरा अरूणाचल प्रदेश में है।

भारत के उत्तरी भाग विषुवत वृत्त से काफी दूर हैं। अतः इन भागों में सूर्य की किरणे अधिक तिरछी पड़ती है। फलस्वरूप यहाँ सूर्यातप कम मिलता है। अतः दक्षिणी भारत का भौतिक भागों के विपरीत ये भाग ठंडे हैं। अधिक अक्षांशीय विस्तार का प्रभाव दिन और रात विन्यास की अवधि पर भी पड़ता है। विषुवत वृत्त के निकट स्थित भारतीय क्षेत्रों में दिन और रात की अवधि में लगभग 45 मिनट का अन्तर होता है। भारत के उत्तरी भागों में दिन और रात की अवधि में यह अन्तर क्रमशः बढ़ता ही जाता है। उत्तरी भाग में यह अंतर 5 घंटे तक का हो जाता है।

कर्क रेखा भारत के लगभग बीच से होकर गुजरता है। इस प्रकार कर्क रेखा के दक्षिण का भाग उष्ण कटिबंध में स्थित है और कर्क रेखा के उत्तर का शेष आधा भाग शीतोष्ण कटिबंध में आता है।

भारत का देशान्तीय विस्तार लगभग 29° का है। अतः भारत के पूर्वी और पश्चिमी छोरों के वास्तविक समय में लगभग दो घंटे का अन्तर रहता है। इस प्रकार जब भारत के पूर्वी छोर पर सूर्योदय होता है तब पश्चिम छोर अंधकार में डूबा होता है। समय के अन्तर की इस गड़बड़ी को दूर करने के लिए अन्य देशों की तरह भारत ने भी एक मानक मध्याह्न रेखा का चुनाव किया है। मानक मध्याह्न रेखा पर जो स्थानीय समय होता है, उस समय को देश का मानक समय माना जाता है।

भारत की मानक मध्याह्न रेखा 82°30′ पूर्वी देशान्तर है। इस का स्थानीय समय ही सारे भारत का मानक समय माना गया है। मध्याह्न रेखा का चुनाव करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वह देश के लगभग मध्य से गुजरे तथा 7°30′ से पूरी-पूरी विभाजित हो जाए। 82°30′ देशान्तर रेखा इन दोनों ही कसौटियों पर खरी उतरती है।

भारत का उत्तरी मध्य भाग चौड़ा है, जबकि इसका दक्षिणी भाग हिन्द महासागर की ओर संकीर्ण होता गया है। इस प्रकार हिन्द महासागर भारतीय प्रायद्वीप के कारण दो भागों में विभाजित हो गया है। उत्तरी हिन्द महासागर का पश्चिमी भाग अरब सागर के नाम से तथा पूर्वी भाग बंगाल की खाड़ी के नाम से जाना जाता है। द्वीप समूहों सहित भारत की तट रेखा की कुल लंबाई 7516.6 कि.मी. है। पाक जल-सन्धि भारत की मुख्य भूमि को श्रीलंका से पृथक करती है।

भारत की भू-सीमा 15200 कि.मी. लंबी है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन, नेपाल, म्याँमार, भूटान और बांग्लादेश से हमारे देश की सीमाएँ मिलती हैं।

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